रेजिमेंट की उम्मीद में वीरभूमि का शौर्य पराक्रम

अतीत से गौरवशाली सैन्य पृष्ठभूमि का गढ़ रहा राज्य दशकों से अपने पराक्रमी योद्धाओं के उत्तम रण कौशल की लंबी फेहरिस्त सहेज कर ‘हिमाचल रेजिमेंट’ की उम्मीद में बैठा है। लिहाजा केंद्र सरकार को राष्ट्र के प्रति समर्पण के जज्बात रखने वाले राज्य को एक अदद रेजिमेंट से विभूषित करना चाहिए…

15 जनवरी 2022 को भारतीय सेना जनरल केएम करियप्पा के सम्मान में 74वां सेना दिवस मनाएगी। 15 जनवरी 1949 को जनरल केएम करियप्पा ने आज़ाद भारत के प्रथम भारतीय सेनाध्यक्ष के तौर पर ब्रिटिश सैन्य अधिकारी जनरल रॉय फ्रांसिस बचुर से भारतीय सेना की कमान संभाली थी। ज. करियप्पा को सेना ने सन् 1983 में ‘फील्ड मार्शल’ रैंक से अलंकृत किया था तथा अमेरिका ने उन्हें ‘लीजन ऑफ मेरिट’ सम्मान से नवाजा था। देशरक्षा में यु़द्धक्षेत्र व आंतरिक सुरक्षा तथा ओलंपिक खेल महाकुंभ तक भारतीय सेना के अद्भुत शौर्य की परंपरा का इतिहास गौरवपूर्ण रहा है। लेकिन ‘विश्वयुद्धों’, आज़ाद हिंद फौज व आजादी के बाद भारतीय सेना द्वारा लड़े गए पांच बडे़ युद्धों तथा अन्य तमाम सैन्य अभियानों से लेकर गलवान घाटी तक वीरभूमि हिमाचल के सपूतों ने भारतीय सेना का हिस्सा बनकर अपनी संग्रामवीरता के कई गौरवशाली कीर्तिमान स्थापित किए हैं। देश की आजादी के दो महीने बाद 22 अक्तूबर 1947 को पाकिस्तान ने कश्मीर पर भयंकर हमला बोल दिया था। भारत-पाक के उस पहले युद्ध में राज्य के 43 रणबांकुरों ने शहादत देकर पाक सेना को बेदखल करके कश्मीर को आजाद कराया था। कश्मीर के मोर्चे पर उस युद्ध में पाक सेना को धूल चटाकर प्रदेश के सैनिकों ने आज़ाद भारत का पहला ‘परमवीर चक्र’ तथा पांच ‘महावीर चक्र’ अपने नाम करके सर्वोच्च कोटी की वीरता का परिचय दिया था। 1965 के भारत-पाक युद्ध में राज्य के 199 सैनिकों ने मातृभूमि की रक्षा में अपना सर्वस्व न्यौछावर करके पाक सेना की पेशकदमी को नेस्तानाबूद किया था। 1967 में सिक्किम के ‘नाथुला’ में हुए खूनी सैन्य संघर्ष में चीन के सैकड़ों सैनिकों को जहन्नुम का रास्ता दिखाकर डै्रगन की 1962 की हनक को ध्वस्त करके बिलासपुर के दो सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए थे। 1971 के भारत-पाक युद्ध में पाकिस्तान का भूगोल तब्दील करके प्रदेश के 195 रणबांकुरों ने शहादत को गले लगाकर बांग्लादेश की आज़ादी का सफीना जारी कर दिया था। अप्रैल 1984 में 21 हजार फीट की ऊंचाई पर मौजूद सियाचिन ग्लेशियर को अपने नियंत्रण में लेने वाले साहसिक सैन्य मिशन ‘ऑपरेशन मेघदूत’ में राज्य के 36 सैनिकों ने अपना जीवन कुर्बान करके अहम किरदार अदा किया था। सन् 1987 से 1990 तक श्रीलंका में ‘ऑपरेशन पवन’ के तहत ‘इंडियन पीस कीपिंग फोर्स’ का हिस्सा बनकर हिमाचल के 25 सैनिकों ने शहादत देकर श्रीलंका की शांति स्थापना में अहम भूमिका निभाई थी। सन् 1999 में 17 हजार फीट की बुलंदी पर कारगिल के पहाड़ों पर लड़ी गई शदीद जंग में पाक सेना का सफाया करके प्रदेश के 52 जांबाजों ने शहादत को गले लगाकर पाकिस्तान की मंसूबाबंदी को दफन करके पाक सिपहसालारों को उनकी औकात दिखा दी थी। जम्मू-कश्मीर में सैन्य बलों द्वारा 1990 के दशक से दहशतगर्दी के खिलाफ ‘आपरेशन रक्षक’ में कई आतंकियों को हलाक करके अपना सर्वोच्च बलिदान देने वाले कै. संदीप सांखला (18 डोगरा) तथा मेजर सुधीर वालिया (9 पैरा) दोनों ‘अशोक चक्र’ (मरणोपरांत) विजेता शूरवीर जांबाजों का संबंध भी हिमाचल से ही था।

