कोरोना के बीच साहित्य की ऑनलाइन साधना

By: Dec 26th, 2021 12:09 am

वार्षिकी : वर्ष 2021 साहित्य की दृष्टि से हिमाचल के लिए कैसा रहा, यह जानने की जब कोशिश हुई तो कई आश्चर्यजनक तथ्य सामने आए। वैसे कोरोना वायरस के चलते कुछ निष्क्रियता जरूर देखी गई, इसके बावजूद हिमाचल में साहित्य का भरपूर सृजन हुआ, हालांकि अधिकतर गतिविधियां ऑनलाइन ही चलीं। साहित्यिक आयोजनों के तहत कविता पाठ और कवि गोष्ठियां निरंतर चलती रहीं। इसके अलावा कई रचनाएं भी सामने आईं तथा कुछ साहित्यकार संसार को अलविदा कह गए। कुल मिलाकर कहें तो कोरोना से फैले सन्नाटे को तोडऩे में साहित्य सफल रहा…

साहित्य के पन्ने पर कुछ शब्द

एसआर हरनोट, मो.-9816566611

हिमालय साहित्य संस्कृति एवं पर्यावरण मंच द्वारा इस वर्ष जिला शिमला में बहुत से यादगार आयोजन किए गए। 3 अप्रैल को हिंदी के मूर्धन्य लेखक निर्मल वर्मा के जन्मदिन के अवसर पर निर्मल वर्मा स्मृति यात्रा का अयोजन किया गया। 20 अगस्त 2021 को हिमालय मंच द्वारा रोटरी टाउन हॉल शिमला में वरिष्ठ कवि कथाकार गुप्तेश्वरनाथ उपाध्याय की दो पुस्तकों का लोकार्पण वरिष्ठ साहित्यकार श्रीनिवास जोशी, मीनाक्षी पॉल, विद्यानिधि के सानिध्य में किया गया। 29 अगस्त 2021 को मंच की भलकु स्मृति कालका-शिमला रेल व पैदल साहित्य/पर्यावरण यात्रा सफलतापूर्वक संपन्न हुई। शिमला रेलवे स्टेशन पर उत्तरी रेलवे के यांत्रिक अभियंता कौस्तुभ मणि और शिमला स्टेशन के स्टेशन अधीक्षक प्रिंस सेठी ने 35 लेखकों का स्वागत कर उनकी रेल यात्रा को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया।

रेलवे स्टेशन पर शिमला की साईं संस्था ने प्रत्येक लेखक को एक-एक पौधा और कालका-शिमला रेलवे सोसाइटी ने रेलवे स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया। कंडाघाट में रेलवे अधीक्षक दिनेश शर्मा के साथ स्थानीय आरोहणम् ग्रुप के युवा सदस्यों ने फूलमाला पहनाकर लेखकों का भव्य स्वागत किया। साहित्यिक गोष्ठी 2 बजे स्टेशन पर शुरू हुई। सत्र का आरंभ स्थानीय ज्योतिष शास्त्र के विद्वान राजीव शूर ने भलकू की विलक्षण प्रतिभा का विस्तार से वर्णन कर किया। मंच का सफल संचालन करते हुए आत्मा रंजन ने कालका-शिमला रेलवे सोसाइटी और सभी वरिष्ठ अधिकारियों, कर्मचारियों और सम्मानित अधिकारियों का सहयोग के लिए आभार व्यक्त किया। 21 नवंबर, 2021 के दिन वरिष्ठ आलोचक डा. हेमराज कौशिक की आलोचना पुस्तक का लोकार्पण किया गया। 11 दिसंबर 2021 को मंच द्वारा वरिष्ठ कवयित्री स्नेह नेगी जी की पहली कविता पुस्तक ‘सुन! ऐ जि़ंदगी का लोकार्पण किया गया। दिनांक 28 नवंबर 2021 को सोलन जिलाधीश कार्यालय सभागार में साहित्य उत्सव का सफल आयोजन संपन्न हुआ जिसमें पहला सत्र कहानी पाठ का था जो कथाकार बद्री सिंह भाटिया की स्मृति को समर्पित रहा। प्रख्यात कवि आलोचक श्रीनिवास श्रीकांत जी को समर्पित दूसरा सत्र कविता पाठ का था जिसकी अध्यक्षता जाने-माने शायर डा. योग राज योग जी ने की। इन आयोजनों के अतिरिक्त हिमालय मंच ने दिवंगत प्रख्यात कवि आलोचक श्रीनिवास श्रीकांत की स्मृति में रोटरी टाउन हॉल में एक बड़ा कार्यक्रम किया और उनको विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की। उनकी रचनाशीलता पर भी विस्तार से बात हुई।

