कोरोना काल में लूटपाट से बचाएं जन प्रतिनिधि

ऐसे में यदि हमारे ग्राम पंचायतों के प्रतिनिधि, नगर निगमों के प्रतिनिधि, विधायक व सांसद जरूरी सामान की दुकानों तथा मेडिकल स्टोरों पर स्वयं जाकर छानबीन व छापामारी करें तो इस महामारी के दौर में यह कदम जनता के लिए किसी वरदान से कम नहीं होगा…

इस समय संपूर्ण भारत कोरोना वायरस की गंभीर चपेट में आ चुका है। छोटे-छोटे शहरों, गांवों तथा कस्बों में भी यह वायरस अपने पैर पसार चुका है। ऐसे में सरकारी अस्पतालों पर बढ़ता मरीजों का दबाव व सरकारी व्यवस्थाओं का लाचार होना संपूर्ण दुनिया द्वारा देखा जा रहा है। देश की राजधानी दिल्ली में ऑक्सीजन के लिए हाहाकार मचा हुआ है। राजनीतिक दलों में आपसी बहसबाजी व बयानबाजी शीर्ष पर है। संपूर्ण भारत में लाखों लोग इस महामारी के कारण अपने जीवन से हाथ धो बैठे हैं। हर रोज हजारों की संख्या में मौतें सामने आ रही हैं। प्रायः शांत व स्वास्थ्यवर्धक वातावरण के लिए जाना जाने वाला हिमाचल प्रदेश भी इस महामारी की चपेट में आ चुका है। इस छोटे से प्रदेश में हर रोज औसतन 4000 नए कोरोना मरीज मिल रहे हैं, जिनमें से 40 से 50 व्यक्ति हर रोज मृत्यु शैया पर लेट रहे हैं। अब यह वायरस हिमाचल प्रदेश के गांवों में भी अपने पैर पसार चुका है। कुछ समय पहले हिमाचल प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में अधिक मात्रा में विवाह संपन्न हुए जिसमें पहाड़ी कल्चर में लोगों का आपस में मिलना-जुलना तथा सामूहिक भोजन इत्यादि विभिन्न तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से भी इस वायरस में बढ़ोतरी देखने को मिली है। मजबूरन हिमाचल प्रदेश सरकार को लॉकडाउन जैसा कठोर कदम उठाना पड़ा है।

 लेकिन सरकार के पास और कोई विकल्प भी नहीं बचा है। कहते हैं जान है तो जहान है।  इस कहावत को चरितार्थ करने के लिए प्रदेश सरकार का संपूर्ण तंत्र व प्रशासन प्रदेशवासियों को कोरोना महामारी से बचाने के लिए रात-दिन एक कर रहा है। ऐसे में प्रदेश की जनता से यह उम्मीद जताई जा सकती है कि वे सरकार द्वारा जारी किए गए दिशा-निर्देशों का एक जागरूक नागरिक होने के नाते सही पालन करें। निश्चित तौर पर लॉकडाउन के समय प्रदेश के अधिकतर जनमानस को गंभीर आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में इस पहाड़ी क्षेत्र के कुछ संकीर्ण विचारधारा के लोग प्रदेशवासियों को लूटने की नई रूपरेखा बनाते हैं। कुछ समय से मार्केट में यदि कोई साधारण जनमानस कुछ खरीदने के लिए जाता है तो यह कहा जाता है कि लॉकडाउन के कारण इसकी कीमतों में बढ़ोतरी हो चुकी है। हिमाचल प्रदेश में 90 फीसदी आबादी ग्रामीण इलाकों में निवास करती है। गांवों के सीधे-सादे व भोले लोगों को लूटना सरल होता है। ग्रामीण इलाकों के लोग लंबी बसों की यात्रा करके अपने जरूरी सामान को खरीदने के लिए जब शहरों में पहुंचते हैं तो उनके पास न तो पर्याप्त समय होता है, न ही आवागमन की कोई पर्याप्त सुविधा होती है।  इस मूलभूत व आधारभूत आवश्यकता के अभाव के कारणों से मोलतोल करने का समय ही नहीं मिल पाता। ऐसे में कुछ संकीर्ण विचारधारा के व्यवसायी ग्रामीण वासियों को सीधा-सीधा लूटने में कामयाब हो जाते हैं। आज भी भारत का यह सिस्टम किसी इनसान की मजबूरी का फायदा उठाने के अनेकों अवसर देता है। अनेकों उदाहरण आपको इस कोरोना काल में मिल गए होंगे।

