प्रचंड ने हिला दी नेपाली सत्ता

इस समय नेपाल की संसद में सबसे बड़ी पार्टी केपी शर्मा ओली के नेतृत्व वाली पार्टी है जिसके पास कुल 120 सांसद हैं, जबकि नेपाली कांग्रेस के पास 61, माओवादी के पास 48 और जनता समाजवादी पार्टी के पास 32 सांसद हैं। कांग्रेस के नेता शेर बहादुर देउवा के नेतृत्व में गठबंधन सरकार बनाने का दावा पेश किया है, लेकिन इनके पास सिर्फ 124 सांसद ही हैं, जबकि बहुमत के लिए 136 सांसदों की जरूरत है। निचले सदन में कुल 232 वोट डाले गए। 93 सांसदों ने ओली के पक्ष में मत किया। वहीं 124 सांसदों ने उनके खिलाफ  वोट किया। 15 सांसदों ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया। प्रतिनिधि सभा के विशेष सत्र में ओली ने औपचारिक रूप से विश्वास प्रस्ताव पेश किया…

नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने 10 अप्रैल 2021 को सदन का विश्वास खो दिया और पदमुक्त हो गए। पुष्पकमल दहल प्रचंड के नेतृत्व में नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी ने ओली सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। इसके बाद उन्हें निचले सदन में बहुमत साबित करना था। कोरोना के बढ़ते खतरे के बीच नेपाल में 10 अप्रैल को इसके लिए विशेष सत्र बुलाया गया था। प्रधानमंत्री ओली को 275 सदस्यीय सदन में बहुमत साबित करने के लिए विश्वास मत जीतना था। पुष्पकमल दहल के नेतृत्व में नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। इसके बाद ओली सरकार अल्पमत में आ गई थी। इसके बाद से ही नेपाल में राजनीतिक संकट खड़ा हो गया। दुनियाभर में इस सियासी उठापटक की चर्चा हुई। यहां तक कि चीन ने इस मामले में हस्तक्षेप करने की कोशिश भी की। नेपाल, भारत का एक ऐसा पड़ोसी देश है जिसके साथ हमारे सामाजिक-सांस्कृतिक और आर्थिक संबंध अच्छे रहे हैं। दोनों देशों के बीच 1850 किलोमीटर से अधिक लंबी सीमा भारत के 5 राज्यों उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल एवं सिक्किम से लगती है। 1950 की भारत-नेपाल शांति और मित्रता संधि दोनों देशों के बीच के मजबूत संबंधों को आधार प्रदान करती है। इस संधि के द्वारा ही दोनों देशों के बीच वस्तुओं एवं लोगों की बिना रोक-टोक आवाजाही सुनिश्चित हो पाती है। रक्षा एवं विदेश मामलों में भी इस संधि का प्रभाव देखा जा सकता है तथा नेपाल को भारत से हथियार खरीदने की भी सुविधा प्राप्त हो पाती है। दोनों देशों के बीच आवागमन न सिर्फ आजीविका के लिए होता था, बल्कि ‘रोटी-बेटी का रिश्ता’ है। नेपाल अपने व्यापार के लिए न सिर्फ  कोलकाता बंदरगाह का उपयोग करता है, बल्कि भारत द्वारा बड़े निवेश का भी फायदा उठाता है।

दोनों के मध्य राजनीतिक संबंध भी ठीक रहे हैं। लेकिन वर्तमान समय में चीन द्वारा किए जाने वाले हस्तक्षेप ने इसमें खटास डाल रखी है। गौरतलब है कि नेपाल का वर्तमान राजनीतिक संकट पिछले साल 20 दिसंबर को तब शुरू हुआ जब राष्ट्रपति भंडारी ने प्रधानमंत्री ओली की अनुशंसा पर संसद को भंग कर 30 अप्रैल और 10 मई को नए सिरे से चुनाव कराने का निर्देश दिया। ओली ने यह अनुशंसा सत्तारूढ़ नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी में सत्ता को लेकर चल रही खींचतान के बीच की थी। चीन ने नेपाल की अंदरूनी राजनीति में दखलअंदाजी देने की भरपूर कोशिश की, लेकिन ओली के बदले तेवरों से साफ  हो गया था कि वे चीन की गोद में नहीं बैठने वाले। उन्होंने भारत को अपना सबसे करीबी सहयोगी बताकर चीन को स्पष्ट संदेश दे दिया। वैसे तो ओली को चीन समर्थक माना जाता रहा है, लेकिन हाल ही में उन्होंने चीन के प्रति जिस तरह से अपना रुख बदला है, उसकी बड़ी वजह यह भी बताई जा रही है कि वे अब भारत से नजदीकियां बढ़ाकर पार्टी के नाराज कैडर और वहां की जनता का भरोसा जीतना चाहते हैं। चीन की ओर झुकाव रखने वाले 69 वर्षीय ओली इससे पहले 11 अक्तूबर 2015 से तीन अगस्त 2016 तक नेपाल के प्रधानमंत्री रहे।