26 दिसंबर को हिमाचल अकादमी के सहयोग से 12 दिवंगत साहित्यकारों की याद में पूरे दिन का कार्यक्रम कर रहे हैं। 25 दिसंबर 2021 से 2 जनवरी 2022 तक शिमला गेयटी में आईकार्ड इंडिया जो पुस्तक प्रदर्शनी लगा रहा है, उसमें भी हिमालय मंच सहयोग कर रहा है। जिला शिमला के अलावा प्रदेश के अन्य जिलों में भी वर्ष 2021 में साहित्यिक गतिविधियां कमोबेश जारी रहीं। हालांकि कोरोना के कारण अधिकतर साहित्यिक गतिविधियां ऑनलाइन ही चलीं। जिला कांगड़ा में कांगड़ा लोकसाहित्य परिषद ने वार्षिक साहित्य समारोह का आयोजन किया जिसमें जिला के 25 साहित्यकारों ने भाग लिया। भाषा, कला और संस्कृति विभाग के सहयोग से इसका आयोजन हुआ। साथ ही कांगड़ा के विवाह गीतों का वीडियो दस्तावेजीकरण ज्वालामुखी व धारकंडी बोह गांव में किया गया।

इसके अलावा जिला भाषा अधिकारी के सहयोग से आजादी के 75वें वर्ष के उपलक्ष्य में एक समारोह हुआ जिसमें 35 साहित्यकारों ने भाग लिया। कांगड़ा लोकसाहित्य परिषद के अलावा एक अन्य समारोह पहाड़ी गांधी बाबा कांशी की स्मृति में उनके गांव में आयोजित किया गया। जिला कुल्लू की बात करें तो देव सदन कुल्लू में राज्य स्तरीय स्व. लालचंद प्रार्थी जयंती को मनाया गया। हिमाचल साहित्य अकादमी के सचिव डा. कर्म सिंह सहित प्रदेश के अन्य भागों से कई साहित्यकारों व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इसमें भाग लिया। साहित्य अकादमी के सदस्य स्व. श्री छेरिंग दोर्जे की पुण्यतिथि के अवसर पर उन्हें साहित्यकारों ने आदरांजलि दी तथा उनके साहित्यिक योगदान को याद किया। उल्लेखनीय है कि छेरिंग दोर्जे का वर्ष 2020 में कोरोना के कारण निधन हो गया था। इसके अलावा भी कुल्लू जिले में साहित्यिक गतिविधियां छुटपुट जारी रहीं। इसी तरह बिलासपुर जिले में बिलासपुर लेखर संघ, हिम लोक कल्याण कला मंच, अखिल भारतीय साहित्य परिषद, राष्ट्रीय कवि संगम तथा प्रेस क्लब बिलासपुर की ओर से कई साहित्यिक कार्यक्रम आयोजित हुए। इन कार्यक्रमों में मुख्यत: कविता पाठ व कवि गोष्ठियां चर्चित रहीं। इसके अलावा रत्नचंद निर्झर का जन्मदिन भी मनाया गया। स्व. मन्नू भंडारी के साहित्यिक योगदान पर रत्नचंद निर्झर ने प्रकाश डाला।

