नए मापदंडों के साथ शुरू हो स्कूली शिक्षा

हर बार एक जैसे प्रयासों से अलग परिणामों की चेष्टा करना व्यर्थ है। इसलिए इस बार के प्रयास में कुछ परिवर्तन किए जाने चाहिए ताकि परिणामों में बदलाव की अपेक्षा की जा सके। उन विद्यालयों को प्रोत्साहित करने के लिए भी योजना बनानी चाहिए जहां पर एक निश्चित अवधि के अंदर कोई भी संक्रमण का मामला सामने नहीं आता है…

कोरोना महामारी ने प्रदेश की जनता को बहुत से जख्म दिए हैं। किसी ने अपनों को खोया तो किसी ने रोजगार को और किसी का कारोबार इस आपदा की बलि चढ़ गया। इन सभी जख्मों को आंकड़ों का रूप देकर भले ही नुकसान का अंदाजा लगाया जा सके, लेकिन शिक्षा को हुए नुकसान का अंदाजा लगाने के लिए कोई पैमाना नहीं है। यह समय शिक्षा के लिए एक काले अध्याय के रूप में जाना जाएगा। स्कूली शिक्षा से महरूम विद्यार्थियों के लिए हर बीतता दिन आने वाली चुनौतियों को बड़ा कर रहा है। प्रदेश के लाखों विद्यार्थियों का भविष्य अधर में है। कोरोना संक्रमण कब पूरी तरह से काबू होगा, इसके बारे में कुछ भी कह पाना मुश्किल है, तो प्रश्न पैदा होता है कि क्या तब तक विद्यार्थी विद्यालयों से दूर ही रहेंगे? कोविड के घटते-बढ़ते संक्रमण के चलते प्रदेश के विद्यालयों को विद्यार्थियों के लिए खोलने का सरकार का हर प्रयास विफल होता जा रहा है। सरकार जैसे ही विद्यालयों को खोलने के संबंध में निर्णय लेती है और विद्यार्थी विद्यालयों में आना शुरू करते हैं, ठीक उसी वक्त विद्यार्थियों और अध्यापकों के संक्रमण के आंकड़े अखबारों और सोशल मीडिया की सुर्खियां बनने लग पड़ते हैं।

 इन खबरों का दबाव कह लीजिए या फिर उपचुनावों के मुहाने पर बैठी सरकार की बच्चों के प्रति चिंता, स्कूली शिक्षा पर फिर से विराम लगाने के आदेश सामने आ जाते हैं। विद्यर्थियों के घर बैठते ही सब ऐसे शांत हो जाता है जैसे मानो कुछ हुआ ही न हो। कई बार तो ऐसा एहसास होता है जैसे विद्यालयों को बंद रखने के लिए कोई बड़ी ताकत काम कर रही है। नए शैक्षणिक वर्ष की शुरुआत के बाद पहली बार दो अगस्त से दसवीं, जमा एक और जमा दो के विद्यार्थियों के लिए विद्यालयों को खोलने के आदेशों के बाद अभी विद्यार्थियों का विद्यालयों में पूरी तरह से अनुकूलन भी नहीं हुआ था और दस दिन के भीतर फिर से पूरे प्रदेश के विद्यालयों को बंद कर दिया गया। इस निर्णय से न केवल इन तीन कक्षाओं के विद्यार्थी परेशान हुए, बल्कि विद्यालय जाने की इच्छा संजोए बैठे छोटी कक्षाओं के बच्चों की आशाएं भी धूमिल हो गई। इसके साथ ही कॉलेज जाने की तैयारी किए हुए प्रदेश की नौजवान पीढ़ी भी घरों में बैठने को मजबूर हो गई है। हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन अब यह कह रहा है कि बच्चों को विद्यालयों में भेजा जाना चाहिए क्योंकि उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता एक उम्रदराज इनसान से कहीं अधिक होती है। इसके बावजूद प्रदेश में विद्यालयों को खोलने से परहेज़ किया जा रहा है। इस विरोधाभास की मुख्य वजह दूसरी लहर के दौरान उत्पन्न हुई डरावनी परिस्थितियां और तीसरी लहर की आशंका हो सकती है। इसलिए सरकार फूंक-फूंक कर कदम रखने को मजबूर है। संक्रमण का यह दौर चलता रहेगा, लेकिन इसके साथ-साथ शिक्षा भी जारी रहे, इसके उपाय ढूंढने होंगे। भले ही ऑनलाइन शिक्षा के नाम पर शिक्षा की खानापूर्ति की जा रही है, लेकिन बच्चों के संपूर्ण विकास के लिए स्कूली शिक्षा से बेहतर अन्य कोई विकल्प नहीं है।

