सीमित संसाधन, बढ़ती आबादी एक संकट

भारत में गरीबी, अशिक्षा और जातीय राजनीति की वजह से जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने का कोई फायदा नजर नहीं आता है। लोगों को जागरूक और शिक्षित कर ही इस मामले का हल निकाला जा सकता है। भारत के तकरीबन हर परिवार में लोगों की संतान के तौर पर पहली पसंद लड़का ही होता है। इस स्थिति में जनसंख्या नियंत्रण कानून से लड़कियों को गर्भ में ही मारने की घटनाएं बढ़ने का खतरा बढ़ जाता है। जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने से पहले सरकार को इसके दुष्प्रभावों को लेकर लोगों में व्यापक जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता है। विशेषज्ञों की मानें तो जनसंख्या नियंत्रण कानून से जनसांख्यिकीय विकार पैदा होने का खतरा बढ़ सकता है। इस स्थिति में कहा जा सकता है कि भारत में बढ़ती जनसंख्या आने वाले समय में भारत के लिए आर्थिक, सामाजिक संकट के रूप में तैयार हो रही है…

भारत एक ऐसा राष्ट्र है जहां प्राचीन समय से ही मानव जीवन को नियमित व संतुलित रूप से एक सीमित रूप से जीने की बात कही जाती रही है। सीमित संसाधनों का सीमित समय में व नियंत्रण में सदुपयोग एक नई विकास की गाथा रचता है। हमारा भारतीय समाज बहुत लंबे समय से ही पूरे विश्व के लिए जीवन जीने की विधि के लिए प्रसिद्ध तथा विख्यात व मार्गदर्शक की भूमिका में रहा है। समाज वक्त के साथ चलते-चलते परिवर्तन धारा में बहता रहता है जिसके कारण समाज में परिवर्तन आना स्वाभाविक होता है, लेकिन किसी भी कार्य और चीज की अति हो जाना उसे अंत की ओर ही ले जाती है। स्पष्ट है कि भारत में भी पिछले कुछ एक-दो दशकों से जनसंख्या में अति वृद्धि हुई है तथा निरंतर होती भी जा रही है। प्रकृति का नियम रहा है कि अति से ही क्षति होती है और क्षति से ही अंत निश्चित है। सार्वभौमिक तौर पर समस्त चीजें वक्त और परिस्थितियों पर ही निर्भर करती हैं। चाहे समाज कैसा भी हो, हमारे भारतीय समाज व देश में भी आज के वर्तमान समय में जो सब समस्याओं की जड़ प्रतीत हो रही है, वो कोई और नहीं बल्कि जनसंख्या विस्फोट ही नजर आती है क्योंकि जितने लोग होंगे उतना ही उपभोग होगा, संसाधनों पर भी उतना ही भार बढ़ जाएगा, लोगों की आवश्यकता की पूर्ति संतोषजनक नहीं होगी। चाहे वो जल हो, अन्न हो, पेट्रोल हो, डीजल हो, रोजगार हो या अन्य मानव सेवाएं, सब पर जनसंख्या वृद्धि से अत्यधिक भार पड़ना स्वाभाविक ही है जिसके परिणामस्वरूप एक संकट की स्थिति का उद्भव हो जाता है जोकि लूट-खसूट से प्रारंभ होकर प्राकृतिक संतुलन में गिरावट, आतंक, कृषि योग्य भूमि की कमी, महंगाई, भ्रष्टाचार, मारामारी, रोजगार की कमी, संसाधनों पर बोझ तक मानव निर्मित संकट के रूप में सामने आता है जोकि प्रकृति के लिए भी हानिकारक है और समस्त मानव समाज के लिए भी।

