भारत से उड़ते जा रहे भारतीय यूनिकॉर्न

सैकड़ों भारतीय यूनिकॉर्न या तो फ़्िलप हो गए हैं या विदेशी हो गए हैं, जिनके भारतीय संस्थापकों ने उन्हें भारत में शुरू किया था। लगभग सभी ने भारतीय संसाधनों का उपयोग करके अपनी बौद्धिक संपत्ति विकसित की है…

भारत को अपने स्टार्टअप पर अत्यधिक मूल्य बढ़ाने और देश के सकल घरेलू उत्पाद में योगदान पर गर्व है। हमारे यूनिकॉर्न (एक अरब डॉलर से अधिक के मूल्यांकन के साथ स्टार्टअप) हमारे प्रतिस्पर्धियों की ईर्ष्या का कारण हो सकते हैं। लेकिन यह जानकर हमारी खुशी कम ही रह जाती है कि उनमें से कई अब भारतीय नहीं रहे। इनमें से अधिकांश बड़े हुए स्टार्टअप हमसे दूर हो गए हैं और अब वे भारतीय कंपनियां नहीं हैं, और फ़्िलप हो चुकी हैं। हमें यह कहते हुए गर्व हो सकता है कि दो भारतीय लड़कों ने फ्लिपकार्ट बनाया, जिसका बाजार मूल्यांकन अंततः 20 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बराबर हो गया। लेकिन तथ्य यह है कि फ्लिपकार्ट के प्रमोटर भारत से पहले ही दूर हो गए थे और अपनी कंपनी और अन्य संबद्ध कंपनियों को सिंगापुर में पंजीकृत कर लिया था, और बाद में कंपनियों के समूह को वॉलमार्ट को बेच दिया गया था (जब 77 प्रतिशत शेयर वॉलमार्ट को हस्तांतरित कर दिए गए थे)। यानी एक यूनिकॉर्न जो पहले ही उड़ गया था, एक विदेशी कंपनी के हाथों में चला गया, और इसके साथ भारतीय बाजार की हिस्सेदारी भी एक विदेशी कंपनी को आसानी से हस्तांतरित कर दी गई। अब सवाल यह है कि क्या होती है फ़्िलपिंग? एक भारतीय कंपनी की फ़्िलपिंग का मतलब एक लेनदेन है जहां एक भारतीय कंपनी एक विदेशी क्षेत्राधिकार में एक अन्य कंपनी को पंजीकृत करती है, जिसे बाद में भारत में सहायक कंपनी की होल्डिंग कंपनी बना दिया जाता है। भारतीय कंपनियों के लिए सबसे अनुकूल विदेशी क्षेत्राधिकार सिंगापुर, संयुक्त राज्य अमरीका और ब्रिटेन हैं।

