बांग्ला हिंदुओं पर हमले

By: Oct 20th, 2021 12:05 am

बांग्लादेशी हिंदुओं के 66 घरों पर हमले कर उन्हें तोड़ा-फोड़ा गया है, जबकि 20 से ज्यादा घर जलाकर राख कर दिए गए हैं। सोशल मीडिया पर कथित ईश-निंदा की एक पोस्ट की प्रतिक्रिया में ये सांप्रदायिक हमले किए गए। यह बांग्लादेश के विभिन्न समुदायों के स्पष्टीकरण हैं। सांप्रदायिक हिंसा में करीब 40 हिंदू घायल हुए हैं। वहां की पुलिस ने 400 अज्ञात लोगों के खिलाफ केस दर्ज किए हैं, जबकि 52 संदिग्धों को गिरफ्तार किया गया है। इस्कॉन मंदिर समेत करीब 70 पूजास्थलों, दुर्गा-पूजा के पंडालों आदि को तोड़ा गया है। देव-प्रतिमाओं को खंडित किया गया है। हमलों में 17 मासूम हत्याएं भी की गई हैं। बांग्ला गृहमंत्री असदुज्जमां खान इन हमलों को ‘साजि़श’ करार दे रहे हैं। बांग्लादेश का सांप्रदायिक सद्भाव बिगाडऩे की भी साजि़श है। ऐसे साजि़शकारों को बख्शा नहीं जाएगा। ये दंगे और हमले ‘इस्लामी जेहाद’ की प्रतिक्रिया माने जा रहे हैं। हालांकि वहां के सूचना-प्रसारण मंत्री मुराद हसन ने स्पष्ट किया है कि इस्लाम ही बांग्लादेश का धर्म नहीं है। देश में हिंदू, सिख, बौद्ध, ईसाई आदि समुदायों के लोग भी रहते हैं, लेकिन ऐसे सांप्रदायिक हमलों का इतिहास पुराना है और 1990 से लगातार जारी रहा है।

क्या हर बार ‘ईश-निंदा’ की जाती है? बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यक हैं। 1951 में हिंदुओं की आबादी करीब 22.5 फीसदी थी।
तब यह क्षेत्र पूर्वी पाकिस्तान था। 1971 में बांग्लादेश बना, तो उसके बाद 2011 तक हिंदू आबादी करीब 9 फीसदी रह गई। ये आंकड़े ही उपलब्ध हैं। अब तो हिंदू और भी कम रह गए होंगे! विश्लेषण किया जा सकता है कि अल्पसंख्यकों पर कितने अत्याचार किए गए होंगे? बांग्लादेश का सृजन भी भारत सरकार और उसकी सेनाओं की बदौलत हुआ। गर्दिश और मार-पीट के उस दौर में शेख हसीना और उनके पिता शेख मुजीबुर्रहमान को भारत ने ही संरक्षण दिया था। उसके बावजूद आज 2021 में भी जमात-ए-इस्लामी सरीखी ताकतेें हिंदुओं पर सांप्रदायिक कहर बरपा रही हैं। वहां की एक प्रख्यात वेबसाइट के मुताबिक, जनवरी 2013 से सितंबर, 2021 तक अल्पसंख्यक हिंदुओं और अन्य पर 3679 हमले किए जा चुके हैं। क्या यह सिलसिला यूं ही जारी रहेगा? बांग्लादेशी हिंदू क्या हिंदू नहीं है? अपना देश, घर, कारोबार छोड़ कर आखिर वे कहां जाएं? भारत में जो नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) बनाया गया था, उसका उपयोग कब किया जाएगा? उसे अभी तक लागू क्यों नहीं किया गया? अब सीएए के विरोधी भी मौन हैं! सीएए को लेकर शाहीन बाग जैसा लंबा धरना-प्रदर्शन किया गया। उत्तर-पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक दंगे भडक़े। कइयों की हत्या कर दी गई।

यह सिर्फ हिंदू-मुसलमान का मुद्दा नहीं है। यह लोकतंत्र बनाम कट्टरता, मानवता बनाम जेहाद और इस्लाम बनाम गैर-इस्लाम का मुद्दा है। बांग्लादेश की सरकार भी मानती है कि उनका देश हिंदुओं का भी है। फिर ऐसे हमले क्यों किए जाते रहे हैं? इधर अब प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह आह्वान नहीं करते कि विदेशों में उत्पीडऩ के शिकार हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध अपने भारत में आकर बस सकते हैं। उन्हें नागरिकता भी दी जाएगी। प्रधानमंत्री मोदी ने अभी तक बांग्ला प्रधानमंत्री शेख हसीना से सख्त लहजेे में संवाद तक नहीं किया है। विदेश मंत्रालय ने एक औपचारिक बयान जारी किया है कि बांग्लादेश के घटनाक्रम पर हमारी निगाह है। हालांकि बांग्ला प्रधानमंत्री और कुछ मंत्रियों ने साजि़शकारों और हत्यारों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का आश्वासन दिया है, लेकिन बांग्लादेश यह भी मानता है कि जो भारत में घटता है, उसकी प्रतिक्रिया बांग्लादेश में भी हो सकती है। शायद बांग्लादेश सरकार को यह जानकारी नहीं है कि करीब 20 करोड़ मुसलमान भारत में बसे हैं और सभी को संवैधानिक अधिकार हासिल हैं। दुनिया में मुसलमान सबसे ज्यादा सुरक्षित भारत में ही हैं, लेकिन अल्पसंख्यक हिंदुओं पर बांग्लादेश और पाकिस्तान में सांप्रदायिक हमले जारी रहे हैं। भारत को इसका कड़ा संज्ञान लेना चाहिए।


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