पुस्तक समीक्षा : संगीत सारथियों की आधी शताब्दी का प्रतिबिंब : ‘अनुचिंतन’

By: Aug 8th, 2021 12:04 am

हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के 52वें स्थापना दिवस के अवसर पर 22 जुलाई, 2021 को ‘अनुचिंतन’:  हिमाचल प्रदेश में उच्चतर संगीत शिक्षा की सारथी पुस्तक का विमोचन हुआ। विश्वविद्यालय स्थापना दिवस पर इसका विमोचन प्रदेश के महामहिम राज्यपाल एवं कुलाधिपति राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर के कर कमलों से मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की उपस्थिति में हुआ। भूली हुई बात का स्मरण करना या किसी के ध्यान में लाना ही ‘अनुचिंतन’ है। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय तथा प्रदेश की संगीत शिक्षण प्रणाली में अनेक सेवानिवृत्त संगीत आचार्यों, संगीतज्ञों, शिक्षकों की जीवन भर की साधना, तपस्या, त्याग, समर्पण, गुरु-शिष्य परंपरा, शिक्षण अनुभव, संस्मरणों तथा भविष्य के शिक्षकों के लिए बहुत ही आवश्यक बहुमूल्य दिशा-निर्देश बिंदुओं को संकलित करने का प्रयास है।

पुस्तक के लेखक प्रो. परमानंद बंसल तथा डा. टीसी कौल ने निःस्वार्थ तथा कल्याणकारी भाव से बिना व्यावसायिक दृष्टिकोण से इस पुस्तक की रचना की है। यह पुस्तक वर्णित सभी 61 सेवानिवृत्त संगीत शिक्षकों के संघर्ष एवं तपस्या की कहानी का प्रतिबिंब है जिन्होंने आधी शताब्दी से इस पहाड़ी प्रदेश को स्वर लहरियों से सींचा है। इस संगीत यात्रा में पहाड़ के ऊंचे पर्वतों, दुर्गम स्थानों में संगीत के प्रचार-प्रसार तथा संरक्षण एवं संवर्धन में अनेकों संगीत गुरुओं ने अपनी आहुति दी है। वैल्यू पब्लिकेशन, दिल्ली से प्रकाशित यह पुस्तक मात्र 500 रुपए में संगीत शिष्यों, शिक्षकों, साधकों, संगीत जिज्ञासुओं तथा संगीतज्ञों के लिए उपलब्ध है। आकर्षक मुखपृष्ठ से सुसज्जित यह पुस्तक प्रदेश की आधी शताब्दी के संगीत का एक जीता जागता साक्ष्य है जिसमें संगीत, संस्थागत संगीत, संगीत शिक्षण के उद्देश्य, वर्तमान तथा पूर्व संगीत स्वरूप, संगीत की वर्तमान स्थिति, विभिन्न संगीत संस्थाओं के सांगीतिक योगदान के साथ 61 संगीत गुरुओं के छायाचित्र तथा उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व का विस्तृत वर्णन है। लेखकों द्वारा कोरोना काल के ‘लॉकडाउन’ में प्रदेश के संगीत की ऐतिहासिक परतों को ‘अनलॉक’ करने का प्रयास बहुत ही सराहनीय है। यह पुस्तक जिज्ञासु संगीत प्रेमियों द्वारा अपने संगीत कक्ष तथा संगीत शिक्षकों द्वारा पाठशाला एवं महाविद्यालयों के पुस्तकालयों में संकलित करने योग्य है। भविष्य में भी इस पुस्तक के नवीन संस्करणों के प्रकाशन की आवश्यकता रहेगी ताकि इस कार्य की निरंतरता बनी रहे।

-प्रो. सुरेश शर्मा, घुमारवीं


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