शिक्षा को मिशन के रूप लें शिक्षक

अभिभावकों को यह स्वीकार करना होगा कि शिक्षक उनके बच्चों के ज्ञान देवता हैं। शिक्षकों को भी अपने व्यवसाय की गरिमा को बनाए रखते हुए कर्त्तव्यनिष्ठा को समर्पित भाव से अपना किरदार निभाना होगा। शिक्षा व्यवसाय नहीं, मिशन है…

ज्ञान के असीमित एवं अनंत क्षेत्र में किसी भी व्यवसाय, कला, विद्या, तकनीक, खेलकूद एवं साहित्य के क्षेत्र में दक्षता प्राप्त करने के लिए तथा जीवन मार्ग को सरल, सहज एवं सुगम बनाने के लिए निश्चित रूप से एक कुशल शिक्षक, अध्यापक या गुरु की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। हमारे शास्त्रों में गुरु को ब्रह्मा कहकर पुकारा जाता है। ब्रह्मा को सृष्टि के सृजनकर्ता, रचनाकर्ता और निर्माणकर्ता, गुरु को विष्णु यानी पालनकर्ता तथा महेश यानी शिव जो कि आदि और अंत के रूप में देखा जाता है। इसी प्रकार शिक्षक को भी सृजनकर्ता, पालनकर्ता के रूप में देखा जाता है। दुनिया में सभी महान व्यक्तियों ने शिक्षक के स्थान और सत्ता को स्वीकार किया है। किसी भी समय, स्थान एवं क्षेत्र में जो भी कोई महान व्यक्ति महानता को प्राप्त हुए हैं, उनका निर्माता केवल शिक्षक है। आचार्य चाणक्य ने स्पष्ट शब्दों में कहा है ‘शिक्षक कभी साधारण नहीं होता, प्रलय और निर्माण सदैव  उसकी गोद में पलते हैं।’ भारतवर्ष में प्रत्येक वर्ष 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। उसी प्रकार दुनिया के अधिकांश देशों में हर वर्ष शिक्षक दिवस मनाया जाता है। इन सभी देशों ने इसके लिए अलग-अलग दिवस निर्धारित किए हैं। कुछ देशों में इस दिन अवकाश रहता है तथा बाकी देशों में उस दिन आम दिनों की तरह कामकाज होता है।

 पांच अक्तूबर को प्रतिवर्ष अंतरराष्ट्रीय शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। शिक्षा का महत्त्व बताने के लिए शिक्षक की भूमिका तथा उसकी जि़म्मेदारियों को समझने तथा एहसास करवाने के लिए इस दिन का आयोजन किया जाता है। यूनेस्को ने 5 अक्तूबर सन् 1994 को अंतरराष्ट्रीय शिक्षक दिवस घोषित किया था। यह दिवस शिक्षकों के प्रति सहयोग को बढ़ावा देने और भविष्य की पीढि़यों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए मनाया जाता है। शिक्षण में स्वतंत्रता के मूल सिद्धांत पर शिक्षकों के महत्त्व के प्रति जागरूकता लाने के उद्देश्य से इस दिवस की शुरुआत की गई थी। आज विश्व के लगभग 100 देशों में शिक्षण संस्थानों में यह दिवस मनाया जाता है। यूनेस्को ने अंतरराष्ट्रीय शिक्षक दिवस-2021 की थीम रखी है ‘टीचर्स एट द हार्ट ऑफ एजुकेशन रिकवरी’ यानी कि अध्यापक को शैक्षिक सुधारों की चुनौती के लिए एक महत्त्वपूर्ण अवयव समझा गया है। शिक्षा के क्षेत्र में गुणवत्ता को सुनिश्चित करने के लिए यूनेस्को के इस वर्ष के मूल विषय के परिप्रेक्ष्य में शिक्षक की महत्त्वपूर्ण भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। निश्चित रूप से कोविड-19 के संकट काल की इस विशेष परिस्थिति में अध्यापकों ने शिक्षा की नींव मजबूत करने के उद्देश्य से विशेष कार्य किए हैं। यूनेस्को द्वारा इस वर्ष कोविड-19 के कारण उत्पन्न विशेष परिस्थितियों एवं चुनौतियों से निपटने के लिए प्रेरक वाक्य के रूप में इस विषय को अध्यापकों के लिए समर्पित किया है। हिमाचल प्रदेश में इस वर्ष भारत अमृत महोत्सव तथा पूर्ण राज्यत्व की स्वर्ण जयंती के उपलक्ष्य पर अंतरराष्ट्रीय शिक्षक दिवस के उपलक्ष्य में कोरोनाकाल में ऑनलाइन एजुकेशन का कंटेंट तैयार करने वाले तथा हर घर को पाठशाला बनाने वाले गुरुजनों के सम्मान में कई गरिमामयी कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है, जिन्होंने कोविड-19 की विपरीत परिस्थितियों में संचार माध्यमों का प्रयोग कर शिक्षा को पाठशाला से हर घर पाठशाला में पहुंचाया।

