सत्तारूढ़ दलों के पतन के प्रासंगिक कारण

इसके अतिरिक्त अकुशल व स्वार्थी सलाहकार समय रहते सरकार की कमियों के बारे में उच्च नेतृत्व को आगाह नहीं करते तथा अपनी सुख-सुविधाओं का लुत्फ उठाने में ही मशरूफ रहते हैं। अफसरशाहों द्वारा तैयार किए गए विधि-विधानों को यथावत रूप से ही लागू कर दिया जाता है तथा कई बार उनकी व्यावहारिकता की तरफ पूरा ध्यान नहीं दिया जाता। ऐसा करने से लोगों को पूर्ण न्याय नहीं मिल पाता तथा वे चुनावी दिनों में सरकार को गिराकर अपना ऋण चुकता कर देते हैं…

राजनीतिक दल सरकार और जनता के बीच एक कड़ी का काम करते हैं। लोकतांत्रिक प्रणाली में सरकार राजनीतिक दलों के माध्यम से ही अपनी नीतियों और योजनाओं की जानकारी जनता तक पहुंचाती है। राजनीतिक दलों का प्राथमिक उद्देश्य राजनीतिक नेतृत्व की प्राप्ति करना होता है तथा जिसे बनाए रखने के लिए ये हर अच्छा या गरिमा रहित कार्य करते रहते हैं। क्योंकि शक्ति का आधार ‘वोटÓ ही होता है, इसलिए विभिन्न दलों में परस्पर प्रतिस्पर्धा बनी रहती है तथा इसी तरह राजनीतिक शक्ति व सत्ता हथियाने के लिए परस्पर होड़ बनी रहती है। समान स्वभाव एवं मूल्यों वाले व्यक्ति संगठित होकर किसी राजनीतिक दल का निर्माण करते हैं तथा राजनीति में धर्म, समुदायों व जातियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। यह अलग बात है कि विभिन्न राजनीतिक दल समाज को विभिन्न जातियों व समुदायों के आधार पर बांटते रहते हैं तथा अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकते रहते हैं।

आजकल उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों, जिनमें आगामी कुछ ही दिनों में चुनाव हाने वाले हैं, वहां पर राजनीतिज्ञ चुनाव रैलियों में विभिन्न राजनीतिक दल एक-दूसरे पर अभद्र टिप्पणियां करते हुए पाए जा रहे हैं। ओछी राजनीति करते हुए निकृष्ट शब्दावली का प्रयोग किया जा रहा है। कहीं चिलमजीवी, कहीं अब्बाजान व जिन्ना जैसे शब्दों का प्रयोग किया जा रहा है तथा मतदाताओं को विभिन्न प्रलोभन देकर आपस में बांटा जा रहा है। वास्तव में राजनीति में कोई किसी का नहीं होता। भारत में अलाउदीन एक ऐसा सुल्तान था जिसने कहा था ‘राजत्व कोई रिश्तेदारी नहीं जानता।Ó भारत के इतिहास की तरफ यदि निगाह की जाए तो ज्ञात होता है कि हिंदू साम्राज्य का पतन अपने ही लोगों द्वारा किया गया था। वर्ष 1192 के युद्ध में राजा जयचंद ने मुहम्मद गौरी का साथ देकर हिंदू राजा पृथ्वीराज को हराया था जिसके परिणामस्वरूप मुस्लिम साम्राज्य की जड़ें मजबूत होती चली गई थीं। युद्ध और प्यार में सब कुछ अच्छा होता है, वाली कहावत राजनीतिक क्षेत्र में सही उतरती जाती है। मगर बेवफाई तो हर क्षेत्र में हानिकारक ही होती है। प्रत्येक दल अपने को मजबूत करने के लिए व प्रतिपक्ष को कमजोर करने के लिए हर संभव प्रयत्न करता ही रहता है। सत्तारूढ़ दल विपक्ष के प्रभावी नेताओं को अपनी पार्टी में प्रवेश करवाकर अपनी साख बढ़ाना चाहते हैं तथा उन्हें ऐसा अनुभव होने लगता है जैसा कि उन्होंने बहुत बड़ा पहाड़ खोद लिया है। मगर शायद वो भूल जाते हैं कि ऐसे निकृष्ट कार्य लंबे अंतराल के बाद उन्हें निश्चित तौर पर पतन ही ओर ले जाते हैं। पार्टी में ऐसे मिलाए गए बेवफा लोग न तो अपनी पार्टी का भला करते हैं, न ही दूसरी पार्टी का। ऐसी स्थिति उस आर्थिक भ्रष्टाचार की होती है जिसमें आरंभ में तो जीडीपी आवश्यक तौर पर बढऩे लगती है, मगर एक लंबे समय के बाद पूरी अर्थव्यवस्था को चरमरा देती है। यह भी देखा जाता है कि विपक्ष के बहुत से छुटभैया नेता सत्तारूढ़ दल के साथ चिपक जाते हैं तथा कई प्रकार के अनुचित फायदे उठाने शुरू कर देते हैं। ऐसा करने से सत्तारूढ़ दल को गंभीर नुक्सान उठाना पड़ता है तथा वफादार लोग चुनावों के दिनों में सरकार के प्रति उदासीनता वाली भूमिका निभाते हैं।

