वैदिक शिक्षा की सामयिकता

कोरोना काल में सांस्कृतिक शिक्षा का महत्त्व और सार्थकता बढ़ी है जिसमें योग शिक्षा भी शामिल है। इसे भारतीय शिक्षा पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाएं…

वेद शब्द का अर्थ ज्ञान होता है। वैदिक कालीन शिक्षा से तात्पर्य उस ज्ञान से है जो वेदों में सुरक्षित है तथा जो उस काल में प्रयोग किया जाता था। इस ज्ञान की कोरोना काल में सामयिकता तलाशी जानी जरूरी है। इसी कड़ी में राजस्थान की गहलोत सरकार संस्कृत शास्त्रों और वेदों के ज्ञान को पुनर्जीवित करने के लिए जल्द एक वैदिक शिक्षा और संस्कार बोर्ड का गठन करेगी। देश की अनूठी विरासत के रूप में वैदिक शिक्षा की काफी खूबियां रही हैं। हमारा वर्तमान शिक्षा जगत इनसे ज्यादा बावस्ता नहीं है। इसलिए वैदिक शिक्षा से जुड़े कुछ महत्त्वपूर्ण बिंदुओं से अवगत होना जरूरी है। वैदिक शिक्षा सांस्कृतिक दृष्टि पर बल देती है। इसके मुताबिक शिक्षित व्यक्ति को साहित्य, कला, संगीत आदि की समझ होनी चाहिए। उसे जीवन के उच्च आदर्शों का ज्ञान भी होना चाहिए। पूर्वजों की परंपरा और संस्कृति की रक्षा शिक्षित व्यक्ति का कर्त्तव्य था। वैदिक शिक्षा से समस्त देश में कुछ ऐसे आधारभूत मूल्यों की स्थापना हुई जो आज भी सांस्कृतिक एकता के आधार हैं। कुछ लोगों के अनुसार आज की शिक्षा प्रणाली में यह एक आउटडेटेड विचार समझा जा सकता है। वैदिक कालीन शिक्षा का अर्थ अत्यधिक व्यापक था। वह शिक्षा जीवन से संबंधित थी और व्यक्ति को सभ्य तथा उन्नत बनाने में सहायक मानी जाती थी। वैदिक शिक्षा प्रणाली के अनेक गुण थे।

 इन गुणों का तत्त्व आज भी प्रासंगिक है। वैदिक कालीन शिक्षा निशुल्क थी। गुरुकुल में शिष्यों से किसी भी प्रकार का शुल्क नहीं लिया जाता था। उनके आवास, वस्त्र तथा भोजन की व्यवस्था भी निशुल्क होती थी। वैदिक काल की शिक्षा पर होने वाले व्यय की पूर्ति राज, धनाढ्य लोगों तथा भिक्षाटन एवं गुरु दक्षिणा से की जाती थी। वैदिक कालीन शिक्षा द्वारा मनुष्यों का शारीरिक, बौद्धिक, नैतिक, सांस्कृतिक, व्यावसायिक तथा आध्यात्मिक विकास किया जाता था। वैदिक कालीन शिक्षा की पाठ्यचर्या व्यापक थी। वैदिक काल में मनुष्य के प्राकृतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक तीनों पक्ष के विकास पर बल दिया जाता था। इसके लिए शिक्षा की पाठ्यचर्या में भौतिक तथा आध्यात्मिक दोनों प्रकार के विषयों को सम्मिलित किया जाता था। आज की हमारी शिक्षा में आध्यात्मिक तत्त्व न होने के कारण हमारे दिलो-दिमाग से सामाजिक संवेदना विलुप्त होती जा रही है। वैदिक कालीन शिक्षा में उत्तम शिक्षण विधियों का प्रयोग किया जाता था। अनुकरण, व्याख्यान, वाद-विवाद, प्रश्नोत्तर, तर्क, विचार-विमर्श, चिंतन-मनन, सिद्धि, प्रयोग एवं अभ्यास, नाटक एवं कहानी इत्यादि वैज्ञानिक एवं मनोवैज्ञानिक विधियों का विकास किया जा चुका था। इनको दोबारा से हमारे शिक्षण में शामिल करने की जरूरत है। वैदिक काल में गुरु तथा शिष्यों का जीवन अत्यंत संयमित और अनुशासित होता था। उनकी जीवनशैली सादा जीवन उच्च विचार पर आधारित थी। वैदिक कालीन शिक्षा में गुरु तथा शिष्यों के मध्य मधुर संबंध थे। दोनों के मध्य स्नेह तथा श्रद्धा का संबंध था। दोनों एक-दूसरे के प्रति त्याग की भावना रखते थे तथा शिक्षकों के बीच मानस पिता-पुत्र के संबंध थे। क्या आज ऐसे रिश्ते वांछित नहीं हैं? वैदिक कालीन शिक्षा में गुरुकुलों का पर्यावरण अति उत्तम था। गुरुकुल प्रकृति के स्वच्छ वातावरण से युक्त स्थलों में होते थे, जहां जन कोलाहल नहीं था तथा जल तथा वायु शुद्ध प्राप्त होती थी। आज हम छात्रों को किन हालात में शिक्षित कर रहे हैं? वस्तुतः मशीनों के जरिए दी जा रही शिक्षा मनुष्य रूपी छात्रों को असंवेदनशील रोबोट के रूप में विकसित कर रही है। यहां पर सांस्कृतिक शिक्षा का महत्त्व और भी बढ़ जाता है। वैदिक कालीन जीवन पद्धति संस्कार प्रधान थी। वैदिक शिक्षा प्रणाली पूर्णतया दोष रहित थी, ऐसा कहना कठिन है।

