डुप्लीकेट खेल सामान की खरीद बंद करो

By: Sep 3rd, 2021 12:08 am

अगर हिमाचल प्रदेश में घटिया खेल सामान न खरीद कर उच्च क्वालिटी का खेल सामान खरीदा होगा तो स्तरीय खेल सुविधा होगी और जो खिलाड़ी प्रशिक्षण सुविधाओं के अभाव में खेल छोड़ देते हैं, वे ऐसा नहीं करेंगे…

बहुत अरसे बाद एक बार फिर प्रदेश के शिक्षा संस्थानों में महाविद्यालय तो खुल गए हैं और अगले सप्ताह से वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय भी खुल सकते हैं। ऐसे में पिछले सत्र से बंद पड़ी खेल गतिविधियां भी शुरू हो ही जाएंगी। जब खेलेंं शिक्षा संस्थानों में शुरू होंगी तो खेल सामान की खरीद-फरोख्त भी शुरू हो जाएगी। वर्षों से शिक्षा संस्थानों द्वारा लाखों रुपए का खेल सामान हर सत्र में खरीदा जाता है, मगर अधिकतर यह सामान बहुत ही घटिया किस्म का होता है। जबकि अच्छे खेल प्रशिक्षण व प्रतियोगिता के लिए असली सामान का होना बहुत जरूरी होता है। ओलंपिक व अन्य अंतरराष्ट्रीय स्तर की खेल प्रतियोगिताओं में आज बहुत कड़ी प्रतिस्पर्धा देखने को मिल रही है। जैसे-जैसे प्रौद्योगिकी व चिकित्सा के क्षेत्र में उन्नति हो रही है, वैसे-वैसे उत्तम आहार व उन्नत शारीरिक क्रियाओं से मानव के स्वास्थ्य में काफी ज्यादा सुधार हुआ है। जब स्वास्थ्य में सुधार होगा तो खेल परिणाम स्वाभाविक ही उत्कृष्ट होंगे। वैज्ञानिक युग में खेलों में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने के लिए खेल विज्ञान के विषयों एक्सरसाइज फिजोलोजी, बायो-मकैनिक्स, खेल-औषधि, खेल-मनोविज्ञान व खेल-एंथ्रोपोलॉजी आदि में काफी शोध हो रहा है।

उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए खेल सामान को वैज्ञानिक ढंग से बनाया जा रहा है। खेलों में बड़ी सफलताओं के लिए उच्च स्तरीय प्रशिक्षकों व प्रतिभाशाली खिलाडिय़ों के साथ-साथ उनके पास स्तरीय खेल किट व उच्च तकनीकी के खेल उपकरणों का होना भी बहुत ही जरूरी होता है। चिकित्सा क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की बीमारियों को ठीक करने के लिए आज प्रौद्योगिकी का सहारा लेकर कई प्रकार के उपकरण विकसित हो चुके हैं। ठीक उसी प्रकार खेल जगत में भी आज के उत्कृष्ट खेल परिणामों में प्रौद्योगिकी का सहारा लेकर बनाई गई आधुनिक खेल सामग्री का विशेष योगदान है। आज खिलाडिय़ों के लिए खेल किट में उसकी शारीरिक संरचना के अनुरूप पोशाक व जूते उच्च तकनीक से बने होते हैं। खेल शूज बनाने वाली नामी-गिरामी कंपनियों ने दो हजार रुपए से लेकर एक लाख रुपए से भी अधिक कीमत के जूते बनाए हैं। ठीक इसी नकल पर बिना प्रौद्योगिकी का प्रयोग किए आम कंपनियों के जूते भी बाजार में उपलब्ध हैं, मगर वे खिलाड़ी को वह सुरक्षा व सहायता प्रदान नहीं कर पाते जैसे विशेष तकनीक पर बने जूते देते हैं। बात चाहे हाकी के गोलकीपर पोशाक की हो या मैट पर होने वाली खेलों के मैट की हो, विशेष तकनीक से बनी सामग्री ही खिलाड़ी को शारीरिक सुरक्षा व खेल परिणामों को बेहतर करने में सहायता प्रदान करती है। एथलेटिक्स के उपकरणों में विशेषकर भाले व पोलवाल्ट के पोल में दिनों-दिन सुधार होता आया है। आज विशेष तकनीक से बने अच्छे एक भाले की कीमत एक लाख रुपए से भी अधिक है। यही हाल पोलवाल्ट के पोल का है।

