जिलावार प्राथमिकताएं तय हों
विधायक प्राथमिकताओं के खाके में हिमाचल का अवलोकन करती शिमला की बैठक, अपने भीतर राजनीति के पुरोधा भी चुनती है। विकास के मायनों में जनापेक्षाओं का सृजन जिस बजट से होता है, वहां राजनीतिक विजन का मूल्यांकन भी होना चाहिए। इस तरह विधायक प्राथमिकताओं से निकला नजरिया पूरे प्रदेश के मानचित्र पर कैसे अंकित होता है, यह विवेचन भी जरूरी है क्योंकि अधिकांश जनप्रतिनिधि आज भी आधारभूत जरूरतों के संघर्ष को ही अपना दायित्व मानते हैं। इसलिए विजन से कहीं अधिक फरमाइशें आमादा हंै और राजनीतिक रुतबों की मांग पर चंद कार्यालय, शिक्षा या चिकित्सा संस्थान, सड़कें, पेय जलापूर्ति या विद्युत सप्लाई को लेकर गंभीरता रही है। कहीं विधायकों ने आक्सीजन प्लांट, बस स्टैंड, सब्जी मंडी, पार्किंग, कालेज या अग्नि शमन केंद्र की मांग भी रखी है। आश्चर्य है कि सब्जी मंडियों, बस अड्डों, पार्किंग के निर्माण या बाइपास जैसी जरूरतों के लिए हमारी राज्य स्तरीय या विधानसभा क्षेत्र की योजनाएं आज भी अधूरी हैं। आश्चर्य यह कि विधायक प्राथमिकताएं हर साल गिड़गिड़ाती हुई कभी स्कूल या कभी चिकित्सा स्टाफ की मांग करती हैं, फिर राजनीतिक मंच और सत्ता के मदीना में यह अंतर क्यों।
हमारा मानना है कि जिस तरह विधायक प्राथमिकताओं की वार्षिक गणना होती है, उसी तर्ज पर मंत्री प्राथमिक योजनाओं का जिला स्तरीय अवलोकन हो ताकि सभी मंत्री अपने विधानसभा क्षेत्रों के बाहर भी देख सकें। मुख्यमंत्री से लेकर हर मंत्री तक और तमाम सार्वजनिक प्रतिष्ठानों के अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष अगर जिलावार अपनी प्राथमिकताएं सार्वजनिक करेंगे, तो सरकार के कामकाज में सही मायनों में पारदर्शिता आएगी और लक्ष्य भी तय होंगे। बहरहाल विधायक प्राथमिकताओं के आलोक में नए विजन की आशा लिए कुछ विधायक अपनी सोच का दायरा बड़ा कर रहे हैं, जबकि विकास कैवनास में भी नए रंगों से भरने की उम्मीद जगाते हैं। अर्की के विधायक संजय अवस्थी नए पर्यटन गंतव्य के रूप में अपने विधानसभा क्षेत्र को आगे करते हुए कोल बांध जैसे स्थान की जल क्रीड़ाओं के लिए वकालत कर देते हैं। वह सुरंग मार्ग से सड़कों का भविष्य देखते हुए ट्रक यार्ड बनाने की मांग करते हैं। झंडूता के विधायक जीत राम कटवाल भी अपने क्षेत्र में भाखड़ा बांध के भीतर आय के संसाधन ढूंढने के लिए जल क्रीड़ाओं का विकल्प खोजते हैं। इसी तरह के संकल्प में बंधी पच्छाद की विधायक रीना कश्यप, शिरगुल देवता मंदिर को धार्मिक पर्यटन से जोड़ना चाहती हैं। बड़सर से इंद्रदत और कुल्लू से विधायक सुंदर सिंह ठाकुर रज्जु मार्गों का नक्शा बनाना चाहते हैं, तो बिलासपुर सदर के विधायक सुभाष ठाकुर अपने क्षेत्र में रज्जु मार्ग ही नहीं, पैरा ग्लाइडिंग के लिए बंदला धार को प्रमुख केंद्र में विकसित करने की उम्मीद रखते हैं।
श्री रेणुका जी के विधायक विनय कुमार चिडि़या घर में बाघों का जोड़ा लाने की फरमाइश करते हुए वन्य प्राणियों की महफिल में भी सैलानियों का आकर्षण खोजते हैं। पर्यावरणीय दृष्टि से हरोली के विधायक मुकेश अग्निहोत्री अवैध खनन रोकने की अर्जी देते हैं, तो नयना देवी के विधायक राम लाल ठाकुर ने अली खड्ड के तटीकरण करने के माध्यम से प्रकृति की सेवा का बीड़ा उठाया है। पालमपुर के विधायक आशीष बुटेल को खंड विकास अधिकारी का कार्यालय खोलने के लिए गिड़गिड़ाना पड़े, तो यह सुशासन की समरूपता में एक कलंक सरीखा है। हर विधानसभा क्षेत्र में खंड विकास अधिकारी व उपमंडल अधिकारी (नागरिक) के कार्यालय सुनिश्चित करने ही होंगे। शिमला ग्रामीण के विधायक विक्रमादित्य सिंह शूटिंग रेंज की मांग करके खेलों में ढांचागत उत्थान चाहते हैं। कुल मिलाकर विधायक प्राथमिकता बैठकों के बहाने हम जनापेक्षाओं के नए मॉडल का विकास होते देख सकते हैं, लेकिन इनसे प्रदेश की प्राथमिकताएं निकलें तो हर विभाग अपने मूल स्वभाव में प्रदेश के समग्र विकास को चित्रित कर सकता है। प्रश्न अगर प्राथमिकताओं के दायरे में भी मामूली दिखाई दें, तो कब हम पुस्तकालयों, सांस्कृतिक सदनों, आडिटोरियम, ग्रामीण पर्यटन या नए निवेश की अधोसंरचना को लेकर गंभीर होंगे।
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