पार्टनर स्वैप का विकृत चलन

केरल की घटना आटे में नमक समान ही लगती है। परदे के पीछे शायद आसपास बहुत कुछ हो रहा है जो सामने नहीं आता। ऐसे में क्या पार्टनर स्वैप के विकृत चलन को लेकर भारतीय समाज को अपने विचार बदलने की ज़रूरत है या नहीं? यह सब विकासशील समुदाय के लिए बड़ी चुनौती है…

फ्रंट ख़बरों के अनुसार केरल पुलिस ने कोट्टायम जिले में एक महिला की शिकायत के बाद सेक्स पार्टनर बदलने के एक मामले में सात लोगों को गिरफ्तार किया है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार इन समूहों में 1000 से अधिक जोड़े हैं और वे सेक्स के लिए महिलाओं का आदान-प्रदान कर रहे थे। वहां से आ रही रिपोर्टों के अनुसार इनका काम पहले सोशल मीडिया समूहों में शामिल होना होता है और फिर दो या तीन जोड़े समय-समय पर मिलते हैं। उसके बाद महिलाओं का आदान-प्रदान किया जाता था। उपलब्ध मीडिया रिपोर्टों के अनुसार कुछ पुरुषों ने पैसे के लिए अपनी पत्नियों को शारीरिक संबंध बनाने के लिए इस्तेमाल किया था। सेक्स पार्टनर बदलने की यह सामाजिक बुराई अपने देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में बहुत पहले से है। हाल ही में पेरिस में इस संबंध में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। पोलिंग इंस्टिट्यूट द्वारा किए गए एक सर्वे के मुताबिक तकरीबन एक चौथाई पेरिस वाले ग्रुप सेक्स में शामिल हैं और हर छह में से एक ने सेक्स क्लब के जरिए अपने पार्टनर्स बदले हैं। इस सर्वे में दो हजार पेरिस निवासियों से सवाल किए गए जिसके मुताबिक औसतन हर पेरिस निवासी के 19 सेक्सुअल पार्टनर्स रहे हैं। इस सर्वे में दो हजार पेरिस निवासियों से सवाल किए गए जिसके मुताबिक औसतन हर पेरिस निवासी के 19 सेक्सुअल पार्टनर्स रहे हैं। सर्वे में 44 प्रतिशत पुरुषों ने माना कि उन्होंने ऐसी महिलाओं के साथ सेक्स किया है जिनका उन्हें नाम तक नहीं पता, वहीं 14 प्रतिशत महिलाओं ने भी यही बात स्वीकार की।

 सर्वे के मुताबिक 43 प्रतिशत पुरुषों ने यह भी माना कि उन्होंने एक साथ दो महिलाओं के साथ सेक्स किया है। वहीं 17 प्रतिशत महिलाओं ने भी यही बात मानी। 35 प्रतिशत पुरुषों और 10 प्रतिशत महिलाओं ने माना कि उन्होंने 3 या उससे ज्यादा पार्टनर्स के साथ सेक्स किया है और ऐसा करना उन्हें आनंद देता है। पेरिस के 23 प्रतिशत पुरुषों ने यह भी माना कि उन्होंने सेक्स क्लब में अपने पार्टनर्स स्वैप किए हैं। हालांकि इस मामले में महिलाएं भी पुरुषों से पीछे नहीं हैं। 7 प्रतिशत महिलाओं ने माना कि उन्होंने सेक्स के लिए अपने पार्टनर स्वैप किए। पार्टनर से धोखेबाजी की बात करें तो 58 प्रतिशत पेरिसवालों ने माना कि उन्होंने अपने पार्टनर्स को धोखा दिया है। इससे लगता है कि पाश्चत्य समाज में इसके लिए महिला और पुरुष बराबरी पर हैं। हरेक जीवन का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा होने के बावजूद अपने देश में सेक्स एक अवांछित चर्चा का विषय है। हमारे लिए तो इस पर लिखना भी रस्सी पर चलने के समान है। फिर भी सेक्स से जुड़े मनोविज्ञान को समझना हमारे वयस्क समाज के लिए जरूरी है। वैसे तो हमारे आसपास पुरुष तो फिर भी सेक्स के बारे में अपना नज़रिया बयां कर देते हैं, लेकिन देशी महिलाएं अगर खुलकर इस बारे में बात करना भी चाहें तो उन्हें ग़लत नज़रों से देखा जाता है। सेक्स के मामले में महिलाएं शर्म और सामाजिक बंदिशों के चलते अक्सर मौन रहती हैं। अतीत में प्राचीन भारतीय समाज शारीरिक संबंधों को लेकर काफी खुले ज़हन का रहा था, जिसकी मिसाल हमें खजुराहो के मंदिरों से लेकर वात्स्यायन के विश्व प्रसिद्ध ग्रंथ कामसूत्र तक में देखने को मिलती है। लेकिन जैसे-जैसे समाज आगे बढ़ा, हमारा देश जिस्मानी रिश्तों के प्रति संकुचित होता चला गया। मर्द-औरत के यौन संबंध से जुड़ी बातों में पर्देदारी और पहरेदारी हो गई। हालांकि, अब सेक्स संबंधों को लेकर फिर से एक बड़ा बदलाव आ रहा है। यह एक ऐसा बदलाव है जो चुनौतीपूर्ण है। ग्रीस के बड़े दार्शनिक अरस्तू इस विषय पर रोशनी डालते हुए कहते हैं कि प्यार कामुक इच्छाओं का अंत है। यानी अगर दो लोगों के बीच मोहब्बत है तो उसका मुकाम शारीरिक संबंध बनाने पर पूरा होता है। इनके मुताबिक़ सेक्स कोई मामूली काम नहीं है, बल्कि ये किसी को प्यार करने और किसी का प्यार पाने के लिए एक ज़रूरी और सम्मानजनक काम है। जबकि अमरीकी समाजशास्त्री डेविड हालपेरिन का कहना है कि सेक्स सिर्फ सेक्स के लिए होता है। उसमें ज़रूरत पूरी करने या कोई रिश्ता मज़बूत करने जैसी कोई चीज़ शामिल नहीं होती।

