जादूगर के शो में गांधी
महात्मा गांधी खुद परेशान थे कि क्यों भारत में आज भी कुछ लेखक अपनी किताबों से पूछ रहे हैं, ‘गांधी को क्यों मारा।’ अचानक मुझे शहर की कूड़ा-कचरा डंपिंग साइट पर मिल गए। वह स्वच्छता के मूड में थे, लेकिन देश के कचरे ने उन्हें भी दागदार बना दिया था। गांधी हैरान थे कि मैंने उन्हें कैसे पहचान लिया, जबकि देश तो अब कुछ और ही देख रहा है। मैंने कहा, ‘बापू! आप तो करिश्मा हैं। आज जो लोग पीछे रह गए, जो गैर राजनीतिक हैं या जिन्हें इतिहास पर भरोसा है, आपको याद करते हैं। मैं इसलिए पहचान पाया क्योंकि देश में आज भी कुछ लोग अपनी दृष्टि रखते हैं, वरना हर आंख पर चश्मा चढ़ा है।’ मेरे गांधी आज चश्मे के बिना थे, लेकिन वह देश में चश्मे ही चश्मे देख रहे थे। तभी हमें सूचना मिली कि शहर में देश का सबसे बड़ा जादूगर आया हुआ है। गांधी से पूछा तो कहने लगे, ‘सुना है देश में अब खुल कर जादू हो रहा है। जादू से ही देश चल रहा है। पटेल ने भी मुझे बताया कि उसकी मूर्ति का बनना भी एक जादू ही तो है।’ गांधी मुझे समझाते हुए उस सभागार तक पहुंच गए जहां जादूगर का शो जारी था। आश्चर्य हुआ कि जादूगर का शो भी मुफ्त में बिक रहा था।
अब दिक्कत यह थी कि सभागार के अंदर बापू को लंगोटी में कैसे प्रवेश कराया जाए। वहां सभी फैंसी ड्रैस में थे। दरअसल देश अब फैंसी ड्रैस में चलते हुए खुद पर फख्र करता है, इसलिए एंट्री की शर्त यही थी। मैंने चतुराई से गांधी की लंगोटी को ऐसे लपेट दिया कि प्रवेश पर खड़े लोगों को भी लगा कि यह आदमी आगे चलकर जादूगर के काम आएगा। गांधी के कारण मुझे सभागार की अंतिम पंक्ति बमुश्किल मिली। बापू फिर भी खुश थे कि आजाद देश में कोई तो है जिसके शो में गांधी को फिलहाल अंतिम पंक्ति तो मिल रही है, वरना कल तो शायद यह भी नसीब न हो। सभागार पूरी तरह वहां उपस्थित जादूगर के भक्तों के कारण संवेदना से भरा हुआ था। वहां लोग खुशी से इतना चीख रहे थे कि देश की तमाम चीखें वहां सुनाई नहीं दे रही थीं। लोग इत्मीनान में थे कि अब अपना गम हल्का करने के लिए देश में कोई तो है जो जादू से कुछ भी फुर्र कर सकता है। तभी जादूगर मंच पर आ गया। आज उसका ड्रैस और भी बांका था। उसके ड्रैस से लग रहा था कि आज का जादू हर चुनावी राज्य को खुश कर सकता है। मुझे गांधी ने हौसला बढ़ाते हुए कहा, ‘चिंता न कर। देश में कपड़ों की कमी नहीं और जब तेरे राज्य की चुनावी बारी आएगी, फैंसी ड्रैस का जादू वहां भी चलेगा।’ जादूगर ने अपना खेल शुरू किया ही था कि वहां बैठे युवा बेरोजगार ताली बजाने लगे। मैंने एक से पूछा तो कहने लगा, ‘जादू देखो, हमें यह तमाशा देखकर ही लगने लगा है कि बाहर निकलते ही रोजगार मिल जाएगा।’ जादूगर के हर करतब पर श्रोता व दर्शक झूम रहे थे। वे खुली आंखों से सपने देख रहे थे।
हर काम सपने में हो रहा था और यही जादू था। इतने में अचानक सभागार में नोटों की गड्डियां गिरने लगीं। यह भारत का सबसे बड़ा जादू था और वहां बैठे स्विस बैंक के अधिकारी भी हैरान थे कि अचानक उनके यहां मौजूद ब्लैक मनी कैसे लौट कर बरस रही है। सभी दर्शकों के पास वादे के मुताबिक काला धन लौट आया था, लेकिन बापू को उसके हिस्से का नहीं मिला। मिलता भी कैसे, गांधी की लंगोटी में जेब ही नहीं थी, जबकि आज देश का नेता बनने के लिए सबसे पहले जेब बड़ी करनी पड़ती है। इसी दौरान हमारा शोमैन, जादूगर गंभीर हो गया। उसने कहा, ‘अभी-अभी इजराइली पेगासस से पता चला है कि गांधी जिंदा है और यहीं सभागार में छिपा है।’ जादूगर के शो में गांधी पकड़ा जा चुका था। बापू को मंच पर खड़ा करके जादूगर ने कहा, ‘अब मैं देश को सबसे बड़ा और गांधी से भी बड़ा करिश्मा दिखाऊंगा।’ सभागार में देशवासी सांस रोके खड़े हो गए थे और उनकी नजरों के सामने धीरे-धीरे गांधी गायब हो रहे थे। दर्शकों की तालियों पर जादूगर ने राहत की सांस ली। नैपथ्य से नारेबाजी हो रही थी, ‘महात्मा गोडसे अमर रहे। बापू गोडसे अमर रहे।’
निर्मल असो
स्वतंत्र लेखक
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