हिमाचल राष्ट्रीय महिला हैंडबाल में विजेता

By: Apr 5th, 2021 12:07 am

हमीरपुर महाविद्यालय की एक समय में ही पांच धाविकाएं 2010 राष्ट्रमंडल खेलों के लिए लगे नेशनल कैंप में पहुंच गई थीं। प्रदेश के दूरदराज के शिक्षा संस्थानों में भी उपलब्ध खेल सुविधा के अनुसार खेल विंग या अकादमी खुलनी चाहिए। हिमाचल प्रदेश में अधिक से अधिक खेल अकादमी व विंग खुलते हैं तो हिमाचल प्रदेश को खेलों में नई ऊंचाइयां मिलेंगी…

कोरोना महामारी से हुए लंबे बंद के बाद पिछले माह बरेली में आयोजित राष्ट्रीय हैंडबाल प्रतियोगिता में हिमाचल प्रदेश की महिला टीम ने पिछले तीन सालों की विजेता रेलवे टीम को फाइनल में चार गोलों के अंतर से हरा कर विजेता ट्राफी पर पहली बार कब्जा कर अपनी पिछली तीन वर्षों की हार का बदला चुकता कर दिया है। हिमाचल प्रदेश में हैंडबाल 1982 दिल्ली एशियाड के बाद काफी लोकप्रिय हुआ। बिलासपुर हैंडबाल का शुरू से ही अच्छा केंद्र रहा है। बात चाहे हैंडबाल संघ संचालन की हो या प्रशिक्षण की, बिलासपुर का योगदान सबसे अधिक रहा है। बिलासपुर जिले की घुमारवीं तहसील के मोरसिंघी गांव की बेटी घुमारवीं के सरकारी कालेज में पढ़ने जाती है, वहां पर इस एथलीट पृष्ठभूमि की विद्यार्थी को वहां का तत्कालीन शारीरिक शिक्षा का प्राध्यापक  डॉक्टर प्रवेश उसे हैंडबाल खेलने के लिए हैंडबॉल फील्ड तक पहुंचा कर हैंडबाल के प्रारंभिक गुर सिखाता है। एशिया स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व कर यह लड़की स्नेहलता  अंतरराष्ट्रीय हैंडबाल खिलाड़ी हरियाणा के सचिन चौधरी के साथ दांपत्य-जीवन शुरू करती है। हिमाचल प्रदेश के खेल आरक्षण के अंतर्गत शिक्षा विभाग में स्नेहलता राजनीति शास्त्र की प्रवक्ता बिलासपुर के साथ लगते सोलन जिला के नवगांव वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में प्रथम नियुक्ति पाती है।

नवगांव से ही स्नेहलता उस विद्यालय की लड़कियों के साथ अपनी नौकरी के साथ-साथ सवेरे-शाम हैंडबाल प्रशिक्षण का श्रीगणेश करती है। बाद में स्नेहलता का तबादला मोरसिंघी के विद्यालय में हो जाता है। स्नेहलता के पिता जी हैंडबाल अकादमी को जमीन देते हैं और हिमाचल के  दूरदराज गांव में देश की निजी क्षेत्र में सफलतम हैंडबाल अकादमी  खेल पटल पर सामने आती है। स्नेहलता के पति सचिन चौधरी का निर्देशन भी इस अकादमी की सफलता का सबसे बड़ा मूलमंत्र है। पिछले 2018 के एशियाड में लगभग एक-तिहाई भारत की टीम इसी अकादमी से प्रशिक्षित थी। कनिष्ठ राष्ट्रीय, स्कूली राष्ट्रीय व अखिल भारतीय अंतर विश्वविद्यालय हैंडबाल प्रतियोगिताओं में इस अकादमी के बल पर हिमाचल प्रदेश महिला वर्ग में विजेता का ताज पहने है। हिमाचल प्रदेश में पहले से चल रहे खेल छात्रावासों के अतिरिक्त और कई जगह खेल छात्रावास खोलने के लिए बहुत अधिक धन व संसाधनों की जरूरत पड़ेगी। हिमाचल प्रदेश में पहाड़ अधिक होने के कारण यहां एक स्थान पर बड़े मैदान खेल के लिए उपलब्ध नहीं हो सकते हैं। इसलिए कई खेलों के लिए एक जगह खेल छात्रावास बनाना  कठिन कार्य है। इसलिए यहां पर सुविधा व प्रतिभा के अनुसार खेल अकादमी या विंग कामयाब हो सकते हैं। पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला के तत्कालीन खेल निदेशक डॉक्टर राज कुमार ने विश्वविद्यालय परिसर व विभिन्न महाविद्यालयों में खेल सुविधा के अनुसार खेल विंग चलवा कर अखिल भारतीय अंतर विश्वविद्यालय खेलों की प्रतिष्ठित मौलाना अबुल कलाम ट्राफी पर कब्जा कर लिया था। पंजाब ने एक समय खेल विंगों के माध्यम से खेलों में श्रेष्ठतम स्थान प्राप्त किया हुआ था। प्रतिभा व सुविधा के अनुसार हिमाचल प्रदेश के विश्वविद्यालयों व महाविद्यालयों में भी सरकार खेल विंग खोलती है तो भविष्य में  हिमाचल के खिलाड़ी राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सकते हैं। हिमाचल प्रदेश के कई महाविद्यालयों के पास अंतरराष्ट्रीय स्तर का खेल ढांचा तैयार खड़ा यूं ही बेकार हो रहा है।