 इसलिए सबके लिए महत्त्वपूर्ण है जनसंख्या को नियंत्रित करके एक सुखी समाज व राष्ट्र की कल्पना करें। परिवार नियोजन वर्तमान समय की सबसे बड़ी आवश्यकता समाज के सुखद भविष्य के लिए महसूस की जा रही है। ‘हम दो हमारे दो’ व ‘शेर का बच्चा एक ही अच्छा’ जैसी अनेक जागरूक धारणाएं समाज में लोगो द्वारा दी जाने लगी हैं, लेकिन समाज का एक बड़ा वर्ग अभी भी जनसंख्या विस्फोट से अनजान है। इस प्रकार से जानबूझकर अनजान होना आने वाले समय में संकट के संकेत हैं जिसके लिए सबको अभी से तैयार रहना होगा, क्योंकि बाद में संभलने का मौका नहीं मिलने वाला है। गौरतलब है कि देश में आखिरी बार जनगणना 2011 में हुई थी। इस जनगणना को एक दशक पूरा हो चुका है। इस एक दशक में देश में बहुत कुछ बदल गया है। 2011 की जनगणना के अंतिम आंकड़ों के मुताबिक भारत की आबादी 1.21 अरब यानी 121 करोड़ थी। यह जनसंख्या अमरीका, इंडोनेशिया, ब्राजील, पाकिस्तान और बांग्लादेश जैस देशों की कुल आबादी से भी अधिक है। इन आंकड़ों से अब अंदाजा लगाया जा सकता है कि वर्तमान समय में जनसंख्या वृद्धि दर कहां होगी। जनसंख्या को नियंत्रण करना आज के दौर की सबसे प्रमुख चुनौती है। बढ़ती हुई जनसंख्या देश की आर्थिक स्थिति तो बिगाड़ती ही है, इसके साथ ही बेरोजगारी जैसी समस्या को भी जन्म देती है। इसके नियंत्रण के लिए सरकार को जागरूकता के साथ-साथ कानून भी बनाना होगा। देश के लोगों को कानून की बजाय स्वयं आगे आकर विवेक का इस्तेमाल कर जनसंख्या नियंत्रण में सहयोग करना चाहिए। यह भी एक तरह से किसी देशभक्ति से कम नहीं है। भारत में गरीबी, अशिक्षा और जातीय राजनीति की वजह से जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने का कोई फायदा नजर नहीं आता है। लोगों को जागरूक और शिक्षित कर ही इस मामले का हल निकाला जा सकता है। भारत के तकरीबन हर परिवार में लोगों की संतान के तौर पर पहली पसंद लड़का ही होता है।

 इस स्थिति में जनसंख्या नियंत्रण कानून से लड़कियों को गर्भ में ही मारने की घटनाएं बढ़ने का खतरा बढ़ जाता है। जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने से पहले सरकार को इसके दुष्प्रभावों को लेकर लोगों में व्यापक जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता है। विशेषज्ञों की मानें तो जनसंख्या नियंत्रण कानून से जनसांख्यिकीय विकार पैदा होने का खतरा बढ़ सकता है। इस स्थिति में कहा जा सकता है कि भारत में बढ़ती जनसंख्या आने वाले समय में भारत के लिए आर्थिक, सामाजिक संकट के रूप में तैयार हो रही है। हालांकि सरकार समय-समय पर परिवार नियोजन के विषय में अनेक जागरूकता शिविरों का आयोजन करती आई है, लेकिन अब इस विषय पर देश में एक सख्त कानून की आवश्यकता भी महसूस की जा रही है ताकि नैतिकता के साथ-साथ व्यक्ति कानून में रहकर अपना परिवार नियोजन करे तथा राष्ट्र व समाज के विकास में अपना श्रेष्ठ योगदान दे। लेकिन महत्त्वपूर्ण यह है कि यह योगदान तभी संभव हो सकता है जब राष्ट्र व समाज में जनसंख्या को नियंत्रित करने के विषय को सकारात्मकता के साथ अपनाकर इस पर गहनता व शोध के साथ कार्य किया जाए। जनसंख्या पर नियंत्रण निश्चित रूप से कई समस्याओं का समाधान है।

प्रो. मनोज डोगरा

लेखक हमीरपुर से हैं


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