कोरोना काल में बढ़ती पर्यावरण की गरिमा

पर्यावरण दिवस के दिन सोशल मीडिया पर पर्यावरण के प्रति जागरूक करने वाले अनेक संदेश मिल जाते हैं, लेकिन कुछ ही दिनों में यह सब कुछ ईद का चांद हो जाता है…

वर्ष 2020 कोरोना महामारी की बलि चढ़ चुका है। 2021 में 70 फीसदी उसी दिशा में अग्रसर है। एक आम आदमी से लेकर विशेष आदमी भी इस महामारी के काल में अपने जीवन को बचाने के लिए संघर्षरत है। ऐसे में पर्यावरण की गरिमा मानव जीवन में नित नए पाठ पढ़ा रही है। यह दूसरा वर्ष है जब हमने पर्यावरण दिवस कोरोना महामारी के दौरान मनाया। इस समय पूरी दुनिया वैश्विक महामारी कोरोना वायरस से ग्रस्त है। विश्व के बड़े शक्तिशाली व विकसित देश भी इस महामारी के आगे नतमस्तक हो चुके हैं। ऐसे में मानव जीवन चारदीवारी में कैद है। सरकार द्वारा भी यही दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं कि यदि अति आवश्यक हो तभी अपने घर से बाहर निकलें अन्यथा अपने आप तथा अपने परिवार को सुरक्षित रखने के लिए कुछ समय तक सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क, सेनेटाइजर तथा स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहकर अपनी रक्षा स्वयं करने की आदत विकसित करें। ऐसे कठिन समय में मानव को उसके गांव की याद आ रही है। ऐसा भी कहा जाता है कि असली भारत, भारत के गांव में ही बसता है। आधुनिकता की अंधी दौड़ में लीन मानव गांव की ओर आने के लिए लालायित है। शायद इस जानलेवा महामारी के बीच में मानव को ऐसा प्रतीत हो रहा है कि यदि वह अपने गांव में पहुंच गया तो वह इस वैश्विक महामारी से अपने आप को बचा पाएगा। ऐसे में ग्रामीण परिवेश की सुख-सुविधाओं, पर्यावरण, वन्यजीव, पक्षियों इत्यादि का स्मरण स्वतः ही हो आता है। इस महामारी के बीच में ही 5 जून 2021 का दिन आया जिसे अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण दिवस के रूप में मनाया गया। मानव जीवन के ऊपर आए इस संकट की उपज के कारणों तथा भविष्य के लिए उत्पन्न हुए संकट पर वार्तालाप करना समय की मांग बन चुका है। कोरोना वायरस से देश की जनता को बचाने के लिए लॉकडाउन, कर्फ्यू जैसे कारगर तरीके को अपनाना पड़ा, जिसके कारण मानव-जीवन की विभिन्न गतिविधियां प्रभावित हुईं। लेकिन प्रकृति को बड़ी राहत मिली। भारत के विभिन्न क्षेत्रों में ऐसे दृश्य देखने को मिले जो कि इतिहास के पन्नों में ही समा चुके थे। गत वर्ष पंजाब के जालंधर क्षेत्र से हिमाचल प्रदेश के धौलाधार की तस्वीरें साफ  दिखी थीं। देश के विभिन्न भागों में वन्य प्राणियों, पक्षियों के अद्भुत झुंड सड़कों पर चलते दिखे। वहीं देश की राजधानी दिल्ली जैसे अत्यधिक जनसंख्या घनत्व वाले प्रदेश में भी स्वच्छता का दीदार संभव हो पाया। वहीं गंगा नदी जिस पर सरकार करोड़ों रुपए खर्च कर रही थी, लॉकडाउन के दौरान उसकी जलधारा भी स्वच्छ दिखी। इस परिप्रेक्ष्य में  पिछले 2 वर्षों के पर्यावरण दिवस को सेलिब्रेट करने का औचित्य अपने आप में विशेष है।

