गांधी के अपमान से पहले सोचें खुद का योगदान

महात्मा गांधी जी हों या सुभाष चंद्र बोस या फिर शहीद भगत सिंह, इन सभी ने देश की आजादी के लिए बेहतरीन प्रयास किए और इनके प्रयासों और बलिदानों के कारण ही हम आज एक ऐसे देश के नागरिक हैं जिसकी विश्व में एक अलग पहचान है। देश की आजादी को भीख कहना इन सभी महापुरुषों का अपमान है। प्रत्येक देश का इतिहास उस देश की विरासत होता है, इसलिए इतिहास के प्रति सम्मान होना  चाहिए…

‘दे दी हमें आजादी बिना खड़ग बिना ढाल। साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल। आंधी में भी जलती रही गांधी तेरी मशाल। साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल।’ राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सम्मान में कवि प्रदीप द्वारा लिखी गई ये पंक्तियां बहुत कम शब्दों में महात्मा गांधी जी की शख्सियत को बखूबी बयान कर देती हैं। ये पंक्तियां महात्मा गांधी जी द्वारा दिए गए सत्य, अहिंसा और प्रेम के पैगाम को देशवासियों तक पहुंचाती हैं और साथ ही ये संदेश भी देती हैं कि कैसे एक मजबूत इच्छा शक्ति के दम पर बड़ी से बड़ी चुनौती को बिना हिंसा का सहारा लिए सफलतापूर्वक पूरा किया जा सकता है। महात्मा गांधी जी द्वारा आजादी के आंदोलन के दौरान दिए गए ये संदेश जितने सार्थक उस समय थे, उससे कहीं अधिक सार्थक आज भी हैं। राष्ट्रपिता के द्वारा दिए गए ये संदेश केवल हमारे देश की ही धरोहर नहीं बल्कि पूरे विश्व की पूंजी हैं और समय-समय पर पूरे विश्व के नेता इन संदेशों की सार्थकता और वर्तमान समय में इनकी आवश्यकता पर जोर देते हुए सुने जाते हैं।

महात्मा गांधी जी द्वारा देश की आजादी में दिए गए उनके योगदानों का इतिहास गवाह रहा है और इनको कभी भुलाया नहीं जा सकता। महात्मा गांधी जी जैसी अद्भुत नेतृत्व क्षमता का मुकाबला कर पाना किसी के लिए भी एक मुश्किल कार्य है। आज से लगभग 100 वर्ष पूर्व जब वर्ष 1917 में महात्मा गांधी जी द्वारा चंपारण का आंदोलन शुरू किया गया था, उस समय देश की परिस्थितियां आज से बहुत भिन्न थीं। उस समय अपने संदेशों को जनता तक पहुंचाने के लिए संप्रेषण के बहुत ही सीमित साधन उपलब्ध थे। मीडिया के नाम पर मात्र कुछ अखबार ही पूरे देश में छपते थे और उससे भी बड़ी विडंबना यह थी कि गुलामी के उस दौर में अखबारों तक देश की जनता की पहुंच केवल नाममात्र की थी। अनपढ़ता, गरीबी और कई प्रकार की कुरीतियों से समाज बुरी तरह से अभिषापित था। ऐसी विषम परिस्थितियों में भी महात्मा गांधी ने पूरे देश को आजादी के आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित किया। शब्दों के हथियारों से उन्होंने आंदोलनों को जो धार देकर जो लड़ाई अंग्रेजों से लड़ी थी, उस समय के हालात में उससे अच्छा अन्य कोई भी विकल्प मौजूद नहीं था। उस समय करोड़ों देशवासियों के लिए महात्मा गांधी के शब्द ही प्रेरणा के स्त्रोत थे और इन्हीं शब्दों से जनता को आजादी की आशा की किरण भी दिखाई देती थी। देशवासियों में देशभक्ति का जज्बा पैदा करने और समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने के लिए महात्मा गांधी द्वारा किए गए प्रयोगों से समाज को एकसूत्र में बांधा जा सका था। देश की जनता को आजादी का सपना दिखाने और आजादी के लिए किसी न किसी प्रकार से अपना योगदान देने के लिए महात्मा गांधी जी ने ही देशवासियों को प्रेरित किया था। यही कारण था कि महात्मा गांधी को देश की आजादी का सबसे बड़ा नेता कहा जाता है।