 ‘फ्लिप’ लेनदेन के रूप में लागू करने के तरीकों में से एक शेयर स्वैप के माध्यम से है। इसके तहत, भारतीय प्रमोटरों द्वारा एक अंतरराष्ट्रीय होल्डिंग कंपनी को शामिल करने के बाद, घरेलू कंपनी के शेयरधारकों द्वारा रखे गए शेयरों की विदेशी होल्डिंग कंपनी के शेयरों के साथ अदला-बदली की जाती है। परिणामस्वरूप, घरेलू कंपनी के शेयरधारक विदेशी होल्डिंग कंपनी के शेयरधारक बन जाते हैं। शेयर स्वैप के स्थान पर, एक फ्लिप संरचना भी निष्पादित की जा सकती है जब भारतीय कंपनी के शेयरधारक विदेशी होल्डिंग कंपनी के शेयरों का अधिग्रहण करते हैं और होल्डिंग कंपनी अपने शेयरधारकों से भारतीय कंपनी के सभी शेयरों का अधिग्रहण करती है। ग़ौरतलब है कि सैकड़ों भारतीय यूनिकॉर्न या तो फ़्िलप हो गए हैं या विदेशी हो गए हैं, जिनके भारतीय संस्थापकों ने उन्हें भारत में शुरू किया था। उनमें से अधिकांश का परिचालन यानी कार्य क्षेत्र भारत में है और उनका प्राथमिक बाजार भी भारत में है। लगभग सभी ने भारतीय संसाधनों (मानव, पूंजीगत संपत्ति, सरकारी सहायता, आदि) का उपयोग करके अपनी बौद्धिक संपत्ति (आईपी) विकसित की है। सवाल है कि यूनिकॉर्न फ्लिप क्यों करते हैं? 1. भारतीय नियामक परिदृश्य, भारतीय कर कानूनों और भारतीय अधिकारियों द्वारा जांच से बचना। 2. विभिन्न अंतरराष्ट्रीय निवेशक अपनी निवेश प्राप्तकर्ता कंपनियों को विदेश जाने के लिए मजबूर करते हैं और कभी-कभी इसे इन स्टार्टअप्स में अपने निवेश के लिए एक शर्त के रूप में भी रखते हैं क्योंकि वे चाहते हैं कि डेटा और आईपी का मुख्यालय विदेशों में हो जहां वे अपना पैसा लगाएंगे। 3. अधिकांश व्यवसाय विदेशी निवेशकों से है और ये निवेशक केवल विदेशी मूल कंपनी के साथ अनुबंध करना चाहते हैं (हालांकि यह एक वैध कारण नहीं है क्योंकि एक विदेशी सहायक कंपनी के साथ अनुबंध करने से कंपनी को फ़्िलप किए बिना समान उद्देश्य पूरा हो सकता है। इसके अलावा, भारतीय आईटी इंफोसिस, एचसीएल आदि जैसी सेवा फर्में भारत में मुख्यालय होने के बावजूद विभिन्न विदेशी क्षेत्रों में सार्थक व्यवसाय करने में सफल रही भी हैं)। 4. अमेरिका और सिंगापुर जैसे देशों ने जो अनुकूल निवेश नीतियां अपनाई हैं, वे भी स्टार्टअप और निवेशकों को आकर्षित करती हैं। इनमें से कुछ नीतियां कम कॉर्पोरेट टैक्स, स्थिर जीएसटी, शून्य पूंजीगत लाभ कर की दर, दोहरे कर अवंचन समझौते, महत्वपूर्ण मुद्दों पर साधारण बहुमत वोट की व्यवस्था, विकसित आईपी सुरक्षा कानून आदि हैं। 5. निवेशकों के एकत्रीकरण के कारण मूल्यांकन अधिक है, इस धारणा के साथ विदेशों में सार्वजनिक रूप से सूचीबद्ध होने की इच्छा। फ़्िलपिंग का राष्ट्रीय आर्थिक हित पर प्रतिकूल प्रभाव यह है :

1. राजस्व की हानि ः फ़्िलपिंग से अत्यधिक आर्थिक और राष्ट्रीय नुकसान होता है क्योंकि एक भारतीय कंपनी भारत से ही 90 फीसदी मूल्य सृजन के बावजूद विदेशी निगम की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी बन जाती है, जिसके परिणामस्वरूप पूंजीगत लाभ और भविष्य के लिस्टिंग, परिचालन लाभ आदि सभी करों का नुकसान होता है।

2. महत्वपूर्ण डेटा के साथ-साथ आईपी का स्वामित्व विदेशों में स्थानांतरित किया जाता है : विभिन्न ऐसी कंपनियां महत्वपूर्ण उपभोक्ता डेटा और आईपी रखती हैं जिनका स्वामित्व अनिवार्य रूप से विदेशों में स्थानांतरित होता है। इनमें से अधिकांश कंपनियां सालाना 100-200 फीसदी बढ़ रही हैं और तेजी से अधिक से अधिक महत्वपूर्ण उपभोक्ता डेटा पर कब्जा कर रही हैं। फ़्िलपिंग सभी महत्वपूर्ण डेटा पर एक सुरक्षा खतरे का कारण है और इसके परिणामस्वरूप उस कंपनी के सभी संबद्ध आईपी से भविष्य के संभावित मूल्य निर्माण का नुकसान होता है।

