ऐतिहासिक युद्ध की जयंती पर शौर्य को नमन

पूर्वी पाक में तैनात पाक सैन्य कमांडर ‘अमीर अब्दुल्ला खान नियाजी’ ने 16 दिसंबर 1971 को ले. ज. ‘जगजीत सिंह अरोड़ा’ को अपनी पिस्तौल सौंप कर गमगीन माहौल में 93 हजार पाक सैनिकों के सरेंडर के कागज़ात दस्तखत करके आत्मसमर्पण कर दिया…

16 दिसंबर 1971 शौर्य पराक्रम से भरे भारतीय सैन्य इतिहास का वो स्वर्णिम अध्याय है जब भारतीय सैन्यशक्ति ने हमशाया मुल्क पाकिस्तान को वजूद में आने के बाद मात्र 24 वर्षों में ही तकसीम करके उसके पूर्वी हिस्से को आजाद मुल्क बांग्लादेश में तब्दील करके पाकिस्तान का भूगोल बदली कर दिया था। बांग्लादेश की आवाम को पाकिस्तान से आज़ादी के उन लम्हों का मुद्दत से इंतजार था। आज भारत 1971 के उसी ऐतिहासिक युद्ध की 50वीं वर्षगांठ को ‘स्वर्णिय जयंती’ के रूप में मना रहा है। 3 दिसंबर 1971 के दिन पाकिस्तान की वायुसेना ने ‘ऑपेशन चंगेज खान’ के तहत भारत के 11 हवाई अड्डों पर बमबारी करके बहुत बड़ी जहालत को अंजाम दिया था। आधिकारिक तौर पर युद्ध की पूर्ण पैमाने पर शुरुआत 3 दिसंबर 1971 को हुई थी। मगर भारत-पाक की उस खूनी जंग के हालात अचानक नहीं बने थे। दरअसल पूर्वी पाक यानी मौजूदा बांग्लादेश के लोगों ने पाकिस्तान के सैन्य हुक्मरानों के तानाशाही रवैये से तंग आकर अपनी बंगाली अस्मिता व संस्कृति की आज़ादी का बिगुल फूंक दिया था।

 पूर्वी पाक की आवाम के बगावती तेवर तथा अपनी आज़ादी के लिए उठाई जा रही मांग पाक हुक्मरानों को नागवार गुजरी। बांग्ला लोगों की आवाज को खामोश करने के लिए पाक सैन्य कंमाडरों ने पूर्वी पाक में 25 मार्च 1971 को ले.ज. टिक्का खान की कयादत में ‘आप्रेशन सर्च लाइट’ के तहत व्यापक हिंसा को अंजाम देकर लाखों निर्दोष बांग्ला लोगों का बर्बरतापूर्ण नरसंहार शुरू किया था। पाक सेना के अत्याचारों से मजबूर होकर लाखों बांग्ला लोग भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में शरण लेने को मजबूर हुए। जब भारत की मानवीय अपीलों का पाक सिपहसालारों पर कोई असर नहीं हुआ, तब बांग्लादेश के लोगों को पाक सेना के जुल्मोंसितम की इंतहा से बचाने के लिए भारतीय सेना ने 20 नवंबर 1971 की रात को पूर्वी पाकिस्तान में एक सैन्य अभियान को अंजाम दिया था। उस सैन्य आपरेशन में भारतीय सेना की ‘14 पंजाब’ (नाभा अकाल) बटालियन तथा 45 कैवलरी के जवानों ने बेहद महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। बांग्लादेश के उस सैन्य मिशन में ‘गरीबपुर’ का जंग-ए-मैदान हिमाचली पराक्रम का गवाह बना जब हिमाचली शूरवीर हवलदार ‘लेखराज’ (14 पंजाब) ने अपनी रिकॉयललेस गन के अचूक प्रहारों से गरीबपुर के रण में पाकिस्तान के ‘एम 24 शैफी टैंकों’ को आग की लपटों में तब्दील करके पाकिस्तानी सेना के सामने ‘वीरभूमि’ के शौर्य को श्रेष्ठ साबित कर दिया था। युद्धभूमि में दुश्मन के समक्ष असीम वीरता के प्रदर्शन के लिए सेना ने लेखराज को ‘वीर चक्र’ से सम्मानित किया था। उस युद्ध में ‘45 कैवलरी’ के स्कवाड्रन कमांडर ‘दलजीत सिंह नारंग’ ‘महावीर चक्र’ ने अपने ‘पीटी 76’ टैंकों के साथ पाक लाव लश्कर को ध्वस्त करके गरीबपुर में ही शहादत को गले लगा लिया था।