इसकी कीमत भी लाखों में है। अन्य खेलों में भी किट व खेल उपकरणों के बाजार में अच्छे से अच्छा व घटिया से घटिया सामान उपलब्ध है। वो सब इतना डुप्लीकेट है कि वह देखने में बिल्कुल असली लगता है। पहले भी कई बार इस कॉलम के माध्यम से घटिया खेल सामान के बारे में सचेत किया जाता रहा है। जब सरकारी स्तर पर खेल सामान खरीदा जाता है तो कीमत बढिय़ा या मध्यम स्तर के सामान की होगी और सामग्री निम्न दर्जे की होगी। इस तरह कीमत उच्च क्वालिटी की तय कर शेष राशि हड़प ली जाती है। दुकानदार व सामग्री खरीदने वाले अधिकारी मिलकर अधिकांश राशि को चट कर जाते हैं। आज विभिन्न प्रकार की कृत्रिम प्ले फील्ड विभिन्न खेलों के लिए बाजार में उपलब्ध हैं। बात चाहे चार सौ मीटर ट्रैक पर बिछे सिंथेटिक की हो या लॉन टेनिस के कोर्ट की, आज हर खेल के लिए कृत्रिम प्ले फील्ड उपलब्ध है। मगर यहां भी उपयोग में लाई जाने वाली सामग्री में काफी गोलमाल है। इंडोर स्टेडियम में अलग-अलग समय में अलग-अलग खेल के प्ले फील्ड बिछा कर खेल प्रतियोगिता व प्रशिक्षण किया जा रहा है। इन प्ले फील्ड की खरीददारी में भी काफी घपला होता है। हिमाचल प्रदेश के महाविद्यालयों व विद्यालयों में जहां अधिकतर खेल सामग्री महाविद्यालय प्रशासन स्वयं खरीदता है, वहीं पर कुछ खेल सामान पहले शिक्षा निदेशालय मटीरियल्स एंड सप्लाई के अंतर्गत खरीद कर महाविद्यालय को दिया जाता था और अब जैम के माध्यम से खरीदा जा रहा है। मटीरियल्स एंड सप्लाई के अंतर्गत खरीदा गया खेल सामान बिल्कुल घटिया किस्म का मिलता रहा है। निम्न दर्जे के हाई जंप मैट व मुक्केबाजी रिंग इसके उदाहरण आज भी देख जा सकते हैं। इस स्कीम के अंतर्गत खरीदे जिम एक साल में ही कबाड़ हो चुके हैं।

लाखों रुपए का खेल सामान तो खरीद लिया, मगर किसी को परवाह नहीं है कि यह सामान काम में भी लाया जा सकता है या नहीं। खेल सामान खरीदने के लिए बनी कमेटी में निदेशालय के अधिकारी व बाबू होते हैं जिन्होंने अपनी जिंदगी में शायद ही कोई खेल खेला हो। आज खेल खेल में स्वास्थ्य स्कीम के अंतर्गत कई करोड़ रुपयों की कृत्रिम प्ले फील्ड जूडो, कुश्ती व खो-खो आदि खेलों के लिए खरीद कर विद्यालयों व महविद्यालयों को दी जा रही है। जहां भी खेल सामान खरीदना हो वहां पर खरीददारी के लिए जो कमेटी बने उसमें जिस भी खेल का सामान खरीदना है, उस खेल का प्रशिक्षक व कम से कम दो राष्ट्रीय पदक विजेता खिलाड़ी भी विभागीय अधिकारियों के साथ हों। तभी डीलर व अधिकारियों की बंदरबांट से बच कर स्तरीय खेल सामग्री खरीदी जा सकती है। जिस संस्थान को सामग्री मिले वहां भी कमेटी देखे कि वह घटिया स्तर का तो नहीं दे दिया। प्रशिक्षण सुविधा के अभाव में कई प्रतिभाशाली खिलाड़ी समय से पहले ही खेल को अलविदा कह जाते हैं और जिनके पास धन व साधन हैं वे अच्छे प्रशिक्षण के लिए हिमाचल प्रदेश से पलायन कर जाते हैं। अगर हिमाचल प्रदेश में घटिया खेल सामान न खरीद कर उच्च क्वालिटी का खेल सामान खरीदा होगा तो स्तरीय खेल सुविधा होगी और जो खिलाड़ी प्रशिक्षण सुविधाओं के अभाव में खेल छोड़ देते हैं, वे अपने घर में रह कर खेल जारी रख सकते हैं। खेल सुविधाओं के लिए पलायन करने वालों को भी जब अपने ही राज्य में रह कर अपना प्रशिक्षण कार्यक्रम पूरा करने के लिए सुविधा मिलेगी तो वे फिर क्यों अपना प्रदेश छोड़ेंगे। आशा करते हैं कि संस्थान प्रमुख अब घटिया किस्म के खेल सामान को खरीदने से परहेज करेंगे।

भूपिंद्र सिंह

राष्ट्रीय एथलेटिक्स प्रशिक्षक

ईमेल:bhupindersinghhmr@gmail.com


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