भारत मां के ऐसे रत्न, जो सदैव ‘अटल’ रहे

विरोधी भी उनकी वाकपटुता और तर्कों के कायल रहे। 1994 में केंद्र की कांग्रेस सरकार ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में भारत का पक्ष रखने वाले प्रतिनिधिमंडल की नुमाइंदगी अटल जी को सौंपी थी…

भारत का एक ऐसा दिव्य रत्न जो सदैव ‘अटल’ ही रहा, चाहे परिस्थितियां अनुकूल हो या प्रतिकूल। यह रत्न रूपी शख्सियत कोई अन्य नहीं, बल्कि भारत रत्न, देश के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी थे। सदैव अपने शब्दों की भांति स्पष्ट और सरल होने के बावजूद सदैव अटल रहे। अपने शब्दों व रचना से एक ऐसा सफर शुरू किया कि यह सफर निरंतर चलता ही रहा और आज भी अटल बिहारी वाजपेयी जी के शब्दों व उनकी कही बातों या भाषणों के रूप में यह सफर निरंतर गति पर अग्रसर है। आज वह अपनी कही बातों से जीवंत हंै। वाजपेयी जी अपने शब्दों की भांति ही सदैव स्पष्ट रहते थे, चाहे एक कवि के रूप में हो, पत्रकार के रूप में या रणनीतिकार हो या चाहे एक प्रधानमंत्री के रूप में ही क्यों न हो। स्पष्टता व ईमानदारी के प्रतीक थे अटल बिहारी वाजपेयी जी जिन्हें आज भी पूरा समाज उनके शब्दों व कविताओं के माध्यम से याद करता है। उनके संसद में दिए भाषणों को स्मरण किया करते हैं, जिन भाषणों मे उन्होंने संसद के सत्र में स्पष्ट कहा था कि ‘सरकारें आएंगी, जाएंगी, पार्टियां बनेंगी, बिगड़ेंगी, मगर यह देश रहना चाहिए।’ उनकी देश व लोगों के  प्रति यह जिंदादिली ही उन्हें अविस्मरणीय अध्याय में स्थापित कर देती है। तीन बार देश के प्रधानमंत्री रहे भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी को सारा देश 25 दिसंबर को जयंती पर नमन करता आया है।

 नीति सिद्धांत, विचार एवं व्यवहार की सर्वोच्च चोटी पर रहते हुए सदैव जमीन से जुड़े रहने वाले नेता रहे। उन्होंने राजनीति में कभी छोटे मन से काम नहीं किया। अटल जी ने देश सेवा के दौरान जो दिया, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। जब तक तन में ऊर्जा बची रही, तब तक वे सेवारत रहे। कर्त्तव्य पथ पर चलते-चलते अटल जी अब थकने लगे थे। 93 वर्ष की आयु में आखिरकार 16 अगस्त 2018 को उनका देहावसान हो गया। उनकी याद में ‘सदैव अटल’ नाम से स्मृति स्थल का निर्माण किया गया। अटल जी दूरदर्शी राजनेता, ओजस्वी वक्ता, विद्वान साहित्यकार, राष्ट्रवादी-संवेदनशील कवि तथा प्रखर सांसद रहे। अटल जी ने अपना सारा जीवन राष्ट्र की निःस्वार्थ सेवा में समर्पित कर दिया। उन्होंने सुशासन के प्रामाणिक मानदंड स्थापित किए। उनका राष्ट्र निर्माण में  योगदान सदैव आदरपूर्वक याद किया जाएगा। एक प्रधानमंत्री के रूप में वाजपेयी जी के महान कार्यों व उनकी नेतृत्व क्षमता का सभी लोहा मानते हैं। विषम से विषम परिस्थितियों का भी उन्होंने बड़ी ही सहजता व धैर्य के साथ सामना किया। विश्व शांति के उनके प्रयासों के लिए आज समूचा विश्व उनकी सराहना करता है। विश्व से आतंकवाद मिटाने हेतु उनके द्वारा उठाए गए कदम प्रशंसनीय हैं।

