मानसून माई जिगरी फ्रेंड
सच कहूं तो जो ये मानसून न होता तो न जाने आज तक कितने मेरे जैसे ठेकेदारों की इज्जत नीलाम हो चुकी होती। हमारा डियर एक ये मानसून ही है जो हम जैसों की इज्जत ईंट ईंट तार तार होने से बचाता है। कोरे रेत की सरकारी बिल्डिंगें बनाने के बाद भी हमें ए क्लास निर्माणकर्ता घोषित करवाता है। ‘और बाबू कैसे हो? क्या कर रहे हो? तुम्हारी इजाजत हो तो अब…’। कुछ नहीं दोस्त। बस, रात का जागा सोने की कोशिश कर रहा हूं, पर…’। ‘जो तुम्हारी इजाजत हो तो अब मैं तुमसे विदा लूं? वैसे भी सरकार मेरे जाने की बहुत घोषणाएं कर चुकी है। घर में घरवाली इंतजार कर रही होगी। सोच रही होगी बड़ा अजीब किस्म का पति है। सरकार के बार बार भेजे जाने के बाद भी वहां से विदा नहीं हो रहा। मेरा मानसून कहीं किसी सौतन के चक्कर में तो नहीं बंध गया होगा? उसे नागमती हो मेरे वियोग में धूं-धूं जलना पड़ा तो… मित्र ! जब जब सरकार मेरे विदा होने की घोषणा करती रही है तब तब उसका फोन आ रहा है कि…वैसे सरकार के मुझे भेजने से क्या होता है मित्र! जब तक मेरे बंधु नहीं कहेंगे मैं टस से मस नहीं हो सकता। देखो जितना मुझसे बन पड़ा अबके भी मैंने तुम्हारी उससे अधिक ही सहायता की। मित्र मित्र के काम नहीं आएगा तो किसके काम आएगा मित्र? अब तुम मेरी बहाई, गिराई सड़कों, गिराए सरकारी भवनों को जो दिनरात भी फिर से बनाओ तो दिनरात काम करने के बाद भी मेरे अगले आने वाले साल तक भी न पूरा कर पाओ।’ मानूसन ने हंसते हुए कहा तो मैंने उससे कहा, ‘हां दोस्त! अबके भी तुम्हारे मुझ पर किए अहसानों के तले मैं दब गया हूं।
ठीक उसी तरह जैसे मेरी बनाई बिल्डिंगों के नीचे बहुधा मजदूर दबते रहते हैं। तुम जैसे अपने जिगरी यार न होते तो खुदा कसम! दिन में बीस बीस बार हम जैसों की इज्जत नीलाम हुआ करती। दोस्त हो तो तुम्हारे जैसा! जो मेरे द्वारा बनाए सरकारी भवन को सरकार को हैंडओवर करने के तुंरत बाद दौड़ा दौड़ा मेरी सहायता करने नंगे पांव वैसे ही चला आए जैसे कृष्ण सुदामा से मिलने द्वापर में चले आए थे।’ ‘पर सॉरी दोस्त! तुम्हारी बनाई वह सड़क मैं नहीं बहा सका। इस बात का मुझे गम है। आखिर तुमने उसमें ऐसा क्या लगाया था जो…’, मानसून ने उत्सुकतावश पूछा तो मैंने कहा, ‘क्या करें दोस्त! कई बार ये अधिकारी न चाहते हुए भी मेरी बनाई सड़कों की गारंटी मांगते हैं। जबकि यहां गारंटी अपनी भी नहीं। असल में सरकार ने कहा था कि यह सड़क जो इस बार बह गई तो हम आगे से तुम्हें ठेका देना बंद तो नहीं, पर कम कर देंगे।
सो, बस, इसी डर से जरा…तब मरता क्या न करता! वैसे तुम तो जानते ही हो कि मेरी बनाई चीजें केवल सूखे के लिए बनी होती हैं। तुम्हारी एक बूंद भी जो उनके गले लग जाए तो वे….। तो अब तुम्हारी आज्ञा हो तो मैं देश से प्रस्थान करूं?’ ‘जाओ मेरे मित्र! पर मुझे वादा देकर जाओ कि जैसे ही विपत्ति में तुम्हें बिन मौसम पुकारूं तो तुम वैसे ही मेरी लाज बचाने आओगे जैसे कृष्ण द्रौपदी की लाज बचाने आए थे।’ ‘अपनों से वादा नहीं मांगा करते मित्र! तो अब मैं जाऊं? सावन भादो में अपने प्रिय से बिछुड़ी मेरी नायिका का मेरे विरह में पता नहीं क्या हाल होगा।’ ‘तुम्हारे लिए एयर इंडिया का टिकट मैंने बुक करवा दिया है। कहो तो चार्टर्ड बुक करवा दूं? तुम्हारे स्विस बैंक के खाते में मैंने…।’ ‘मित्र! उसकी क्या जरूरत थी। मेरे और तुम्हारे खाते में क्या कोई फर्क है?’ ‘तुम्हें भले ही न लगे, पर मेरा तो फर्ज बनता है कि….मेरा भी तो अपने मित्र के प्रति कोई दायित्व बनता है या नहीं? दोस्त कुछ मुंह से कहे ही न तो इसका मतलब ये थोड़े होता है कि….अपना ख्याल रखना मित्र! भाभीजी को मेरा प्रणाम कहना। तुम कहो तो तुम्हें अपनी गाड़ी से एयरपोर्ट तक…।’ ‘वह दूसरे ठेकेदार न कर दी है। वैसे मित्रों में क्या औपचारिकता! अच्छा तो खुदा हाफिज, गुडबाय।’ उसने अति विनम्र हो कहा तो मैं फोन पर ही दिखाने को धांसू किस्म का द्रवित होते मानसून ने को मैंने जाने की परमिशन दी तो वह देश से विदा हो गया।
अशोक गौतम
ashokgautam001@Ugmail.com
Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also, Download our Android App