पंजाब में कांग्रेस की दिशा व दशा

अब पाकिस्तान ने इसमें ड्रोन का खेला भी शुरू कर दिया है। केंद्र सरकार ने सीमांत इलाक़ों में सीमा सुरक्षा बल के कार्य क्षेत्र की सीमा पचास किलोमीटर तक बढ़ा दी है। पाकिस्तान नहीं चाहता कि यह कार्य क्षेत्र बढ़ाया जाए क्योंकि इससे उसे अपनी योजनाओं को पूरा करने में दिक्कत होती है। लेकिन सिद्धू और चन्नी भी यही चाहते हैं कि यह कार्य क्षेत्र सीमा न बढ़ाई जाए। इतना ही नहीं, कांग्रेस ने तो बाक़ायदा पंजाब विधानसभा का एक विशेष सत्र बुला कर इसके विरोध में प्रस्ताव पारित किया। पाकिस्तान में जाकर जमा ज़ुबानी ख़र्च कर इमरान खान की प्रशंसा कर आना और बात है, लेकिन विधानसभा में बाक़ायदा प्रस्ताव पारित करना ‘ठोको ताली’ से बहुत अलग बात है। इतना ही नहीं, प्रस्ताव पारित करने के कुछ दिन बाद ही सार्वजनिक घोषणा करते घूमना कि इमरान तो हमारा बड़ा भाई है, केवल इमेच्योरिटी नहीं कही जा सकती। यह तो किसी सोची-समझी योजना का हिस्सा ही कहा जा सकता है…

पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने जब कांग्रेस हाईकमान द्वारा प्रदेश के नवनियुक्त अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू पर यह आरोप लगाया कि वे पाकिस्तान को लेकर साफ्ट हैं, तो बहुत लोगों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। करतारपुर गलियारा खुलने के अवसर पर सिद्धू पाकिस्तान गए थे। अमरेंद्र सिंह तब भी उनके वहां जाने के पक्ष में नहीं थे। सिद्धू गए, यह कोई बड़ी बात नहीं थी। कहां जाना है और कहां नहीं जाना है, इसका अधिकार सिद्धू का था ही। लेकिन वहां जाकर उन्होंने जिस प्रकार वहां के प्रधानमंत्री इमरान खान  की शान में क़सीदे पढ़ने शुरू किए, तब चौंकना स्वाभाविक ही था। लेकिन सिद्धू वहीं तक नहीं रुके। उन्होंने पाकिस्तान के सेनापति जनरल बाजवा को जफ्फी में लेना भी जरूरी समझा। तब यह सोचा गया था कि सिद्धू की आदत ही इस प्रकार की है, इसमें किसी प्रकार के गंभीर अर्थ खोजना और मंशा देखना शायद उचित नहीं होगा। लेकिन उसके बाद से सिद्धू और नए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी की जोड़ी के कारनामों को गहराई से देखा जाए तो सचमुच चौकन्ना होना पड़ेगा।

 यह ठीक है कि स्थानीय राजनीति और व्यक्तिगत स्वार्थों को लेकर दोनों सार्वजनिक रूप से टकराते रहते हैं, लेकिन जहां तक पाकिस्तान का प्रश्न है, दोनों एक ही दिशा में चलते दिखाई दे रहे हैं। इससे चिंता होना स्वाभाविक ही है। पाकिस्तान की लंबी सीमा पंजाब और जम्मू-कश्मीर  के साथ लगती है। पंजाब की सीमा भी अपने पड़ोसी राज्य जम्मू से मिलती है। पाकिस्तान भारत को अस्थिर करना चाहता है, इसमें भी कोई शक नहीं है। सिद्धू और चन्नी से बेहतर इसको कौन जान सकता है। पंजाब में उसने आतंकवाद को जन्म दिया और उसे पाला पोसा। शुरू में कांग्रेस अपने राजनीतिक स्वार्थों के लिए मौन बनी रही। लेकिन अपनी लगाई आग में कांग्रेस को भी अंततः झुलसना पड़ा। इंदिरा गांधी की हत्या हो गई। लेकिन हत्या की आड़ में कांग्रेस ने दिल्ली में सिखों का जो नरसंहार किया, उसने हिंदू-सिख में अलगाव पैदा करने की पाकिस्तान की योजना की ही सहायता की। बाद में इतना कुछ गंवा कर कांग्रेस ने हाथ से निकल चुकी बाज़ी को फिर से संभालने की कोशिश की। बेअंत सिंह और कंवरपाल सिंह गिल की जोड़ी ने पंजाब को पाकिस्तान पोषित आतंकवाद से निजात दिलवाई। लेकिन बेअंत सिंह को इसकी भी क़ीमत चुकानी पड़ी। इस क़ीमत को वर्तमान में पंजाब कांग्रेस के विधायक रवनीत सिंह बिट्टू तो जानते ही हैं। लेकिन लगता है सिद्धू-चन्नी की जोड़ी जाने-अनजाने में उसी राह पर फिर चल पड़ी है। स्वार्थ इस बार भी राजनीतिक हितों का ही है। ये दोनों जानते हैं कि पंजाब नशों के प्रयोग और तस्करी का बहुत बड़ा अड्डा बन चुका है। ये दोनों तो स्वयं ही यह आरोप लगा रहे हैं। पाकिस्तान की मिलीभगत से पंजाब व जम्मू की सीमा पर यह कार्य होता रहता है।

