देश-विरोधी बयानों पर हो संवैधानिक कार्रवाई

By: Nov 22nd, 2021 12:05 am

जहां देश को विकास की राह पर आगे बढ़ाने के अनेकों विषयों पर चर्चा हो सकती है, वहीं पर सभी राष्ट्रीय डिजिटल चैनलों, प्रिंट मीडिया तथा सोशल मीडिया पर इसी विवादित विषय पर वाक युद्ध हो रहा है…

भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) में प्रत्येक नागरिक को वाक एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान किया गया है जो कि स्वस्थ लोकतांत्रिक व्यवस्था के महत्व को पुष्ट करता है। सन् 1963 में संविधान संशोधन की नई व्यवस्था अनुसार मानहानि, न्यायालय अवमानना, शिष्ट-सदाचार, राज्य की सुरक्षा, लोक व्यवस्था, अपराध तथा भारत की सुरक्षा एवं अखंडता के विरोध में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पाबंदी लगाई गई है। वर्तमान में देश के कई प्रतिष्ठित एवं ख्याति प्राप्त व्यक्तियों द्वारा भारत की सुरक्षा, गोपनीयता तथा अखंडता के विरोध में विवादित बोलों के द्वारा इस स्वतंत्रता का मजाक उड़ाकर धज्जियां उड़ाई जा रही हैं जो कि देश के एक सामान्य नागरिक की दृष्टि से अति निंदनीय है। यह देश हमें शिक्षा, सड़क, स्वास्थ्य, सुरक्षा, रोजगार तथा जीवन जीने के सभी संसाधन प्रदान करता है। इन सभी उपकारों के लिए हम सभी को राष्ट्र का कृतज्ञ होना चाहिए। कभी वंदे मातरम् का जयघोष लगाने पर आपत्ति, कभी राष्ट्र गान गाने पर तकलीफ, शर्म आती है ऐसी मानसिकता पर।

 इस देश की बाह्य सुरक्षा में लाखों सैनिक सीमाओं के प्रहरी बनकर अनेक प्राकृतिक प्रकोपों की विपरीत परिस्थितियों में जान की परवाह किए बिना डटे रहते हैं। हंसते-हंसते कई माताओं के सपूतों ने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दे दिया और हम अपनी आज़ादी का मज़ाक उड़ा रहे हैं। यह राष्ट्र हमें अन्न-धन, वैभव, खुली आब-ओ-हवा तथा प्रतिष्ठा प्रदान करता है। क्या स्वतंत्रता सेनानियों के अनेक कड़े संघर्षों, बलिदानों से प्राप्त इस स्वतंत्रता को कुछ ग़ैर-जिम्मेदार व्यक्तियों के विवादित बोलों से कलंकित करने का अधिकार दिया जा सकता है? क्या राष्ट्र किसी व्यक्ति विशेष की बपौती है? क्या यह देश कुछ बेलगाम लोगों के लिए धींगामुश्ती का अड्डा है? कोई भी व्यक्ति राष्ट्र से बड़ा नहीं हो सकता तथा किसी भी कीमत पर कुछ लोगों को गैर जि़म्मेदार वाक युद्ध की स्वतंत्रता के लिए नहीं छोड़ा जा सकता है। जहां इन ग़ैर-जि़म्मेदार एवं बिगड़ैल व्यक्तियों को इस राष्ट्र का यश-मान, पद-प्रतिष्ठा तथा सभी संसाधनों के लिए कृतज्ञ होना चाहिए, वहीं पर इनके बिगड़े, विवादित एवं गैर जि़म्मेदार बयानों को बिल्कुल भी जायज़ नहीं ठहराया जा सकता। इन प्रतिष्ठित व्यक्तियों से तो दूरदराज़ के गांव में छोटा-मोटा काम-धंधा करने वाला, गरिमा पूर्वक, सामान्य जीवन जीने वाला व्यक्ति आदर तथा सम्मान का पात्र है। देश की सुविख्यात अभिनेत्री कंगना रणौत को इस राष्ट्र ने उनकी कला को मान-सम्मान एवं पहचान देकर चार राष्ट्रीय पुरस्कार तथा देश का चौथा राष्ट्रीय सर्वोच्च नागरिक पद्मश्री पुरस्कार देकर सम्मानित किया। इतनी प्रतिष्ठा, धनसंपदा तथा मान-सम्मान पाकर तो किसी व्यक्ति की राष्ट्र के लिए जि़म्मेदारी और भी बढ़ जाती है, लेकिन पुरस्कार प्राप्त करने के कुछ ही दिन बाद कंगना ने राष्ट्र के नायक राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के खिलाफ ग़ैर-जि़म्मेदार तथा अपमानित करने वाले बयान से देश में सनसनी फैलाकर राष्ट्रवाद की नई बहस छेड़ दी है।