 इस दिवस को मनाने की घोषणा संयुक्त राष्ट्र ने पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर राजनीतिक और सामाजिक जागृति लाने हेतु वर्ष 1972 में की थी। इसे 5 जून से 16 जून तक संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा आयोजित विश्व पर्यावरण सम्मेलन में चर्चा के बाद शुरू किया गया था। 5 जून 1974 को पहला विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया। धरती पर लगातार बेकाबू होते जा रहे प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग जैसे कारणों के चलते वर्ल्ड एनवायरनमेंट डे की शुरुआत हुई थी। हर वर्ष एक नए थीम के साथ पर्यावरण दिवस को मनाया जाता है।  वर्ष 2021 का विषय है पारिस्थितिकी तंत्र की पुनर्बहाली। अर्थात पृथ्वी को एक बार फिर से अच्छी अवस्था में लाना। इसके लिए हमें स्थानीय स्तर से जमीनी प्रयास शुरू करने होंगे, तभी हम इस पारिस्थितिकी तंत्र को सुरक्षित कर पाएंगे। इसमें हर भारतीय को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपनी भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी। विश्व पर्यावरण दिवस 2020 की थीम जैव-विविधता है। इस थीम के  माध्यम से यह संदेश दिया गया कि जैव विविधता संरक्षण एवं प्राकृतिक संतुलन होना मानव जीवन के अस्तित्व के लिए बेहद आवश्यक है। शायद कोरोना वायरस के समय काल में प्रकृति के साथ समय व्यतीत करने का मानव को काफी लंबे समय के बाद ऐसा सुअवसर प्राप्त हुआ है। लेकिन आज का मानव डिजिटल प्लेटफॉर्म पर अपने आपको सजग व सुरक्षित महसूस पाता है। ऐसे में इस वर्ष का पर्यावरण दिवस भी डिजिटल दुनिया के माध्यम से ही देश व प्रदेश की अधिकतर जनता ने मनाया। कोई बुराई नहीं है कि मानव डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से प्रकृति के उत्थान व मानव जीवन को सुगम बनाने के मार्ग को प्रशस्त करे। लेकिन कहीं न कहीं मानव ने अपने सुखों व लालच की पूर्ति के लिए प्रकृति के साथ अनेकों अन्याय किए हैं, जो कि मानव के अस्तित्व के लिए ही घातक साबित हो रहे हैं। आज का कोरोना वायरस भी मानव द्वारा प्रकृति के साथ की गई छेड़छाड़ का ही परिणाम है।

 जब मानव ने अपनी भूख को खत्म करने के लिए जंगली व वन्य प्राणियों को अपने भोजन में सम्मिलित करने का दुस्साहस किया तो वह यह भूल गया कि कहीं जाने-अनजाने में यही जंगली जानवर उसके जीवन के लिए सबसे बड़ा खतरा बनकर उभर सकते हैं। यही मानव की सबसे बड़ी भूल आज वैश्विक स्तर पर मानव के अस्तित्व को समाप्त करने को उतारू दिख रही है। कुछ ऐसा ही परिदृश्य कोरोना वायरस के उद्भव में भी देखने को मिलता है। कोरोना वायरस के उत्पन्न होने का सर्वमान्य तथ्य यह है कि यह वायरस चमगादड़ों तथा जंगली जानवरों के सेवन करने के कारण मानव में आया और काफी हद तक यह सत्य भी साबित हुआ है। तो ऐसे में मानव को यह सबक प्रकृति ने जरूर सिखाया है कि यदि प्रकृति के साथ अवैध छेड़छाड़, अप्राकृतिक चीजों का सेवन व दिनचर्या को अपनाएंगे तो स्वतः ही एक दिन नष्ट हो जाएंगे। भारत के मानचित्र पर कभी हिमाचल प्रदेश जैसा प्राकृतिक संपदा से समृद्ध राज्य स्वच्छ हवा, ऋषि-मुनियों की तपोभूमि तथा देवभूमि की उपमा से विश्वविख्यात था, लेकिन वर्तमान समय में यह पावन धरा भी प्रदूषण की चपेट में आ चुकी है। हिमाचल के छह शहर बुरी तरह से प्रदूषण की चपेट में आ चुके हैं। हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी क्षेत्र में भी प्रदूषण बेलगाम होता जा रहा है। पर्यावरण दिवस के दिन सोशल मीडिया तथा डिजिटल प्लेटफॉर्म पर पोस्टर, वॉलपेपर, स्लोगन्स, चुटकुले तथा कविताओं के माध्यम से पर्यावरण को जागरूक करने वाले अनेकों संदेश मिल जाते हैं, लेकिन कुछ ही दिनों में यह सब कुछ ईद का चांद हो जाता है। इस आदत को बदलना होगा। हमें निरंतर पर्यावरण को बचाने का प्रयास करना होगा। यदि पर्यावरण सुरक्षित रहेगा, तभी मानव अपना जीवन-यापन सुख-समृद्धि से कर पाएगा।

कर्म सिंह ठाकुर

लेखक सुंदरनगर से हैं


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