 ऐसे में अब किसको कोसें? वर्तमान सरकार को दोष दें या इससे पीछे की सरकारों को दोषी ठहराएं? बहस व आलोचना करने के अनेकों मुद्दे मिल जाएंगे और हर कोई अपनी बोलने की आजादी का भी भरपूर इस्तेमाल करना चाहता है, लेकिन समाधान के ऊपर विचार-विमर्श व चिंतन करने के लिए किसी के पास समय ही नहीं है। ऐसे में एक ही उपाय दिखता है कि यदि हमारे जनप्रतिनिधि जनता के साथ खड़े हो जाएं तो इस बुरे वक्त में प्रदेशवासियों को कुछ संकीर्ण विचारधारा के लोगों से लूटने से बचाया जा सकता है। हाल ही में हिमाचल प्रदेश की ग्राम पंचायतों में चुनाव हुए हैं तथा नए प्रतिनिधि पूर्ण जोश के साथ पंचायतों की सत्ता को संभाल चुके हैं। हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर भी इन नए चुने हुए प्रतिनिधियों से कोरोना वायरस के मरीजों से बातचीत करने, उनकी हौसला-आफजाई करने तथा वायरस से बचने के उपायों के संदर्भ में जागरूकता फैलाने का आह्वान कर चुके हैं। हिमाचल प्रदेश की 3615 पंचायतों को स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत 25000 रुपए प्रति पंचायत कोरोना वायरस से उत्पन्न परिस्थितियों को काबू पाने के लिए दिए जा रहे हैं। इस धनराशि से सेनेटाइजर, दवाइयां, अंतिम संस्कार व जरूरतमंद व्यक्तियों को विभिन्न तरह की सुविधाएं उपलब्ध करवाने का प्रयास किया जाएगा। यह एक अच्छी व जन-कल्याणकारी मुहिम हो सकती है। इसके साथ-साथ एक और बहुत ही गंभीर व महत्त्वपूर्ण विषय भी प्रदेश सरकार व जन-प्रतिनिधियों के ध्यान में लाना आवश्यक हो चुका है। पिछले कुछ समय से हिमाचल प्रदेश के मेडिकल स्टोरो में लूटपाट सरेआम देखने को मिल रही है। एन-95 मास्क, स्ट्रीमर, ऑक्सीमीटर व अन्य बहुमूल्य दवाइयों तथा उपकरणों की कीमतें कई गुना तक बढ़ चुकी हैं।

 अब तो मेडिकल स्टोर और विक्रेता भी दो टूक शब्दों में कस्टमर को प्रिंट रेट चुकता करने के लिए कहते हैं। यदि वह किसी तरह की बारगेनिंग करने का प्रयास भी करे तो उससे बदतमीजी व बदसलूकी पर भी उतर आते हैं।  हैरानी तब होती है जब 400 से 500 रुपए में मिलने वाला ऑक्सीमीटर आज 4000 से 5000 रुपए का प्रिंट रेट के साथ मार्केट में बेचा जा रहा है।  एक प्लास्टिक का स्ट्रीमर महज 200 से 300 रुपए में मिलने वाला आज 1000 का प्रिंट रेट प्राप्त कर चुका है। एक तो इस महामारी के समय में आजीविका बिल्कुल खत्म हो चुकी है, दूसरे यदि जरूरी दवाइयों  व उपकरणों के ऊपर इस तरह की हरकतें देखने को मिलेंगी तो निश्चित तौर पर यह देवभूमि के समतुल्य प्रदेश के लिए कतई भी अच्छा नहीं है। ऐसे में यदि हमारे ग्राम पंचायतों के प्रतिनिधि, नगर निगमों के प्रतिनिधि, विधायक व सांसद जरूरी सामान की दुकानों तथा मेडिकल स्टोरों पर स्वयं जाकर छानबीन व छापामारी करें तो इस महामारी के दौर में यह कदम जनता के लिए किसी वरदान से कम नहीं होगा। आज तो हालात ऐसे पैदा हो गए हैं कि एक तरफ  हम समाचारपत्रों में गोभी के मूल्य दो से पांच रुपए देखते हैं, वहीं दूसरी तरफ एक सब्जी विक्रेता 20 से 30 रुपए किलो बेच रहा है। किसी भी तरह का कोई भी नियंत्रण नहीं है। इससे गरीब-असहाय व्यक्ति इस महामारी की चपेट में आता जा रहा है।

कर्म सिंह ठाकुर

लेखक सुंदरनगर से हैं


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