कालेजों में यौन उत्पीडऩ

जवाब में पाया कि विद्यार्थियों ने शैक्षणिक सत्र 2011-12 से 2016-17 के दौरान कर्मचारियों के खिलाफ यौन उत्पीडऩ, लैंगिक आधार पर दुव्र्यवहार और हिंसा के करीब 169 आरोप लगाए। जबकि इसी तरह के 127 आरोप साथी कर्मचारियों के खिलाफ भी लगाए गए। सैकड़ों पीडि़तों ने कहा कि रोजाना उन्हें आधिकारिक तौर पर शिकायत नहीं करने के लिए रोका जा रहा है। उन्हें अपनी शिकायत वापस लेने या मामले को अनौपचारिक रूप से रफा-दफा करने के लिए भी कहा जा रहा है। कई विद्यार्थियों ने बताया कि शिक्षा या करियर पर पडऩे वाले असर के डर से अधिकतर शिकायतें की ही नहीं जातीं…

देश की राजधानी में स्थित नामचीन यूनिवर्सिटी जेएनयू की आंतरिक शिकायत समिति ने यौन उत्पीडऩ पर काउंसिलिंग सत्र के आयोजन पर एक सर्कुलर जारी किया है जिसमें कहा गया है कि यौन उत्पीडऩ से बचने के लिए महिलाओं को जानना चाहिए कि पुरुष दोस्तों के साथ कैसे दायरा बनाना है। छात्राओं के साथ राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी इसे महिला-विरोधी बताते हुए वापस लेने की मांग की है। यह सर्कुलर विवादों का हिस्सा बन रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार इस सर्कुलर में कहा गया है कि यौन उत्पीडऩ के मामले में महिलाओं को खुद ही अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी। इसमें कहा गया कि महिलाओं को यह पता होना चाहिए कि इस तरह के उत्पीडऩ से बचने के लिए उन्हें अपने पुरुष दोस्तों के बीच वास्तविक रेखा कैसे खींचनी है? सर्कुलर में कहा गया, ‘आईसीसी के समक्ष ऐसे कई मामले आए हैं, जहां करीबी दोस्तों के बीच यौन उत्पीडऩ हुआ है।’ इसमें कहा गया है कि जुड़े पक्ष आमतौर पर जाने-अनजाने दोस्ती और यौन उत्पीडऩ के बीच की महीन रेखा को लांघ देते हैं। इस सर्कुलर ने हमारा ध्यान एक बार फिर कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में न रिपोर्ट होने वाले यौन शोषण और उत्पीडऩ पर दिलाया है। हमें याद है कि मीटू आंदोलन के दौरान शिक्षा क्षेत्र में होने वाले लैंगिक शोषण के कई मुद्दे सामने आए थे। राजधानी में रेखा (बदला हुआ नाम) नामक एक छात्रा ने तो एक पूरी लिस्ट सार्वजनिक की थी जिसमें कैंपस से जुड़े उन लोगों का नाम था जिन्होंने कथित तौर पर छात्राओं के साथ गलत व्यवहार किया था।

विश्वविद्यालय या फिर कॉलेज परिसर में किसी भी उम्र की कोई भी महिला (छात्रा, शिक्षण और गैर शिक्षण कर्मचारी) यौन उत्पीडऩ की शिकायत दर्ज करा सकती है। कार्यस्थलों के अलावा विश्वविद्यालयों को भी यौन उत्पीडऩ को रोकने के लिए भी काम करना होगा। विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके यौन उत्पीडऩ नियमों को, भारतीय कानून के यौन उत्पीडऩ नियमों को अनुकूल बनाएं। यौन उत्पीडऩ की शिकायतों को गंभीरता से लें। दोषी को कठोरता से दंडित करें और यह सुनिश्चित करें कि वे कानूनन जरूरी कार्यवाहियों का पालन करें। कर्मचारी और छात्राओं में यह जानकारी सुनिश्चित करें, कि यौन उत्पीडऩ का शिकार होने की स्थिति में उन्हें क्या करना है और किसको शिकायत करनी है। सुनिश्चित करें कि परिसर अच्छी तरह से प्रशासित है, सुरक्षित और भय-रहित है। एक आंतरिक शिकायत समिति की स्थापना, प्रशिक्षण और रखरखाव करना मामलों के विवरण के साथ, वार्षिक वस्तुस्थिति (स्टेटस) रिपोर्ट तैयार करना और अर्धवार्षिक समीक्षा करना कि यौन उत्पीडऩ की नीतियां किस हद तक ठीक काम कर रही हैं। राज्य सरकारें इससे जुड़े नियमों की पालना में शिथिलता न दिखाएं। पुष्ट रिपोर्टों के अनुसार विदेशी विश्वविद्यालयों में भी यौन हिंसा की घटनाएं बढ़ रही हैं, लेकिन उनसे निपटने का कोई ठोस ढांचा नहीं है। कैंपसों में हिंसा के खिलाफ आई शिकायतों पर दबे छुपे कार्रवाई करना, उच्च शिक्षण संस्थानों के रवैये की पोल खोलता है। ब्रिटेन के सौ विश्वविद्यालयों में हाल ही में हुए दो ऑनलाइन सर्वे में पुरुष छात्रों ने पिछले दो साल के दौरान बलात्कार, उत्पीडऩ या किसी अन्य यौन अपराध में लिप्त होने की बात स्वीकार की।

