न्यूनतम वैश्विक कारपोरेट टैक्स लाभप्रद

न्यूनतम वैश्विक कारपोरेट टैक्स से टैक्स हेवन देशों में हो रही मनी लॉन्ड्रिंग और कर चोरी जैसी आर्थिक बुराइयों पर न केवल लगाम लगेगी बल्कि कालाधन रोकने में भी मदद मिलेगी…

हाल ही में जी-20 शिखर सम्मेलन में सदस्य देशों के बीच निष्पक्ष और प्रभावी अंतरराष्ट्रीय कर प्रणाली को लेकर ऐतिहासिक सहमति बन गई है जिसमें न्यूनतम वैश्विक कारपोरेट टैक्स 15 प्रतिशत करने की व्यवस्था है। इसके लागू होने के बाद बहुराष्ट्रीय कंपनियों को किसी भी देश में काम करने पर कम से कम 15 प्रतिशत कारपोरेट टैक्स देना पड़ेगा। इस नई टैक्स व्यवस्था से जहां भारत से कालेधन के प्रवाह पर नियंत्रण होगा, वहीं इससे भारत में विदेशी निवेश में भी तेजी से वृद्धि होगी। उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जी-20 देशों के शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए वर्ष 2014 में पहली बार न्यूनतम वैश्विक कारपोरेट टैक्स की नीति लागू करने का प्रस्ताव किया था। उन्होंने कहा था कि अभी अलग-अलग देशों में कंपनियों पर अलग-अलग दरों से कारपोरेट टैक्स लगता है।

ऐसे में सभी देशों में टैक्स की न्यूनतम दर सुनिश्चित की जाने से बहुराष्ट्रीय कंपनियां एक देश को छोड़कर कम टैक्स रेट वाले दूसरे देश में अपना कारोबार और अपनी आमदनी शिफ्ट नहीं कर पाएंगी। मोदी के इस प्रस्ताव के बाद कई वैश्विक आर्थिक संगठनों के विभिन्न प्रयासों के बाद न्यूनतम वैश्विक कारपोरेट टैक्स को मंजूरी मिल पाई है। ज्ञातव्य है कि इसी वर्ष जून माह में ब्रिटेन में सात विकसित औद्योगिक देशों अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, कनाडा, इटली और जापान के समूह यानी जी-7 के वित्त मंत्रियों की बैठक में वैश्विक स्तर पर कारपोरेट कर की दर को न्यूनतम 15 फीसदी रखे जाने हेतु ऐतिहासिक समझौते पर सहमति बनी थी। फिर इसी वर्ष अक्तूबर माह में आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) के 136 देशों ने हस्ताक्षर कर न्यूनतम वैश्विक कारपोरेट टैक्स दर लगाने का रास्ता साफ कर दिया गया था। ओईसीडी का कहना है कि इसके लागू होने के बाद फेसबुक, गूगल और अमेजन समेत दिग्गज बहुराष्ट्रीय वैश्विक कंपनियों को अब हर साल अरबों डॉलर का अधिक टैक्स देना होगा। न्यूनतम वैश्विक कारपोरेट टैक्स के कारण बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को दुनिया भर में करीब 80 अरब डॉलर तक का अतिरिक्त टैक्स चुकाना पड़ सकता है। गौरतलब है कि जी-20 शिखर सम्मेलन में न्यूनतम वैश्विक कारपोरेट टैक्स समझौते पर सहमति के बाद अब वर्ष 2023 से लागू होने की संभावना वाला यह टैक्स वैश्विक कर परिदृश्य में दशकों का सबसे बड़ा और दूरगामी परिवर्तन वाला वैश्विक टैक्स साबित हो सकता है। इस समझौते का खास उद्देश्य दुनिया की बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को टैक्स चोरी से रोकना है।

मौजूदा कॉर्पोरेट टैक्स व्यवस्था में सबसे ज्यादा नुकसान अमेरिका, यूरोपीय यूनियन और भारत जैसी कई बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को हो रहा है। अभी कई बहुराष्ट्रीय कंपनियां टैक्स हैवेन्स देशों में अपने मुख्यालय स्थापित करके टैक्स बचाती हैं। ऐसे में टैक्स हेवन देशों के अनुचित और अन्यायपूर्ण औचित्य को समाप्त करने में भी न्यूनतम वैश्विक कारपोरेट टैक्स अहम भूमिका निभाएगा। टैक्स हैवन देश वे होते हैं, जहां नकली या शैल कंपनियां बनाना आसान है। ये ऐसे देश होते हैं जो विदेशी नागरिकों, निवेशकों एवं उद्यमियों को यह सुविधा प्रदान करते हैं कि वे उस देश में रहकर जो व्यवसाय या निवेश करेंगे या वहां किसी कंपनी की स्थापना करेंगे तो उस पर उनको कर नहीं देना होगा या कर की दरें बहुत ही कम होंगी। इन देशों में ऐसे क़ानून होते हैं, जिससे कंपनी के मालिक की पहचान का पता लगा पाना मुश्किल होता है। खासतौर से साफ्टवेयर कंपनियां, सर्विस सेक्टर, दवाओं के पेटेंट और इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी पर रॉयल्टी आदि से हुई कमाई पर बहुराष्ट्रीय कंपनियां अधिक टैक्स देने से बचते हुए उसे कम टैक्स वाले देश में हस्तांतरित कर देती हैं। चूंकि यह दौर वैश्वीकरण और डिजिटाइजेशन का है जिसमें देश की सीमाओं का कोई महत्व नहीं रहा है, ऐसे में बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपना लाभ टैक्स हैवन देशों में ट्रांसफर कर अन्य देशों की आय को हानि पहुंचाती हैं। इस समय शीर्ष टैक्स हेवन देशों में ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड्स, केमैन आइलैंड्स, बरमूडा, नीदरलैंड्स, स्विटजरलैंड, लग्जम्बर्ग, हॉन्गकॉन्ग, जर्सी, सिंगापुर आदि शामिल हैं। वस्तुतः टैक्स हैवन देशों में नकली या शैल कंपनियों के कारण वैश्विक स्तर पर कर चोरी को बढ़ावा मिल रहा है और वैश्विक स्तर पर कालेधन की समस्या में लगातार वृद्धि हो रही है। वैश्विक स्तर पर मनी लॉड्रिंग और आर्थिक अपराधों को बढ़ावा मिल रहा है।