3. भारतीय कानूनों की अवहेलना : फ़्िलप किए हुए स्टार्टअप भारतीय कर कानून और अन्य कानूनी नियमों को दरकिनार करते हैं और अपने घरेलू समकक्षों की तुलना में अनुचित लाभ प्राप्त करते हैं। यह प्रभावी रूप से भारत से विदेशी क्षेत्रों में मूल्य सृजन को स्थानांतरित करने के लिए एक संरचना बन जाता है क्योंकि अधिकांश व्यवसाय अभी भी भारत में यहां आधारित टीमों के साथ किया जा रहा है।

4. सुरक्षा खतरे : विदेशी मुख्यालय संरचनाओं के कारण, भारत सरकार इन कंपनियों को समर्थन देने वाले धन के स्रोत का निर्धारण नहीं कर सकती है, जिसके परिणामस्वरूप भविष्य में युद्ध जैसी गतिविधियों की स्थिति में राष्ट्र के लिए सुरक्षा के मुद्दे हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, भारत में रहने वाले स्टार्टअप्स में आवश्यक अनुमोदन के बाद ही पड़ोसी देशों से पैसे लाने की अनुमति है, लेकिन विदेशी मुख्यालय वाले स्टार्टअप्स को इस तरह के किसी भी अनुमोदन की आवश्यकता नहीं है।

5. विदेशी निवेशकों को अनुचित लाभ देना : विदेशी निवेशक भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था का लाभ उठाने के इच्छुक हैं और फ़्िलपिंग से इन्हें भारत में प्रवेश किए बिना यह लाभ उठाना संभव हो जाता है।

यह एक दुष्चक्र को गति देता है, फिर जैसे-जैसे अधिक से अधिक विदेशी निवेशक भारत को नुकसान की चिंता किए बिना फ़्िलपिंग को एक वैध मांग के रूप में देखना शुरू करते हैं।.

6. भारतीय इक्विटी बाजारों को गहरा करने के खिलाफ : चूंकि ये फ़्िलप किए हुए स्टार्टअप विदेशों में भी सूचीबद्ध होंगे, भारतीय सार्वजनिक इक्विटी बाजार गहराई प्राप्त नहीं कर पाएगी। यह विदेशी निवेशकों के लिए हमारे कानूनों और विनियमों को दरकिनार कर भारत के संसाधनों और उन्नति से लाभ उठाने का एक तरीका बन जाता है। अब सवाल है कि इसके क्या हैं समाधान? फ़्िलपिंग एक जीता जागता उदाहरण है कि भारत में कैसे विदेशियों के लिए लाल कालीन बिछाए जाते हैं और स्वदेशी खिलाड़ी लालफीताशाही के शिकार हैं। विभिन्न राज्यों में भूमि आवंटन के दौरान विदेशी संस्थाओं को छूट मिलती है, लेकिन स्वदेशी खिलाडि़यों को उनके हाल पर छोड़ दिया जाता है। फ़्िलप की गई इकाई को पूंजी तक आसान और सस्ती प्राप्त होती है और साथ ही (डीटीएए का उपयोग करके) निवेशकों को पैसा निकालना बहुत आसान होता है। यहां तक कि भारत में निवेश करने वाले भारतीय फंडों को भी अपने विदेशी समकक्षों की तुलना में अधिक पूंजीगत लाभ कर का भुगतान करना पड़ता है। भारत में पंजीकरण के लिए संस्थाओं को प्रोत्साहित करने के लिए पूंजी तक पहुंच से लेकर, नीति, विनियमों सहित व्यवस्था को दुरुस्त करने की आवश्यकता है।


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