किन्नौरी लो‌क साहित्य में शोध अध्ययन की दशा और दिशाएं

By: Aug 15th, 2021 12:06 am

अतिथि संपादक : डा. गौतम शर्मा व्यथित

मो.- 9418130860

विमर्श के बिंदु

हिमाचली लोक साहित्य एवं सांस्कृतिक विवेचन -42

-लोक साहित्य की हिमाचली परंपरा

-साहित्य से दूर होता हिमाचली लोक

-हिमाचली लोक साहित्य का स्वरूप

-हिमाचली बोलियों के बंद दरवाजे

-हिमाचली बोलियों में साहित्यिक उर्वरता

-हिमाचली बोलियों में सामाजिक-सांस्कृतिक नेतृत्व

-सांस्कृतिक विरासत के लेखकीय सरोकार

-हिमाचली इतिहास से लोक परंपराओं का ताल्लुक

-लोक कलाओं का ऐतिहासिक परिदृश्य

-हिमाचल के जनपदीय साहित्य का अवलोकन

-लोक गायन में प्रतिबिंबित साहित्य

-हिमाचली लोक साहित्य का विधा होना

-लोक साहित्य में शोध व नए प्रयोग

-लोक परंपराओं के सेतु पर हिमाचली भाषा का आंदोलन

लोकसाहित्य की दृष्टि से हिमाचल कितना संपन्न है, यह हमारी इस शृंखला का विषय है। यह शृांखला हिमाचली लोकसाहित्य के विविध आयामों से परिचित करवाती है। प्रस्तुत है इसकी 42वीं किस्त…

मुकेश चंद नेगीए मो.-8628825381

राहुल सांकृत्यायन लिखित ‘किन्नर देश में’ का प्रकाशन 1948 में हुआ। किन्नौर यात्रा के दौरान उन्होंने पूह, कल्पा, कामरू व सांगला क्षेत्रों का भ्रमण किया। किन्नर शब्द किन्नौर साहित्य में उनकी देन है। गीता के श्लोक में भी किन्नर शब्द का वर्णन किया गया है। 1 मई 1960 को किन्नौर जिला बनने के बाद किन्नौर नाम रखा गया जो कि सही है। साहित्य में किन्नर शब्द का और भी अर्थ निकलता है। यहां का समाज पारिवारिक संबंधों से बना सामाजिक ढांचा है। कुछेक अंग्रेजों ने सन् 1800 के बाद भी किन्नौर यात्रा के दौरान यहां के पर्वतों का उल्लेख किया है। किन्नौरी लोकसाहित्य के रचयिता डा. बंशी राम शर्मा हैं। इन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की है।

पुस्तक का प्रकाशन 1971 में हुआ। पुस्तक में लोक संस्कारों, देवी-देवताओं से जुड़ी मान्यताओं, लोक गीतों, लोक कथाओं, कहावतों व इतिहास को उजागर किया गया है। किन्नौर के  लोकसाहित्य पर पहली पुस्तक प्रकाशित हुई है। सन् 2002 में शरब नेगी ने ‘हिमालय पुत्र किन्नरों की लोक गाथाएं’ नामक पुस्तक का प्रकाशन किया। इस पुस्तक में किन्नौर में प्रचलित लोक गाथाओं का वर्णन किया गया है, जिसका प्रचलन लोक गीतों के माध्यम से भी किया जाता है। जंगमोपोती, युमदासी, देवसरनी बंठिं नए बेलू राम की गाथाओं जिसे लोकगीतों के माध्यम से गाया जाता है। इतिहास के झरोखे में किन्नौर जिले की रचनाएं संकलित हैं। इसके बाद टाशी छेरिंग नेगी ने सन् 2006 में ‘किन्नौरी सभ्यता और साहित्य’ नामक पुस्तक का प्रकाशन साहित्य अकादमी दिल्ली से किया।

इस पुस्तक में किन्नौर जिले के इतिहास और लोक गीतों का वर्णन मिलता है। इस पुस्तक में आदिवासी साहित्य भूमिका, देवी-देवताओं की उत्पत्ति, विजय और चुनाव संबंधी गीत, कार्यक्रम संबंधित पौरिश्टांग गीत, छितकुल माता देवी का कामरू जाने का गीत, धर्म गाथा संबंधित सांग गिथांग, ऐतिहासिक घटनाओं संबंधित गीत, किन्नौरी लोक कथाएं, बौद्ध धर्म के गीत को प्रकट किया है। बाद में इन्होंने ‘किन्नौर साहित्य का इतिहास’ नामक पुस्तक भी प्रकाशित की। आदिम समाज में किन्नौर के देवी-देवताओं की मान्यताओं पर इनकी पुस्तक प्रकाशित हो रही है, जिसमें लोक अंधविश्वासों और मान्यताओं को उजागर किया गया है। प्रो. विद्यासागर नेगी ने ‘पश्चिमोत्तर हिमालय के आरण्यक-भेड़पालक ः किन्नौर के संदर्भ में’ नामक पुस्तक 2007 में प्रकाशित की है। इसमें भेड़पालकों के जीवन से जुड़े गीतों, रहन-सहन, लोक विश्वास, चरवाहे व भेड़-बकरियों के विभिन्न पहलुओं को उजागर किया गया है। सन् 2019 में इन्हें ‘एक हिमालयी चरवाहे की आध्यात्मिक यात्रा’ पुस्तक के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला है।