डा. बंशी राम शर्मा की जयंती पर शोधपत्र का वाचन व कवि सम्मेलन भी हुआ। इसमें मुख्यत: डा. सुशील कुमार फुल्ल ने भाग लिया। यह कार्यक्रम ऑनलाइन आयोजित किया गया। इसके अलावा भाषा-संस्कृति विभाग की ओर से भी कई साहित्यिक कार्यक्रम आयोजित किए गए। उधर, मंडी जिला में यशपाल जयंती पर राज्य स्तरीय समारोह हुआ। कोरोना काल में ऑनलाइन सेमिनार भी हुए, चर्चाएं भी हुईं, हालांकि वायरस के चलते इस वर्ष जिले में साहित्यिक गतिविधियां कमतर ही हुईं। गुलेरी जयंती पर भी जिले में कार्यक्रम हुए। सुंदरनगर में सुकेत साहित्यिक सांस्कृतिक परिषद के सहयोग से साहित्कि गोष्ठी हुई। इसी तरह प्रेम चंद जयंती पर भी यहां कार्यक्रम हुआ। आथर्स गिल्ड कुल्लू की ओर से भी यहां एक कार्यक्रम हुआ। प्रदेश के अन्य जिलों में भी साहित्यिक गतिविधियां पिछले वर्षों की अपेक्षा कमतर संख्या में चलती रहीं। कुछ साहित्यिक गतिविधियों और आयोजक संगठनों के नाम अगर छूट गए हों, तो अन्यथा न लें, क्योंकि स्थानाभाव के कारण सभी गतिविधियों का ब्योरा देना मुश्किल है। इस तरह कोरोना काल में हालांकि कुछ निष्क्रियता देखी गई, फिर भी साहित्यिक गतिविधियां ऑनलाइन व ऑफलाइन जारी रहीं।

विविध विधाओं में हुआ सृजन

डा. हेमराज कौशिक, मो.-9418010646

वर्ष 2021 में रचित साहित्य पर दृष्टि डालें तो ज्ञात होता है इस वर्ष साहित्य की विविध विधाओं में पर्याप्त सृजन हुआ है। कुछ चिंतनपरक पुस्तकें भी प्रकाश में आई हैं। राजनीति और साहित्य के क्षेत्र में तपश्चर्या का जीवन जीने वाले शांता कुमार की 464 पृष्ठों में आत्मकथा ‘निज पथ का अविचल पंथी शीर्षक से इस वर्ष प्रकाशित होने के साथ पर्याप्त चर्चित रही। आत्मकथा को पढ़ते हुए बराबर यह एहसास होता है कि आसान नहीं है शांता कुमार होना। इस वर्ष ही कर्नल जसवंत सिंह चंदेल की आत्मकथा ‘कांगटू से बॉडीगार्ड हाउस तक शीर्षक से प्रकाशित हुई है जिसमें उनके बाल्यकाल से अब तक के जीवन के उतार-चढ़ाव और लेखा-जोखा है। उपन्यास विधा में साधुराम दर्शक का ‘बादलों से ढका आकाश व्यापक फलक की औपन्यासिक कृति है। इसी क्रम में सूरत ठाकुर का ‘ब्यासा की यात्रा कथा उपन्यास कुल्लू घाटी की ऐतिहासिक, पौराणिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर रचित है। देवकन्या ठाकुर का ‘मलाणा क्रीम पार्वती और कुल्लू घाटी में व्याप्त मलाणा क्रीम की तस्करी को केंद्र में रखकर रचित है। गंगाराम राजी निरंतर साहित्य सृजनरत हैं। उनका नव्यतम उपन्यास ‘पिता के साए में शीर्षक से आया है। ‘पतझड़ बीत गया पृथीपाल सिंह का सद्य प्रकाशित उपन्यास है। हिंदी की ‘बया पत्रिका में चंद्ररेखा ढडवाल का दूसरा उपन्यास ‘आगÓ शीर्षक से प्रकाशित हुआ है जिसमें प्रमुख रूप में नारी विमर्श के मुद्दों को उठाया है। कहानी विधा में अनेक कहानी संग्रह प्रकाश में आए हैं। राजेंद्र राजन का ‘पापा! आर यू ओके में ग्यारह कहानियां संग्रहीत हैं। कहानियों में विविध समस्याएं नए कोण तथा भिन्न आसंगों पर केंद्रित है।

