Kullu Dussehra : अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा का भव्य आगाज, दो साल बाद उत्सव में लौटी रौनक

By: Oct 16th, 2021 12:12 am

शान से निकली भगवान रघुनाथ जी की रथयात्रा; दो साल बाद उत्सव में लौटी रौनक, देवसमागम के साक्षी बने हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल

मोहर सिंह पुजारी — कुल्लू

अधिष्ठाता भगवान रघुनाथ जी की रथयात्रा के साथ शुक्रवार को अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव का आगाज हो गया। राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर ने अंतरराष्ट्रीय उत्सव की पहली रथयात्रा के साथी बने। जनसैलाब के बीच लोगों के कंधों पर झूमते सैकड़ों देव रथों और भगवान रघुनाथ की रथयात्रा से ढालपुर मैदान में अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव का आगाज हो गया। बता दें कि भगवान रघुनाथ की रथ यात्रा भेखली की माता जगरनाथी द्वारा हरी झंडी दिखाते ही रथ मैदान से शुरू हुई और अस्थायी शिविर तक पहुंची। रथ यात्रा में जब दो वर्ष बाद अधिकतर देवी-देवता विराजमान हुए तो, दशहरा उत्सव देखते ही बन गया। अपने मूल मंदिर से भगवान रघुनाथ लाव-लश्कर के साथ देव ध्वनियों के साथ रथ मैदान ढालपुर पहुंचे। इसके बाद रथयात्रा शुरू हुई।

वाद्य यंत्रों की गूंज के बीच रथयात्रा आगे बढ़ी। भगवान रघुनाथ के रथ को भक्तों ने खींचते हुए आगे बढ़ाया। हालांकि उत्सव में इस बार देव परपरंपराएं ही शामिल हैं, लेकिन दो वर्ष बाद देवसमागम में पहुंचकर अधिकतर देवी-देवाताओं ने भगवान रघुनाथ के दर हाजिरी भरी। हालांकि गत वर्ष मात्र देवी-देवाताओं के साथ दशहरा उत्सव की परंपरा को निभाया गया था, लेकिन इस बार पंजीकृत सभी देवी-देवताओं को निमंत्रण भेजा गया था। बता दें कि जब पूरे देश में दशहरा उत्सव की समाप्ति होती है, उस दिन से देवभूमि कुल्लू में इस उत्सव आगाज होता है और उत्सव का उत्साह अपने चरम पर रहता है। रथयात्रा और धार्मिक परंपराओं की धूम इस उत्साह को विविधता से भर देती है। इस उत्सव के आगाज के दौरान राज परिवार भी मौजूद था। (एचडीएम)

कुल्लू दशहरा उत्सव के आयोजन की शुरुआत के साथ जुड़ी रोचक घटना

कुल्लू दशहरा के आयोजन के पीछे भी एक रोचक घटना का वर्णन मिलता है। इसका आयोजन सत्रहवीं सदी में कुल्लू के राजा जगत सिंह के शासनकाल में आरंभ हुआ।  कहा जाता है कि राजा जगत सिंह किसी असाध्य रोग से पीडि़त थे। मूर्ति के चरणामृत सेवन से उनका रोग खत्म हो गया। स्वस्थ होने के बाद राजा ने अपना जीवन और राज्य भगवान को समर्पित कर दिया। इस तरह यहां विजय दशमी का त्यौहार धूमधाम से मनाया जाने लगा। रघुनाथजी के सम्मान में ही राजा जगत सिंह द्वारा वर्ष 1660 में दशहरे की परंपरा को आरंभ किया गया तथा उस दौरान कुल्लू में 365 देवी-देवता दशहरा उत्सव में शामिल होने लगे।


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