भूपिंदर सिंह

क्या हिमाचल सरकार पंजाब, गुजरात आदि राज्य की तरह उत्कृष्ट खेल परिणाम दिलाने वाले बढिय़ा प्रशिक्षकों को यहां लगातार कई वर्षों के लिए अनुबंधित कर प्रदेश के खिलाडिय़ों को राज्य में ही प्रशिक्षण सुविधा दिला कर खेल प्रतिभा का पलायन रोक नहीं सकती है...

आज फिर राज्य में विभिन्न खेलों सहित तेज गति के उभरते हुए खिलाड़ी व एथलीट हैं जिनको वजीफे की बहुत अधिक 2026 में जरूरत है। इनके पास नौकरी नहीं है। सामान्य परिवारों से इनका संबंध है और जो हिमाचल से पलायन कर गए हैं, हिमाचल सरकार सम्मानजनक नौकरी दे तथा इन सभी एथलीटों को 2026 खेलों तक वजीफा भी दे। इस स्तर पर अपना अभ्यास जारी रखने के लिए महीने में पचास हजार रुपए चाहिए होते हैं। जो नौकरी में हैं वो तो बहुत कठिनाई से अपने वेतन से कुछ न कुछ जुगाड़ कर लेते हैं, मगर जो विद्यार्थी व बेरोजगार हैं, वे कैसे अपना अभ्यास जारी रखेंगे...

क्या शारीरिक प्राध्यापक को फिजिक्स वाले प्राध्यापक से कम वेतन व पदोन्नति मिलती है? जब सब विषय बराबर हैं तो यह भेदभाव किसलिए? खिलाडिय़ों का फिट रहना जरूरी है...

हिमाचल सरकार का खेल विभाग अभी तक इस खेल ढांचे के रखरखाव में विफल रहा है। उसके पास न तो चौकीदार हैं और न ही मैदान कर्मचारी, पर्याप्त प्रशिक्षकों की बात तो बहुत दूर की है...

पढ़ाई के नाम पर ज्यादा समय खर्च करने के कारण फिटनेस के लिए कोई समय नहीं बचता है। अधिकांश स्कूलों के पास फिटनेस के लिए न तो आधारभूत ढांचा है और न ही कोई कार्यक्रम है। आज का विद्यार्थी फिटनेस व मनोरंजन के नाम पर दूरसंचार माध्यमों का कमरे में बैठ कर खूब दुरुपयोग कर रहा है। ऐसे में विद्यार्थी के सर्वांगीण विकास की बात मजाक लगती है...

ईंनोजोकी ओलंपियन मुक्केबाज आशीष की धर्मपत्नी है तथा चेतन चौधरी राष्ट्रीय खेल रांची के स्वर्ण पदक विजेता जौनी चौधरी का भतीजा है। कुश्ती में खुशी व सोनिका ने भी प्रदेश की झोली में कांस्य पदक डाले हैं। वुशू में भी दो महिला खिलाडिय़ों दिव्या राणा व मधु ने अपने-अपने वजन में कांस्य पदक जीत कर प्रदेश का मान बढ़ाया है। राफ्टिंग में हिमाचल के राफ्टरों ने एक रजत व तीन कांस्य पदक जीतकर राज्य के झंडे को ऊपर रखा है। राष्ट्रीय खेलों में पिछले साल की रैंकिंग में आई पहली आठ टीमें ही भाग ले सकती हंै। हिमाचल प्रदेश की कोई भी पुरुष टीम आज तक राष्ट्रीय खेलों में कोई भी पदक जीत नहीं पाई थी। मगर हिमाच

इस स्तर पर अपना अभ्यास जारी रखने के लिए महीने में पचास हजार रुपए चाहिए होते हैं। जो नौकरी में हैं वो तो बहुत कठिनाई से अपने वेतन से कुछ न कुछ जुगाड़ कर लेते हैं, मगर जो विद्यार्थी व बेरोजगार हैं, वे कैसे अपना अभ्यास जारी रखें, यह हिमाचल सरकार को सोचना होगा। क्या प्रदेश सरकार कुछ उपकार इन प्रतिभाशाली एथलीटों पर करेगी ताकि वे फ्री माईंड होकर अपना प्रशिक्षण जारी रख सकें। खिलाड़ी बनाए नहीं जाते हैं, वे जन्म से ही अलग होते हैं...

आज के ओलंपिक खिलाड़ी भी शौकिया न होकर अब पेशेवर हो गए हैं। सदी पूर्व जब जिम थोर्पे के ओलंपिक पदक इस लिए छीन लिए गए थे कि उसने कहीं खेल के नाम पर थोड़ा सा धन ले लिया था। आज अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक्स महासंघ स्वयं विश्व रिकॉर्ड बनाने पर एक लाख अमरीकी डालर इनाम देता है और भारत में तो कु

योग के नियमों का पालन करने के बाद अगर यौगिक क्रियाओं को किया जाता है तो मानव में शारीरिक-मानसिक स्तर पर आश्चर्यजनक रूप से अलौकिकता का सुधार होता है...

सुजानपुर व जयसिंहपुर के बड़े मैदानों पर तो पहले ही बहुत अतिक्रमण हो चुका है। अब मंडी के पड्डल मैदान में तो इंडोर बना कर उसे बर्बाद करने की कसरत शुरू हो गई है। सरकाघाट महाविद्यालय का खेल मैदान अभी तक भी कृषि विभाग का खेत ही नजर आता है। भवन निर्माण उन्नत प्रौद्योगिकी के कारण कहीं भी बन सकता है, तो फिर मैदान के लिए दुर्लभ समतल जगह को क्यों बरबाद किया जा रहा है। हर शिक्षा संस्थान को अपना खेल मैदान चाहिए...