संघर्ष की बुनियाद पर विजय का शिलालेख

पाक सेना द्वारा कैप्टन सौरभ कालिया व उसके साथियों की हत्या जेनेवा संधि 1949 के युद्ध-नियमों का सरेआम उल्लंघन था। उनकी शहादत के इंतकाम के बाद ही कारगिल विजय दिवस संपूर्ण होगा। बहरहाल कश्मीर हमारा है और हमारा ही रहेगा…

इतिहास साक्षी रहा है कि कामयाबी के मजमून हमेशा कडे़ संघर्षों की बुनियाद पर ही लिखे गए हैं। मैदान-ए-जंग में मातृभूमि के प्रति समर्पण का जुनून तथा जहन में विजयगाथा का जज्बा लेकर चलने वाले रणबांकुरों ने ही दुश्मन को ध्वस्त करके देश की विजय के परचम लहराए हैं। 26 जुलाई को भारतीय सेना अपने उन रणबांकुरों को नमन करती है जिन्होंने सन् 1999 में दुनिया के सबसे ऊंचे रणक्षेत्र कारगिल के दुर्गम पहाड़ों पर पाकिस्तानी सेना को धूल चटाकर विजय का रक्तरंजित शिलालेख लिखकर भारतीय सेना को विश्व में सर्वश्रेष्ठ साबित कर दिया था। उस युद्ध में भारतीय सेना के शहीद हुए 527 सैनिकों में 52 जांबाजों का संबंध हिमाचल प्रदेश से था। युद्ध में अपने शौर्य पराक्रम से पाक सेना की पेशकदमी को नेस्तनाबूद करने वाले योद्धाओं की फेहरिस्त काफी लंबी है, मगर कारगिल युद्ध के अध्याय का पहला पन्ना हिमाचली सपूत कैप्टन सौरभ कालिया की शहादत से शुरू होता है। दरअसल भारतीय सेना द्वारा तीन बडे़ युद्धों में शर्मनाक शिकस्त के दंश झेल चुके पाक सैन्य रणनीतिकारों ने 1999 के शुरुआती दौर में कश्मीर को हड़पने का मंसूबा तैयार करके ऑपरेशन कोह-ए-पैमा नामक साजिश के तहत कश्मीर में कारगिल के द्रास, मुश्कोह, काकसर व बटालिक क्षेत्रों में अपनी नार्दर्न लाइट इंफैट्री के हजारों लाव लश्कर को सिविल लिबास में एक बडे़ जंगी जखीरे के साथ घुसपैठ को अंजाम दिया था। उस घुसपैठ की खुफिया सूचना मिलने के बाद 5 मई 1999 को कैप्टन सौरभ कालिया अपने पांच सैनिक साथियों के साथ गश्त पर निकले थे। उस गश्ती दल के सभी सैनिकों को पाक सेना ने धोखे से बंदी बनाकर उनकी नृशंस हत्या कर दी थी, मगर उस जांबाज सैन्य अधिकारी ने कारगिल क्षेत्र में पाक सेना की मंसूबाबंदी को बेनकाब करने में सबसे अहम किरदार निभाया था। कारगिल में पाक सेना की उस हिमाकत की जवाबी कार्रवाई के लिए भारतीय सेना ने 14 मई 1999 को पूरी तजवीज से ‘आपरेशन विजय’ लॉंच किया।

