दिलों के राजा

हिमाचल व देश की राजनीति से एक राजा का यूं जाना सबको क्षुब्ध कर गया। सबकी आंखों में आंसू थे। बुशहर रियासत व हिमाचल प्रदेश के लोगों के दिलों के राजा वो कहलाते थे। नाम से ही नहीं, वो काम से भी लोगों के दिलों पर राज किया करते थे। स्वर्गीय राजा वीरभद्र सिंह जी के जाने से प्रदेश की राजनीति में एक युग पर विराम लग गया है। वीरभद्र सिंह जी साफ दिल के व्यक्ति थे। सदन से लेकर जनता के बीच वह अपनी एक मजबूत पकड़ व स्थान रखते थे। बतौर मुख्यमंत्री अपने आखिरी बजट भाषण के दौरान विधानसभा में उन्होंने एक शेर कहा था ः ‘ऐ परिंदे यूं जमीं पर बैठकर क्यूं आसमां देखता है। पंखों को खोल क्योंकि जमाना सिर्फ  उड़ान देखता है।’ अपने इसी आखिरी बजट भाषण में वीरभद्र सिंह ने जय हिंद, जय हिमाचल कहने से पूर्व एक आखिरी शेर पढ़ा था ः ‘रास्ते कहां खत्म होते हैं, जिंदगी के सफर में मंजिल तो वहीं है, जहां ख्वाहिशें थम जाएं।’ राजा वीरभद्र सिंह जी बेशक अपनी जीवन यात्रा पूरी कर अनंत सफर पर निकल चुके हैं, लेकिन हिमाचल की जनता के दिलों में उनकी जगह हमेशा बनी रहेगी। हिमाचल विधानसभा में उनकी छह बार की मुख्यमंत्री के रूप में पारी इतिहास में स्वर्णिम युग के तौर पर दर्ज हो गई है। राजा जी के लिए कबीर जी की पंक्तियां ‘ऐसी करनी कर चले, हम हंसे और जग रोए’, आज वही पंक्तियां हिमाचल प्रदेश के छह बार मुख्यमंत्री रहे राजा वीरभद्र सिंह पर सटीक उतरती हैं। इस धरती पर कई वर्षों के बाद कोई ही महापुरुष जन्म लेता है, जो समाज में अलग पहचान बना कर सर्वोपरि स्थान हासिल करता है।

आज वही स्थान देश व प्रदेश की राजनीति में स्वर्गीय राजा वीरभद्र सिंह ने पाया है। वह कुर्सी से ज्यादा लोगों के दिलों में राज करते थे। उनका राजनीतिक सफर कई मायने में याद रखा जाएगा। जिस तरह से आज के युवाओं की कहानियों को याद रखा जाता है, उसी तरह राजा वीरभद्र सिंह के कार्यों को भी याद रखा जाएगा, चाहे वो राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में हो, नौकरशाही के रूप में हो या किसी विकासात्मक रूप में हो या फिर गरीब जनता का दुखड़ा हो, उन्होंने सभी कार्य जातिवाद से उठकर प्रदेश में एक नई विकासात्मक रोशनी प्रदान की। वह सचमुच दिलों के राजा थे। वह कभी भी किसी के दुख-दर्द को ज्यादा देर तक नहीं सुनते थे, बल्कि अधिकारियों को आदेश दे देते थे। शिक्षा का क्षेत्र हो, स्वास्थ्य का क्षेत्र हो, सड़क-सिंचाई के साधन हों, जहां भी वह जाते थे, वहीं वो विकास को नई उड़ान दे जाते थे। राजा वीरभद्र सिंह केवल हिमाचल प्रदेश में ही नहीं, बल्कि केंद्र की राजनीति पर भी अधिक ज्यादा प्रभावशाली थे। केंद्र में किसी भी पार्टी की सत्ता हो, लेकिन प्रधानमंत्री का नाता उनके साथ दोस्ती का ही रहा है। आज भी देखा जाए तो पार्टी को दरकिनार करके बहुत से बड़े आला नेता उनकी दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करने के लिए, उनको सच्ची श्रद्धांजलि देने के लिए शिमला पहुंचे और उनके पैतृक स्थान रामपुर पहुंच रहे हैं। जिस भी व्यक्ति को पता चला, वो शिमला दौड़ा चला आया। वीरभद्र सिंह जी की करुणा के किस्से भी काफी प्रचलित हैं। कई अवसरों पर उन्होंने जरूरतमंद लोगों की मदद सीमा से बाहर जाकर की। उनके जाने से प्रदेश की राजनीति में एक शून्य पैदा हो गया है।

प्रो. मनोज डोगरा

लेखक हमीरपुर से हैं


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