हर बीमारी का इलाज सामाजिक सहभागिता

इन सब बातों से एक बात उभर कर सामने आती है कि भले ही बतौर इकाई हमें अधिक सफलता न मिले, लेकिन अगर हम सब मिलजुल कर यह प्रण कर लें कि चाहे कुछ भी हो, हम बिना डरे कोरोना से लड़ेंगे तो कोई भी ताक़त हमें विजय प्राप्त करने से नहीं रोक सकती। समय का फेर देखिए, कुछ अरसा पहले तक जो हमारे अपने थे, जिनके बिना हम अपनी जि़ंदगी की कल्पना भी नहीं कर सकते थे, उनके कोरोनाग्रस्त होने के बाद हम अपने आपको कितना लाचार महसूस कर रहे हैं…

भले ही आज समय आम आदमी के विपरीत चल रहा हो, कोरोना के चलते आपसी दूरियां बढ़ गई हों, तमाम दुश्वारियां हों, लेकिन तारीख़ गवाह है कि आदमी कभी हिम्मत नहीं हारता। कहते भी हैं ‘हिम्मत मरदां, मदद ख़ुदा।’ समाज जब भी ऐसी परिस्थितियों से दो-चार हुआ है, उसकी रहमत से कोई न कोई वसीला निकल ही आता है, बशर्ते आदमी हिम्मत न हारे। जब दाना कहते हैं कि परमात्मा हमारे भीतर है तो हमें यह अवश्य सोचना होगा कि हम प्रार्थना किससे कर रहे हैं, हमीं देह है अर्थात् बद्ध हैं और हमीं परमात्मा या ख़ुदा अर्थात् बुद्ध। लेकिन हमारी बद्धता हमें ताउम्र ज़ंजीरों से जुदा नहीं होने देती। ऐसे में मुसीबतज़दा होने पर हम अपनी कोशिश की बजाय बाहर से मदद की उम्मीद करते हैं। इसमें कोई दोराय  नहीं कि कोरोना एक ऐसी बीमारी है, जिससे पार पाना फिलहाल आसान नहीं लगता। वर्तमान में पूर्ण इलाज न सही लेकिन बचाव तो है। अगर हम सावधानीपूर्वक जिएं तो शायद ही अस्पताल पहुंचने की नौबत आए। दो गज़ की दूरी, सही तरीके से मास्किंग, सेनेटाइजेशन एवं समय-समय पर हाथ धोते रहना, भीड़ से दूरी बनाए रखना जैसी तमाम हिदायतों को अपने जीवन का अंग बना कर, हम एक-दूसरे की हिफ़ाज़त कर सकते हैं। मुझे लगता है कि बहादुरी इन हिदायतों को भुलाने में नहीं बल्कि अपने आपको, परिवार को और समाज को सुरक्षित बनाने में है। इन सब बातों से सिर्फ़ एक ही बात सामने आती है कि कोरोना से छुटकारा पाने के लिए हमें तमाम वैज्ञानिक तथ्यों को ध्यान में रखते हुए अपना बचाव और इलाज सुनिश्चित करना होगा। किंतु यह तभी संभव है जब हम अपना दिलो-दिमाग़ ख़ुला रखें और अंधविश्वासों की होली जलाएं।

इन सब बातों से एक बात उभर कर सामने आती है कि भले ही बतौर इकाई हमें अधिक सफलता न मिले, लेकिन अगर हम सब मिलजुल कर यह प्रण कर लें कि चाहे कुछ भी हो, हम बिना डरे कोरोना से लडें़गे तो कोई भी ताक़त हमें विजय प्राप्त करने से नहीं रोक सकती। समय का फेर देखिए, कुछ अरसा पहले तक जो हमारे अपने थे, जिनके बिना हम अपनी जि़ंदगी की कल्पना भी नहीं कर सकते थे, उनके कोरोनाग्रस्त होने के बाद हम अपने आपको कितना लाचार महसूस कर रहे हैं। जो अपने परिजनों को खो रहे हैं, वे उनके पास तक जाने से डर रहे हैं। पूरे देश भर में कई स्थानों पर पार्थिव देहों के अंतिम संस्कार की सम्मानजनक व्यवस्था न होने पर प्रशासन को यह जि़म्मेवारी संभालना पड़ रही है। कई स्थानों पर कुछ व्यक्ति और संगठन भी सामने आ रहे हैं। लेकिन फिर भी कई स्थानों से दिल दहलाने वाले उदासीनता के मामले सामने आ रहे हैं। ऐसे में हम कह सकते हैं कि बतौर समाज ही हमें जागना होगा, तभी इस भयावह स्थिति से निपटा जा सकता है। ऐसे ही एक मिसाल के रूप में हमारे सामने आए हैं, पालमपुर उपमंडल के विकास खंड भवारना के प्रधान और पंचायत सदस्य।