 तब भारत के साथ नेपाल के रिश्तों में तल्खी थी। पहले कार्यकाल में ओली ने सार्वजनिक रूप से भारत की आलोचना करते हुए नेपाल के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने और उनकी सरकार को सत्ता से बेदखल करने का आरोप लगाया था। हालांकि उन्होंने दूसरे कार्यकाल में आर्थिक समृद्धि के लिए भारत के साथ मिलकर आगे बढ़ने का वादा किया था। दूसरे कार्यकाल में भी ओली ने दावा किया कि उनकी सरकार द्वारा देश के मानचित्र में रणनीतिक रूप से अहम भारत के हिस्सों लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा को दिखाने के बाद उन्हें सत्ता से बेदखल करने की कोशिश की जा रही है। इस घटना से दोनों देशों के रिश्तों में तनाव आ गया था। वह नेपाल के उन कुछ नेताओं में हैं जिन्होंने कई साल जेल में बिताए हैं। वह वर्ष 1973 से 1987 तक लगातार 14 साल जेल में रहे। ओली जेल से रिहा होने के बाद यूएमएल की केंद्रीय समिति के सदस्य बने और 1990 तक लुम्बिनी क्षेत्र के प्रभारी रहे। वर्ष 1990 में लोकतांत्रिक आंदोलन से पंचायती राज का अंत हुआ और ओली देश में लोकप्रिय नाम बन गया। अब उनको दोबारा प्रधानमंत्री बनाने की तैयारी चल रही है। सदन में विश्वास खोने के बाद केपी शर्मा ओली ने सोमवार को कैबिनेट की बैठक की। अब तक माओवादी के साथ मिलकर गठबंधन की सरकार चला रहे ओली को अब नेपाल के संविधान के मुताबिक सिंगल लार्जेस्ट पार्टी के नेता के रूप में प्रधानमंत्री पद पर शपथ ग्रहण कराने की तैयारी है। नेपाल के संविधान की धारा 76 की उपधारा 2 के मुताबिक गठबंधन की सरकार बनती है और यह फेल होने के बाद संविधान की धारा 76 की उपधारा 3 के मुताबिक सबसे बड़ी पार्टी के नेता को सरकार बनाने का प्रावधान है। चूंकि ओली के विपक्ष में रहे गठबंधन के पास भी बहुमत के लिए आवश्यक 136 सांसदों का समर्थन नहीं है, इसलिए राष्ट्रपति अब सरकार बनाने की अगली प्रक्रिया को आगे बढ़ाएंगी।

इस समय नेपाल की संसद में सबसे बड़ी पार्टी केपी शर्मा ओली के नेतृत्व वाली पार्टी है जिसके पास कुल 120 सांसद हैं, जबकि नेपाली कांग्रेस के पास 61, माओवादी के पास 48 और जनता समाजवादी पार्टी के पास 32 सांसद हैं। कांग्रेस के नेता शेर बहादुर देउवा के नेतृत्व में गठबंधन सरकार बनाने का दावा पेश किया है, लेकिन इनके पास सिर्फ 124 सांसद ही हैं, जबकि बहुमत के लिए 136 सांसदों की जरूरत है। निचले सदन में कुल 232 वोट डाले गए। 93 सांसदों ने ओली के पक्ष में मत किया। वहीं 124 सांसदों ने उनके खिलाफ वोट किया। 15 सांसदों ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया। प्रतिनिधि सभा के विशेष सत्र में ओली ने औपचारिक रूप से विश्वास प्रस्ताव पेश किया और सभी सदस्यों से इसके पक्ष में मतदान करने की अपील की। अब नेपाली संविधान के अनुच्छेद 100 (3) के मुताबिक ओली स्वतः ही प्रधानमंत्री के पद से मुक्त हो गए हैं। नेपाल में नेतृत्व का संकट भारत के लिए चीन के नेपाल में बढ़ते राजनीतिक दखल को शिथिल करने का शानदार अवसर है। भारत और नेपाल पुरातन काल से एक नहीं, बल्कि अनेक प्रकार की सांस्कृतिक, आर्थिक व सामाजिक सांझ रखते है, जिसे सुदृढ़ करने का एक बार फिर राजनीतिक आधार बन रहा है।

संपर्क :

डा. वरिंदर भाटिया, कालेज प्रिंसीपल

ईमेल : hellobhatiaji@gmail.com


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