 वैदिक कालीन शिक्षा में राज्य का नियंत्रण या उत्तरदायित्व नहीं था। तत्कालीन शिक्षा व्यवस्था पूर्णतः व्यक्तिगत नियंत्रण में थी, जो पूर्णतः गुरुकुलों तक सीमित थी। अतः इससे जन शिक्षा की अवहेलना होती थी। वैदिक कालीन शिक्षा में आय की सुनिश्चित एवं विधिवत व्यवस्था नहीं थी। यद्यपि वैदिक कालीन शिक्षा का व्यय राजा, धनी लोग, भीक्षाटन तथा गुरु दक्षिणा से पूरा किया जाता था, किंतु इन सब का कोई निश्चित समय, मात्रा के न होने से असमंजस की स्थिति रहती थी। वैदिक ज़माने की तरह आज भी अमरीका और अनेक देशों में उच्च शिक्षा संस्थाओं की रिसर्च फंडिंग अमीर लोग करते हैं। लेकिन हमारे यहां की स्थिति दयनीय है। वैदिक कालीन शिक्षा में रटने पर विशेष बल दिया जाता था। यद्यपि उस समय उत्तम शिक्षा विधियों का विकास हो चुका था, किंतु लिखने की समुचित व्यवस्था का अभाव होने के कारण याद रखने पर विशेष बल दिया जाता था। वैदिक कालीन शिक्षा की अनुशासन व्यवस्था अत्यंत कठोर थी। वैदिक शिक्षा के व्यावहारिक उद्देश्य रहे हैं जिनकी आज बहुत जरूरत है। इनमें चरित्र निर्माण, व्यक्तित्व का विकास, कार्य-क्षमता और नागरिक जिम्मेदारी का विकास और विरासत व संस्कृति का संरक्षण शामिल हैं। नई शिक्षा नीति 2020 में इन बिंदुओं  पर व्यापक ध्यान दिया गया है। हमारे छात्रों को शानदार शिक्षा परंपराओं को आत्मसात करने में और सक्षम बनाने के लिए वैदिक और सांस्कृतिक शिक्षा के महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता है। वैदिक शिक्षा सुशासन के सिद्धांतों का स्टोर हाउस है। महाकवि कालिदास ने कहा है कि जो विद्या का उपयोग केवल कमाई के लिए करते हैं, वे विद्या के व्यापारी हैं जिनकी विद्या बिकाऊ माल भर है। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी आत्मकथा में एक स्थल पर स्पष्ट रूप से इस तथ्य का उल्लेख किया है कि भारतीय संस्कृति का उद्देश्य ज्ञान की खोज है। इसी दृष्टि से प्राचीन भारतीयों ने शिक्षा प्रणाली का विकास किया था। भारतीयों के लिए ज्ञान शब्द का कोई सीमित अर्थ नहीं था। शिक्षा के द्वारा वे केवल सांसारिक ज्ञान की ही नहीं अपितु परलोक संबंधी ज्ञान को भी प्राप्त करने का प्रयत्न करते थे। भारतीय संस्कृति में प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में चार लक्ष्य माने गए हैं जिन्हें पुरुषार्थ की संज्ञा दी जाती है : धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष। इन चारों में से मोक्ष सबसे अधिक पवित्र एवं महत्त्वपूर्ण माना जाता है।

 प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का चरम उद्देश्य मोक्ष की प्राप्ति होती है। अतः शिक्षा ही मोक्ष की प्राप्ति का एकमात्र साधन माना गया है। निचोड़ में हम कह सकते हैं कि शिक्षा का उद्देश्य वर्तमान समय में शिक्षार्थी के सर्वांगीण विकास पर केंद्रित है। आज के शिक्षाविद मानते हैं कि एक शिक्षार्थी के अंदर की शक्तियों को उजागर करना, उसको बाहर निकालना शिक्षा का लक्ष्य है और शिक्षार्थी सर्वांगीण अर्थात मानसिक,  शारीरिक, भौतिक आदि सभी प्रकार से शिक्षार्थी को संपन्न सशक्त बनाना ही शिक्षा का उद्देश्य है। एक शिक्षित मनुष्य हमेशा अपने समाज की कुशलता के विषय में सोचेगा जबकि शिक्षा विहीन मनुष्य अपने स्वार्थ की पूर्ति में व्यस्त रहता है। वैदिक शिक्षा का एक अन्य उद्देश्य आदर्श चरित्र का निर्माण था। शिक्षा तभी सार्थक मानी जाती थी जब उसके द्वारा विद्यार्थियों की विवेक-बुद्धि विकसित हो और जीवन के प्रत्येक कार्य क्षेत्र में उन्हें सफलता मिले। देश के दूसरे राज्यों में भी राजस्थान की तरह ही वैदिक और सांस्कृतिक शिक्षा को मजबूत करने के निरंतर प्रयास करने चाहिए। इसके लिए सरकारों को फंड्स की व्यवस्था में वृद्धि करनी होगी। सवाल पूछे जाने चाहिए कि प्रदेशों में भारतीय संस्कृति की शिक्षा को मजबूत करने के लिए क्या किया जा रहा है? कोरोना काल में सांस्कृतिक शिक्षा का महत्त्व और सार्थकता बढ़ी है जिसमें योग शिक्षा भी शामिल है। वैदिक शिक्षा और सांस्कृतिक शिक्षा को किसी धर्म विशेष से न जोड़ कर भारतीय शिक्षा पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना औचित्यपूर्ण लग रहा है।

डा. वरिंदर भाटिया

कालेज प्रिंसीपल

ईमेल : hellobhatiaji@gmail.com


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