इस अवसर पर यह भी आवश्यक है कि न केवल कोविड-19 की चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में विशेष रूप से कार्य करने वाले अध्यापकों का सम्मान मिले, बल्कि उन अध्यापकों का भी विशेष सम्मान होना चाहिए जो वर्षों से शिक्षा को चुनौती के रूप में स्वीकार करते हुए तन-मन-धन तथा समर्पित भाव से कार्य करते हैं। शिक्षा विभागों तथा सरकार द्वारा निश्चित पुरस्कार पात्रता नियमों की परिधि से बाहर निकल कर ऐसे मेहनती, परिश्रमी, ईमानदार तथा समर्पित अध्यापकों को भी खोजने की आवश्यकता है जो कि शिक्षा की ज्ञान-गंगा को घर-घर तक पहुंचाने के लिए विभिन्न चुनौतियों को स्वीकार करते संघर्ष कर रहे हैं। वर्तमान भौतिकवादी दुनिया में लोगों की सोच बदल चुकी है। सभी क्षेत्रों में नई-नई तकनीक, नए-नए आविष्कार तथा प्रयोग हो रहे हैं। वैश्विक महामारी कोरोनावायरस में संचार माध्यमों तथा तकनीक ने शिक्षण को विद्यार्थियों तक बहुत ही प्रभावी रूप से पहुंचाया है। उंगली के एक क्लिक पर पूरी दुनिया का ज्ञान तकनीक के माध्यम से सामने आ जाता है। किसी विशेष जानकारी को प्राप्त करने के लिए हम गूगल ज्ञान देवता की शरण में चले जाते हैं तथा उसी क्षण हम वांछित जानकारी प्राप्त कर लेते हैं। यह सब होने के बावजूद हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि ज्ञान-विज्ञान, तकनीक तथा नए आविष्कार केवल शिक्षा के माध्यम से संभव हो पाए हैं। अप्रत्यक्ष रूप से गूगल देव के सृजनकर्ता भी गुरुदेव ही हैं। भौतिकवादी सोच या दुनिया की चकाचौंध में हमें उस शिक्षक के लिए अपनी कृतज्ञता को नहीं भूलना चाहिए जिसने कभी हमारी उंगलियों में लिखने के लिए पेंसिल थमाकर कभी हमारा मार्गदर्शन किया था। अब वह उंगली गूगल देवता को सर्च करने के लिए प्रयोग हो रही है।

 गूगल देवता का आधुनिक काल में जानकारी प्राप्त करने के लिए बहुत योगदान है, परंतु तकनीक कभी भी गुरु या शिक्षक का स्थान नहीं ले सकती। यह सही है कि ज्ञान पुस्तकों में संकलित है, परंतु पुस्तकें मूक तथा गूंगी होती हैं। वे बोल नहीं सकती, वे केवल शिक्षक के माध्यम से ही बोलती हैं। भौतिकवादी सोच-विचार, आविष्कार तथा तकनीकी माध्यम शिक्षक का स्थान नहीं ले सकते। दुनिया में ज्ञान-विज्ञान, कला-संस्कृति, शिक्षा तथा राजनीति के क्षेत्र में डंका बजाने वाले चर्चित व्यक्ति भी अपने-अपने शिक्षक के प्रति कृतज्ञता नहीं भूलते। शिक्षक हमेशा ही भविष्य के संकट की चुनौतियों से निपटने के लिए सजग, जागरूक एवं गंभीर रहा है। शिक्षक हमारे भविष्य की परिकल्पना करते हुए सभी का सर्वांगीण विकास सुनिश्चित करते हैं। समाज में सभी वर्गों को इस पुनीत व्यवसाय तथा शिक्षकों  की भूमिका पर विचार करना होगा। अभिभावकों को यह स्वीकार करना होगा कि शिक्षक उनके बच्चों के ज्ञान देवता हैं। शिक्षकों को भी अपने व्यवसाय की गरिमा को बनाए रखते हुए कर्त्तव्यनिष्ठा को समर्पित भाव से अपना किरदार निभाना होगा। शिक्षकों को तन-मन-धन से इस व्यवसाय तथा मानवीय कल्याण के लिए अनुशासित होकर अपने आपको समर्पित करना होगा। शिक्षा एक व्यवसाय नहीं, बल्कि एक मिशन है।

प्रो. सुरेश शर्मा

लेखक घुमारवीं से हैं


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