सेना और वर्दी-1

पिछले सप्ताह देश के कुछ राज्यों में मचे चुनावी शोर जिसमें नेता अपनी सहूलियत के हिसाब से दलबदल करके 5 वर्ष पहले जिस दल से चुनकर विधानसभा गए थे, अब उस दल से प्रत्याशी बनाने की उम्मीद कम होने पर दूसरा दल चुन रहे हैं। जनसेवा का जज्बा इतना कूट-कूट कर भरा है कि चाहे दल बदलना पड़े या विचारधारा, पर जनसेवा तो करके रहेंगे। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ओमिक्रॉन और टेलीप्रोम के नतीजों से लोग सकते में हैं। इधर हमारे गृह क्षेत्र हिमाचल के धर्मशाला में रोपवे के उद्घाटन के समय कोरोना नियमों की पालना न करना तो चिंतनीय है, पर इस सौगात से निश्चित तौर पर क्षेत्र के पर्यटन विकास को बढ़ावा मिलेगा। इसी बीच 15 जनवरी को आर्मी डे परेड के दौरान भारतीय सेना की वर्दी में बदलाव की झलकी दिखी। 74 वें स्थापना दिवस के अवसर पर भारतीय सेना ने सार्वजनिक रूप से अपनी नई कॉम्बैट यूनिफॉर्म को सबके सामने पेश किया। आर्मी डे पर दिल्ली कैंट में परेड ग्राउंड पर पैराशूट रेजीमेंट के कमांडो इस नई यूनिफॉर्म में मार्च करते हुए दिखाई दिए। सेना की यह नई वर्दी मौजूदा चितकबरी ड्रैस की जगह लेगी, जिसे दुश्मनों को गुमराह करने के लिहाज से डिजिटल पैटर्न पर बनाया गया है। नई वर्दी का रंग हल्का हरा और दूसरे अलग-अलग रंगों को मिलाकर बनाया गया है। इस तरह की वर्दी का इस्तेमाल ब्रिटिश आर्मी में किया जाता है। ऐसा मानना है कि सेना की यह नई वर्दी अगस्त महीने तक सेना में पूरी तरह शामिल की जा सकती है। इसके डिजाइन को नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी (निफ़्ट) के सहयोग से तैयार किया गया है जो ज्यादा आरामदायक एवं मजबूत होगी।

इसमें जो कपड़ा इस्तेमाल किया गया है वह हल्का तथा मजबूत है जिसको चितकबरा रंग देने के लिए डिजिटल पैटर्न का इस्तेमाल किया गया है। इसका डिजाइन परिस्थिति और जरूरत के हिसाब से पुरुष एवं महिला सैनिकों के लिए एकरूपता के साथ-साथ काफी सुविधाजनक होगा। मौजूदा इस्तेमाल की जाने वाली कॉम्बैट ड्रेस में शर्ट को पैंट के अंदर डाल कर बाहर बैल्ट लगाई जाती है, जबकि नई वर्दी में शर्ट को ट्राउजऱ में डालने की जरूरत नहीं होगी, जो हथियारों के इस्तेमाल के दौरान सहायक हो सकती है। आजादी के बाद समय-समय पर सेना की वर्दी में बदलाव किया गया है। इस बार गणतंत्र दिवस परेड के दौरान सेना में अब तक इस्तेमाल की गई हर वर्दी का प्रदर्शन होगा, जिसमें एक दस्ता 1960, एक दस्ता 1970, एक दस्ता 90 के दशक तथा एक दस्ता आर्मी की मौजूदा यूनिफॉर्म में मार्च करेगा। इस सारे बदलाव के दौरान एक और चर्चा चल रही है कि आत्मनिर्भर भारत के अंतर्गत सरकार इस वर्दी को बनाने का कॉन्ट्रैक्ट ऑडनेंस क्लॉथिंग फैक्टरी के साथ-साथ निजी कंपनियों को भी देना चाहती है। 11 लाख सैनिकों के लिए बनाए जाने वाली वर्दी पर अब राजनीति शुरू हो गई है। मेरा मानना है कि सरकार को अपना झुकाव खास चहेती निजी कंपनियों की तरफ न करके सही मैनुफैक्चरिंग कंपनी को चुनना चाहिए, जो कपड़े और पोशाक की गुणवत्ता और मूल्य दोनों पक्षों का ध्यान रखने के साथ-साथ देश के अलग-अलग हिस्सों में तैनात सैनिकों तक लगातार और लंबे समय तक सप्लाई पहुंचा सके।                                                       -क्रमश:

कर्नल (रि.) मनीष धीमान

स्वतंत्र लेखक


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