आजाद हिंद फौज के गुमनाम योद्धाओं को नमन

लाजिमी है देश की स्वतत्रंता की 75वीं वर्षगांठ को ‘आजादी अमृत महोत्सव’ के रूप में मनाए जाने तथा आज़ाद हिंद सरकार के स्थापना दिवस के अवसर पर इतिहास के पन्नों में गुमनाम आज़ाद हिंद फौज के उन रणबांकुरों को याद किया जाए जिनके शिद्दत भरे संघर्ष के बल पर ही मुल्क में आज़ादी के इंकलाब का अलख जला था…

‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’- 4 जुलाई 1944 को रंगून (बर्मा) के जुबली हाल में आजादी के महानायक नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने इस इंकलाबी नारे की दहाड़ से भारत में अंग्रेजों के रौंगटे खडे़ करके बर्तानवी हुकूमत के तख्त-ओ-ताज़ की बुनियाद को हिला कर रख दिया था। इस नारे की ललकार ने हजारों भारतीय युवाओं के जहन में देशभक्ति के जज्बात पैदा करके आजादी की जंग में एक प्रचंड ऊर्जा का संचार कर दिया था, मगर आज़ाद हिंद फौज के सुप्रीम कमांडर सुभाष चंद्र बोस ने 21 अक्तूबर 1943 को सिंगापुर में स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार का गठन भी किया था। जापान, जर्मनी, इटली सहित 11 देशों ने उस सरकार को मान्यता दी थी। इसलिए भारतीय इतिहास में 21 अक्तूबर महत्त्वपूर्ण तारीख है। सशक्त व्यक्तित्व की शख्सियत व फौलादी जिगर सुभाष चंद्र बोस का मानना था कि हिंदोस्तान की सरजमीं से फिरंगी हुकूमत को रुखसत करने की कीमत केवल खून देकर ही चुकाई जा सकती है, जिसका विकल्प सशस्त्र क्रांति ही था। इन्हीं क्रांतिकारी विचारों के कारण सुभाष चंद्र बोस को भारत की आज़ादी के सबसे प्रतिष्ठित व अग्रणी योद्धा के रूप में जाना जाता है। सन् 1942 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान गठित ‘आज़ाद हिंद फौज’ का लक्ष्य भारत को ब्रिटिश साम्राज्य के चंगुल से आज़ाद कराना था। रास बिहारी बोस, कैप्टन मोहन सिंह व निरंजन सिंह जैसे सैन्य अधिकारियों का आज़ाद हिंद सेना के गठन में अहम योगदान था। सुभाष चंद्र बोस ने 4 जुलाई 1943 को ‘आज़ाद हिंद फौज’ तथा 21 अक्तूबर 1943 को ‘आज़ाद हिंद सरकार’ दोनों संगठनों की कमान सिंगापुर में संभाली थी। आज़ाद हिंद फौज के जवानों ने ‘दिल्ली चलो’ का नारा देकर प्रतिज्ञा ली थी कि वे दिल्ली पहंुचकर ब्रिटिश शासन का अंत करके लाल किले पर तिरंगा फहराएंगे या वीरगति को प्राप्त होंगे।

नेता जी ने कहा था कि उन्हें मालूम नहीं कि आज़ादी की इस लड़ाई में कौन जीवित बचेगा, मगर अंत में विजय हमारी सेना की होगी। जंग-ए-आजादी में अपने लगभग 26 हजार सैनिकों का बलिदान देने वाली आज़ाद हिंद फौज में हिमाचल प्रदेश के तीन हजार से ज्यादा सैनिकों ने अहम किरदार निभाया था। 4 फरवरी 1944 को आज़ाद हिंद फौज ने मणिपुर के ‘मायरंग’ नामक स्थान पर अंग्रेज सेना पर भयंकर हमला बोल कर अपना आज़ादी का परचम लहरा दिया था। उस आक्रामक सैन्य अभियान को अंजाम देने वाले गुरिल्ला ब्रिगेड के कमांडर हिमाचली शूरवीर कर्नल मेहर दास थे। उन्हें उस सैन्य मिशन में अदम्य साहस के लिए ‘सरदार-ए-जंग’ की उपाधि से सरफराज किया गया था। उसी सैन्य दल में कैप्टन बख्शी प्रताप सिंह ‘तगमा-ए-शत्रुनाश’ भी शामिल थे। मार्च 1944 में आज़ाद हिंद सेना ने हिंदोस्तान की सरजमीं पर दस्तक देकर अप्रैल 1944 से जून 1944 तक ‘कोहिमा’ (नागालैंड) के महाज़ पर अंग्रेज सेना को परास्त किया था। आजाद हिंद फौज का अपना बैंक, डाक टिकट, ध्वज, पत्रिका, आजाद हिंद रेडियो तथा अपना खुफिया तंत्र भी मौजूद था। उस खुफिया विभाग में हिमाचली जांबाज मेजर दुर्गामल शामिल थे। युद्ध के दौरान अंग्रेज सेना ने मेजर दुर्गामल को 27 मार्च 1944 को युद्धबंदी बनाकर 25 अगस्त 1944 को तिहाड़ जेल में फांसी की सजा दी थी।

