मौत का नशा किस कदर बेलगाम हो गया

‘बोतलों में भर कर जहर बिक रहा है। यह कथन सुनने कहने में थोड़ा अटपटा जरूर लगता होगा, लेकिन यही वर्तमान में प्रदेश की स्थिति है। एक तरफ जहां नशा माफियाओं पर नियंत्रण लगाने की बातें कही जाती हैं तो दूसरी तरफ जहरीली अवैध शराब बेची जा रही है जिसकी प्रशासन व आबकारी विभाग को खबर तक नहीं है। आखिर कैसे प्रदेश में बेखौफ आकाओं की तरह ये अवैध शराब के निर्माण का धंधा चल रहा है, क्या खुफिया तंत्र इससे अनजान है, जानने की इच्छा ही नहीं है। हाल ही में मंडी के सुंदरनगर क्षेत्र में जहरीली शराब का सेवन करके सात लोगों की मौत की दुखद घटना घटित हुई है। घटना के बाद तो विभाग आनन-फानन में काम करने लग गया है, लेकिन यही आनन-फानन पहले होता और जहरीली अवैध शराब पर सरकारी शिकंजा कसता तो यूं मौत के नशे में किन्हीं परिवारों के लोगों को न डूबना पड़ता। आखिर नशा करना ही गलत है, लेकिन तब भी जो नियम शराब निर्माण व वितरण के निर्धारित हैं, उनके कुशल प्रक्रिया संचालन में विभाग देखरेख क्यों नहीं रखता। कैसे प्रदेश के किसी स्थान पर जहरीली अवैध शराब की बिक्री हो जाती है। दूसरी तरफ कहीं 2.5 ग्राम तक नशा भी पकड़ लिया जाता है तो कहीं इतनी बड़ी लापरवाही! मंडी जिला के सलापड़ में जहरीली शराब की बिक्री से सात घरों की रोशनी बुझ गई। सवाल उठते हैं खाकी पर। पर क्या ये खाकी नजरें उन क्षेत्रों में चश्में लगाकर घूमती हैं या फिर शराब के ठेकेदारों पर रसूखदारों का हाथ है जो इन पर कोई कार्रवाई नहीं होती। समय रहते धरपकड़ होती तो आज उन घरों में मातम न पड़ा होता। इस प्रकार की घटनाओं से सीख लेकर समाज को भी जागना होगा और आसपास की ऐसी गतिविधियों के संज्ञान पर गुप्त सुचनाएं प्रशासन तक पहुंचाई जानी चाहिएं। तभी समाज खुशहाल बन सकता है।

अन्यथा पहले चिट्टे ने कई घरों के चिरागों को अपनी सफेदी से साफ कर दिया तो आज वर्तमान परिदृश्य में हिमाचल जैसे शांतिपूर्ण प्रदेश में यूं खुले रूप से जहरीली शराब बेचने से घूंट-घूंट पर मौत का नशा छा गया है। क्या कानून के रखवालों की इसमें मिलीभगत है या मामला कुछ और है, यह चिंतनीय है तथा इसका समाधान भी आवश्यक है, अन्यथा पहले की घटनाओं से सीख न लेकर दोबारा उसी घटनाक्रम को दोहराना बेवकूफी से बढ़कर कोई बहादुरी नहीं। एक तरफ मंडी में तो दूसरी तरफ संसारपुर टैरेस (कांगडा) में अवैध शराब विक्रेताओं पर शिकंजा कसा गया, लेकिन ये शिकंजे घटनाओं से पहले न जाने ढीले क्यों हो जाते हैं, समझ नहीं आता। आम जनमानस की शिकायतों पर भी कोई कार्रवाई न हो तो मामले में गड़बड़ होना लाजिमी होता है और इसका भुगतान भी करना पड़ता है। ऐसा ही हो रहा है। नशे के बाजार बनते जा रहे हैं हिमाचल प्रदेश में। ऐसा कोई दिन नहीं होगा जिस दिन हिमाचल प्रदेश में नशे की पकड़ न की जाए। यहां तक कि आए दिन समाचारों में देखने-पढऩे को मिल जाता है कि खाकी जेबों में भी अब नशा घूमने लगा है। जोकि संकेत देता है कि सब नशे में चूर हैं। खाकी हो या फिर आमजन या रसूखदार, सभी पर आकाओं के हाथ रखे हों, ऐसा प्रतीत होता है। न जाने ऐसा क्या है कि आज का समाज नशे में ही जिंदगी ढूंढ रहा है और उधर केवल मौत का नशा मिल रहा है। मौत के नशे का यूं ही खुलेआम बिकते रहना कोई आदर्श बात नहीं है। प्रदेश सरकार व संबंधित विभाग को कड़े निर्णय लेने की आवश्यकता है। तभी हिमाचल प्रदेश खुशहाल व समृद्धशाली विकास यात्रा पर कदम बढ़ा सकता है। नहीं तो ‘उड़ते पंजाब के बाद अब अगली कड़ी में ‘नशे में लडख़ड़ाता हिमाचल पेश होते समय नहीं लगेगा। युवाओं को प्रेरित किया जाना चाहिए कि वे नशे से दूर रहें। उनका ध्यान खेल गतिविधियों की तरफ मोडऩा होगा।

डा. मनोज डोगरा


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