 गरीबपुर में भारतीय सैन्य कार्रवाई ने पाक सेना का मनोबल गिराकर युद्ध की दशा व दिशा तय करके भारत की फतह की तम्हीद 22 नवंबर 1971 को ही तैयार कर दी थी। गरीबपुर युद्ध में ही भाग ले रहे पाक वायुसेना के ढाका के स्कवाड्रन कमांडर ‘परवेज मेहंदी कुरैशी’ को भारतीय सेना की ‘4 सिख’ रेजिमेंट ने 22 नवंबर 1971 के दिन अपनी हिरासत में ले लिया था। परवेज मेहंदी कुरैशी 1971 की भारत-पाक जंग के प्रथम पाकिस्तानी युद्धबंदी थे जिन्हें युद्ध के बाद रिहा किया गया था। वही कुरैशी 1999 की कारगिल जंग के समय पाक वायुसेना के चीफ थे। बेशक 1971 की भारत-पाक जंग का मुख्य केन्द्र बांग्लादेश था मगर पाकिस्तान के असकरी रणनीतिकारों ने कश्मीर को हथियाने की ख्वाहिश कभी नहीं छोड़ी तथा भारतीय सैन्य पराक्रम के आगे पाक सुल्तानों का यह अरमान कभी पूरा नहीं हुआ और न ही होगा। 5 दिसंबर 1971 की रात को पाक सेना ने अपनी एक पूरी ब्रिगेड के साथ भारत के पश्चिमी फ्रंट पर मौजूद पुंछ क्षेत्र में भयंकर हमला बोल दिया था। पुंछ के इलाके में मुस्तैद भारतीय सेना की ‘6 सिख’ रेजिमेंट के जवानों ने पूरे सैन्य जज्बे के साथ पलटवार करके दुश्मन के उस हमले की पूरी तजवीज को नाकाम करने में अहम किरदार अदा किया था। पुंछ के महाज़ पर पाक सेना के मंसूबों को ध्वस्त करने वाली 6 सिख की कमान हिमाचली सपूत कर्नल (मे.ज.)‘कशमीरी लाल रतन’ संभाल रहे थे। युद्धभूमि में उत्कृष्ट सैन्य नेतृत्व के लिए कर्नल रतन को सरकार ने ‘महावीर चक्र’ से नवाजा था। पाक सेना को उस युद्ध में धूल चटाने वाली ‘6 सिख’ की एक कंपनी का सफलतम नेतृत्व वीरभूमि के शूरवीर कर्नल ‘पंजाब सिंह’ ‘वीर चक्र’ ने किया था। लेकिन 1971 के युद्ध में भारत के सियासी नेतृत्व की तारीफ करना भी लाजिमी है जब तत्कालीन प्रधानमंत्री ‘आयरन लेडी’ इंदिरा गांधी ने फौलादी जिगर दिखाकर पाकिस्तान के साथ अमेरिका व चीन के हुक्मरानों की हनक को भी आईना दिखा दिया था। आखिर 3 दिसंबर 1971 को भारत के खिलाफ जंग का आगाज करने वाली पाक सेना लड़ने के काबिल नहीं बची तथा युद्ध के मात्र 14वें दिन लाचार होकर घुटनों के बल बैठ गई। पूर्वी पाक में तैनात पाक सैन्य कमांडर ‘अमीर अब्दुल्ला खान नियाजी’ ने 16 दिसंबर 1971 को बांग्लादेश के ‘रामना रेसकोर्स गार्डन’ में भारतीय सेना की पूर्वी कमान के चीफ ले. ज. ‘जगजीत सिंह अरोड़ा’ को अपनी पिस्तौल सौंप कर गमगीन माहौल में 93 हजार पाक सैनिकों के सरेंडर के कागज़ात दस्तखत करके आत्मसमर्पण कर दिया। पाक सेना के सरेंडर की तजलील भरी तस्वीरें पूरी दुनिया में चस्पां हुई। पाकिस्तान की नामुराद सेना 1971 के सदमे से आज तक नहीं उभर पाई, मगर 1971 का इतिहास दोहराने की सलाहियत व हुनर आज भी भारतीय सेना की फितरत में मौजूद है। बहरहाल पूर्वी पाक से पाकिस्तान के तानाशाह ‘याहिया खान’ की सैन्य हुकूमत व पाक इंतजामिया का सूर्यास्त करके आज़ाद मुल्क ‘बांग्लादेश’ का सूर्योदय करने में भारतीय सेना के 3843 रणबांकुरों ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था जिनमें 195 शहीद जांबाजों का संबंध हिमाचल से था। इसलिए अपनी आज़ादी की स्वर्णिम जयंती मना रही बांग्लादेश की आवाम तथा वहां की सत्ता पर काबिज हुकमरानों को भारतीय सैनिकों की कुर्बानियों का इतिहास पूरी शिद्दत से अपने जहन में याद रखना होगा। राष्ट्र 1971 के योद्धाओं को शत्-शत् नमन करता है।

प्रताप सिंह पटियाल

लेखक बिलासपुर से हैं


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