भारती कुठियाला ने ‘वागीशा शीर्षक से हिमाचल प्रदेश के बाईस कथाकारों की कहानियों का संचयन-संपादन किया है। नरेश पंडित के ‘झुनझुना में सत्रह कहानियां संग्रहीत हैं। ग्रामीण पृष्ठभूमि में रचित इन कहानियों में हाशिए पर स्थित श्रमिकों के शोषण और स्त्रियों की अभावभरी जिंदगी रेखांकित है। श्रीनिवास जोशी के ‘बेगमू की सू शीर्षक संग्रह में बारह कहानियां हैं। ग्रामीण परिवेश में रची-बसी यह कहानियां वस्तु और शिल्प की दृष्टि से रससिक्त करती हैं। हंसराज भारती का ‘सुकेती पुल सलामत हैÓ शीर्षक कहानी संग्रह में तेरह कहानियां संग्रहित हैं। कमलेश सूद का ‘मेरी अधूरी कहानी शीर्षक कहानी संग्रह आया है जिसमें उनकी उन्नीस कहानियां सामाजिक संबंधों, नारी अस्मिता व सम्मान, वृद्धजनों की उपेक्षा से संबंध रखती हैं। गुप्तेश्वर उपाध्याय के ‘चिराग जल उठा है संग्रह की कहानियों की संवेदना भूमि लेखक के अनुभव जगत के वैविध्य का साक्षात्कार करवाती है और जीवन और जगत के सामाजिक प्रश्नों से टकराती है। सुदर्शन वशिष्ठ ने विपुल सृजन किया है। इस वर्ष ‘कस्तूरी मृग शीर्षक कहानी संग्रह आया है। इसके अतिरिक्त ‘मेरी ग्यारह प्रिय कहानियां शीर्षक से एक अन्य कहानी संग्रह प्रकाशित हुआ है। इसके अतिरिक्त प्रियंका वैद्य का ‘गुलमर्ग गुलज़ार होगा तथा मनोज कुमार शिव का ‘घर वापसी कहानी संग्रह प्रकाशित हुए हैं। कविता विधा के अंतर्गत एक दर्जन से अधिक संग्रह प्रकाशित हुए हैं, जिनमें पूर्ण चंद बोध का ‘एक और प्रशांत, प्रेमलाल गौतम का ‘तितिक्षा, पान सिंह का ‘मेरे आंगन की धूप, गुप्तेश्वर उपाध्याय का ‘बसंत अभी नहीं आया, स्नेह लता नेगी का ‘सुन! ऐ जिंदगी, दीप्ति सारस्वत का ‘प्रेम एक स्लेटी आसमान, कृष्णा बंसल का ‘प्रकृति की ओर, रोशन लाल जसवाल का ‘मैं बच्चा होना चाहता हूं, विद्यासागर भार्गव का ‘मेरी तुम्हारी कहानी कविता की जुबानी, आरआर रत्तन का ‘जीवन के रंग, गुप्तेश्वर उपाध्याय का ‘बसंत अभी नहीं आया, विद्या शर्मा का ‘सप्तरंगए, शिवा पंचकरण का ‘फकीरा आदि प्रकाशित हुए हैं। ‘शिखर की ओर नलिनी विभा नाज़ली का 182 कविताओं का संग्रह है। ‘शेर आराई नलिनी विभा नाज़ली