सोलन जनपदीय लोकसाहित्य की परंपरा

By: Aug 8th, 2021 12:06 am

अतिथि संपादक : डा. गौतम शर्मा व्यथित, मो.- 9418130860

विमर्श के बिंदु

हिमाचली लोक साहित्य एवं सांस्कृतिक विवेचन -41

-लोक साहित्य की हिमाचली परंपरा

-साहित्य से दूर होता हिमाचली लोक

-हिमाचली लोक साहित्य का स्वरूप

-हिमाचली बोलियों के बंद दरवाजे

-हिमाचली बोलियों में साहित्यिक उर्वरता

-हिमाचली बोलियों में सामाजिक-सांस्कृतिक नेतृत्व

-सांस्कृतिक विरासत के लेखकीय सरोकार

-हिमाचली इतिहास से लोक परंपराओं का ताल्लुक

-लोक कलाओं का ऐतिहासिक परिदृश्य

-हिमाचल के जनपदीय साहित्य का अवलोकन

-लोक गायन में प्रतिबिंबित साहित्य

-हिमाचली लोक साहित्य का विधा होना

-लोक साहित्य में शोध व नए प्रयोग

-लोक परंपराओं के सेतु पर हिमाचली भाषा का आंदोलन

लोकसाहित्य की दृष्टि से हिमाचल कितना संपन्न है, यह हमारी इस शृंखला का विषय है। यह शृांखला हिमाचली लोकसाहित्य के विविध आयामों से परिचित करवाती है। प्रस्तुत है इसकी  41वीं किस्त…

डा. हेमा देवी ठाकुर, मो.-2819359528

भारतवर्ष के 28 राज्यों में से प्रमुख हिमाचल प्रदेश एक ऐसा राज्य है जो सभ्यताओं और संस्कृतियों का उद्गम स्रोत है। अगर हम लोकसाहित्य की बात करें तो हिमाचल के ऐसे बहुत से लोक साहित्यकार, संस्कृति लेखक और अन्य लेखक हुए हैं जिन्होंने यहां के साहित्य को समृद्ध करने में अपना अनुपम योगदान दिया है। हिमाचली लोकसाहित्य के आरंभिक शोधकर्ताओं में डा. पद्मचंद्र कश्यप/कुल्लुई लोकसाहित्य/डा. बंशी राम शर्मा/किन्नौरी लोकसाहित्य/डा. गौतम शर्मा व्यथित/लोक गीतों का साहित्यिक विश्लेषण/डा. श्रीराम शर्मा/बिलासपुरी लोकसाहित्य/डा. मीनाक्षी शर्मा/हिमाचली कृष्ण काव्य आदि नाम उल्लेखनीय हैं।

डा. हरि राम जस्टा, प्रो. नरेंद्र अरुण, एमआर ठाकुर, डा. विद्या चंद ठाकुर, श्री दुनी चंद शर्मा, डा. आत्माराम, डा. शमी शर्मा, हरिप्रसाद सुमन आदि ने भी लोकसाहित्य को जनमानस तक पहुंचाया है। देवराज शर्मा, नेमचंद अजनबी, परमानंद बंसल, लेखक अंगीरस और नरेंद्र अरुण जैसे लोक संस्कृति के ऐसे लेखक रहे हैं जिन्होंने सोलन क्षेत्र के विभिन्न विषयों पर लेख एवं पुस्तकें लिखकर लोकसाहित्य को समृद्ध किया। नरेंद्र अरुण जी की मृत्यु हो चुकी है, किंतु अभी भी इनके घर पर कुछ पांडुलिपियां पड़ी हैं जिन्हें सरकार और संस्कृति विभाग द्वारा संग्रहित किया जाना चाहिए। कुनिहार के ही उच्चगांव के श्री किरपाराम जी के पास कुनिहार रियासत का संपूर्ण इतिहास उनकी दैनिक डायरियों में लिखा पड़ा है। यहां तक कि व्यक्ति के जन्म-मृत्यु का भी विवरण ये लिखकर रखते थे। इनकी भी मृत्यु हो चुकी है, किंतु पुस्तकें अभी भी इनके घर में हैं। इन्हें सरकार द्वारा एकत्रित किया जाना चाहिए। डा. केशव राम भट्टी जो अर्की तहसील के गांव ग्याणा के हैं और आजकल सोलन (कथेड) में रहते हैं, इन्होंने हिंदी में ऐसी रचनाएं लिखी हैं जिनका अभी तक अच्छे पढ़े-लिखों को भी ज्ञान नहीं है। ये साइंस विषय के हैं और वनस्पति विज्ञान, जीव-जंतुओं पर इनके पास अमूल्य भंडार लिखा पड़ा है। सरकार को ऐसे महान व्यक्तियों की खोज करके इनके पास लिखे पडे़ समृद्ध सांस्कृतिक भंडार को एकत्रित करके आने वाले शोधकर्ताओं को प्रोत्साहित करके आम जनता तक पहुंचाना चाहिए। आज भी हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय शिमला में शोधार्थियों द्वारा लोकसाहित्य पर बहुत कुछ लिखा गया है, किंतु उनके शोध प्रबंध पुस्तकालयों में धूल चाट रहे हैं। हमारे हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय और हमारी हिमाचल सरकार का इस ओर ध्यान ही नहीं गया। इसी तरह संस्कृत विषय के शोधार्थियों के शोध प्रबंध भी हैं। सरकार और भाषा संस्कृति विभाग को इस ओर ध्यान देने की जरूरत है ताकि लेखकों की पहचान और शोधार्थियों को प्रोत्साहित करके हिमाचल की समृद्ध संस्कृति को संरक्षित किया जा सके। लोकसाहित्य की एक अपनी परंपरा है जिसका ज्ञान आधुनिक शोध छात्र को प्रदान करके नई खोज की जा सकती है। हिमाचल प्रदेश के 12 जिलों में से एक प्रमुख जिला है सोलन। यह एक ओर जहां पहाड़ी क्षेत्रों से संबद्ध है, वहीं  समतल क्षेत्रों से भी जुड़ा है। इसकी सीमाएं विभिन्न जिलों से लगने के कारण इसकी बाघल, बघाटी, हिंडूरी बोलियों पर महासुवी, सिरमौरी, बिलासपुरी, मंडयाली आदि बोलियों का प्रभाव द्रष्टव्य है। सोलन जनपद हिमाचल में दाखिले का ‘शाही दरबार’ माना जाता है। 4 फरवरी 1948 में शिमला से निकलने वाले अंग्रेजी समाचार पत्र ‘दि ट्रिब्यून’ में कहा गया है कि हिमाचल के गठन और नामकरण में सोलन जनपद का अहम योगदान है। कहते हैं कि रियासत के अंतिम शासक राजा दुर्गा सिंह ऐसे राजा थे जिनके पास पंडित मोतीलाल नेहरू और देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू भी आकर ठहरते थे।

