डा. वरिंदर भाटिया

अब इंडस्ट्री, सार्वजनिक प्रशासन, सार्वजनिक नीति या सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में कम से कम 10 साल के सीनियर लेबल के एक्सपीरियंस वाले ऐसे व्यक्ति भी कुलपति के पद के लिए पात्र हैं जिनका एकेडमिक रिकॉर्ड अच्छा है। क्या यह ठीक नहीं है? यदि ठीक है तो ऐसे ही और प्रस्तावित सुधारों को सकारात्मक तरीके से लेना क्या गलत होगा...

फेल होने की आशंका से छात्र पढ़ाई में अधिक गंभीरता दिखा सकते हैं। यह कदम शिक्षकों को भी छात्रों के प्रदर्शन में सुधार लाने के लिए प्रोत्साहित करेगा। दूसरी ओर ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों के छात्रों के लिए यह नीति चुनौतीपूर्ण साबित हो सकती है। देहात में शिक्षा के संसाधनों की कमी और शिक्षकों की अनुपलब्धता इन छात्रों को पीछे छोड़ सकती है। छोटे बच्चों पर फेल होने का डर मानसिक तनाव बढ़ा सकता है। यूं भी परीक्षा का फोबिया सांप या फिर बब्बर शेर के फोबिया से कम नहीं होता। केवल वार्षिक परीक्षा के आधार पर छात्रों को पास-फेल करना शिक्षा का सही मापदंड नहीं है...

पुरुष आयोग की मांग कर रहीं एक महिला सामाजिक कार्यकर्ता का कहना है कि हमारे समाज में जब पुरुष के ऊपर अत्याचार होता है तो उनकी सुनने वाला भी कोई नहीं होता है। वह कहती हंै कि हमारे पास बहुत सारे ऐसे मामले आते हैं, जिनमें पुरुष अपनी ही पत्नियों से प्रताडि़त रहते हैं। पत्नी के द्वारा गलत आरोप लगाकर पारिवारिक न्यायालय में केस दर्ज कराया जाता है। इस तरह के केसों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। इसके पीछे कई कारण हैं। उन्होंने कहा कि हर महिला या हर पुरुष एक समान नहीं होता है। कुछ महिलाएं सीमाओं का उल्लंघन करती हैं...

हम खुद को भले ही कितना आगे बढ़ता हुआ देखें, भले ही हमने चांद पर कदम रख लिया हो, चाहे क्यों न हमने पृथ्वी के साथ मंगल ग्रह में भी अपना परचम फहरा दिया हो, लेकिन जब तक देश की बेटी ही सुरक्षित न हो तो ऐसे देश के विकासशील होने का भला क्या फायदा। गौरतलब है कि कई बार स्कूल से लेकर विश्वविद्यालयों तक लड़कियों ने अकेले और सामूहिक रूप से यौन शोषण के खिलाफ आवाज बुलंद की है। हालांकि यह हिम्मत हर स्कूल और कॉलेज परिसर में देखने को नहीं मिलती...

इससे सेक्सुअल लाइफ प्रभावित होती है, जिससे कुछ लोग तनाव का सामना करने लगते हैं। कई अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि जो जोड़े एक साथ बिस्तर शेयर करते हैं, उनमें मनमुटाव या विवाद के सुलझने की संभावनाएं ज्यादा होती हैं। जबकि अलग-अलग सोने वाले जोड़े एक ही मुद्दे पर लंबे समय तक झगड़ते रह सकते हैं। ऐसे में रिश्ता टूटने या किसी एक या दोनों के कहीं और स्पेस तलाशने का जोखिम ज्यादा बढ़ जाता है। स्लीप डिवोर्स तभी बेहतर तरह से काम कर सकता है, जब दोनों पार्टनर्स की इस पर सहमति हो...