का गज़़लों का संग्रह है जिसमें जीवन की जटिलताओं को जीवंत भाषा शैली में उठाया है। व्यंग्य साहित्य में अशोक गौतम के सर्वाधिक संग्रह प्रकाशित हुए हैं- ‘अमृत अल्कोहल दोऊ खड़े, ‘पूंछ चमकाने वाला तेल, ‘अतिथि देवो भव, ‘नंदू दिन में सपना देखा, ‘ज्ञानपीठ कोचिंग सेंटर, ‘जन्मदिन पर जूते, ‘हथेली पर लाइफ प्रकाशित हुए हैं। सुदर्शन वशिष्ठ का इस वर्ष ‘बाथरूम में हाथी व्यंग्य संग्रह प्रकाशित हुआ है। सुदर्शन वशिष्ठ ने विविध विधाओं में सृजन किया है। ‘हिमाचल के लोकगीत, ‘हिमाचल गाथा आदि उनकी अन्य कृतियां प्रकाशित हुई हैं। बद्रीसिंह भाटिया की संस्मरणात्मक पुस्तक ‘यादें प्रकाशित हुई है। राजेंद्र राजन ने ‘अनसंग कंपोजर ऑफ आईएन कैप्टन रामसिंह ठाकुर जन गण मन धन के गायक के जीवन संघर्ष और विलक्षण प्रतिभा को कई वर्षों के शोध के अनंतर उनके जीवन के विविध पक्षों को अनावृत किया है। कैप्टन रामसिंह पर केंद्रित इस पुस्तक का राजेंद्र राजन ने कुशलता से संपादन किया है और प्रामाणिक तथ्यों का संयोजन किया है। प्रेमलाल गौतम शिक्षार्थी की ‘प्रो. मनसा राम अरुण व्यक्तित्व एवं कृतित्व, डा. पान सिंह की ‘लोकोत्तर कवि गणेश गनी आलोचना पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। ‘चिंतन के संवेदी स्वर डा. शंकर वासिष्ठ की चिंतनपरक लेखों की पुस्तक है। डा. प्रेमलाल गौतम की अन्य पुस्तक ‘आचार्य चाणक्य नीति का पद्यानुवाद शीर्षक से आई है। इसके अतिरिक्त अमरदेव आंगिरस की ‘हिमाचली धर्म एवं संस्कृति के विविध आयाम, शिव सिंह चौहान की ‘हिमाचल प्रदेश के पांच सपूत, नेमचंद अजनबी की ‘सोलन का ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक परिदृश्य और ‘हिमालयी इतिहास और संस्कृति के पुरोधा : ओसी हांडा, जसवंत सिंह चंदेल की ‘हिमाचल के रणबांकुरे, गंगा राम राजी की ‘हिमाचल के जन आंदोलन, पीसीके प्रेम की ‘दि लॉर्ड आफ माउन्टेनस, केआर भारती की ‘हिमाचल प्रदेश ट्रेजर आफ टुरिज्म आदि कुछ अन्य विविध विषयों पर केंद्रित पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। इसी तरह रविंद्र ठाकुर का कविता संग्रह ‘आत्मबोध भी संग्रहणीय है।