26 जनवरी 1948 को तत्कालीन राजा दुर्गा सिंह ने पहाड़ी रियासतों के राजाओं और उनके प्रतिनिधियों को बुलाकर हिमाचल प्रदेश के गठन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन्होंने ही प्रदेश का नाम हिमाचल प्रदेश रखने का निर्णय लिया था। इन्होंने ही हिंदी को राज्य की भाषा का रूप दिया और सभी विभागों को देवनागरी लिपि में काम करने का आदेश दिया था क्योंकि वह राष्ट्रभाषा परिषद के सदस्य थे। यह जनपद देश की पहली मशरूम सिटी और लाल सोने की धरती (टमाटर)  के नाम से प्रसिद्ध है। यहां सबसे ऊंचा पुराना ऐतिहासिक मंदिर है। 1855 ईस्वी में सोलन के समीप ब्रूरी में डायर मिकन कारखाने की शुरुआत हुई जो अब मोहन मिकन के नाम से जाना जाता है। यह सबसे पुरानी औद्योगिक इकाई है। इसी जनपद के चायल क्षेत्र में क्रिकेट का मैदान है जो विश्व में सबसे ऊंची क्रिकेट पिच के लिए दूसरे स्थान पर और एशिया में पहला क्रिकेट मैदान होने से बहुत प्रसिद्ध है। यहां के डगशाई में देश का दूसरा कारागार संग्रहालय स्थित है। सोलन, सुबाथू, कसौली, डगशाई और चायल यहां के प्रमुख पर्यटक स्थल हैं। यहां घडि़यां, टेलीविजन, टेलिफोन, टेपरिकॉर्डर, थर्मामीटर, लोहे, स्टील, सीमेंट, दवाइयां, जहाज के पुर्जे, धागा और कपड़ा बनाने के उद्योग स्थापित हैं। 3 मई 1905 को स्थापित केंद्रीय अनुसंधान संस्थान कसौली वैक्सीन निर्माण के क्षेत्र में भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में एक अग्रणी संस्थान रहा है। प्रदेश के पझौता आंदोलन, किसान आंदोलन जैसे विभिन्न आंदोलनों का प्रारंभ सोलन से ही हुआ था, जिसका विस्तृत वर्णन यहां के लोकसाहित्य में हमें देखने को मिलता है।

नालागढ़ के हाकम सिंह और अर्की के हीरा सिंह जैसे असंख्य वीरों ने आजाद हिंद फौज और स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर भाग लिया था। इन सबका वर्णन यहां के लोक गीतों, लोक कथाओं और लोक गाथाओं में सुनने को मिलता है। यहां के लोक गीतों में जहां वीर रस की प्रधानता है, वहीं श्रृंगार रस की प्रमुखता भी है। बाह्मणां रा छोरू, लोका, गंगियां यहां के प्रमुख प्रेम गीत हैं जिन्हें सुनने को राहगीर भी विवश हो जाते हैं। इसी प्रकार यहां जनमानस की भावनाओं को अभिव्यक्त करने वाले असंख्य लोक गीत प्रचलित हैं। बरलाज (पहाड़ी रामायण), करियाला, धाज्जा, ठोडा, देऊं खेल, हार और लीला नाट्य यहां की संस्कृति के परिचायक हैं। लोक सुभाषितें, जो हमारी बुद्धि को तीक्ष्ण कर हमें अमूल्य ज्ञान प्रदान करती हैं, भी यहां प्रचलित हैं। सोलन जनपद में असंख्य ऐसी लोक सुभाषितें, लोकोक्तियां, कहावतें, पहेलियां, बुझावणियां, मुहावरे, ढकोसले, लोरियां प्रचलित हैं जिनका प्रयोग वक्ता बात-बात में करते हैं। लोकसाहित्य के इस अक्षुण्ण मौखिक भंडार को मैंने साक्षात्कारों, गजेटियर, मतगणना विभागों के माध्यम से एकत्रित करके पुस्तक का आकार प्रदान कर लिखित रूप में संरक्षित करने का हल्का सा प्रयास किया है ताकि आने वाली पीढि़यों को संस्कृति का ज्ञान करवाया जा सके।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App