पुलिस कर्मचारी तनावग्रस्त क्यों रहते हैं

इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि अधीनस्थ पुलिस कर्मचारी को तनावमुक्त रखने के लिए पुलिस नेतृत्व को ईमानदारी, निष्ठा व निष्पक्षता से कार्य करना होगा तथा अवांछित आदेशों को नकारना होगा…

आज भारत की पुलिस जिन परिस्थितियों एवं वातावरण में काम कर रही है, वह तनावपूर्ण एवं असंतोषजनक है। पुलिस कर्मचारियों  के साथ-साथ पुलिस अधिकारी भी तनावग्रस्त रहते हैं। परिणामस्वरूप उनका आपसी समन्वय व संवाद भी संतुलित रूप से नहीं रह पाता तथा अनुशासनहीनता की घटनाएं आमतौर पर घटित होती रहती हैं। पुलिस कार्यों में असीमित विस्तार, अपराधों व सामाजिक बुराइयों में वृद्धि, राजनीतिक हस्तक्षेप इत्यादि पुलिस के मनोबल को गिराने के लिए काफी सीमा तक उत्तरदायी हैं। पुलिस कर्मचारियों व अधिकारियों को जनता, प्रेस, न्यायालय के प्रति जवाबदेह व हर तरफ से अलोचना का शिकार होना ही पड़ता है। विभागीय सुविधाओं का पर्याप्त मात्रा में न होना, लगातार ड्यूटी पर रहना, आवश्यकता अनुसार छुट्टी न मिलना, आवास इत्यादि की उचित व्यवस्था न होना इत्यादि कुछ ऐसी आधारभूत समस्याएं हैं जिनके कारण पुलिसजन तनावपूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं। इसके अतिरिक्त अधीनस्थ पुलिस कर्मचारियों को अपने उच्च अधिकारियों की तरफ से भी कई प्रकार का तनाव मिलता रहता है, जिसका विवरण इस प्रकार से है।

 जब कोई संगीन अपराध जैसा कि बलात्कार या फिर हत्या जैसी घटना घट जाती है, तब अधिकारियों पर चारों तरफ से दबाव होता है कि मुलजिमों को तुरंत पकड़ा जाए तथा अधिकारी इस दबाव व तनाव को अपने अधीनस्थ कर्मियों पर स्थानांतरित कर देते हैं तथा इसी भागमभाग में कई बार तो दोषरहित व्यक्तियों को भी पुलिस की बर्बरता झेलनी पड़ जाती है। पुलिस अधिकारियों के विरोधाभासी आदेश भी पुलिस कर्मियों को दुविधा की स्थिति में डाल देते हैं। उदाहरणतः अधिकारियों के आदेश होते हैं कि खनन, आबकारी व वन माफिया पर शिकंजा कसा जाए और जब पुलिस कर्मी आदेशों की पालना करते हुए अपराधियों की धरपकड़ शुरू करते हैं, तब उन्हें अपने आकाओं के लोगों को छोड़ देने के आदेश दे दिए जाते हैं और यदि कोई कर्मी अपने कर्त्तव्यों की पालना करता हुआ व निष्ठा से कार्य करता है तब उसे स्थानांतरित करके अनचाही जगह पर भेज दिया जाता है। इसी तरह ट्रैफिक व्यवस्था के लिए चिन्हित जगहों पर ही गाडि़यां खड़ी कर देने के लिए आदेश होते हैं, मगर कई हेकड़ी जमाने वाले राजनीतिज्ञ या अन्य विभागों के अधिकारी अपना अवांछित रौब डालना शुरू कर देते हैं तथा अमुक कर्मी को स्थानांतरित करवा देने की धमकियां देना शुरू कर देते हैं। ऐसे में उस कर्मी का तनावग्रस्त होना स्वाभाविक ही है।