साहित्यकारों के लिए कैसा रहा वर्ष 2021

खूब हुआ पढऩा-लिखना

डा. गौतम शर्मा ‘व्यथित, मो.-9418130860

यह वर्ष अध्ययन, सृजन-मनन और वर्चुअल माध्यम से चर्चा-परिचर्चा का रहा। साहित्य संवाद, संपूर्ण साहित्यिक यात्रा साझा करने में भी वर्चुअल तकनीक सहायक बनी। देश की विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं का परिचय मिला, मंचीय साहित्यिक आयोजन औपचारिक रहे। सबसे सुखद दैनिक ‘दिव्य हिमाचल के प्रतिबिंब का अतिथि संपादक होना रहा। इस अवधि में प्रदेश के लोकसाहित्य, लोक संस्कृति के आधिकारिक विद्वानों के अतिरिक्त विश्वविद्यालयों में शोध कार्य कर रहे छात्रों, जनजातीय क्षेत्रों के लेखकों से परिचित होने का अवसर मिला। मेरे अर्जित ज्ञान में नई सूचनाओं से वृद्धि हुई, साहित्यिक मैत्री का दायरा भी बढ़ा। कोरोना वायरस के कारण अधिकांश समय घर पर ही बीता।

पहले की अपेक्षा इस वर्ष कुछ पढऩे और लिखने का अवसर अपेक्षाकृत अधिक मिला। पुराने दस्तावेज भी खंगाले, जो संग्रहणीय लगा वह संभाला, जो अधूरा पड़ा था उसे पूरा करने का प्रयास किया। हिमाचल की कहानियां, पश्चिमी हिमालयी सांस्कृतिक धरोहर भाग एक, समै रा सच्चा (नाटक) और किरले दियां सरपरां (म्हाचली पहाड़ी हास्य व्यंग्य) लघु निबंध पुस्तकें प्रकाशनाधीन हैं। श्री मदन मोहन ब्रज लोक संस्कृति समिति अलीगढ़ द्वारा स्थापित डा. हर्ष नंदिनी भाटिया स्मृति सम्मान 2021 प्राप्त करने का सुअवसर मिला। इसी बहाने दो बार वर्चुअल माध्यम से उस लोकसाहित्य-संस्कृति मंच से जुड़े देश-विदेश में रह रहे सदस्य साहित्यकारों से संवाद संभव होना अत्यंत उल्लासमयी रहा। फेसबुक शेयर करने, स्वयं को प्रचारित-प्रसारित करने का भी यह वर्ष साहित्य जगत के लिए सम्मान प्राप्त करने और लोकप्रियता पाने का वर्ष रहा। साहित्यिक मानस को वर्चुअल तकनीकी माध्यम से जुडऩे, निरंतर बने रहने की, नववर्ष के नवविहान पर हार्दिक शुभकामनाएं।

अवसाद से अभिव्यक्ति का तकलीफदेह सफर

राजेंद्र राजन, मो.-8219158269

साल 2021 के जनवरी माह में मेरा एक बड़ी त्रासदी से सामना हुआ जब मुझे अपने युवा बेटे के बिछोह का आघात झेलना पड़ा। अवसाद के लंबे अंतराल से उबरने का एकमात्र उपाय मैं लेखन में ही खोज पाया। हर पल मृत्युबोध के आतंक से मुक्ति का मार्ग अंतत: मुझे सृजन में ही दिखा। इस साल मैं तीन कहानियां लिखने में कामयाब रहा। कैसे? यह मैं भी नहीं जानता। यह कहानियां हैं ‘प्रेतयोनि, ‘यातना शिविर और ‘सलीबों का शहर।

‘यातना शिविर गिरिराज में छपी तो शेष दोनों कहानियां देश की शीर्ष दो पत्रिकाओं में प्रकाशनाधीन हैं। सामाजिक सरोकारों से जुड़े कुछ विषयों पर देश के अग्रणी अखबारों में कॉलम छपते रहे। इसी साल मेरी दो महत्त्वपूर्ण किताबें छपीं। पहली, अनसॅंग कम्पोज़र ऑफ आईएनए : कैप्टन राम सिंह ठाकुर : जन-गण-मन धुन के जनक की चर्चा देशभर में रही और इस पुस्तक का विमोचन हिमाचल के मुख्यमंत्री के कर कमलों से हुआ। कैप्टन राम सिंह ठाकुर पर लंबे शोध के बाद यह पुस्तक भारतीय ज्ञानपीठ से छपी जो मेरा ड्रीम प्रोजेक्ट था। देश के महान जननायक राम सिंह के अवदान को पुस्तक के माध्यम से रेखांकित कर मुझे गहरे संतोष की प्रतीति हुई। दूसरी पुस्तक, ‘पापा आर यू ओके मेरा पांचवां कहानी संग्रह है जो भावना प्रकाशन दिल्ली से छपा। आरके स्टूडियो : ‘जाने कहां गए वो दिन और ‘मीटू यानी पुरुष विमर्श शीर्षक से दो पुस्तकें नववर्ष में प्रकाशित होंगी।