 शिक्षा केवल विद्यार्थियों को अगली कक्षा में पहुंचाने और प्रमाणपत्र बांटने तक सीमित न हो जाए, इसके लिए कुछ प्रयत्न करने की जरूरत है। सरकार द्वारा बाईस अगस्त तक विद्यालयों को बंद रखने का निर्णय लिया गया है। इसके बाद इस बार इन विद्यालयों को खोलने के लिए नए मापदंडों को अपनाया जाना चाहिए। एक या दो जिलों या पूरे प्रदेश के दस विद्यालयों में संक्रमण के कुछ केस आने से पूरे प्रदेश के विद्यालयों में पढ़ाई को बंद करने का कोई औचित्य नहीं है। जहां संक्रमण है, वहीं पर विद्यालयों को बंद करने के संबंध में नए मापदंड सरकार द्वारा निर्धारित किए जाने चाहिए। इसके लिए कलस्टर, तहसील, उपमंडल या जिला स्तर पर विद्यालयों को बंद करने के संबंध में निर्णय लेने के लिए नियम बनाए जाने जरूरी हैं। इसके लिए एक जिला, उपमंडल या तहसील स्तर पर कितने विद्यार्थियों के संक्रमण आने पर पूरे जिले, उपमंडल या तहसील के अंतर्गत आने वाले विद्यालयों को बंद कर दिया जाएगा, इस बारे में भी निर्देश दिए जाने की आवश्यकता है। एक निश्चित संख्या से ऊपर संक्रमण आने पर ही संपूर्ण प्रदेश के विद्यालयों को बंद करने के संबंध में निर्णय लिया जाना चाहिए। प्रदेश के एक कोने में स्थित एक जिले के कुछ विद्यालयों में संक्रमण के कुछ केस आने पर प्रदेश के दूसरे कोने पर स्थित जिले, जिसमें एक भी विद्यार्थी संक्रमित नहीं है, उन विद्यालयों को बंद कर देना उन विद्यार्थियों के साथ बड़ा अन्याय है जो कि संक्रमण से बचने के लिए सभी नियमों का पालन कर रहे हैं। इस संबंध में एक विस्तृत योजना बनाकर उसको प्रदेश में लागू करने की जरूरत है।

 प्रदेश में संक्रमण के आंकड़े आजकल न्यूनतम स्तर पर पहुंच चुके हैं और हिमाचल प्रदेश की अठारह वर्ष से ऊपर की लगभग सारी आबादी का पहली डोज के साथ टीकाकरण हो चुका है। प्रदेश के लिए यह एक सकारात्मक खबर है। कोरोना महामारी की दूसरी लहर में मची हाहाकार के बाद अब व्यवस्थाएं फिर से सामान्य हो चली हैं, लेकिन शिक्षा का क्षेत्र अभी भी अपने पुराने स्वरूप में नहीं आ पाया है। विद्यालयों को खोलने की हर कोशिश नाकामयाब सिद्ध हो रही है और हर बार ऑनलाइन शिक्षा के दुष्प्रभावों और तकनीक की उलझनों से विद्यार्थियों को दो-चार होना पड़ रहा है। हर बार एक जैसे प्रयासों से अलग परिणामों की चेष्ठा करना व्यर्थ है। इसलिए इस बार के प्रयास में कुछ परिवर्तन किए जाने चाहिए ताकि परिणामों में बदलाव की अपेक्षा की जा सके। एक सूक्ष्म योजना को आधार बनाकर स्कूली शिक्षा को पटरी पर लाया जा सकता है। इसके अलावा सरकार को उन विद्यालयों को प्रोत्साहित करने के लिए भी योजना बनानी चाहिए जहां पर एक निश्चित समय के अंदर कोई भी संक्रमण का मामला सामने नहीं आता है। इससे न केवल विद्यालय प्रशासन में अपने विद्यार्थियों को संक्रमण से बचने के प्रति जागरूकता फैलाने का काम किया जाएगा, बल्कि संक्रमण को रोकने में भी मदद मिलेगी। पिछले डेढ़ वर्ष से स्कूली शिक्षा से दूर विद्यार्थियों को विद्यालयों में लाकर शिक्षा देने के लिए नए मापदंडों के साथ एक नई शुरुआत की जानी अति आवश्यक है।

राकेश शर्मा

लेखक जसवां से हैं


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