समाज सेवा की शालीनता सहेजने की जरूरत

राजनीति और समजसेवा दोनों अलग-अलग पहलू हैं। इनका एक-दूसरे के साथ कोई मुकाबला नहीं है। भले ही राजनीति को भी सेवा का एक साधन माना जाता है, लेकिन वर्तमान समय में राजनीति का गिरता स्तर इसको सामाजिक सेवा के बराबर खड़ा नहीं करता है। इसलिए समाज सेवा के कार्य की शालीनता को सहेजने की जरूरत है…

समाज के उत्थान में अपना अतुलनीय योगदान देने के लिए हमारा देश राजा राम मोहन राय, दयानंद सरस्वती, विनोभा भावे, मदर टेरेसा जैसे अन्य कई महान समाज सुधारकों का हमेशा ऋणी रहेगा। वर्षों पहले समाज सुधार के लिए उनके द्वारा किए गए कार्यों की चमक से आज भी हमारा समाज प्रकाशमान है। समाज सेवा के इस गुण को अपने चरित्र का हिस्सा बनाने वाले व्यक्ति हमेशा समाज में एक आदर्श बनकर उभरते हैं। समाज सेवा के लिए भौतिक संसाधनों से कहीं अधिक दिल में समाज सेवा की भावना का होना आवश्यक होता है। कुछ लोग संसाधनों की कमी के बावजूद समाज सेवा में अग्रणी रहते हुए अपनी छाप छोड़ जाते हैं तो दूसरी तरफ  कुछ लोग संसाधनों की भरमार होते हुए भी स्वयं और परिवार की सेवा तक ही सीमित रहते हैं। ऐसे लोगों को कभी भी समाज सेवा के लिए प्रेरित नहीं किया जा सकता क्योंकि उनके निजी स्वार्थ और अभिमान के आगे समाज सेवा के सभी तर्क औंधे मुंह गिरते हुए नजर आते हैं। भूखे को भोजन, प्यासे को पानी, बीमार को दवाई, अनाथों को आश्रय के अलावा अन्य किसी भी प्रकार से किसी जरूरतमंद की आवश्यकता को जानकर निस्वार्थ उसकी मदद करना ही समाज सेवा का सबसे बड़ा लक्षण है। किसी इनसान को बिना बताए उसकी सहायता करना और उस मदद से मिलने वाली खुशी को उसकी आंखों में महसूस करना ही सच्ची जनसेवा है।

 समाज सेवा का ये पुण्य कार्य देश में सदियों से चलता आ रहा है, लेकिन महामारी के इस दौर में समाज सेवा का एक नया प्रयोग भी देखने को मिल रहा है। आज की इस समाज सेवा का सार्वजनिक और तात्कालिक उद्देश्य भले ही लोगों को किसी न किसी रूप में महामारी में राहत पहुंचाना हो, लेकिन इस समाज सेवा के अंतर्निहित उद्देश्य बहुत ही विस्तृत और दूरगामी नजर आ रहे हैं। महामारी के इस दौर में समाज सेवा की सीढ़ी पर चढ़कर राजनीति के आसमान को छूने का प्रयास किया जा रहा है। समाज सेवा के कार्यों को हर उपलब्ध साधन से प्रचारित करके अपनी पहचान बनाकर राजनीतिक सफर के रास्ते खोजने के प्रयास किए जा रहे हैं। कोरोना के इस काल में राजनीति में प्रवेश के चाहवान समाज सेवा के नाम पर राजनीतिक निवेश में जुटे हुए हैं। ये राजनीतिक निवेश राजनीति के व्यापारीकरण का बड़ा उदाहरण बनता जा रहा है। समाज सेवा का जज्बा और कार्य दोनों ही प्रशंसनीय हैं, लेकिन समाज सेवा के नाम पर खुद का प्रचार करने के लिए जरूरतमंदों का मजाक बनाना बेहद दुखद है। पिछले वर्ष कोरोना की पहली लहर के दौरान पंचायत चुनावों में अपनी किस्मत आजमाने के चाहवानों ने समाज सेवा के नाम पर खुद को सोशल मीडिया में प्रचारित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। अंततः इन लोगों के राजनीतिक मंसूबे या तो पंचायत आरक्षण की बलि चढ़ गए या फिर जनता को इनकी समाज सेवा के पीछे की भावना पसंद नहीं आई। हालांकि कुछ स्थानों पर इन समाजसेवियों द्वारा समाज सेवा के नाम पर चुनावों में किया गया अंधाधुंध खर्च उनको कुर्सी तक पहुंचाने में कामयाब भी रहा है। कोरोना की दूसरी लहर पहली लहर से कहीं अधिक खतरनाक थी, लेकिन वे लोग दूसरी लहर में कहीं भी नजर तक नहीं आए।