 अब पाकिस्तान ने इसमें ड्रोन का खेला भी शुरू कर दिया है। केंद्र सरकार ने सीमांत इलाक़ों में सीमा सुरक्षा बल के कार्य क्षेत्र की सीमा पचास किलोमीटर तक बढ़ा दी है। पाकिस्तान नहीं चाहता कि यह कार्य क्षेत्र बढ़ाया जाए क्योंकि इससे उसे अपनी योजनाओं को पूरा करने में दिक्कत होती है। लेकिन सिद्धू और चन्नी भी यही चाहते हैं कि यह कार्य क्षेत्र सीमा न बढ़ाई जाए। इतना ही नहीं, कांग्रेस ने तो बाक़ायदा पंजाब विधानसभा का एक विशेष सत्र बुला कर इसके विरोध में प्रस्ताव पारित किया। पाकिस्तान में जाकर जमा ज़ुबानी ख़र्च कर इमरान खान की प्रशंसा कर आना और बात है, लेकिन विधानसभा में बाक़ायदा प्रस्ताव पारित करना ‘ठोको ताली’ से बहुत अलग बात है। इतना ही नहीं, प्रस्ताव पारित करने के कुछ दिन बाद ही सार्वजनिक घोषणा करते घूमना कि इमरान तो हमारा बड़ा भाई है, केवल इमेच्योरिटी नहीं कही जा सकती। न ही यह ज़ुबानी जमा ख़र्च कहा जा सकता है। यह तो किसी सोची-समझी योजना का हिस्सा ही कहा जा सकता है। चन्नी विधानसभा में कैप्टन अमरेंद्र सिंह को धकियाते-धकियाते आरएसएस को लगभग गालियां देने लगे। चन्नी का कहना था कि कैप्टन आरएसएस को पंजाब में लेकर आए। चन्नी जिस प्रकार साक्षात्कार में अपनी डिग्रियां गिनाते रहते हैं, यक़ीनन वे जानते होंगे कि वे ग़लत बयानी कर रहे थे। संघ पंजाब में 1935 के आसपास ही पहुंच चुका था। लेकिन वे कैप्टन के बहाने आरएसएस को पंजाब का शत्रु बता रहे थे। पाकिस्तान के इमरान खान, जो सिद्धू के बड़े भाई हैं, वे भी आरएसएस को ही शत्रु बताते हैं। पंजाब सरकार का ख़ुफिया विभाग पिछले कुछ दिनों से अपनी सरकार को बता रहा है कि पंजाब में आरएसएस के प्रमुख लोग पाकिस्तानी आतंकवादियों के निशाने पर हैं।

 उनकी हत्या की जा सकती है। तो क्या चन्नी पंजाब विधानसभा में आरएसएस को शत्रु बता कर, यदि भविष्य में संघ के लोग आतंकवादियों के निशाने पर आते हैं, उसको पहले ही जस्टिफाई करने की कोशिश कर रहे हैं? यदि कांग्रेस सचमुच इस रास्ते पर चल पड़ी है तो निश्चय ही यह रास्ता पाकिस्तान के हितों के लिए तो लाभदायक हो सकता है, पंजाब के लिए नहीं। यह कांग्रेस हाईकमान द्वारा निर्धारित रास्ता है या सिद्धू-चन्नी ने अपनी स्थानीय राजनीति को ध्यान में रखते हुए चुना है? कहीं ऐसा तो नहीं कि कांग्रेस हाईकमान ने चुनाव से ऐन पहले कैप्टन को इसलिए हटा दिया क्योंकि वे पाकिस्तान की इन योजनाओं के रास्ते में बाधक बन रहे थे। यह संशय सरकार की एक और कारगुज़ारी से गहराता है। दो दिन पहले पंजाब सरकार ने खालिस्तान के लिए आंदोलन चला रहे संगठन सिख फार जस्टिस के सह सचिव अवतार सिंह पन्नू के भाई बलविंदर सिंह पन्नू कोटलाबामा को पंजाब जेनको लिमिटेड का चेयरमैन नियुक्त कर दिया है। यह संगठन भारत सरकार द्वारा प्रतिबंधित है। पंजाब सरकार क्या यह सब कुछ इसलिए कर रही है ताकि खालिस्तान समर्थक लॉबी से चुनावों में समर्थन हासिल किया जा सके? शार्टकट रास्ते से सत्ता प्राप्त करने के लिए यह प्रयोग पंजाब विधानसभा के पिछले चुनावों में आम आदमी पार्टी के केजरीवाल ने किया था। लगता है अब पंजाब में यह प्रयोग सिद्धू-चन्नी की जोड़ी करना चाह रही है। इस प्रयोग को दिल्ली में बैठ कर पंजाब सत्ता को नियंत्रित कर रहे सोनिया परिवार को अभी रोकना चाहिए अन्यथा बहुत देर हो जाएगी। हां, अगर यह प्रयोग उनकी योजना से ही किया जा रहा हो तो अलग बात है।

कुलदीप चंद अग्निहोत्री

वरिष्ठ स्तंभकार

ईमेलः kuldeepagnihotri@gmail.com


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