युवा पीढ़ी की बनती-बिगड़ती सूरत व सीरत

चार, समय को व्यर्थ न गंवाएं तथा समय प्रबंधन की कला को सीखंे। समय किसी का इंतजार नहीं करता तथा आगे निकलता ही चला जाता है तथा ध्यान रखें कि एक बार बहते हुए नदी के पानी को दोबारा छुआ नहीं जा सकता। समय के कुप्रबंधन से आप बहुत पिछड़ जाओगे तथा एक साधारण व्यक्ति का जीवन व्यतीत करने के लिए मजबूर हो जाओगे…

किसी भी देश व समाज को बनाने या बिगाड़ने में उस देश की युवा पीढ़ी की मुख्य भूमिका होती है। युवा पीढ़ी में न केवल जोश व उत्साह होता है बल्कि उनमें नए विचारों की सृजनात्मक व परिवर्तन लाने वाली दक्षता भी होती है। वे कुछ करना चाहते हैं तथा यदि युवा अपने मन में कुछ करने की ठान लें तो उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं है। हमारे देश की कुल आबादी का लगभग 65 प्रतिशत युवा है जो 35 वर्ष की आयु से कम है। हमारे मेहनती और प्रतिभाशाली युवाओं को यदि सही दिशा दी जाए तो यह भारत को हर क्षेत्र में अग्रणी बना सकते हैं। भारत की युवाशक्ति उद्यमशील व उत्साही है तथा हर क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रही है। युवा वर्ग तो कल की आशा होती है तथा उनसे बहुत सी उम्मीदें होती हैं। आज अगर कोई कमी है तो वह उनको सही समय पर मार्गदर्शन देने की है जिसके लिए उनके माता-पिता, गुरुजनों व पूर्ण समाज की जिम्मेदारी सर्वोपरि है।

 जिस तरह से स्वामी विवेकानंद ने हमेशा देश के युवाओं को आगे बढ़ने की प्रेरणा दी, उसी तरह हर बुद्धिजीवी नागरिक का कर्त्तव्य है कि वे अपने उच्च चरित्र के व्यक्तिगत उदाहरण से युवाओं के लिए एक रोल मॉडल का काम करें। आज के डिजिटल युग में युवा वर्ग एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी निभा सकता है, मगर वह कहीं भटकता हुआ जरूर नज़र आता है जब वो सोशिल मीडिया का गलत प्रयोग कर नकारात्मक सोच को जन्म देने लगता है। डिजिटल मीडिया के माध्यम से वे न जाने कौन-कौन से अपराध कर बैठता है तथा अपनी सारी ऊर्जा को पानी की तरह बहा कर अपना जीवन नष्ट कर बैठता है। आज यह भी देखा जा रहा है कि युवा वर्ग विदेशों में जाना ज्यादा पसंद करते हैं क्योंकि वहां उनको नौकरी आसानी से मिल जाती है, मगर उन्होंने शायद यह कभी नहीं सोचा कि उनके मां-बाप जिन्होंने उन्हें जन्म दिया, उन्हें देखने के लिए पीछे से कोई नहीं है। दूसरे देश, भारतीय युवाओं को इसलिए अधिक वेतन देते हैं क्योंकि उनको पता है भारतीय युवा मेहनती होते हैं तथा सस्ते में ही मिल जाते है।

 ऐसे युवाओं का अपने देश के विकास के लिए कोई विशेष योगदान नहीं होता तथा वे विदेशी बन कर ही रह जाते हैं। दिशाहीन युवक कई गलत आदतों का शिकार हो जाते हैं तथा वो अक्सर अपने पथ से भटक जाते हैं। युवाओं की सूरत व सीरत, दशा व दिशा बदलने के लिए कुछ सुझाव दिए जा रहे हैं जिनका विवरण इस प्रकार से है  एक, युवाओं को श्री कृष्ण जी की इन तीन बातों पर ध्यान देना चाहिए : (1) बड़ों को प्रणाम व उनका आशीर्वाद प्राप्त करना, (2) अहंकार व अहम का त्याग, (3) जीवन में कड़ा परिश्रम करना। उन्हें नहीं भूलना चाहिए कि एक कठोर पत्थर हथौड़े की अंतिम चोट से ही टूटता है तथा उन्हें निरंतर परिश्रम करते रहना चाहिए। आईंस्टाइन ने बिजली के बल्ब का आविष्कार 700 बार प्रयास करने के बाद ही किया था तथा इन्हें उसी तरह अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए लगातार प्रयासरत रहना चाहिए। दो, बुरी संगत को त्याग कर अच्छी संगत का साथ देना चाहिए। याद रखें कि यदि लोहे को खुली हवा में बाहर रख दिया जाए तो उसे जंग लग जाता है, मगर उसी लोहे को यदि आग से गुजारा जाए तो वह एक बहुमूल्य स्टील का रूप धारण कर लेता है। उन्हें अपना एक लक्ष्य बनाना चाहिए तथा बिना लक्ष्य के उनकी मेहनत उसी तरह बेकार जाएगी जैसा कि पानी की तलाश में एक ही जगह गहरा कुआं न खोद कर जगह-जगह खाइयां खोदने से कुछ भी प्राप्त नहीं होता। तीन, अपनी आत्मा का विश्लेषण व आत्मबोध करें तथा अपने अस्तित्व व क्षमता की पहचान करें। आप में परमात्मा की दी हुई सभी शक्तियां विराजमान हैं, मगर आप कस्तूरी मृग की तरह कस्तूरी की तलाश जगह-जगह कर रहे हैं तथा अपनी नाभि की तरफ ध्यान नहीं दे रहे। यहां पर यह कस्तूरी पहले से ही उपलब्ध है।