इस पुस्तक को पढ़ने से हम यह जान पाएंगे कि किन्नौर से तिब्बत में जाकर एक चरवाहे ने किस तरह से गेशे (कल्याण मित्र) जैसी सर्वोत्कृष्ट उपाधि को प्राप्त किया। यह पुस्तक खादरा के गेशे पालदेन सेङगे जी की जीवनी है। उन्होंने किन्नौर में बौद्ध धर्म का ज्ञान देने तथा लोगों को धर्म के प्रति जागरूक करने के लिए संपूर्ण जीवन समर्पित किया। हमारे खादरा रिन्पोछ़े जी भी एक थे। यह पुस्तक रिन्पोछ़े जी की जीवनी, किन्नौर की संस्कृति आदि को जानने में अत्यंत महत्वपूर्ण है।

इन्होंने कहानियां, बौद्ध दर्शन की रचनाएं भी लिखी हैं। सन् 2018 में प्रकाशित पुस्तक ‘पश्चिमी हिमालय संस्कार एवं कृषि संस्कृति ः किन्नौर के आलोक में’ पुस्तक में जन्म-मृत्यु संस्कार के गीत, कृषि से संबंधित गीत मंडाई, बिजाई गीत, चेत्रोल बिजाई के समय के गीत का चित्रण किया हुआ है। लोक कथाओं, लोक गीतों, संगीत पर शोधकार्य विश्वविद्यालय में निरंतर जारी है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेखन कार्य चला रहता है। अभी किन्नौर जिले के कई पक्ष शोध की नजर में उजागर हो सकते हैं। शोध कार्य की संभावनाएं अभी भी विभिन्न विश्वविद्यालयों के शोधार्थियों, लेखकों द्वारा निरंतर  जारी हैं। लेखक देवेंद्र सिंह गोलदार नेगी की पुस्तक ‘किन्नौर आदिवासिक संस्कृति के आर्थिक आधार’ 2014 में आई। इस पुस्तक में किन्नर जनजातीय क्षेत्र की संस्कृति में अर्थ व्यवस्था की भूमिका पर महत्त्वपूर्ण प्रकाश डाला गया है। नृविज्ञान से संबंधित इस पुस्तक में विगत समय की अर्थव्यवस्था एवं संस्कृति पर अन्वेषण किया गया है। मुख्यमंत्री ने इस पुस्तक की सराहना करते हुए कहा कि गोलदार नेगी की पुस्तक प्रमाणिक सिद्ध होगी।

इस पुस्तक के लेखक नेगी स्वयं भी किन्नर आदि जाति से संबंध रखते हैं। पुस्तक में किन्नर जनजातीय क्षेत्र की संस्कृति में अर्थ व्यवस्था की भूमिका पर प्रकाश डाला गया है। डा. सरिता नेगी की पुस्तक ‘किन्नौर की विभिन्न लोक भाषाओं में गाए जाने वाले लोक गीतों का सांस्कृतिक विवेचन’ भी प्रकाशित हुई है, जिसमें किन्नौरी संगीत से जुड़े गीतों का वर्णन मिलता है। इस पुस्तक में देवी-देवताओं की स्तुति व पारंपरिक लोक गीतों का वर्णन किया हुआ है। मुझे सन् 2007 में किन्नौर की लोक कथाओं पर पीएचडी के लिए फैलोशिप का चयन यूजीसी द्वारा दिया गया। शोध कार्य की अवधि के दौरान मैंने अध्यापन कार्य भी किया। शोध पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ है। पीएचडी की उपाधि में बीमार रहने के कारण बाधा आ गई। किन्नौर पर लेख, कहानियां प्रकाशित हुई हैं। मैंने भी स्थानीय लोक कथा साहित्य पर शोध-अध्ययन का निर्णय लिया, कार्य भी किया और इस निर्णय पर पहुंच पाया कि किन्नौर की लोक कथाओं में इतिहास, सामाजिक स्थितियां, आर्थिक तंगियां, पर्वतीय लोक मानस की सोच के साथ और भी बहुत कुछ मिलता है, जिसे जानने के लिए समय और प्रयास की जरूरत है।

मैंने किन्नौर का पहला साझा काव्य संकलन संपादित कर 2021 में प्रकाशित किया है। इस पुस्तक में किन्नौर के स्थानों, फलों, घाटियों, मानवीय मूल्यों को कविता के माध्यम से अभिव्यक्त किया है। शोध कार्य के और भी विविध पहलू हैं जिन्हें उजागर किया जा सकता है।


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