बात चाहे खिलाफत आंदोलन की हो या फिर असहयोग आंदोलन की या फिर भारत छोड़ो आंदोलन की, इन सभी आंदोलनों में महात्मा गांधी के साथ देश की जनता कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी रही। देश की आजादी में महात्मा गांधी के योगदान को शब्दों में लिख पाना मुश्किल है। उन्होंने खुद और अपने साथियों के साथ मिलकर अपने आदर्शों के दम पर अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया था। महात्मा गांधी भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके संदेश आने वाले लंबे समय तक विश्व को शांति और सद्भाव का रास्ता दिखाते रहेंगे। वर्तमान में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के व्यक्तित्व को देश विरोधी करार देने और उनके संदेशों को गलत ठहराने की एक प्रथा बनती जा रही है। इस तरह की एक विचारधारा बनाने की कोशिश की जा रही है कि महात्मा गांधी द्वारा किए गए सभी कार्य देश विरोधी थे। सबसे बड़ी बात यह है कि इस तरह की बातें वो लोग सबसे ज्यादा करते हैं जिनका देश की आजादी या फिर देश की तरक्की के प्रति कोई भी योगदान नहीं है। राष्ट्रपिता के कार्यों का मूल्यांकन करने का हक केवल उसी को है जिसने देश के लिए महात्मा गांधी जी से भी बड़ा योगदान दिया हो। केवल सस्ती लोकप्रियता और खुद को मीडिया में प्रसारित करने के लिए गांधी जी के खिलाफ निम्न स्तरीय बयानबाजी करना कभी भी वाजिब नहीं है। महात्मा गांधी जी के व्यक्तित्व की जो छाप भारतवासियों में बनी हुई है, उसको बदलने की कोशिश सही नहीं है। देश की आजादी में उनके योगदान को पूरा विश्व जानता है। ऐसी महान शख्सियत का हम अगर सम्मान नहीं करना चाहते तो भले ही न करें, लेकिन अपनी लोकप्रियता के लिए उनका अपमान करना कभी भी जायज नहीं है। अब जब पूरा भारतवर्ष दो वर्षों तक देश की आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है तो इस समय देश के इस महान नेता का मजाक ये कहकर उड़ाया जा रहा है कि हमारी आजादी हमें भीख में मिली थी। आजादी के इतने वर्षों के बाद आजादी का इस तरह से पोस्टमॉर्टम करना निंदनीय है। देश को तरक्की की राह पर आगे ले जाने के लिए नए विचारों को पेश करने की बजाय इतिहास की जड़ों को खोदकर सनसनी फैलाने की कोशिश की जा रही है।

महात्मा गांधी जी हों या सुभाष चंद्र बोस या फिर शहीद भगत सिंह, इन सभी ने देश की आजादी के लिए बेहतरीन प्रयास किए और इनके प्रयासों और बलिदानों के कारण ही हम आज एक ऐसे देश के नागरिक हैं जिसकी विश्व में एक अलग पहचान है। देश की आजादी को भीख कहना इन सभी महापुरुषों का अपमान है। प्रत्येक देश का इतिहास उस देश की विरासत होता है, इसलिए इतिहास के प्रति सम्मान का भाव देश के हर नागरिक का कर्त्तव्य है। इस देश की धरती पर आज तक न जाने कितने आंदोलन हुए और हर आंदोलन एक बदलाब का गवाह बना है, चाहे वो आंदोलन 15 अगस्त 1947 से पहले हुए या बाद में। कभी ये आंदोलन देश में फैली हुई कुरीतियों को समाप्त करने के लिए हुए, तो कभी इन आंदोलनों के द्वारा सत्ता में परिवर्तन का संदेश दिया। सत्ता परिवर्तन को देश की आजादी से जोड़ना महज एक मूर्खता है और इससे सस्ती लोकप्रियता के अलावा कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता।

राकेश शर्मा

लेखक जसवां से हैं


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