अंतरराष्ट्रीय स्तर की खेल सुविधाएं बर्बाद मत करो

By: Aug 27th, 2021 12:08 am

हिमाचल प्रदेश सरकार का युवा सेवाएं एवं खेल विभाग अभी तक करोड़ों रुपए से बने इस खेल ढांचे के रखरखाव में नाकामयाब रहा है। उसके पास न तो चौकीदार हैं और न ही मैदान कर्मचारी, पर्याप्त प्रशिक्षकों की बात तो बहुत दूर है। हिमाचल से खिलाडिय़ों के पलायन का पहले सबसे बड़ा कारण यहां पर अच्छी प्ले फील्ड व स्तरीय प्रशिक्षकों का न होना था, मगर आज जब प्ले फील्ड अंतरराष्ट्रीय स्तर की मिली हैं तो उसके रखरखाव में इतनी लापरवाही क्यों? युवा सेवाएं एवं खेल विभाग को चाहिए कि वह इस ओर ध्यान दे ताकि खेल सुविधाओं की बर्बादी न हो…

विश्व स्तर पर आजकल वैज्ञानिक आधार पर बनी उत्तम प्ले फील्ड के कारण बहुत कड़ी प्रतिस्पर्धा हो गई है। इसलिए उत्कृष्ट खेल प्रदर्शन करने पर भी पोडियम तक पहुंचना सबके बस की बात नहीं है। अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं की पदक तालिका में स्थान बनाने के लिए जहां अच्छे ज्ञानवान प्रशिक्षक चाहिए, वहीं पर अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्ले फील्ड भी बहुत जरूरी है। हिमाचल प्रदेश के खेल मैदानों व अन्य हाल ही के वर्षों में बनी अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्ले फील्ड के रखरखाव पर पहले भी कई बार लिख कर इस कॉलम के माध्यम से जागरूक किया जा चुका है, मगर खेल विभाग की कुंभकर्णी नींद के कारण इस पर अमल कम ही हो रहा है। हिमाचल प्रदेश के पास आज से दो दशक पहले तक खेल ढांचे के नाम पर सैकड़ों साल पहले राजा-महाराजाओं द्वारा मेले व उत्सवों के लिए बनाए गए उंगलियों पर गिने जाने वाले कुछ मैदान चंबा, मंडी, अमतर, सुजानपुर, जयसिंहपुर, कुल्लू, अनाडेल, रोहडू, सराहन, सोलन, चैल व नाहन में थे। इन मैदानों पर हिमाचल प्रदेश की खेल गतिविधियां कई दशकों से मेलों-उत्सवों व राजनीतिक रैलियों से बचे समय में चलती रही हैंं।

वैसे तो हिमाचल प्रदेश की तरक्की में विभिन्न सरकारों का योगदान रहा है, मगर हिमाचल प्रदेश में पहली बार नई सदी के शुरुआती वर्षों में प्रोफेसर प्रेम कुमार धूमल की सरकार ने राज्य में अंतरराष्ट्रीय स्तर के खेल ढांचे को खड़ा करने की घोषणा ही नहीं की, अपितु अपने दूसरे कार्यकाल में विभिन्न अंतरराष्ट्रीय स्तर के आधारभूत ढांचे को मूर्त रूप भी दिया तथा हिमाचल प्रदेश में साहसिक खेलों के माध्यम से खेल पर्यटन को संभावनाओं को भी तराशा है। आज हिमाचल प्रदेश में कई खेलों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्ले फील्ड एथलेटिक्स, हाकी व इंडोर खेलों के लिए विभिन्न जिला व उपमंडल स्तर पर उपलब्ध हैं। बिलासपुर के लुहणू का खेल परिसर पूर्व मंत्री व वर्तमान में कोट कलूहर के विधायक ठाकुर रामलाल के प्रयत्नों से सामने आया है। उन्होंने इस परिसर को बनाने की योजना तो बहुत पहले ही बना दी थी, मगर यह परिसर अभी भी पूरा नहीं हो पाया है। एथलेटिक्स सभी खेलों की जननी है। इसी से सब खेल निकले हैं और इसके प्रशिक्षण के बिना किसी खेल में दक्षता नहीं मिल सकती है। देश में कई प्रदेशों के पास एक भी सिंथेटिक ट्रैक नहीं है। हिमाचल प्रदेश में आज हमीरपुर, बिलासपुर व धर्मशाला में तीन सिंथेटिक ट्रैक बन कर तैयार हैं। भारतीय खेल प्राधिकरण की आर्थिक सहायता से शिलारू व सरस्वतीनगर में काम हो रहा है। शिलारू में दो सौ मीटर का सिंथेटिक ट्रैक बन चुका है और सरस्वतीनगर में काम हो रहा है ।

हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर व धर्मशाला सिंथेटिक ट्रैकों पर लोग टहलते नजर आते हैं। इनमें हमीरपुर के ट्रैक का तो हाल बहुत बुरा है। खेल विभाग वहां पर न तो नियमित चौकीदार दे पाया है और न ही मैदान कर्मचारी। यह करोड़ों की संपत्ति लावारिस बरबाद हो रही है। खेल विभाग को अब तो कुंभकर्णी नींद से जाग कर इन प्ले फील्ड की सुध लेनी होगी। ट्रैक पार्क बन चुके हैं। वहां आम लोगों का प्रवेश वर्जित कर देना चाहिए। केवल एथलीट के लिए ही प्रवेश रखना चाहिए। तभी इन प्ले फील्ड को लंबे समय तक खिलाडिय़ों के लिए उपलब्ध करवाया जा सकता है। कल जब हिमाचल प्रदेश के पास अंतरराष्ट्रीय स्तर के एथलीट होंग और प्रशिक्षण के लिए उखड़ा हुआ ट्रैक होगा तो फिर पहाड़ की संतान को पिछडऩे का दंश झेलना पड़ेगा। इसलिए इस बरबादी को अभी से रोकना होगा। तभी हम अपनी आने वाली पीढिय़ों से न्याय कर सकेंगे। हिमाचल प्रदेश को भी हिमाचल में ट्रेनिंग कर राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिले, इसके लिए कुछ लोगों के जुनून ने बिना सुविधाओं के मिट्टी पर ट्रेनिंग कर राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीत कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दस्तक दी थी। तभी यह अंतरराष्ट्रीय स्तर की सुविधा आने वालों को मिल पाई है। हिमाचल प्रदेश में इस समय हर जिला स्तर सहित कई जगह उपमंडल स्तर पर भी इंडोर स्टेडियम बन कर तैयार हैं, मगर उन स्टेडियमों में बनी प्ले फील्ड का उपयोग प्रशिक्षण के लिए खिलाडिय़ों को ठीक से करना नहीं मिल रहा है। वहां पर अधिकतर शहर के लाला व अधिकारी अपनी फिटनेस करते हैं। ऊना व मंडी में तरणताल बने हैं, मगर वहां पर भी कोई प्रशिक्षण कार्यक्रम आज तक शुरू नहीं हो पाया है।

हिमाचल प्रदेश में तैराक ही नहीं हैं। यहां पर भी प्रशिक्षण न होकर गर्मियों में मस्ती जरूर हो जाती है। ऊना में हाकी के लिए एस्ट्रोटर्फ बिछी हुई है, मगर उस की तो पहले ही दुर्गति हो गई है। हिमाचल प्रदेश सरकार का युवा सेवाएं एवं खेल विभाग अभी तक करोड़ों रुपए से बने इस खेल ढांचे के रखरखाव में नाकामयाब रहा है। उसके पास न तो चौकीदार हैं और न ही मैदान कर्मचारी, पर्याप्त प्रशिक्षकों की बात तो बहुत दूर है। हिमाचल से खिलाडिय़ों के पलायन का पहले सबसे बड़ा कारण यहां पर अच्छी प्ले फील्ड व स्तरीय प्रशिक्षकों का न होना था, मगर आज जब प्ले फील्ड अंतरराष्ट्रीय स्तर की मिली हैं तो उसके रखरखाव में इतनी लापरवाही क्यों? अभी समय है कि हिमाचल प्रदेश युवा सेवाएं एवं खेल विभाग को चाहिए कि वह इस ओर ध्यान दे जिससे करोड़ों की अंतरराष्ट्रीय खेल सुविधाओं का सदुपयोग हो सके। तभी हिमाचल प्रदेश से खिलाडिय़ों का पलायन रुकेगा। जब खिलाड़ी हिमाचल प्रदेश में रह कर प्रशिक्षण प्राप्त कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतेगा तो उसके साथ हिमाचल प्रदेश का भी नाम होगा, नहीं तो कोई पंजाब व किसी अन्य केंद्रीय विभाग में रहकर खेल में दक्षता हासिल कर देश के लिए पदक तो जरूर जीतता रहेगा, मगर उसे हिमाचली होने का परिचय देने के लिए विवश होना पड़ेगा।

भूपिंद्र सिंह

राष्ट्रीय एथलेटिक्स प्रशिक्षक

ईमेल: bhupindersinghhmr@gmail.com


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