उन्होंने सभी पड़ोसी देशों से अपने संबंध सुधारने का प्रयास किया। वह परस्पर मिल-बैठकर आपसी सहमति से विषम समस्याओं का समाधान करने के हामी रहे। उनका यही उदारवादी दृष्टिकोण उनके महान मानवीय पक्ष को उजागर करता है। उनसे जुडे़ हर एक किस्से व निर्णय से उनकी झलक महसूस होती है। पत्रकार से लेकर प्रखर वक्ता, कवि, नेता, उनकी राजनीतिक सूझबूझ अटल बिहारी वाजपेयी की ऐसी अमिट छवि बनी जो कभी धूमिल नहीं हुई, जिसे सिर्फ उनके दौर के लोग ही नहीं, बल्कि पीढि़यां याद करती आई और करती रहेंगी। अपने फैसलों से सबको चौंकाने वाले निडर नेता थे हमारे अटल बिहारी वाजपेयी। भारत की आधुनिक राजनीति में नैतिकता व आदर्श तथा सिद्धांतों को प्रमुखता देकर स्थापित करने वाले महान नेता वाजपेयी जी का राष्ट्र के प्रति योगदान सदैव स्मरणीय रहेगा। अटल जी आज भी लोगों के दिलों में उनके विचारों के माध्यम से जीवंत हैं। नमन् है ऐसी शख्सियत को जिन्होंने भारत की राजनीति को एक नया आयाम प्रदान किया। उन्हें केवल उनकी पुण्यतिथि या जयंती पर स्मरण करके पुष्पांजलि अर्पित करने  से बेहतर है उनके विचारों पर आगे बढें़। भारतीय राजनीति के अपराधीकरण को रोकने में उनके विचार अमृत मूल हैं। इनके दिखाए मार्ग व विचारों पर चलकर ही इनको सही मायने में आज जयंती अवसर पर सच्ची श्रद्धांजलि हो सकती है। भारत में सुशासन की बात हो या दृढ़ निर्णयों की बात हो, पहला नाम अटल बिहारी वाजपेयी जी का ही आता है, चाहे वो फिर परमाणु परीक्षण ही क्यों न हो। वाजपेयी भले ही हमें छोड़कर चिरनिद्रा में लीन हो गए हों, लेकिन उनकी वाणी, उनका जीवन दर्शन सभी भारतवासियों को हमेशा प्रेरणा देता रहेगा। उनका ओजस्वी, तेजस्वी और यशस्वी व्यक्तित्व सदा देश के लोगों का मार्गदर्शन करता रहेगा। उदारवादी व्यक्तित्व के धनी अटल बिहारी वाजपेयी ने खुद को किसी खास विचारधारा के पहरेदार के रूप में स्थापित नहीं होने दिया।

 उनके प्रधानमंत्रित्व काल में कश्मीर से लेकर पाकिस्तान तक से बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ था। अलगाववादियों से बातचीत के फैसले पर सवाल उठा कि क्या बातचीत संविधान के दायरे में होगी? तो उनका जवाब था, इंसानियत के दायरे में होगी। विरोधियों को साथ लेकर चलने की कला ने उनको सबसे अलग बना दिया। अटल बिहारी वाजपेयी को एक ऐसे नेता के तौर पर याद किया जाएगा जिन्होंने विपरीत विचारधारा के लोगों को भी साथ लिया और गठबंधन सरकार बनाई। विपक्षी पार्टियों के नेताओं की वह आलोचना तो करते ही थे, साथ ही अपनी आलोचना सुनने का भी साहस रखते थे। ऐसे में विरोधी भी उनकी बात को बड़ी तल्लीनता से सुनते थे। उनका हिंदी प्रेम इतना अधिक था कि अपने भाषणों में वे ऐसे वाक्य-शब्द बोलते थे जोकि दिल को छू जाते थे। अटल बिहारी वाजपेयी ने हिंदी को विश्वस्तर पर मान दिलाने के लिए काफी प्रयास किए। वह 1977 में जनता सरकार में विदेश मंत्री थे। संयुक्त राष्ट्र संघ में उनके द्वारा दिया गया हिंदी में भाषण उस समय काफी लोकप्रिय हुआ था। उनके द्वारा हिंदी के चुने हुए शब्दों का ही असर था कि यूएन के प्रतिनिधियों ने खड़े होकर वाजपेयी के लिए तालियां बजाई थीं। इसके बाद कई बार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अटल जी ने हिंदी में दुनिया को संबोधित किया। उन्हें शब्दों का जादूगर माना गया। विरोधी भी उनकी वाकपटुता और तर्कों के कायल रहे। 1994 में केंद्र की कांग्रेस सरकार ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में भारत का पक्ष रखने वाले प्रतिनिधिमंडल की नुमाइंदगी अटल जी को सौंपी थी। किसी सरकार के विपक्षी नेता पर इस हद तक भरोसे को पूरी दुनिया में आश्चर्य से देखा गया था। उन्होंने राजनीति में नैतिकता को कभी नजरअंदाज नहीं किया।

प्रो. मनोज डोगरा

लेखक हमीरपुर से हैं


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