मुसीबत में मौत के आंकड़े

इस तरह राष्ट्रीय, राज्य, शहर, पंचायत स्तर पर जो भी आंकड़े सरकार के पास उपलब्ध हैं, वे लोगों की सामान्य जानकारी में आते रहेंगे व एक सामान्य वर्ष के आंकड़ों से तुलना करते हुए अतिरिक्त मृत्यु की जानकारी भी उपलब्ध होती रहेगी। यह समुचित नीतियों के लिए बहुत जरूरी है। जरूरी जानकारियां व आंकड़े केन्द्र सरकार के पास एकत्र होती रहें व लोगों को उपलब्ध न हों तो उनका उचित लाभ नीति-निर्धारण के लिए नहीं हो सकेगा। जरूरी बात तो यह है कि ये आंकड़े पंचायत, शहर, राज्य, राष्ट्र सभी स्तरों पर उपलब्ध रहें। ऐसी पारदर्शिता अपनाने से विकेंद्रित स्तर पर लोगों को नवीनतम जानकारी मिलती रहेगी जिससे उचित सावधानियां रखने व नीतियों को अपनाने में मदद मिलेगी…

कोविड-19 संकट ने एक बात तो उजागर कर ही दी है कि हमारी सरकारें महामारी तक में जरूरी आंकड़े संभाल नहीं पातीं। सरकारी और श्मशान-कब्रिस्तान से जुटाए गए मौत के आंकड़ों में जमीन-आसमान का अंतर इसकी एक बानगी है। इलाज के किसी भी ताने-बाने के लिए जरूरी प्रभावितों के आंकड़े आखिर जिम्मेदारी से क्यों नहीं रखे जा रहे? इस सामान्य सी जानकारी को संधारित करने में कौनसा पहाड़ ढकेलना पड़ रहा है? इस मसले की पड़ताल करना जरूरी हो गया है। हाल ही में मध्यप्रदेश व आंध्रप्रदेश के सिविल रजिस्ट्रेशन के जो आंकड़े प्रकाशित हुए हैं, वे देश के लिए गहरी चिंता का विषय हैं। इनके अनुसार मई में कुल रजिस्टर हुई मौतों में इन दो राज्यों में सामान्य वर्ष की अपेक्षा लगभग 4 से 5 गुणा की वृद्धि हुई। यदि सामान्य वर्ष में मई महीने में लगभग 32000 मौतें दर्ज होती हैं तो वर्ष 2021 में लगभग 160000 मौतें दर्ज हुईं। यह अभूतपूर्व है, पर यह जरूरी नहीं कि इतनी वृद्धि सभी राज्यों में हुई हो।

 तमिलनाडु से वृद्धि के जो आंकड़े मिले हैं, वे अपेक्षाकृत इससे कम हैं, हालांकि चिंताजनक तो वे भी हैं। कुल मिलाकर संकेत यह है कि मार्च में मृत्यु-दर में अधिक तेजी आनी आरंभ हुई जो कि मई में अपने चरम पर पहुंच गई। एक सामान्य दिन में भारत में एक दिन में सभी कारणों से लगभग 26000 मौतें होती हैं। यानी एक महीने में लगभग 800000 मौतें होती हैं। यदि एक महीने के लिए देश में मौतें तीन गुणा हो जाएं तो लगभग 24 लाख मौतें एक महीने में होंगी, जिनमें से 8 लाख मौतें सामान्य होंगी व 16 लाख मौतें अतिरिक्त मानी जाएंगी (एक्सेस मोर्टालिटी)। यदि ऐसी स्थिति दो महीने रहती है तो अतिरिक्त मौतें 32 लाख मानी जाएंगी। यह सब बहुत गहरी चिंता का विषय है। वैसे अभी बढ़ी मृत्यु-दर के सरकारी आंकड़े उपलब्ध नहीं हुए हैं, पर फिर भी जो जानकारी व्यापक स्तर पर चर्चा में है, उसने देश के सभी शुभचिंतकों को गहरी चिंता में डाल दिया है। इस तेजी से बढ़ी मृत्यु-दर के क्या कारण हो सकते हैं, इस बारे में सभी संभावनाओं पर विचार करना आवश्यक है। यह होगा, तभी स्थिति स्पष्ट हो सकेगी। पहली संभावना जो विश्व-स्तर पर चर्चा में है, कोविड-19 का वायरस सामान्य प्राकृतिक कारणों से फैला वायरस है ही नहीं। वह प्रयोगशाला से लीक हुआ वायरस है जिसे जेनेटिक ढंग से संवर्धित किया गया है। यह ‘गेन ऑफ फंक्शन’ अनुसंधान के अंतर्गत किया गया है जिसमें विशेष तौर पर वायरस की मनुष्य को प्रतिकूल प्रभावित करने की क्षमता को बढ़ाया जाता है। इसकी वजह यह बताई जाती है कि इससे किसी भावी संभावित महामारी का सामना करने में मदद मिलेगी। अनेक वरिष्ठ वैज्ञानिक ऐसे अनुसंधान को रोकने की मांग कर चुके हैं, पर वुहान (चीन) में यह अनुसंधान चल रहा था और वह भी अमरीका के पैसे से। अब यदि यह जेनेटिक संवर्धित वैक्सीन लीक हो गया है तो यह कैसा व्यवहार करेगा, इसके कैसे रूपांतर (म्यूटेशन) होंगे, क्या इलाज और वैक्सीन होगा, यह कहना कठिन है।