पांच सौ चौवन छात्रों पर किए गए सर्वे में 63 ने महिलाओं के प्रति दकियानूसी सोच जाहिर करते हुए माना था कि उन्होंने कभी न कभी यौन हिंसा की है। ब्रिटेन स्थित ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय का नाम दुनिया के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों के रूप में होता है, लेकिन एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि यहां छात्राओं का यौन उत्पीडऩ सबसे ज्यादा होता है। समाचार पत्र ‘द गार्जियन’ ने ऑक्सफोर्ड सहित ब्रिटेन के 120 विश्वविद्यालयों से सूचना की स्वतंत्रता के तहत जानकारी मांगी थी। जवाब में पाया कि विद्यार्थियों ने शैक्षणिक सत्र 2011-12 से 2016-17 के दौरान कर्मचारियों के खिलाफ यौन उत्पीडऩ, लैंगिक आधार पर दुव्र्यवहार और हिंसा के करीब 169 आरोप लगाए। जबकि इसी तरह के 127 आरोप साथी कर्मचारियों के खिलाफ भी लगाए गए। सैकड़ों पीडि़तों ने कहा कि रोजाना उन्हें आधिकारिक तौर पर शिकायत नहीं करने के लिए रोका जा रहा है। उन्हें अपनी शिकायत वापस लेने या मामले को अनौपचारिक रूप से रफा-दफा करने के लिए भी कहा जा रहा है। कई विद्यार्थियों ने बताया कि शिक्षा या करियर पर पडऩे वाले असर के डर से अधिकतर शिकायतें की ही नहीं जातीं। इससे पता चलता है कि असल स्थिति खुलासे से कहीं ज्यादा भयावह है। उच्च शिक्षा में यौन उत्पीडऩ का मामला विषमता से भरा है। यौन हिंसा की घटनाएं आम हैं, लेकिन इस पर आंकड़े जुटाना इतना आसान नहीं है। उदाहरण के लिए ब्रिटेन में बड़ी संख्या में भारतीय और चीनी छात्र-छात्राएं पढऩे आते हैं, लेकिन वे यौन हिंसा पर खुलकर बात करने से कतराते हैं। इसकी तह में सांस्कृतिक वजहें तो हैं ही, विश्वविद्यालय के रवैये और छात्रों के अकादमिक भविष्य पर उसके असर का डर भी उन्हें कुछ बोलने से रोकता है। आंकड़े बताते हैं कि देश के अनेक विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में यौन उत्पीडऩ के मामलों में वृद्धि हुई है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के आंकड़ों के अनुसार 2017 में यौन उत्पीडऩ के 149 मामले विश्वविद्यालयों और 39 मामले कॉलेजों एवं अन्य संस्थानों से दर्ज किए गए।

साल 2016 में 94 ऐसे मामले विश्वविद्यालयों और 18 कॉलेजों और संस्थानों से दर्ज किए गए थे। 2017 में रैगिंग के 901 मामले दर्ज किए गए, जबकि 2016 में रैगिंग के 515 मामले सामने आए थे। यूजीसी ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (विनियमन, निषेध और महिला कर्मियों के यौन उत्पीडऩ और उच्च शैक्षिक संस्थानों में छात्रों के निवारण) विनियम 2015 को अधिसूचित किया। यूजीसी के इस नियम के अनुसार अपराध होने के तीन महीने के अंदर संबंधित कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में शिकायत दर्ज की जानी चाहिए। नियमों का पालन करने में असफल रहने वाले संस्थानों को फंड में कटौती सहित अन्य कार्रवाई का सामना करना होगा। यूजीसी के दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि कॉलेज या विश्वविद्यालय की आंतरिक समिति 90 दिनों के भीतर अपनी जांच पूरी करने के लिए जिम्मेदार है और अधिकारियों को 30 दिनों के भीतर कार्रवाई करनी होगी। आरोपी यदि दोषी पाया जाता है तो विश्वविद्यालय या कॉलेज उस छात्र को बर्खास्त कर सकता है, जबकि कर्मचारी या शिक्षक के मामले में सर्विस नियम के अनुसार कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा। शिक्षा प्रदान करने वाले पवित्र परिसरों में यौन उत्पीडऩ एक ऐसा विषय है जिसके बारे में नहीं सुना जाना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं है। चूंकि कुत्सित शख्स अक्सर उन लोगों का ही ज्यादातर शोषण करते हैं जिन्हें वे जानते हैं, इसलिए कॉलेज और विश्वविद्यालयों के छात्रों के लिए यौन शोषण से बचने के लिए बहुत सावधान रहना महत्त्वपूर्ण है।

डा. वरिंदर भाटिया

कालेज प्रिंसीपल

ईमेल : hellobhatiaji@gmail.com


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