टैक्स हैवन देशों की शैल कंपनियों के कारण घरेलू टैक्स संग्रहण पर प्रभाव पड़ता है, यानी कर अपवंचन में वृद्धि होती है जिससे संबंधित देश के राजस्व आय में कमी आती है। साथ ही उस देश की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ऐसे में निश्चित रूप से न्यूनतम वैश्विक कारपोरेट टैक्स से टैक्स हेवन देशों में हो रही मनी लॉन्ड्रिंग और कर चोरी जैसी आर्थिक बुराइयों पर न केवल लगाम लगेगी बल्कि कालाधन रोकने में भी मदद मिलेगी। निःसंदेह वैश्विक स्तर पर न्यूनतम वैश्विक कारपोरेट टैक्स दर 15 फीसदी किया जाना भारत के लिए लाभप्रद होगा। नई व्यवस्था के तहत यद्यपि भारत में काम कर रही बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए डिजिटल सर्विस टैक्स या इक्विलाइजेशन लेवी जैसे करों को समाप्त किया जाना होगा, लेकिन इसके बावजूद भारत बड़े लाभ की स्थिति में होगा। वैसी भी भारत में अभी कॉर्पोरेट टैक्स की दर को धीरे-धीरे घटाकर 15 फीसदी पर लाए जाने की प्रक्रिया आगे बढ़ रही है। ऐसे में विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के मद्देनजर न्यूनतम वैश्विक कारपोरेट टैक्स अत्यधिक लाभप्रद होगा। यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि भारत में डिजिटलीकरण तेजी से बढ़ रहा है। चीन से मोहभंग होने के कारण भी भारत के डिजिटल कारोबार में विदेशी निवेशकों की दिलचस्पी बढ़ी है। कोरोना महामारी के कारण लॉकडाउन में ई-कॉमर्स, डिजिटल मार्केटिंग, डिजिटल भुगतान, ऑनलाइन एजुकेशन तथा विभिन्न आर्थिक गतिविधियों के डिजिटल होने से अमेरिकी टेक कंपनियों सहित दुनिया की कई कंपनियां भारत में स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि तथा रिटेल सेक्टर के ई-कॉमर्स बाजार की चमकीली संभावनाओं को मुठ्ठियों में करने के लिए निवेश के साथ आगे बढ़ी हैं। पिछले कुछ वर्षों में एमेजॉन, फेसबुक और गूगल जैसी दुनिया की कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों का कामकाज भारत में छलांगें लगाकर आगे बढ़ा है। देश में डिजिटल कारोबार और ई-कॉमर्स तेजी से बढ़ रहा है। विश्व प्रसिद्ध ग्लोबल प्रोफेशनल सर्विसेज फर्म अलवारेज एंड मार्सल इंडिया और सीआईआई इंस्टीट्यूट ऑफ लॉजिस्टिक्स द्वारा तैयार रिपोर्ट 2020 के मुताबिक भारत में ई-कॉमर्स का जो कारोबार वर्ष 2010 में एक अरब डॉलर से भी कम था, वह वर्ष 2019 में 30 अरब डॉलर के स्तर पर पहुंच गया है और अब 2024 तक 100 अरब डॉलर के पार पहुंच सकता है। निःसंदेह जिस तरह भारत में डिजिटल वैश्विक कंपनियों का कारोबार बढ़ रहा है, उसी तरह न्यूनतम वैश्विक कारपोरेट टैक्स के लागू होने के बाद इससे भारत की आमदनी तेजी से बढ़ेगी।

इस समय भारत में दो करोड़ रुपए से अधिक का वार्षिक कारोबार करने वाली विदेशी डिजिटल कंपनियों के द्वारा किए जाने वाले व्यापार एवं सेवाओं पर भारत में अर्जित आय पर दो फीसदी गूगल टैक्स लगाया जाता है। वित्त मंत्रालय के द्वारा जारी किए गए पिछले वर्ष 2020-21 में कर संग्रह संबंधी आंकड़ों के अनुसार देश में इक्वलाइजेशन लेवी या गूगल टैक्स 2057 करोड़ रुपए रहा, जबकि वर्ष 2019-20 में यह 1136 करोड़ रुपे ही था। इससे पता चलता है कि वित्त वर्ष 2020-21 में गूगल टैक्स पूर्ववर्ती वर्ष के मुकाबले करीब दो गुना बढ़ गया है। यह भी कोई छोटी बात नहीं है कि देश की सिलिकॉन वैली कहे जाने वाले बेंगलूरू की गूगल टैक्स संग्रह में 1020 करोड़ रुपए के साथ करीब आधी हिस्सेदारी रही है। हम उम्मीद करें कि न्यूनतम वैश्विक कारपोरेट टैक्स भारत की आमदनी का चमकीला स्रोत बनेगा।

डा. जयंतीलाल भंडारी

विख्यात अर्थशास्त्री


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