आज़ाद हिंद सेना में वीरभूमि के एक अन्य योद्धा कैप्टन दल बहादुर को भी ब्रिटिश फौज ने यु़द्धबंदी बनाकर 3 मई 1945 को फांसी की सजा दी थी। ब्रिटिश हुकूमत की हिरासत में दिए गए कई प्रलोभनों को ठुकरा कर उन शूरवीर गोरखा सैनिकों ने देश के लिए जीवन समर्पित करके वतनपरस्ती की एक अनूठी मिसाल कायम की थी। कैप्टन शेर सिंह, लेफ्टिनेंट अमर चंद ‘तगमा-ए-बहादुरी’ तथा हरि सिंह ‘शेर-ए-हिंद’ जैसे आजाद हिंद सेना के वीरता पदकों से अलंकृत शूरवीरों का संबंध भी हिमाचल से था। आज़ाद हिंद फौज के मार्च पास्ट सांग ‘कदम-कदम बढ़ाए जा’ के मौसिकार कैप्टन राम सिंह ठाकुर का संबंध भी धर्मशाला से था। इस देशभक्ति गान से खौफजदा होकर अंग्रेजों ने इसे बैन कर दिया था, मगर अब यह गाना भारतीय सेना के बैंड में शामिल है जिसे राजपथ पर गणतंत्र दिवस परेड के दौरान सुना जा सकता है। आज़ाद हिंद फौज का राष्ट्र अभिवादन ‘जय हिंद’ जय घोष की गौरवशाली परंपरा भी भारतीय सेना में शामिल है। आज़ाद भारत की पहली डाक टिकट पर भी जय हिंद ही अंकित था। सिंगापुर के ‘एस्प्लानेड पार्क’ में बना ‘आईएनए वार मेमोरियल’ आज़ाद हिंद फौज के जांबाजों की देशभक्ति की चश्मदीद गवाही आज भी मौजूद है। आज़ाद हिंद सेना एक इंकलाबी सशस्त्र सैन्य संगठन था जिसने हिंदोस्तान में शातिराना तरीके से हुकूमत कर रहे अंग्रेजों के होश फाख्ता कर दिए थे। नेता जी ने आजाद हिंद सेना में ‘रानी झांसी रेजिमेंट’ नामक महिला विंग भी स्थापित किया था। उन महिला सैनिकों को ‘रानी’ कहा जाता था

जिसमें कैप्टन डा. लक्ष्मी सहगल, सरस्वती राजामणि, नीरा आर्य जैसी बहादुर वीरांगनाओं ने मुख्य किरदार निभाए थे। साल 2018 में आज़ाद हिंद सरकार की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर देश के वर्तमान प्रधानमंत्री ने लाल किले की प्राचीर से तिरंगा फहराकर ‘आईएनए’ के सैनिकों के प्रति सम्मान की ऐतिहासिक पहल की थी तथा 2019 की गणतंत्र दिवस परेड में आईएनए के चार पूर्व सैनिकों को भी शामिल किया था। मगर आज़ादी के बाद भारतीय सेना में ‘आज़ाद हिंद फौज’ के नाम से सैन्य संगठन होना चाहिए था। लाजिमी है देश की स्वतत्रंता की 75वीं वर्षगांठ को ‘आजादी अमृत महोत्सव’ के रूप में मनाए जाने तथा आज़ाद हिंद सरकार के स्थापना दिवस के अवसर पर इतिहास के पन्नों में गुमनाम आज़ाद हिंद फौज के उन रणबांकुरों को याद किया जाए जिनके शिद्दत भरे संघर्ष के बल पर ही मुल्क में आज़ादी के इंकलाब का अलख जला था। मातृभूमि को अंग्रेज दास्तां से मुक्त कराने के लिए अंतिम सांस तक लड़ने वाले प्रखर योद्धा व राष्ट्रवाद के प्रतीक सुभाष चंद्र बोस आजादी के महानायक थे और निःसंदेह रहेंगे, जिनके लिए राष्ट्र हमेशा सर्वोपरि व सर्वप्रथम था। राष्ट्र के प्रति उनका जज्बा, त्याग व प्रेरक विचार देश के युवाओं के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं। आज़ाद हिंद फौज के सम्मान में ‘जय हिंद’।

प्रताप सिंह पटियाल

लेखक बिलासपुर से हैं


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