संक्रमण की कड़ी टूटेगी?

By: Apr 21st, 2021 12:02 am

देश की राजधानी दिल्ली में लॉकडाउन लागू करना पड़ा है। इसके अलावा महाराष्ट्र, उप्र, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, उत्तराखंड, गुजरात आदि राज्यों में भी लॉकडाउन है अथवा नाइट कफ्र्यू जारी है। शब्दावली भिन्न हो सकती है, लेकिन कोरोना वायरस के बेकाबू संक्रमण के कारण तालाबंदी और घरबंदी ही एकमात्र विकल्प शेष रह गया था, जिससे संक्रमण की कड़ी टूट सकती है। हालांकि दिल्ली में लॉकडाउन अगले सोमवार, 26 अप्रैल की सुबह 5 बजे तक ही है, लेकिन आम आदमी आशंकित है कि इसे भी पिछले लॉकडाउन की तरह बढ़ाया जा सकता है। प्रवासी मजदूर और कामगार ज्यादा खौफजदा हैं, लिहाजा उनमें पलायन शुरू हो गया है। हालांकि ऐसे छोटे लॉकडाउन पिछले साल की राष्ट्रीय तालाबंदी से बेहतर हैं, क्योंकि वह केंद्रीकृत घोषणा थी और बेहद कठोर, आक्रामक थी। अब नीति और आपदा प्रबंधन का नया मॉडल सामने आ रहा है कि राज्य सरकारें ही संक्रमण के स्थानीय हालात के मद्देनजर फैसला ले सकती हैं और तालाबंदी का विकल्प चुन सकती हैं। एक तरह की पूर्ण तालाबंदी महाराष्ट्र और दिल्ली में ही करनी पड़ी है, फिर भी बहुत कुछ खुला है। आर्थिक गतिविधियों पर पूर्णविराम चस्पा नहीं किया गया है।

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने औद्योगिक वर्ग को संबोधित करते हुए पूरे देश को आश्वस्त किया है कि अब राष्ट्रीय लॉकडाउन नहीं लगाया जाएगा। इस बीच प्रधानमंत्री मोदी ने, देश के बड़े डॉक्टरों और दवा कंपनियों के प्रतिनिधियों से संवाद करने के बाद, एक बेहद महत्त्वपूर्ण निर्णय लिया है कि अब देश का प्रत्येक वयस्क, 18 साल और अधिक की उम्रवाला, कोरोना टीका लगवाने का पात्र होगा। अब 50 फीसदी टीके केंद्र सरकार, तो 50 फीसदी टीके राज्य सरकारें, निजी अस्पताल और खुला बाज़ार, सीधे कंपनियों से ही, खरीद सकेंगे। विदेश से भी टीका खरीदने के प्रावधान किए जा रहे हैं। टीका कंपनियां अपना उत्पादन बढ़ा सकें, लिहाजा सीरम को 3000 करोड़ और भारत बायोटैक को 1567 करोड़ रुपए के अग्रिम भुगतान भारत सरकार कर रही है। अब राज्य सरकारें ही तय करेंगी कि वे अपने नागरिकों को मुफ्त में टीका लगाना चाहती हैं अथवा टीके की एक निश्चित कीमत वसूल करना चाहती हैं। राज्य सरकारें और निजी क्षेत्र टीका कंपनियों के साथ अलग-अलग अनुबंधों पर हस्ताक्षर करेंगे। यह वाकई संघीय ढांचे और विकेंद्रीकरण का उदाहरण होगा। बहरहाल तालाबंदी से आम आदमी की गतिविधियां काफी कम हो जाएंगी, लिहाजा संक्रमण फैलने की संभावनाएं भी कम हो सकती हैं।

इससे जो स्वास्थ्य ढांचा फिलहाल तनाव और दबाव में माना जा रहा है और ध्वस्त होने के कगार पर भी है, उसे कुछ राहत मिल सकती है। ऑक्सीजन, बिस्तर, वेंटिलेटर और दवाओं से जुड़ी विसंगतियों को दुरुस्त किया जा सकेगा और आम नागरिक के इलाज हासिल करने के मौलिक अधिकार, अनुच्छेद 21 के तहत, की रक्षा की जा सकेगी। तालाबंदी और टीकाकरण की नई नीति से कमोबेश यह उम्मीद जरूर की जानी चाहिए। फिलहाल हम यह अपेक्षा नहीं कर सकते कि स्वास्थ्य ढांचे और व्यवस्था के मद्देनजर भारत भी रातोंरात अमरीका और यूरोपीय देशों की होड़ करने लगेगा। अलबत्ता कोरोना संक्रमण की महामारी के दौरान अभी तक जो भयावह और अमानवीय दृश्य हमें देखने पड़े हैं, कमोबेश उनमें सुधार होगा। यदि अब भी हम सुधर और सचेत नहीं हो पाए, तो फिर हमें ‘नालायक देशों’ की जमात में खड़ा होना पड़ेगा और विश्व स्तर के तमाम दावे एकदम छोडऩे पड़ेंगे। खुद दावे बंद नहीं करेंगे, तो दुनियावी ताकतें और हालात ऐसा करने को विवश कर देंगे। तालाबंदी और टीकाकरण का विस्तार दोनों ही स्थितियां एक साथ हमें मिली हैं।

प्रख्यात चिकित्सकों और वैज्ञानिकों का साररूप में मानना है कि सिर्फ टीकाकरण ही मौजूदा संक्रमण से हमें बचा सकता है। कोई निश्चित दवा और इलाज उपलब्ध नहीं है, अलग-अलग शोध सामने आ रहे हैं, लेकिन टीकाकरण पर कमोबेश सभी सहमत हैं कि इससे इनसान को गंभीर संक्रमण और अंतत: मौत से बचाया जा सकता है। लिहाजा टीकाकरण की गति पर तालाबंदी की पाबंदियों की विपरीत छाया नहीं पडऩी चाहिए, इस मुद्दे पर राजनीति भी नहीं होनी चाहिए, दलगत दोषारोपण से कुछ भी हासिल नहीं होगा। जितनी जल्दी हो सके, इतनी व्यापक और विशाल आबादी के हमारे देश के अधिकतम नागरिकों को टीका लगाया जाए, ताकि हम संक्रमण की आने वाली स्थितियों से बच सकें और मौजूदा कडिय़ों को तोड़ सकें।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App