प्रत्येक दल की महाप्रबंधन समितियां अपने कुछ प्रभावी नेताओं को कई कारणों का हवाला देकर जैसा कि वृद्ध आयु का होना व परिवारवाद की संज्ञाएं देकर बाहर का रास्ता दिखाने का प्रयास करती रहती हैं। ऐसा करना भी कई बार नुक्सानदेह होता है क्योंकि बाहर किए गए नेता भीतरघात लगाने का प्रयत्न करने लग पड़ते हैं। चुनावों के दिनों में वे अपना सकारात्मक योगदान नहीं देते तथा कई बार अपनी ही पार्टी के प्रत्याशियों के विरुद्ध लोगों को आज़ाद उम्मीदवार के रूप में चुनाव में उतार देते हैं तथा सत्तारूढ़ दल को भारी नुक्सान उठाना पड़ता है। इस तरह अनुभवी व वरिष्ठ नेताओं की अवहेलना करना पार्टी के लिए घातक सिद्ध होता है। कुशल व सुदृढ़ नेतृत्व की कमी के कारण कुछ अधीनस्थ मंत्रीगण व अफसर अपने आपे से बाहर होकर तानाशाह वाला रवैया धारण कर लेते हैं तथा दूसरों को डराते रहते हैं। कमजोर नेतृत्व का फायदे उठाते हुए ऐसे लोग कई प्रकार के भ्रष्ट व अनैतिक कार्यों में सम्मिलित हो जाते हैं जिसके परिणामस्वरूप सरकार की नींव हिलने लग जाती है। जब राजा कमज़ोर हो तो सभी छुटभैया नंबरदार व जैलदार बन जाते हैं। इसके अतिरिक्त अकुशल व स्वार्थी सलाहकार समय रहते सरकार की कमियों के बारे में उच्च नेतृत्व को आगाह नहीं करते तथा अपनी सुख-सुविधाओं का लुत्फ उठाने में ही मशरूफ रहते हैं। अफसरशाहों द्वारा तैयार किए गए विधि-विधानों को यथावत रूप से ही लागू कर दिया जाता है तथा कई बार उनकी व्यावहारिकता की तरफ पूरा ध्यान नहीं दिया जाता। ऐसा करने से लोगों को पूर्ण न्याय नहीं मिल पाता तथा वे चुनावी दिनों में सरकार को गिराकर अपना ऋण चुकता कर देते हैं।

कमजोर शीर्ष नेतृत्व अपनी कमजोरियों के प्रति इसलिए भी अनभिज्ञ रहता है क्योंकि मुंहलग पदाधिकारी व खुफिया तंत्र सरकार को सब हरा-हरा ही दिखाते हैं तथा कमजोरियों के प्रति समय रहते अवगत नहीं कराते। इसी तरह कुछ अनाड़ी ज्योतिषी अपने स्वार्थ व अज्ञानता के कारण नेताओं को आसमान पर बैठा देते हैं जिसके फलस्वरूप उनके पांव ज़मीन पर नहीं लगते तथा अति आत्मविश्वास के कारण इन्हें मुंह की खानी पड़ती है। इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए राजनीतिक दलों को अपनी कमजोरियों का पूर्वानुमान लगा लेना चाहिए तथा समाज को तोडऩे की जगह उसे जोडऩे का प्रयास करना चाहिए। सत्ता पर काबिज रहने के लिए अनैतिक व भ्रष्ट हथकंडे न अपना कर समाज के कल्याण वाले लोकहितकारी कदम उठाने चाहिए ताकि जनता जनाद्र्धन की सूरत व सीरत को बदला जा सके तथा देश में समरसता व राष्ट्रीयता की विचारधारा को सुदृढ़ किया जा सके।

राजेंद्र मोहन शर्मा

रिटायर्ड डीआईजी


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