अच्छी किताबों कविताओं से बनी रही निकटता

आत्मा रंजन, मो.-9418450763
मेरे जैसे बहुत कम लिखने वाले व्यक्ति की कलम को कोई वर्ष डेढ़-दो दर्जन कविताएं सौंपता हुआ गुजऱे तो बकौल ग़ालिब कहना चाहिए कि साल अच्छा है! इस वर्ष का हासिल मेरी कविताएं कुछ प्रमुख पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं। कुछ आलेख/टिप्पणियां दिव्य हिमाचल, जनसंदेश टाइम्स जैसे सहित्यानुरागी अखबारों में भी। इस वर्ष दो महत्त्वपूर्ण और चर्चित संकलनों में कविताओं का शामिल होना भी सुखद और प्रीतिकर रहा। एक, ख्यात आलोचक अरुण होता जी (कलकत्ता विश्वविद्यालय) के संपादन में कोरोना संकट विषयक कविता संकलन ‘तिमिर में ज्योति जैसे नामक संकलन में। जिसमें हिंदी की अनेक पीढिय़ों के 43 कवियों की कविताएं संग्रहित हैं। दूसरा, अकादमी सम्मानित कवि/अनुवादक डा. अमरजीत कौंके जी द्वारा समकालीन हिंदी कविता पर आधारित 21 हिंदी कवियों की कविताओं का पंजाबी में अनूदित अनूठा संकलन ‘बचिया रहेगा सारा कुझ में नौ कविताएं। इसके अलावा इस वर्ष हिमाचल अकादमी, भाषा एवं संस्कृति विभाग, हिमालय साहित्य एवं संस्कृति मंच, सर्जक सहित कुछ अन्य संस्थाओं के कुछ उम्दा ऑनलाइन और ऑफलाइन आयोजनों में स्मरणीय शिरकत रही। भाषा एवं संस्कृति विभाग के राजभाषा पखवाड़ा की निर्णायक समिति में भी।

वर्ष भर अनेक प्रिय पुस्तकों और पत्रिकाओं का संग साथ बना रहा। अनेक अग्रजों/मित्रों ने भी बहुत स्नेहपूर्वक अपनी पुस्तकें भेंट कीं। बहुत स्नेहपूर्वक भेजी गई इन पुस्तकों में से कुछ पढ़ ली गई हैं और कुछ अभी पढ़ी जानी हैं। बराबर फोन करते रहने वाले भाई मुस्तफा खान का भेंट स्वरूप भेजा पहला कविता संग्रह ‘पत्थरों की भाषाÓ मिला और कुछ ही रोज़ बाद हृदयाघात से उनके न रहने की दुखद सूचना भी…। इस तरह सर्जक परिवार के कुछ अपनों (बहुत प्रिय अग्रज श्रीनिवास श्रीकांत और बद्रीसिंह भाटिया सहित) को खोने का अनिर्वचनीय दु:ख भी इस वर्ष के खाते में दजऱ् रहा। कुल मिलाकर सर्जक के रूप में कुछ कविताओं और पाठक के रूप में कुछ अच्छी किताबों का संग साथ वर्ष भर बना रहा।

खामोशी से रंग भरते रहे

मुरारी शर्मा, मो.-9418025190

बीता साल परले साल की तरह अपने पीछे कई सवाल छोड़े जा रहा है। यह साल भी अनजाने भय, निराशा और बदलाव की उम्मीद के बीच बीत गया है। मगर इस निराशा भरे माहौल में भी जिंदगी के कैनवास पर शब्दों की इबारत खामोशी से रंग भरती चली गई। छपने-छपाने से इत्तर पठन-पाठन और लेखन में निरंतरता बनी रही। कई सालों बाद ऐतिहासिक एवं आंचलिक उपन्यास ‘देबकू : एक प्रेम कथा को पूरा कर पाया हूं। उम्मीद है यह उपन्यास 2022 में पाठकों तक पहुंच पाएगा। कोरोना काल पर कहानी मास्टर दीनानाथ की डायरी भी इसी साल भाषा विभाग की पत्रिका विपाशा में प्रकाशित हुई। दो एक और कहानियां और चंद कविताएंस पुस्तकों की समीक्षाएं और पुस्तकों के वल्र्व भी लिखे, बाकि राजनीतिक गतिविधियों की रिपोर्टिंग आदि पर कलम चलाई।