 अतः पहली संभावना तो यह है कि कोविड-19 का वायरस इतने खतरनाक रूप में सामने आया कि इस कारण मृत्यु-दर अस्थाई तौर पर बहुत बढ़ गई। दूसरी संभावना यह है कि पिछले दस से अधिक वर्षों से जो गैर-बराबरी, बेरोजगारी, आय व आजीविका में गिरावट, अनिश्चय, मानसिक तनाव, बढ़ती भूख व कुपोषण की स्थिति चल रही है, उससे बड़ी संख्या में लोग बहुत कमजोर हो गए हैं व उनकी बीमारी को सहने की क्षमता बहुत कम हो गई है। मानसिक तनाव, अवसाद, अनिश्चय का उनकी प्रतिरोधक क्षमता पर प्रतिकूल असर पड़ा है। तीसरी संभावना यह है कि एक स्वास्थ्य व्यवस्था (जो पहले ही कमजोर थी) के कोविड-केंद्रित हो जाने व लॉकडाउन के कारण अनेक अन्य गंभीर बीमारियों, स्वास्थ्य समस्याओं, घावों का समुचित व समय पर इलाज नहीं हो पा रहा है और यह बढ़ी हुई मृत्यु-दर के रूप में अभिव्यक्त हो रहा है। इसी तरह प्रसव/मैटरनिटी संबंधी देखरेख व सुरक्षा में कमी हुई है। चौथी संभावना यह है कि अनेक स्थानों पर कोविड-19 के इलाज की समय पर व्यवस्था न हो सकी। जरूरी साजो-सामान व दवा की कमी रही। साथ में कुछ दवाओं व पद्धतियों के अनुचित उपयोग की अनेक शिकायतें रहीं। वैक्सीन से जुड़ी जल्दबाजी में कुछ संभावित खतरों, जैसे एडीई (एन्टीबॉडी डिपेंडेंट इनहेंसमेंट) पर समुचित ध्यान नहीं दिया जा सका। फिलिपीन्स में डेंगू वैक्सीन से इसी कारण अनेक मौतें बहुत बड़ा मुद्दा बन चुकी हैं। इन सभी विषयों पर निष्पक्षता से ध्यान देते हुए इन सभी संभावनाओं को यथासंभव कम करने के पूर्ण प्रयास करने चाहिए। इसके अतिरिक्त सरकार को इस विषय पर पूर्ण पारदर्शिता अपनाते हुए मृत्यु के ‘सिविल रजिस्ट्रेशन’ आंकड़ों को सरकारी तौर पर जारी करना चाहिए व हर महीने जारी करते रहना चाहिए।

 इससे कुल रजिस्टर हुई मौतों में वृद्धि या कमी के बारे में सरकारी स्तर पर सही स्थिति पता चलती रहेगी। इस तरह राष्ट्रीय, राज्य, शहर, पंचायत स्तर पर जो भी आंकड़े सरकार के पास उपलब्ध हैं, वे लोगों की सामान्य जानकारी में आते रहेंगे व एक सामान्य वर्ष के आंकड़ों से तुलना करते हुए अतिरिक्त मृत्यु की जानकारी भी उपलब्ध होती रहेगी। यह समुचित नीतियों के लिए बहुत जरूरी है। जरूरी जानकारियां व आंकड़े केन्द्र सरकार के पास एकत्र होती रहें व लोगों को उपलब्ध न हों तो उनका उचित लाभ नीति-निर्धारण के लिए नहीं हो सकेगा। जरूरी बात तो यह है कि ये आंकड़े पंचायत, शहर, राज्य, राष्ट्र सभी स्तरों पर उपलब्ध रहें। ऐसी पारदर्शिता अपनाने से विकेंद्रित स्तर पर लोगों को नवीनतम जानकारी मिलती रहेगी जिससे उचित सावधानियां रखने व नीतियों को अपनाने में मदद मिलेगी। सही आंकड़ों व जानकारियों को छिपाने से कुछ भी हासिल नहीं होगा, बल्कि सभी स्तरों पर कठिनाइयां ही बढ़ेंगी। सभी स्तरों पर पूर्ण प्रयास यही होना चाहिए कि इस कठिन समय में मृत्यु-दर को न्यूनतम किया जा सके व इसके लिए केन्द्र, राज्य सरकारों, विकेंद्रीकरण के संस्थानों, जन-संगठनों, पक्ष-विपक्ष के राजनीतिक दलों में आपसी सहयोग हो।

भारत डोगरा

स्वतंत्र लेखक


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