 जमीन से आग उगलती बोफोर्स तोपें, आसमान से मिग व मिराज जैसे लड़ाकू विमानों की शदीद बमबारी तथा युद्ध का रुख मोड़ने में माहिर भारतीय सेना के योजनाबद्ध किए गए पलटवार के बाद पाक रणनीतिकारों के लिए मिशन कोह-ए-पैमा जहालत साबित होकर उनके गले की फांस बन गया था। कश्मीर को फतह करने के खोखले दावे करने वाले तथा कारगिल क्षेत्र में घुसपैठ की साजिश के मुख्य सूत्रधार पाकसेना के 13वें सिपहसालार जनरल परवेज मुशर्रफ तथा मेजर जनरल जावेद हसन (फोर्स कमांडर नार्दर्न एरिया) को भारतीय सेना के उस शिद्दत भरे पलटवार का सही अंदाजा नहीं था। युद्ध के दौरान कारगिल क्षेत्र में मोर्चा संभाल चुकी पाक फौज भारतीय सैन्यशक्ति की मारक क्षमता से इस कदर सहम उठी कि उसे सुरक्षित निकालने के लिए पाक हुक्मरानों ने 4 जुलाई 1999 को तत्कालीन पाक प्रधानमंत्री को उनकी वजारत के साथ अमरीका की शरण में भेजकर अमन की पैरोकारी के लिए भारत से मुजाकरात की पेशकश कर दी, मगर उसी दिन भारतीय सेना ने ‘टाईगर हिल’ पर कब्जा कर लिया जो कि पाक सुल्तानों के लिए एक सदमा व जिल्लतभरी खबर थी। कारगिल के बटालिक में ‘प्वाइंट 5203’ को ‘कालिया हिल’ के नाम से जाना जाता है। यह चोटी हिमाचली शूरवीर कैप्टन अमोल कलिया की शूरवीरता की परिचायक है। प्वाईंट 5203 पर दुश्मन का कब्जा था। कैप्टन अमोल कालिया ने अपने सैनिकों के साथ कई दिनों की कड़ी मशक्कत के बाद 9 जून 1999 की रात को आक्रामक सैन्य मिशन को अंजाम देकर इस चोटी पर धावा बोलकर दुश्मन को नेस्तनाबूद करके अपने नौ सैनिकों के साथ सर्वोच्च बलिदान दिया था। सैन्य अभियान के दौरान शत्रु की भीषण गोलीबारी में अदम्य साहस व निर्भीक सैन्य नेतृत्व के लिए कैप्टन अमोल कालिया को वीर चक्र (मरणोपरांत) से अलंकृत किया गया था। कारगिल युद्ध की हर दसवीं शहादत का ताल्लुक हिमाचल से था। शहीद कैप्टन विक्रम बतरा ‘परमवीर चक्र’, हवलदार उधम सिंह ‘वीर चक्र’ तथा डोला राम ‘सेना मेडल’ जैसे हिमाचल के कई जांबाजों के शौर्य पराक्रम के निशान 18 हजार फीट की बुलंदी पर स्थित कारगिल के पहाड़ों पर मौजूद हैं।

 कारगिल युद्ध में पाक सैन्य नेतृत्व अपनी सेना की भूमिका को हमेशा नकारता रहा, लेकिन कई पाक सैन्य अधिकारियों व लेखकों ने अपनी किताबों में पाक सेना की प्रत्यक्ष भूमिका का वर्णन करके कारगिल साजिश का पर्दाफाश कर दिया था। इस युद्ध में शामिल पाक सेना की 12 नार्दर्न लाइट यूनिट का मेजर ‘सईद अहमद नागरा’ भारतीय सेना के आक्रामक तेवरों को भांपकर अपने कई सैनिकों के साथ कारगिल जंग के महाज से भगौड़ा हो गया था जो वर्तमान में पाक सेना में सेवारत है। भारतीय सेना के भयंकर हमलों में मारे गए सैकड़ों पाक सैनिक व उनके दस्तावेज तथा कुछ पाक युद्धबंदी सैनिक कारगिल घुसपैठ के चश्मदीद गवाह बने थे। पाक सेनानायकों ने युद्ध में मारे गए अपने सैनिकों की लाशें लेने से इंकार कर दिया था, मगर भारतीय सेना ने पाक के उन मरहूम सैनिकों को पूरे फौजी एजाज़ के साथ सुपुर्देखाक करके तथा कुछ मारे गए सैनिकों के ताबूत पाकिस्तान को लौटाकर एक आदमियत की मिसाल कायम की थी। लेकिन पाक सेना द्वारा कैप्टन सौरभ कालिया व उसके साथियों की हत्या जेनेवा संधि 1949 के युद्ध-नियमों का सरेआम उल्लंघन था। उनकी शहादत के इंतकाम के बाद ही कारगिल विजय दिवस संपूर्ण होगा। बहरहाल कश्मीर हिंदोस्तान की सरजमीं का अभिन्न हिस्सा है और रहेगा। आखिर 26 जुलाई 1999 को भारतीय सेना ने अपनी सर्वोच्च परंपराओं का पालन करते हुए समूचे कारगिल के शिखरों पर तिरंगा फहराकर ऑपरेशन विजय को सफल घोषित करके सैन्य इतिहास में स्वर्णिम विजय का एक और अध्याय जोड़ दिया। कारगिल के योद्धाओं को देश शत्-शत् नमन करता है।

प्रताप सिंह पटियाल

लेखक बिलासपुर से हैं


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App