सेना और निजीकरण

पिछले सप्ताह की मुख्य गतिविधियों पर नजर डालें तो हमारे अपने प्रदेश में उपचुनावों में व्यस्त सरकार और विपक्ष ने अपने-अपने उम्मीदवारों को जिताने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रखा है। यह भी माना जा रहा है कि उपचुनावों के परिणाम से अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में जनता की राय का अंदाजा लगाया जा सकेगा। पड़ोसी राज्य पंजाब में एक तरफ मुख्यमंत्री ‘चन्नी नायक फिल्म के अनिल कपूर की तरह धड़ाधड़ फैसले ले रहे हैं तो दूसरी तरफ उन्हीं की पार्टी के कैप्टन अमरेंद्र और सिद्धू रोज नई बयानबाजी से सुर्खियों में बने हुए हैं।

बिहार में लालू के लाल आपस में भिडऩे को तैयार हैं तो यूपी में ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं ने राजनीतिक गलियारों में नई चर्चाओं को जन्म दे दिया है। कश्मीर में चुनिंदा लोगों पर हो रहे आतंकवादी हमले, चीन का लद्दाख से पीछे न हटना तथा अरुणाचल में अतिक्रमण की कोशिश करना, पड़ोसी देश अफगानिस्तान में तालिबान का दबदबा तथा बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे हमलों पर आंख में आंख डालकर बात करने वाली सरकार की चुप्पी ने ‘क्या अब हम मालदीव से भी डरेंगे पर डिबेट शुरू करवा दिया है। पड़ोसी देश की गलत नीतियों और गतिविधियों पर हम हमेशा अपनी सशक्त और ताकतवर सेना के दम पर आवाज उठाते रहे हैं। आजादी के 70 साल के लगातार सर्वांगीण विकास से आज हमारी पहचान विश्व के प्रमुख देशों में की जाती है, पर भारत को विश्व गुरु बनाने का वादा करके सत्ता में आई सरकार को निजीकरण का बुखार इस कदर चढ़ा है कि वह आए दिन किसी न किसी विभाग को निजी हाथों में सौंप रही है। इसी कड़ी में एक अक्तूबर को सरकार ने भारतीय रक्षा तंत्र का चौथा बाजू कहे जाने वाले 220 साल पुराने 41 आयुध कारखानों को सात कंपनियों में विभाजित कर दिया है।

रक्षा मंत्रालय ने सेना के लिए साजो सामान बनाने वाले ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड ‘ओएफबी को भंग करके उनकी संपत्ति व कर्मचारियों को अब इन सात कंपनियों में ट्रांसफर कर दिया है। सरकार के इस फैसले से 41 आयुध कारखानों में काम करने वाले 76000 कर्मचारियों का भविष्य भी दोराहे पर आ गया है, क्योंकि यह निश्चित नहीं कि अब इन कंपनियों को सेना का कोई काम मिलेगा और अगर सेना का काम नहीं मिलेगा तो इन कंपनियों में ताले लग जाएंगे। कर्मचारी संगठन का मानना है कि आज सरकार ने इन कारखानों को निगम बनाया है, लेकिन जब कल इसे काम नहीं मिलेगा और यह घाटे में चल रहे होंगे तो इन्हें आराम से बेचा जा सकता है। संगठन सचिव के अनुसार इन आयुध कारखानों की मौजूदा जमीन की कीमत लगभग दो लाख करोड़ रुपए की है, पर सरकार इसकी 62000 एकड़ की कीमत मात्र 72000 करोड़ लगवा रही है। अब कारखानों से निगम बनी इस संपत्ति को सरकार उद्योगपतियों को आसानी से दे सकती है। गौरतलब है कि अब लिया गया यह फैसला पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर के समय में जब चर्चा में आया था तो उस समय मनोहर पर्रिकर जी ने इसका विरोध किया था और इस पर सहमति नहीं जताई थी। केंद्र सरकार का कहना है कि इस फैसले से ओएफबी की अकाउंटेबिलिटी और एफिशिएंसी में सुधार होगा। मेरा मानना है कि सरकार को राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े विभागों को निजीकरण से दूर रखना चाहिए। आयुध कारखानों में बनने तथा मैंटेन किए जाने वाले हथियार सेना द्वारा इस्तेमाल किए जाते हैं तथा वे राष्ट्रीय सुरक्षा का अहम हिस्सा हैं।

कर्नल (रि.) मनीष धीमान

स्वतंत्र लेखक


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