पंचायती राज संस्थाओं के इन सभी प्रतिनिधियों ने कोरोना संक्रमण के चलते मौत का ग्रास बने अपनी पंचायत के लोगों के अंतिम संस्कार की जि़म्मेवारी संभालने का प्रण लिया है। सुनने में विचित्र लगता है, लेकिन कोरोना संक्रमण से निधन पर जहां संबंधित परिवार एवं रिश्तेदार शवों को लेने और उनका अंतिम संस्कार करने से परहेज़ कर रहे हैं। ऐसे में जि़ला कांगड़ा के इस विकास खंड के पंचायत प्रतिनिधियों ने अतिम संस्कार को करवाने का जि़म्मा लेकर राज्य और देश के अन्य लोगों को आईना और राह दिखाने की पहल की है। हो सकता है पालमपुर प्रशासन की प्रेरणा से भवारना विकास खंड के पंचायत प्रतिनिधि प्रदेश ही नहीं, बल्कि आपदा की इस घड़ी में देश में ऐसी जि़म्मेवारी उठाने वाला पहला विकास खंड हो। पालमपुर उपमंडल के एसडीएम धर्मेश रामोत्रा बताते हैं कि प्रदेश में कोरोना संक्रमण से लोगों के निधन के बाद उनका अतिम संस्कार प्रशासन के सम्मुख चुनौती के रूप में खड़ा हो रहा था। ऐसे में पीपीई किट की उपलब्धता की नितांत ज़रूरत रहती थी। सभी पंचायत प्रतिनिधियों को कोविड प्रोटोकॉल की अनुपालना के साथ मृतकों के अंतिम संस्कार में शामिल होने की अपील की और स्वेच्छा से इस पुनीत कार्य में शामिल होने के लिए प्रेरित करने से पंचायत प्रतिनिधियों ने ख़ुले दिल से इसे स्वीकार किया और कुछ पंचायत के प्रतिनिधि संक्रमित लोगों के संस्कार में शामिल हुए।

 बाक़ी लोगों ने भी उनके इस क़दम की सराहना करते हुए स्वयं भी इसमें शामिल होने की इच्छा जताई है। दूसरी ओर कोरोना से अनाथ हुए बच्चों के संरक्षण के लिए हमीरपुर जि़ला प्रशासन ने विशेष इंतज़ाम करते हुए हेल्पलाइन नंबर जारी किए हैं। इस बीमारी से हर कोई जूझ रहा है। कोई अपने माता-पिता को खो रहा है तो कोई अन्य निकट संबंधियों को। संकट की इस घड़ी में वे बच्चे अधिक मुश्किलें झेल रहे हैं, जिनके माता-पिता अस्पताल में उपचाराधीन हैं या फिर कोरोना का ग्रास बन चुके हैं। टांडा मेडिकल कॉलेज में यह बीमारी तीन दिन की बच्ची को अनाथ कर गई। हमीरपुर जि़ला प्रशासन ने  ऐसे अनाथ बच्चों के संरक्षण, देखभाल एवं पुनर्वास के लिए बाल संरक्षण सेवाएं योजना के अंतर्गत विशेष प्रबंध किए हैं। उपायुक्त देबश्वेता बनिक के अनुसार महिला एवं बाल विकास विभाग ने कोविड-19 महामारी के कारण अनाथ हुए बच्चों की संपूर्ण देखभाल करने का जि़म्मा उठाने का निर्णय लिया है। कोविड नियमों के अंतर्गत ऐसे बच्चों को सुजानपुर स्थित अनाथ आश्रम में रखने की व्यवस्था की गई है। यहां कोरोना से प्रभावित लड़कों के लिए एक आइसोलेशन रूम बनाया गया है, जिसमें चार बैड लगाए गए हैं। बिझड़ी खंड में एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसमें 16 वर्षीय बच्चे के अनाथ होने की सूचना मिली है। प्रशासन द्वारा उसे देखभाल एवं संरक्षण देने की पूरी प्रक्रिया विभाग द्वारा प्रारंभ कर दी गई है।

अजय पाराशर

लेखक धर्मशाला से हैं


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