 कंगना ने अपने नवीन इतिहास ज्ञान से महात्मा गांधी के अहिंसा के मूलमंत्र का उपहास उड़ाते हुए कहा कि ‘चांटा खाने पर दूसरा गाल आगे करने से आजादी नहीं, भीख मिलती है।’ इस बेलगाम अभिनेत्री ने आगे कहा कि भारत को 1947 में आजादी नहीं बल्कि भीख मिली थी। असली स्वतंत्रता तो 2014 में मिली जब नरेंद्र मोदी की सरकार सत्ता में आई। कंगना के इस अल्प ज्ञान, विवादित तथा गैर जि़म्मेदार व्यक्तव्य ने देश में एक नई बहस छेड़ दी है। इस प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष छद्म युद्ध ने इस देश को कुश्ती का अखाड़ा बना दिया है। जहां देश को विकास की राह पर आगे बढ़ाने के अनेकों विषयों पर चर्चा हो सकती है, वहीं पर सभी राष्ट्रीय डिजिटल चैनलों, प्रिंट मीडिया तथा सोशल मीडिया पर इसी विवादित विषय पर वाक युद्ध हो रहा है। इस नई स्वरधारा ने पूरे देशवासियों को मानसिक रूप से प्रदूषित कर दिया है। नकारात्मक बुद्धि से उत्पन्न तथ्यहीन, विवादित जहरीले एवं राष्ट्र में अलगाव पैदा करने वाले बोलों पर अमूल्य समय की बर्बादी हो रही है। इन चर्चाओं को प्रत्येक व्यक्ति कर रहा है, सुन रहा है, समझ रहा है तथा सभी पक्ष और प्रतिपक्ष पर चर्चा करने वालों का इन विवादित बयानों पर कोई समर्थन नहीं है, लेकिन किसी के द्वारा संविधान के विधान अनुसार कोई भी कार्यवाही न होना शर्मनाक है। यही नहीं, बेलगाम कंगना ने आगे बढ़कर एक और विवाद को जन्म देते हुए दावा किया कि ‘सुभाष चंद्र बोस तथा भगत सिंह को महात्मा गांधी से कोई समर्थन नहीं मिला। ऐसे सबूत हैं जिनसे लगता है कि गांधी चाहते थे कि भगत सिंह को फांसी हो।’ उन्होंने महात्मा गांधी को सत्ता का भूखा तथा चालाक बताया। कंगना के नवीन इतिहास ज्ञान पर पूरे देश में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं तथा हाल ही में सरकार द्वारा प्रदत पद्मश्री वापस लिए जाने की मांग हो रही है। विवादित बयानों पर पूरे देश में घमासान मच गया है। कंगना के अलावा एक और भारतीय कॉमेडियन वीर दास ने एक अमेरिकी सार्वजनिक कार्यक्रम में भारतीय लोगों के कथित दोहरे चरित्र पर टिप्पणी कर भारत का सिर शर्म से झुका दिया।

 देश विरोधी ऐसे बयानों से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मज़ाक तथा देश का अपमान हुआ है। वीर दास ने इस कार्यक्रम में एक कविता पढ़कर यूट्यूब पर अपना वीडियो अपलोड किया है। कबीर दास ने कहा ‘मैं उस भारत से आता हूं जहां हम दिन में औरतों की पूजा करते हैं और रात को गैंगरेप करते हैं।’ सस्ती लोकप्रियता पाने के उद्देश्य से दिए ऐसे घटिया बेलगाम बयानों के लिए ग़ैर जि़म्मेदार व्यक्तियों पर संविधान के अनुसार सख्त कार्रवाई कर तुरंत लगाम लगाई जानी चाहिए। अनेकों बार कई ऐसे अवसर आए जहां कई प्रतिष्ठित व्यक्तियों ने भारतवर्ष की आन-बान और शान के विरुद्ध बयान देकर देश की प्रतिष्ठा को आंच पहुंचाकर सभी देशवासियों को शर्मिंदा किया है। देश के सामान्य व्यक्ति को ऐसी ग़ैर-जि़म्मेदार अभिव्यक्ति की आज़ादी बिल्कुल भी स्वीकार नहीं है जो  सामाजिक समरसता तथा सौहार्द के स्वास्थ्य को बिगाड़ दे। ऐसे ग़ैर-जि़म्मेदार लोगों पर संविधान के अनुसार नकेल कसी ही जानी चाहिए। इन कथित प्रतिष्ठित लोगों से तो वे लोग सम्मान एवं प्रशंसा के पात्र हैं जो छोटा-मोटा कारोबार, रेहड़ी-फड़ी, मजदूरी, चाय की दुकान, फल-सब्जी की दुकान, अखबार बेचकर इज्ज़त से अपना जीवन व्यतीत करते हैं और प्रत्येक राष्ट्रीय पर्व पर जयहिंद का उद्घोष लगाकर शान से तिरंगा लहराते हैं।

प्रो. सुरेश शर्मा

लेखक घुमारवीं से हैं


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