विदेशी मुद्रा भंडार का उपयोग जरूरी

हम उम्मीद करें कि एक ऐसे समय जब भारत का विदेशी मुद्रा भंडार ऐतिहासिक स्तर पर है, तब सरकार के द्वारा वर्ष 2022 में विदेशी मुद्रा भंडार के रणनीतिक उपयोग की उपयुक्त रणनीति बनाई जाएगी। इस परिप्रेक्ष्य में सरकार के द्वारा बुनियादी ढांचा और चिकित्सा ढांचे को मजबूत करने तथा चीन व पाकिस्तान से मिल रही रक्षा चुनौतियों के बीच उपयुक्त मात्रा में आधुनिक रक्षा साजो-सामान की खरीदी के लिए भी विदेशी मुद्रा भंडार का एक उपयुक्त भाग रणनीतिक रूप से व्यय करने की डगर पर आगे बढ़ेगी…

हाल ही में संसद में प्रस्तुत रिपोर्ट के मुताबिक भारत के पास दुनिया का चौथा सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार है। अब विदेशी मुद्रा भंडार के मामले में पूरी दुनिया में भारत के आगे केवल तीन देश हैं- चीन, जापान और स्विटरलैंड। 7 जनवरी को देश का विदेशी मुद्रा भंडार 632 अरब डॉलर से अधिक की ऊंचाई पर पहुंच गया है। ऐसे विशाल विदेशी मुद्रा भंडार के आकार के मद्देनजर देश के आर्थिक और वित्तीय जगत में यह विचार मंथन किया जा रहा है कि देश में बुनियादी ढांचे और स्वास्थ्य ढांचे की मजबूती तथा चीन व पाक से मिल रही रक्षा चुनौतियों के परिप्रेक्ष्य में आधुनिकतम अस्त्र-शस्त्रों की उपयुक्त मात्रा में खरीदी के लिए विदेशी मुद्रा कोष के एक भाग को व्यय करने की डगर पर रणनीतिक रूप से आगे बढ़ा जाए। गौरतलब है कि एक ओर जब कोविड-19 के कारण जनवरी 2022 की शुरुआत में भी दुनिया की अधिकांश अर्थव्यवस्थाएं संकट के दौर से गुजर रही हैं, तब देश के विशाल आकार के विदेशी मुद्रा भंडार से जहां भारत की वैश्विक आर्थिक साख बढ़ी है, वहीं इस बड़े विदेशी मुद्रा भंडार से देश की एक वर्ष से भी अधिक की आयात जरूरतों की पूर्ति सरलता से की जा सकती है। देश का विदेशी मुद्रा भंडार देश की अच्छी आर्थिक स्थिति और आकर्षक अंतरराष्ट्रीय निवेश की स्थिति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी बन गया है। वस्तुतः विदेशी मुद्रा भंडार के मामले में देश का तीन दशक पहले का परिदृश्य पूरी तरह बदल गया है। वर्ष 1991 में देश की आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी। हमारी अर्थव्यवस्था भुगतान संकट में फंसी हुई थी। उस समय के गंभीर हालात का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि देश का विदेशी मुद्रा भंडार करीब दो-तीन हफ्तों की आयात जरूरतों के लिए भी पर्याप्त नहीं था।

 उस समय रिजर्व बैंक के द्वारा करीब 47 टन सोना विदेशी बैंकों के पास गिरवी रख कर विभिन्न आयात जरूरतों के लिए कर्ज लिया गया था। फिर देश के द्वारा वर्ष 1991 में नई आर्थिक नीति अपनाई गई जिसका उद्देश्य वैश्वीकरण और निजीकरण को बढ़ाना रहा। इस नई नीति के पश्चात धीरे-धीरे देश के भुगतान संतुलन की स्थिति सुधरने लगी। वर्ष 1994 से भारत का विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ने लगा। 2002 के बाद इसने तेज गति पकड़ी। वर्ष 2004 में विदेशी मुद्रा भंडार बढ़कर 100 अरब डॉलर के पार पहुंच गया। फिर इसमें लगातार वृद्धि होती गई और 5 जून 2020 को विदेशी मुद्रा भंडार ने 501 अरब डॉलर के स्तर को प्राप्त किया। इस वर्ष जनवरी 2021 में विदेशी मुद्रा भंडार का आकार करीब 585 अरब डॉलर को पार कर गया और वर्ष के अंत में यह करीब 635 अरब डॉलर की ऊंचाई पर दिखाई दे रहा है। इस समय देश के विदेशी मुद्रा भंडार के तेजी से बढ़ने के तीन प्रमुख आधार हैं-एक, देश से निर्यात बढ़ना। दो, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) तथा विदेशी संस्थागत निवेश (एफआईआई) बढ़ना। तीन, प्रवासियों के द्वारा बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा स्वदेश भेजना। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2021 में भारत के कुल विदेश व्यापार व निर्यात बढ़ने की चमकदार स्थिति बनी है। चालू वित्त वर्ष में अप्रैल-दिसंबर 2021 के नौ महीनों के दौरान भारत का निर्यात करीब 303 अरब डॉलर से अधिक रहा है।

