नेहरु जी का तारीखी भाषण

आज पंडित नेहरु हमारे बीच नहीं हैं। उनका आजादी के अवसर पर कहा गया एक-एक शब्द बहुत बड़े मायने रखता है और उनके विचारों से एकमत न रखने वालों के लिए भी प्रासंगिक है। ऐसे अनेक कारणों से पंडित नेहरु देश के प्रधानमंत्री और आम जन के लिए आधुनिक भारत की नींव रखने वाले प्रेरणा बिंदु बने हुए हैं…

प्रधानमंत्री जी ने 15 अगस्त को 75वें स्वतंत्रता दिवस पर आठवीं बार लाल किले पर झंडा फहराने के बाद देश को संबोधित किया। उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों को नमन के साथ अपनी बात शुरू की। इस दौरान उन्होंने देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु को भी याद किया। पंडित नेहरु के आजादी की पूर्व संध्या पर दिए गए इस तारीखी भाषण को 20वीं सदी के सबसे जोरदार भाषणों में माना गया है। पूरी दुनिया इस भाषण की गवाह बनी थी। दिल्ली में भी लाखों लोग जमा थे। मूसलाधार बारिश हो रही थी और संसद में नेहरु ऐलान कर रहे थे, ‘आधी रात को जब पूरी दुनिया सो रही है, भारत जीवन और स्वतंत्रता की नई सुबह के साथ उठेगा।’ उनके इस भाषण को नाम दिया गया ‘ए ट्राईएस्ट विद डेस्टिनी’, जिसका अर्थ भाग्य के साथ एक प्रयोग कहा जा सकता है। इस बार 15 अगस्त की तारीख़ स्वतंत्रता दिवस पर देश के लिए आजादी का उत्सव लेकर आई तो वहीं दूसरी तरफ हजारों की संख्या में भारत माता के उन वीर सपूतों को याद देती रही, जिन्होंने हंसते हुए देश के लिए अपनी जान न्योछावर कर दी। इस मौके पर नेहरु ने कहा था, ‘कई साल पहले हमने भाग्य को बदलने का प्रयास किया था और अब वो समय आ गया जब हम अपनी प्रतिज्ञा से मुक्त हो जाएंगे। पूरी तरह से नहीं लेकिन ये महत्वपूर्ण है। आज रात 12 बजे जब पूरी दुनिया सो रही होगी उस समय भारत स्वतंत्र जीवन के साथ नई शुरुआत करेगा।’ नेहरु के भाषण ने भारत के लोगों के लिए एक नई मुक्त सुबह की उम्मीद जगाई और देश को भौगोलिक और आंतरिक रूप से सांप्रदायिक आधार पर विभाजित करने के बावजूद साहस को प्रेरित किया। नेहरु ने अपने भाषण में कहा, ‘ये ऐसा समय होगा जो इतिहास में बहुत कम देखने को मिलता है।

 पुराने से नए की ओर जाना, एक युग का अंत हो जाना, अब सालों से शोषित देश की आत्मा अपनी बात कह सकती है।’ उन्होंने कहा कि यह संयोग है कि हम पूरे समर्पण के साथ भारत और उसकी जनता की सेवा के लिए प्रतिज्ञा ले रहे हैं। इतिहास की शुरुआत के साथ ही भारत ने अपनी खोज शुरू की और न जाने कितनी सदियां इसकी भव्य सफलताओं और असफलताओं से भरी हुई हैं। उन्होंने कहा कि समय चाहे अच्छा हो या बुरा, भारत ने कभी इस खोज से नजर नहीं हटाई, कभी अपने उन आदर्शों को नहीं भुलाया जिसने आगे बढ़ने की शक्ति दी। आज एक युग का अंत कर रहे हैं लेकिन दूसरी तरफ भारत खुद को खोज रहा है। आज जिस उपलब्धि की हम खुशियां मना रहे हैं, वो नए अवसरों के खुलने के लिए केवल एक कदम है। इससे भी बड़ी जीत और उपलब्धियां हमारा इंतजार कर रही हैं। क्या हममें इतनी समझदारी और शक्ति है जो हम इस अवसर को समझें और भविष्य में आने वाली चुनौतियों को स्वीकार करें। जवाहर लाल नेहरु ने अपने भाषण के दौरान कहा था कि भविष्य में हमें आराम नहीं करना है और न चैन से बैठना है, बल्कि लगातार कोशिश करनी है। इससे हम जो बात कहते हैं या कह रहे हैं, उसे पूरा कर सकें। भारत की सेवा का मतलब है करोड़ों पीडि़तों की सेवा करना। इसका अर्थ है अज्ञानता और गरीबी को मिटाना, बीमारियों और अवसर की असमानता को खत्म करना। हमारी पीढ़ी के सबसे महान व्यक्ति की यही इच्छा रही है कि हर आंख से आंसू मिट जाएं। उन्होंने कहा, शायद यह हमारे लिए पूरी तरह से संभव न हो पर जब तक लोगों कि आंखों में आंसू हैं और वो पीडि़त हैं तब तक हमारा काम खत्म नहीं होगा और इसलिए हमें मेहनत करना होगा जिससे हम अपने सपनों को साकार कर सकें। ये सपने भारत के लिए हैं, साथ ही पूरे विश्व के लिए भी हैं। आज कोई खुद को बिलकुल अलग नहीं सोच सकता क्योंकि सभी राष्ट्र और लोग एक दूसरे से बड़ी निकटता से जुड़े हुए हैं। जिस तरह शांति को विभाजित नहीं किया जा सकता, उसी तरह स्वतंत्रता को भी विभाजित नहीं किया जा सकता।