अब भी दुनिया के एक बड़े हिस्से में इस अवधारणा को सामाजिक स्वीकृति मिली हुई है कि शादी के रिश्ते में सेक्स के लिए सहमति का कोई महत्व नहीं है। दूसरी तरफ आज की तारीख में 150 देशों में मैरिटल रेप को अपराध घोषित किया जा चुका है। प्रथाओं के चलते, अपने देश में कुछ खास दिनों में सेक्स से परहेज अनिवार्य होता था। लेकिन ये सब अवरोध पुरुषों के लिए थे। एक तरह से यह मान कर चला जाता था कि सेक्स पर स्त्री मौन रहेगी। जब भी उसका पति उसके साथ सहवास की इच्छा व्यक्त करेगा, पत्नी ना-नुकुर नहीं कर सकती। यदि कहीं किसी स्त्री ने अपनी पहल पर पति से सेक्स की इच्छा व्यक्त की तो उसे बेह्या औ

फिनलैंड की स्कूल शिक्षा व्यवस्था को लेकर ऊपर बताई गई किन बातों को देश में अपनाए जाने की जरूरत है, इसका जवाब नकारात्मक नहीं लग रहा है। कुल मिला कर हमारी स्कूल शिक्षा के लिए फिनलैंड जैसे देश के तनावमुक्त शिक्षा मॉडल से सीखने के लिए कुछ तो है। इसके लिए हमें शिक्षा से जुड़ी ट्रेनिंग डेवलपमेंट और एजुकेशन सिस्टम को छात्रों-शिक्षकों और इससे जुड़े तंत्र को प्रभावशाली बनाना होगा और मजबूत करना होगा। इसके लिए हमें सभी स्तरों पर स्कूल शिक्षा सिस्टम में बड़े ओवरहाल और रिपेयर की तत्काल जरूरत है जिसमें सरकारों और शिक्षाविदों की भूमिका अग्रणी रहेगी...

उत्तर प्रदेश के मदरसों में जो पाठ्यक्रम चल रहे थे, वे धार्मिक थे, परंतु उनमें वैज्ञानिकता का अभाव था। अत: वहां भी पाठ्यक्रम को बदल कर सीबीएसई पाठ्यक्रम लागू किया जा रहा है। वहां भी पढऩे वाले बच्चों का सर्वांगीण विकास हो सकेगा, क्योंकि अब वे मात्र मजहब से जुड़े पाठ्यक्रम नहीं, अपितु एक पूर्ण पाठ्यक्रम पढ़ेंगे जो उनके व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास में सहायक होगा। सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं, आंध्र प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, जम्मू-कश्मीर, मिजोरम में भी शिक्षा सुधारों के क्षेत्रों में काम हुआ है...

इस तरह के दस्तावेज में किसी भी लिखित कदाचार का उल्लेख किया जाएगा और कॉलेज, आवेदक पर नजर रख सकता है। यह दस्तावेज आवेदन पत्र के साथ नत्थी होना चाहिए। हॉस्टल वार्डनों, छात्रों, अभिभावकों आदि के प्रतिनिधियों के साथ रैगिंग रोकने के उपायों और कदमों पर चर्चा करें। इस समय रैगिंग से जुड़ी विकराल घटनाओं के लिए कॉलेज और विश्वविद्यालय प्रशासन बुनियादी तौर पर निकम्मे प्रशासनिक प्रबंध के कारण जिम्मेवार कहे जा सकते हैं, जो छात्रों को नैतिक शिक्षा नहीं दे पा रहे हैं...

आजादी के बाद अब तक बनी सरकारें जानती थी कि हायर एजुकेशन पर फोकस किए बिना ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में झंडे नहीं गाड़े जा सकते। इस पर भी बहुत काम हुआ है। आजादी के वक्त देश में सिर्फ 20 यूनिवर्सिटीज और 404 कॉलेज थे। आज इनकी संख्या में कई गुना इजाफा हो चुका है। अतीत में हायर एजुकेशन में क्वांटिटी पर ज्यादा और क्वालिटी पर फोकस कम रहा है। आज भी थोक के भाव से यूनिवर्सिटीज खुली हैं, मगर पढ़ाई अच्छी नहीं हो रही है। कुछ इंजीनियरिंग कॉलेजों की स्थिति और भी बुरी है। निजी संस्थाओं और उद्यमियों ने कॉलेज तो खोल दिए हैं, मगर कई जगह फैकल्टी अच्छी नहीं रखी जा रही है। कई संस्थानों में अच्छी लैब्स भी नहीं हैं। स्कूली शिक्षा में कई जगह निजी क्षेत्र ने अच्छा काम किया है, मगर हायर एजुकेशन में अभी बहुत काम होना बाकी है...