 देश के विदेशी मुद्रा भंडार को एफडीआई के प्रवाह ने भी तेजी से बढ़ाया है। पिछले वित्त वर्ष 2020-21 में देश में एफडीआई रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है। वित्त वर्ष 2020-21 में एफडीआई 19 प्रतिशत बढ़कर 59.64 अरब डॉलर हो गया। इस दौरान इक्विटी, पुनर्निवेश आय और पूंजी सहित कुल एफडीआई 10 प्रतिशत बढ़कर 81.72 अरब डॉलर हो गया। स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि कोरोना महामारी के कारण लॉकडाउन में ई-कॉमर्स, डिजिटल मार्केटिंग, डिजिटल भुगतान, ऑनलाइन एजुकेशन तथा वर्क फ्राम होम की प्रवृत्ति, बढ़ते हुए इंटरनेट के उपयोगकर्ता, देशभर में डिजिटल इंडिया के तहत सरकारी सेवाओं के डिजिटल होने से अमेरिकी टेक कंपनियों सहित दुनिया की कई कंपनियां भारत में स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि तथा रिटेल सेक्टर के ई-कॉमर्स बाजार की चमकीली संभावनाओं को मुठ्ठियों में करने के लिए भारत में बड़े पैमाने पर एफडीआई के साथ आगे बढ़ी है। उल्लेखनीय है कि विदेशी संस्थागत निवेशक अपना निवेश करने के पहले उस देश के शेयर बाजार के परिदृश्य को अच्छी तरह मूल्यांकित करते हैं। ऐसे में इस समय दुनिया के निवेशक भारत के शेयर बाजार की तेजी से बढ़ती हुई ऊंचाई को पूरी तरह महत्व देते हुए दिखाई दे रहे हैं। पिछले वर्ष 23 मार्च 2020 को जो बाम्बे स्टाक एक्सचेंज (बीएसई) सेंसेक्स 25981 अंकों के साथ ढलान पर दिखाई दिया था, वह 14 जनवरी को 61223 की ऊंचाई पर बंद हुआ है। यद्यपि पिछले वित्त वर्ष में देश की अर्थव्यवस्था में बड़ी गिरावट रही है, इसके बावजूद विदेशी संस्थागत निवेशकों के द्वारा भारत को प्राथमिकता दिए जाने के कई कारण हैं। भारत में निवेश पर बेहतर रिटर्न है। भारतीय बाजार बढ़ती डिमांड वाला बाजार है। भारत के एक ही बाजार में कई तरह के बाजारों की लाभप्रद निवेश विशेषताएं हैं। ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ नीति के तहत देश में कारोबार को गति देने के लिए कई सुधार किए गए हैं। निवेश और विनिवेश के नियमों में परिवर्तन भी किए गए हैं।

 यह बात भी महत्वपूर्ण है कि वर्ष 2021 में प्रवासी भारतीयों ने 87 अरब डॉलर की धन राशि स्वदेश भेजी है। चूंकि भारत कच्चे तेल की अपनी जरूरतों का 80 से 85 प्रतिशत आयात करता है और इस पर सबसे अधिक विदेशी मुद्रा खर्च होती है, ऐसे में पिछले वर्ष 2020 कोरोना की पहली लहर और फिर चालू वित्त वर्ष में अप्रैल से मई 2021 के महीनों में कोरोना की दूसरी लहर के बीच लॉकडाउन के कारण पेट्रोलियम पदार्थों और सोने के आयात में बड़ी कमी आने से विदेशी मुद्रा भंडार से व्यय में कमी आना भी विदेशी मुद्रा भंडार की बढ़ोतरी का एक प्रमुख कारण रहा है। इसमें कोई दोमत नहीं हैं कि कोविड-19 की चुनौतियों के बीच विशाल विदेशी मुद्रा भंडार के बल पर ही रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने विदेशी मुद्रा बाजार में पूरा दखल देकर वित्तीय अस्थिरता को कम करने और विदेशी बाजारों में रुपए की प्रतिस्पर्धी क्षमता बढ़ाने में प्रभावी भूमिका निभाई है। स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि विदेशी मुद्रा बाजार में आरबीआई के दखल से अर्थतंत्र में रुपए की तरलता बढ़ी और महामारी के दौरान बाजार में ब्याज दरों को नीचे लाने में मदद मिली। अब भविष्य में भी बड़े विदेशी मुद्रा भंडार के दम पर आरबीआई मुद्रा बाजार में वित्तीय स्थिरता लाने में सक्षम होगा। हम उम्मीद करें कि एक ऐसे समय जब भारत का विदेशी मुद्रा भंडार ऐतिहासिक स्तर पर है, तब सरकार के द्वारा वर्ष 2022 में विदेशी मुद्रा भंडार के रणनीतिक उपयोग की उपयुक्त रणनीति बनाई जाएगी। इस परिप्रेक्ष्य में सरकार के द्वारा बुनियादी ढांचा और चिकित्सा ढांचे को मजबूत करने तथा चीन व पाकिस्तान से मिल रही रक्षा चुनौतियों के बीच उपयुक्त मात्रा में आधुनिक रक्षा साजो-सामान की खरीदी के लिए भी विदेशी मुद्रा भंडार का एक उपयुक्त भाग रणनीतिक रूप से व्यय करने की डगर पर आगे बढ़ेगी।

डा. जयंतीलाल भंडारी

विख्यात अर्थशास्त्री


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