 चुनाव समाप्त होते ही समाज सेवा की उनकी भावना और  इरादा भी भूमिगत होता चला गया। अब दूसरी लहर में विधानसभा चुनावों के महत्त्वाकांक्षी सामने आ चुके हैं। सामाजिक आपदा में राजनीतिक अवसर ढूंढ रहे ये समाजसेवी अपनी समाजसेवा के दम पर जनता की नब्ज पर हाथ रखने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसा नहीं है कि इस कार्य का इन समाज सेवियों को लाभ नहीं हुआ। बहुत से जरूरतमंदों को मदद पहुंचा कर इन समाजसेवियों ने समाज में अपना रुतबा ऊंचा किया है। समय बीतने के साथ और इनके राजनीतिक मंसूबों को भांपने के बाद इनसे जनता की उम्मीदें भी बलवती हुई हैं। ये उम्मीदें अब समाज सेवा को निजी स्वार्थों की पूर्ति का साधन भी बना रही हैं। राजनीति में प्रवेश के इस नए प्रयोग से राजनीति में जरूरी नेतृत्व क्षमता और परिपक्वता की आवश्यकता को धनबल से पूरा करने की कोशिश की जा रही है। अमूमन देखने में आ रहा है कि अपने व्यावसायिक या पेशेवर जीवन में एक सफल मुकाम हासिल करने वाले लोग अक्सर राजनीति के क्षेत्र में अपनी किस्मत आजमाने की कोशिश करते हैं। इसके लिए वे अपनी आर्थिक ताकत का इस्तेमाल करके लोगों को प्रभावित करके एक नई तरह का प्रयोग करते हैं। हालांकि इन प्रयोगों से मिलने वाली कामयाबी की दर बहुत कम है, लेकिन शून्य नहीं है। पेशेवर बनकर एक कामयाबी तो हासिल की जा सकती है, लेकिन राजनीति में लंबा सफर तय करने के लिए राजनीतिक सूझबूझ और नेतृत्व की क्षमता का होना जरूरी है। देश के इतिहास में नेतृत्व के गुणों से भरपूर व्यक्ति ही राजनीतिक पटल पर कामयाब होते हुए दिखाई दिए हैं।

 वर्तमान में भी ये बात देश और प्रदेश के कई नेताओं के जीवन पर नजर डालने से महसूस की जा सकती है। आर्थिक संपन्नता भले ही राजनीति का मार्ग प्रशस्त कर दे, लेकिन लंबी राजनीतिक पारी के लिए नेतृत्व क्षमता और बड़ी सोच ही व्यक्ति को आगे लेकर जाती है। आजकल इस सारे परिदृश्य में जो बात समाज के लिए सबसे ज्यादा हानिकारक सिद्ध होती है, वो ये है कि इन राजनीतिक निवेशकों के चक्कर में जनता विशुद्ध राजनीतिक गुणों से परिपूर्ण और कई अनुभवी नेताओं को खो देती है जिसका एहसास जनता को कुछ ही समय के बाद होने भी लगता है। समाज सेवा का गुण और समाज सेवा करने वाला व्यक्ति समाज और देश के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। मैं एक समाज सेवी को एक राजनीतिज्ञ से अधिक ऊंचे दर्जे का इनसान मानता हूं। राजनीति और समजसेवा दोनों अलग-अलग पहलू हैं। इनका एक-दूसरे के साथ कोई मुकाबला नहीं है। भले ही राजनीति को भी सेवा का एक साधन माना जाता है, लेकिन वर्तमान समय में राजनीति का गिरता स्तर इसको सामाजिक सेवा के बराबर खड़ा नहीं करता है। इसलिए समाज सेवा के कार्य की शालीनता को सहेजने की जरूरत है।

राकेश शर्मा

लेखक जसवां से हैं


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App