 अगर शारीरिक सुख और ख़ुशी के लिए सेक्स किया जाए तो वो अनैतिक है। एक पुरानी किताब के एक गीत में जोश के साथ सेक्स करने को बेहतरीन बताया गया है। साथ ही यौन संबंध को पति-पत्नी के बीच ही नहीं, बल्कि दो प्यार करने वालों के बीच की निजी चीज़ बताया गया है। हो सकता है कि जब इनसान ने सेक्स शुरू किया हो, तब वो सिर्फ शारीरिक ज़रूरत पूरी करने का माध्यम भर रहा हो। लेकिन जब परिवार बनने लगे तो हो सकता है कि इसे रिश्ता मज़बूत करने का भी माध्यम समझा जाने लगा। लेकिन आज समाज पूरी तरह बदल गया है। आज तो सेक्स पैसे देकर भी किया जा रहा है। बहुत से लोग पेशेवर जि़ंदगी में आगे बढ़ने के लिए सेक्स को हथियार बनाते हैं। ऐसे हालात में यक़ीनन किसी एक की शारीरिक ज़रूरत तो पूरी हो जाती है, लेकिन रिश्ता मज़बूत होने या जज़्बाती तौर पर एक-दूसरे से जुड़ने जैसी कोई चीज़ नहीं होती। ऐसे में फिर सेक्स का मतलब क्या है? इसका मतलब यही है कि सेक्स सिर्फ सेक्स के लिए किया जाए। इसमें बारीकियां न तलाशी जाएं। पर यह सामाजिक दृष्टि से हैरानीजनक है और इसका हां या न में जवाब देना कठिन है। कड़वा सच यह है कि बदलते समय के साथ आज न सिर्फ इनसानी रिश्ते बदल रहे हैं, बल्कि यौन संबंध को लेकर लोगों का बर्ताव और रिश्तों के प्रति सोच भी बदल रही है। 2015 में अमरीका की सैन डियागो यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर जीन एम. ट्वींग ने एक रिसर्च पेपर में कहा था कि 1970 से 2010 तक अमरीका में बहुत हद तक लोगों ने बिना शादी के सेक्सुअल रिलेशनशिप को स्वीकार करना शुरू कर दिया था। नई पीढ़ी का मानना है कि सेक्सुएलिटी समाज की बंदिशों में नहीं बंधी होनी चाहिए। रिसर्चर  के मुताबिक़ सेक्सुअल नैतिकता समय की पाबंद नहीं है। उसमें बदलाव होते रहे हैं, हो रहे हैं और आगे भी जारी रहेंगे। अब तो ये बदलाव इतनी तेज़ी से हो रहे हैं कि शायद हम ये बदलाव स्वीकार करने के लिए तैयार भी नहीं हैं।

 इसके अलावा आज पोर्न देखने का चलन जितना बढ़ चुका है, उससे साफ ज़ाहिर है कि लोगों में सेक्स की भूख कितनी ज़्यादा है। पोर्न देखने से कुछ मिले या न मिले, लेकिन सेक्स की ख्वाहिश बहुत हद तक शांत हो जाती है। जानकारों का तो यहां तक कहना है कि भविष्य में सेक्स और भी ज़्यादा डिजिटल और सिंथेटिक हो जाएगा। यही नहीं, भविष्य में सेक्स के और भी नए-नए तरीके सामने आ सकते हैं। 1960 से 2017 तक इनसान की औसत उम्र क़रीब 20 साल बढ़ चुकी है। एक अंदाज़े के मुताबिक़ 2040 तक इसमें 4 साल का और इजाफा हो जाएगा। अमरीकी जीव वैज्ञानिक और भविष्यवादी स्टीवेन ऑस्टाड के मुताबिक़ आने वाले समय में हो सकता है कि इनसान 150 बरस तक जिए। इतनी लंबी जि़ंदगी में सिर्फ एक ही सेक्स पार्टनर के साथ गुज़ारा मुश्किल होगा। लिहाज़ा वो समय-समय पर अपने यौन संबंध का साथी बदलता रहेगा और इसकी शुरुआत हो चुकी है। केरल जैसा एपिसोड और बड़े शहरों में इसकी मिसालें ख़ूब देखने को मिल सकती  हैं। तलाक़ के मामले बढ़ रहे हैं। 2013 के सर्वे के मुताबिक़ अमरीका में हर दस में से चौथे जोड़े की दूसरी या तीसरी शादी होती है। आने वाले समय में कमिटमेंट और शादीशुदा जि़ंदगी को लेकर भी कई नए आइडिया सामने आ सकते हैं। कुदरत अपने मुताबिक़ इनसान को बदलती रही है और बदलती रहेगी। केरल की घटना आटे में नमक समान ही लगती है। परदे के पीछे शायद आसपास बहुत कुछ हो रहा है जो सामने नहीं आता। ऐसे में क्या पार्टनर स्वैप के विकृत चलन को लेकर भारतीय समाज को अपने विचार बदलने की ज़रूरत है या नहीं? यह सब विकासशील समुदाय के लिए बड़ी चुनौती है।

डा. वरिंदर भाटिया

कालेज प्रिंसीपल

ईमेल : hellobhatiaji@gmail.com


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