 इस दुनिया को छोटे-छोटे हिस्सों में नहीं बांटा जा सकता है। हमें ऐसे आजाद महान भारत का निर्माण करना है जहां उसके सारे बच्चे रह सकें। नेहरु ने कहा था, आज सही समय आ गया है, एक ऐसा दिन जिसे भाग्य ने तय किया था और एक बार फिर सालों के संघर्ष के बाद भारत जागृत और आजाद खड़ा है। हमारा अतीत हमसे जुड़ा हुआ है और हम अक्सर जो वचन लेते रहे हैं उसे निभाने से पहले बहुत कुछ करना है। लेकिन फिर भी निर्णायक बिंदु अतीत हो चुका है और हमारे लिए एक नया इतिहास शुरू हो चुका है, एक ऐसा इतिहास जिसे हम बनाएंगे और जिसके बारे में और लोग लिखेंगे। पंडित नेहरु ने कहा था कि ये हमारे लिए एक सौभाग्य का समय है, एक नए तारे का जन्म हुआ है, पूरब में आजादी का सितारा। एक नई उम्मीद का जन्म हुआ है, एक दूरदर्शिता अस्तित्व में आई है। काश ये तारा कभी अस्त न हो और ये उम्मीद कभी धूमिल न हो। हम हमेशा इस आजादी में खुश रहें। आने वाला भविष्य हमें बुला रहा है। पंडित नेहरु ने 16 अगस्त 1947 को भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को 17वीं शताब्दी के स्मारक के मुख्य द्वार लाहौर गेट के ऊपर फहराया। इसे लाहौरी गेट इसलिए कहा गया क्योंकि इसके दरवाजे के सामने से सड़क उस वक्त लाहौर की ओर जाती थी। अब हम हर स्वतंत्रता दिवस पर गर्व के साथ देखते हैं कि हमारे प्रधानमंत्री लाल किले के ऊपर तिरंगा फहराते हैं और उसके बाद इसके प्राचीर से भाषण देते हैं। जवाहर लाल नेहरु ने 16 अगस्त को तिरंगा झंडा फहराया था न कि 15 अगस्त को। उनका पहला भाषण हिंदी में दिया गया था। 1947 से लेकर 1963 तक नेहरु ने किले से 17 भाषण दिए थे। नेहरु ने 14 अगस्त की आधी रात को वायसराय लॉज जो मौजूदा राष्ट्रपति भवन है, वहां से ऐतिहासिक भाषण दिया था। पंडित नेहरु के लिए यह तारीखी भाषण आसान नहीं था। 14 अगस्त 1947 को भारत टुकड़ों में बंट चुका था। मुस्लिम लीग के एक नेता की जिद्द ने हिंदुस्तान के मुकद्दर में ऐसा जख्म लिख दिया था जिससे आज भी रह-रहकर दर्द रिसता रहता है।

 पंजाब और बंगाल जल रहे थे। लाशों की गिनती मुश्किल थी, लहू में डूबी तलवारों की प्यास बढ़ती जा रही थी और मजलूमों की चीखों की गूंज ने दिल्ली में जवाहर लाल नेहरु को हिला दिया था। उस रात नेहरु, इंदिरा गांधी, फिरोज गांधी और पद्मजा नायडू के साथ खाने की मेज पर बैठे ही थे कि फोन की घंटी बजी। नेहरु ने फोन उठाया, फोन पर दूसरी ओर मौजूद शख्स से बात की और फोन रख दिया। अब तक उनके चेहरे का रंग उड़ चुका था। नेहरु ने अपने चेहरे को अपने हाथों से ढक लिया और जब चेहरे से हाथ हटाए तो उनकी आंखें आंसुओं से भर चुकी थीं। क्योंकि वो फोन लाहौर से आया था। लाहौर के नए प्रशासन ने हिंदू और सिख इलाकों का पानी बंद कर दिया था। लोग प्यास से पागल हो रहे थे। जो भी पानी के लिए घरों से निकलता, उन्हें चुन-चुनकर मारा जा रहा था। लाहौर की गलियों में हिंसा की आग लगी हुई थी। लोग तलवारें लिए रेलवे स्टेशन पर घूम रहे थे ताकि वहां से भागने वाले सिखों और हिंदुओं को मारा जा सके। ये जानकर नेहरु टूट से गए थे। नेहरु ने कमजोर से शब्दों में कहा, ‘मैं आज देश को कैसे संबोधित कर पाऊंगा, जब मुझे पता है मेरा लाहौर जल रहा है।’ जब नेहरु ये सब कह रहे थे, तब इंदिरा वहीं उनके पास खड़ी थीं, उन्होंने अपने पिता को संभाला और भाषण पर ध्यान देने के लिए कहा। फिर ठीक 11 बजकर 55 मिनट पर संसद के सेंट्रल हॉल में नेहरु की आवाज गूंजी। आज पंडित नेहरु हमारे बीच नहीं हैं। उनका आजादी के अवसर पर कहा गया एक-एक शब्द बहुत बड़े मायने रखता है और उनके विचारों से एकमत न रखने वालों के लिए भी प्रासंगिक है। ऐसे अनेक कारणों से पंडित नेहरु देश के प्रधानमंत्री और आम जन के लिए आधुनिक भारत की नींव रखने वाले प्रेरणा बिंदु बने हुए हैं।

डा. वरिंदर भाटिया

कालेज प्रिंसीपल

ईमेल : hellobhatiaji@gmail.com


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