 चार, समय को व्यर्थ न गंवाएं तथा समय प्रबंधन की कला को सीखं। समय किसी का इंतजार नहीं करता तथा आगे निकलता ही चला जाता है तथा ध्यान रखें कि एक बार बहते हुए नदी के पानी को दोबारा छुआ नहीं जा सकता। समय के कुप्रबंधन से आप बहुत पिछड़ जाओगे तथा एक साधारण व्यक्ति का जीवन व्यतीत करने के लिए मजबूर हो जाओगे। पांच, अपने आत्मविश्वास को बनाए रखें क्योंकि जिंदगी मे बहुत सी असफलताओं का आपको सामना करना पड़ेगा। अपनी असफलता से बिल्कुल न घबराएं तथा अपना आत्म विश्वास एक स्थिर चट्टान की तरह बनाए रखें जो तेज हवाओं में भी स्थिर बनी रहती है। छह, जीवन में चार बड़े सुख होते हैं जिनमें पत्नी, परिवार, मित्र, धन-दौलत व स्वास्थ्य का सुख मुख्य तौर पर पाए जाते हैं। अच्छी सेहत का होना सबसे बड़ा सुख माना गया है तथा अपने आप को मानसिक व शारीरिक रूप से स्वस्थ रखें क्योंकि यदि सेहत नहीं है तो बाकी सुखों का भोग आप नहीं कर पाओगे। सात, सादगी और विनम्रता बनाए रखें तथा जमीन से नाता न तोड़ें, नहीं तो उड़ती पतंग की तरह आपकी डोर कभी भी कट सकती है। आठ, हीरे को जितना तराशा जाए वह उतनी ही ज्यादा चमक देता है।

 अंडों को तोडे़ बिना स्वादिष्ट ऑमलेट नहीं बन सकता। हमेशा याद रखें कि मेहनत कभी बेकार नहीं जाती तथा कहीं न कहीं आपको इससे लाभ जरूर पहुंचता है। किसी पर निर्भर नहीं होना चाहिए तथा स्वावलंबी बन कर अपनी टांगें मजबूत रखनी चाहिए। नौ, इनसान अपनी गलतियों से सीखता है तथा गलतियां करने से न डरें, मगर उनसे सीख जरूर हासिल करें। दस, अपने माता- पिता व गुरुजनों का आदर-सत्कार करें। हमारे मां-बा तो वो बहार हैं जिस पर एक बार फिजां आ जाए तो दोबारा बहार नहीं आती। याद रखें कि माता- पिता के चले जाने के बाद तो दुनिया अंधेरी लगती है। यह ऐसे पक्षी हैं जो उड़ जाने के बाद वापस नहीं आते। सहारा देने वाले जब खुद सहारा ढूंढ रहे हों तथा इसी तरह बोलना सिखाने वाले जब खुद खामोश हो जाते हैं तो आवाज़ और अलफाज़ बेमायने हो जाते हैं। इसलिए हमेशा अपने माता-पिता के कर्ज को चुकाने को कभी न भूलें। किसी ने ठीक की कहा है : ‘कदम ऐसा चलो कि निशान बन जाए। काम ऐसा करो कि पहचान बन जाए।। यह जिंदगी तो सभी जी लेते है । मगर जिंदगी जीओ तो ऐसी कि सबके लिए मिसाल बन जाए।।’

राजेंद्र मोहन शर्मा

रिटायर्ड डीआईजी


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