कहानी ढोल नगाड़ा पर नाट्य निर्देशक इंद्रराज इंदू द्वारा लघु फिल्म बनाई गई तो हिमाचल सांस्कृतिक शोध संस्थान रंगमंडल एवं नाट्य अकादमी सतोहल द्वारा दो कहानियों प्रितो नदी हो गई और रिहर्सल का भावपूर्ण नाटय रूपांतरण एवं मंचन इसी साल हुआ है। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में प्रो. मीनाक्षी पॉल द्वारा बीए के पाठ्यक्रम के लिए अंग्रेजी में अनुवादित पुस्तक लीवस इन द स्काई में मेरी कहानी फैगड़े के फूल और लोकनाटय बांठड़ा आलेख के अंश शामिल किए गए हैं। वहीं पर सेंट्रल यूनिवर्सिटी कांगड़ा में बाणमूठ व अन्य कहानियों पर शोध छात्रा शालिनी का कार्य जारी है। जबकि एक और शोध छात्रा मोनिका द्वारा कहानी संग्रह बाणमूठ का आलोचनात्मक अनुशीलन विषय पर इसी वर्ष स्नातकोतर उपाधि के लिए डा. चंद्रकांत सिंह के मार्गदर्शन में लघु शोध प्रबंध तैयार किया है। अभी इसी साल से केंद्रीय विश्वविद्यालय में शोध छात्रा वैशाली द्वारा डा. प्रिया शर्मा के मार्गदर्शन में चार कहानीकारों दिल्ली की अल्पना मिश्र, जयपुर से मनीषा कुलश्रेष्ठ, हरियाणा से ज्ञान प्रकाश विवेक और हिमाचल प्रदेश से मेरी कहानियों में पीएचडी शुरू की है।

पठन सबसे सुखद पहलू रहा

पवन चौहान, मो.- 9418582242

इस वर्ष यानी 2021 के शुरुआती महीनों में भी कोरोना ने बहुत गहरे जख्म दिए। बहुत से साहित्यकार हमसे बिछुड़ गए। उनकी कमी को कभी पूरा नहीं किया जा सकता। जीवन चलने का नाम है। धीरे-धीरे जब जिंदगी ने पटरी पर लौटना शुरू किया तो साहित्य ने भी अपनी रफ्तार को थामा। वैसे इस वर्ष के शुरुआत में ही मुझे प्रकाशन विभाग, नई दिल्ली से मेरी बाल कहानी की पुस्तक ‘तरकीब खेल की प्रकाशित होने की सूचना मिली तो बहुत खुशी हुई। पिछले कई वर्षों से पुरानी चीजों, उपकरणों, विधियों आदि पर लिख रहा था। फरवरी में ही इस पर एक किताब ‘जड़ों से जुड़ाव प्रकाशित होकर आई। नेशनल बुक ट्रस्ट से कहानी की पुस्तक ‘वह बिल्कुल चुप थी तथा डायमंड बुक्स की ‘भारत कथा माला योजना के अंतर्गत मेरी संपादित पुस्तक ’21 श्रेष्ठ बालमन की कहानियां हिमाचल प्रकाशित हुई।

इसके अलावा हिमाचल अकादमी की योजना के अंतर्गत हिमाचल के युवा कहानीकारों की संपादित पुस्तक पर भी काम करने का मौका मिला। इन युवा कहानीकारों को ढूंढना एक शोध कार्य जैसा था। लेकिन जब पुस्तक पूर्ण हुई तो बहुत संतोष मिला। जहां पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशन होता रहा, वहीं ऑनलाइन और ऑफलाइन कार्यक्रमों में भी बराबर शिरकत होती रही। नागपुर विश्वविद्यालय के बीए पाठ्यक्रम में यात्रा संस्मरण का शामिल होना मेरे लिए बेहद खुशी का समाचार रहा। यह वर्ष मेरी लेखन यात्रा में मुझे बहुत कुछ सिखाता रहा। मैंने बहुत से अच्छे-बुरे अनुभवों को जिया भी।


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