 पुलिस कर्मियों को दिन में 12 से 14 घंटे अपनी ड्यूटी देनी होती है तथा उन्हें विभिन्न प्रकार के लोगों से वास्ता पड़ता रहता है। उसे अपने मोबाइल व वायरलैस सैट पर संदेश भी सुनने होते हैं तथा साथ ही बिगडै़ल व बदमाश अपराधियों से भी जूझना पड़ता है। ऐसी परिस्थितियों में उसका स्वभाव चिड़चिड़ा होना स्वाभाविक ही है। पुलिस की अभिरक्षा से अपराधियों के फरार होने की घटनाएं आम तौर पर देखने व सुनने को मिलती रहती हैं। एक पुलिस वाला जब किसी गंभीर अपराधी को एक जगह से दूसरी जगह ले जा रहा होता है तो वह अपराधी पुलिस वाले की मजबूरी का फायदा उठा कर किसी भीड़ वाली जगह से या फिर टॉयलट/बाथरूम जाने के बहाने से फरार होने में कामयाब हो जाता है तथा अधिकारी लोग उस आरक्षी को प्रारंभिक जांच किए बिना ही निलंबित कर देते हैं तथा लापरवाही के लिए मुकद्दमा भी दर्ज कर लिया जाता है। पुलिस कर्मचारियों को विभिन्न विभागीय नियमों के बारे में समय-समय पर सलाह-परामर्श नहीं दिया जाता तथा वे अज्ञानता और अनभिज्ञता के कारण नियमों की उल्लंघना कर बैठते हैं। उदाहरण के लिए यदि कोई जवान 2-4 दिन या ज्यादा दिन गैर हाजिर होकर अपनी ड्यूटी पर वापस रिपोर्ट करता है व अधिकारी लोग उसकी जांच किए बिना ही उसका उतने दिन का वेतन काट लेते हैं। वैसे तो ऐसा करना एक अनुशासित विभाग के लिए आवश्यक है, मगर अब प्रश्न उठता है कि क्या इन निम्न कर्मचारियों को अधिकारियों ने इन नियमों के बारे कभी सूचित कर रखा था तथा क्या अमुक कर्मचारी का गैरहाजि़र हो जाना उसकी मजबूरी थी। इस सब का पूर्व संज्ञान आमतौर पर नहीं लिया जाता। अधीनस्थों को समय-समय उनके आचरण संबंधी नियमों का परामर्श देना आवश्यक होना चाहिए। अधीनस्थ कर्मचारियों को उनकी छोटी-छोटी अवहेलनाओं के लिए निलंबित कर दिया जाता है। निलंबन होने पर उसका अपने परिवार, विभाग व समाज में बहुत बड़ा तिरस्कार होता है।

 बात यहीं समाप्त नहीं होती। उसका निलंबन कई बार तो महीनों तक चलता रहता है तथा विभागीय जांच भी कई महीनों लंबित पड़ी रहती है। कई अकुशल अधिकारी अपने जवानों को अधिक से अधिक सजा देने में अपनी शौहरत बटोरने की फिराक में होते हैं। कर्त्तव्यहीनता के लिए सजा देना आवश्यक है, मगर यह सजा उसके कदाचार के अनुपात में ही होनी चाहिए, न कि साधारण और गंभीर अपराध के लिए एक ही पैमाने का प्रयोग होना चाहिए। यह भी देखा गया है कि कई बार अधिकारी अपने ही अनुचित आदेशों के कारण आम जनता की आलोचना का कारण बन जाते हैं तथा ऐसे में वे इस कमी का ठीकरा अधीनस्थों के सिर पर फोड़ देते हैं तथा खुद पाक-पवित्र बनने की कोशिश करते हैं तथा जब कर्मचारी कोई अच्छा काम देते हैं तो उसका श्रेय अधिकारी खुद उठा लेते हैं। कई अधिकारियों का माफिया के लोगों के साथ सीधा व्यक्तिगत संबंध होता है तथा वे अपनी आंखों के सामने कई प्रकार के आर्थिक अपराध होने देते हैं तथा जब उन्हें कोई बुद्धिजीवी लोग या मीडिया वाले जिम्मेदार ठहराने की बात करते हैं तो वे अधिकारी कई प्रकार के कानूनों का हवाला देकर अपना बचाव करते हुए सारा दोष अधीनस्थ अधिकारियों के माथे पर मढ़ देते हैं। इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि अधीनस्थ पुलिस कर्मचारी को तनावमुक्त रखने के लिए पुलिस नेतृत्व को ईमानदारी, निष्ठा व निष्पक्षता से कार्य करना होगा तथा राजनीतिज्ञों के अवांछित आदेशों को नकारना होगा।

राजेंद्र मोहन शर्मा

रिटायर्ड डीआईजी


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