 इस कॉलम के माध्यम से पहले भी इस विषय पर बार-बार लिखा जा चुका है, मगर सरकार का रवैया उदासीन रहा है। खेल विंगों के लिए सरकार को न तो खेल ढांचा खड़ा करना पड़ता है और  न ही नया छात्रावास बनाना पड़ता है। केवल खेल विशेष का प्रशिक्षक और खिलाडि़यों के लिए खुराक व रहने का प्रबंध करना होता है जो आसानी से बहुत कम धन राशि खर्च करके हो सकता है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण निजी प्रयत्नों से स्नेहलता ने कर दिखाया है। हिमाचल प्रदेश सरकार चाहे तो राजकीय महाविद्यालय हमीरपुर, धर्मशाला व बिलासपुर में एथलेटिक्स के विंग आसानी से चल सकते हैं क्योंकि यहां तीनों जगह सिंथेटिक ट्रैक हैं। स्कूलों में भी यहां पर एथलेटिक्स की नर्सरियां स्थापित हो सकती हैं। ऊना तथा मंडी में तैराकी के लिए तरणताल उपलब्ध हैं। शिलारू व ऊना में एस्ट्रोटर्फ  हाकी के लिए बिछी हुई है। इस तरह हर जिले में किसी न किसी खेल के लिए प्ले सुविधा उपलब्ध है। क्या ऐसा नहीं हो सकता कि अच्छे प्रशिक्षकों व पूर्व खिलाडि़यों को बुला कर शिक्षा व खेल विभाग मिलकर विभिन्न खेलों की अकादमियां खोल दें। नब्बे के दशक से निजी प्रयत्नों से महाविद्यालय प्रशासन के साथ मिलकर कुछ प्रशिक्षकों ने सुंदरनगर में मुक्केबाजी तथा हमीरपुर में जूडो व एथलेटिक्स पर प्रशिक्षण कार्यक्रम जो शुरू किया था, उसी से मुक्केबाजी में परशुराम अवार्ड से सम्मानित शिव चौधरी व टोक्यो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई आशीष चौधरी के लिए आधार प्रशिक्षक नरेश कुमार ने तैयार किया। हमीरपुर से जूडो में परशुराम अवार्डी नूतन को  प्रशिक्षक कुलदीप शर्मा ने तराशा था।

हमीरपुर के एथलेटिक्स प्रशिक्षण कार्यक्रम से परशुराम अवार्डी पुष्पा ठाकुर ने तेज गति की दौड़ों में व संजो ठाकुर ने भाला प्रक्षेपण में राष्ट्रीय स्तर पर हिमाचल प्रदेश को पहचान दिलाई है। हमीरपुर महाविद्यालय की एक समय में ही पांच धाविकाएं 2010 राष्ट्रमंडल खेलों के लिए लगे नेशनल कैंप में पहुंच गई थीं। प्रदेश के दूरदराज के शिक्षा संस्थानों में भी उपलब्ध खेल सुविधा के अनुसार खेल विंग या अकादमी खुलनी चाहिए। हिमाचल प्रदेश में अधिक से अधिक खेल अकादमी व विंग खुलते हैं तो हिमाचल प्रदेश को खेलों में नई ऊंचाइयां मिलेंगी।

ईमेलः bhupindersinghhmr@gmail.com


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