 लेकिन विडंबना यह है कि रणभूमि में अपनी जांबाजी के कई रक्तरंजित मजमून लिखने वाले वीरभूमि हिमाचल का सैन्य पराक्रम कई वर्षों से भारतीय सेना में अपने नाम की अलग पहचान को मोहताज है। प्रदेश के पूर्व सैनिक लंबे अर्से से कई मंचों से ‘हिमाचल रेजिमेंट’ की मांग उठाते आ रहे हैं। हिमाचल प्रदेश पड़ोसी मुल्क चीन के साथ 240 किसोमीटर लंबी ‘वास्तविक नियंत्रण रेखा’ साझा करता है। चीन के महाज पर चल रहे सैन्य टकराव के हालात से महसूस हो रहा है कि चीन के सरहदी क्षेत्रों में पर्वतीय मोर्चों पर सामरिक चुनौतियों से वाकिफ तथा पहाड़ों की कठिन भौगोलिक परिस्थितियों से जूझने में पहाड़ के अनुभवी युवाओं की सेना में भागीदारी बढ़नी चाहिए तथा सैन्यभर्ती में प्रतिवर्ष एक से ज्यादा अवसर मिलने चाहिए, मगर हमारी सरकारों ने इसके विपरीत राज्य का सैन्य भर्त्ती कोटा ही कम कर दिया है। वतनपरस्ती के बुलंद इरादों से लबरेज होकर सैन्य वर्दी पहन कर देश रक्षा का सपना संजोए राज्य के लाखों युवाओं के भविष्य पर ‘रिक्रूटेबल मेल पॉलिसी’ यानी सैन्य भर्ती में ‘जनसंख्या अनुपात प्रक्रिया’ भारी पड़ रही है जबकि सैन्य भर्ती का मापदंड आबादी नहीं, बल्कि शूरवीरता व बलिदान से भरे स्वर्णिम सैन्य इतिहास के आंकड़ों से तय होना चाहिए। वीरता पुरस्कारों के आकड़ों में हिमाचल का सैन्य शौर्य देश के बडे़ राज्यों की अपेक्षा शिखर पर मौजूद है। देशरक्षा में बलिदान देने में भी राज्य की सैन्य हिस्सेदारी सबसे अधिक है। बरतानिया हुकूमत के दौर में समरभूमि में बहादुरी का सर्वोच्च तगमा ‘विक्टोरिया क्रॉस’ 02, आजादी के बाद सर्वोच्च सैन्य अलंकरण ‘परमवीर चक्र’ 04 के साथ एक हजार से अधिक वीरता पदक हिमाचल के सीने पर सजे हैं।

 असीम वीरता के आंकडे़ तस्दीक करते हैं कि पहाड़ की सैन्यशक्ति मातृभूमि की रक्षा में अदम्य साहस व दुश्मन को झुकाने का जज्बा रखती है। हिमाचल की वर्तमान विधानसभा में चार पूर्व सैनिक विधायक के रूप में मौजूद हैं। राज्य के लोकसभा सांसद सुरेश कश्यप खुद पूर्व सैनिक हैं। सांसद अनुराग ठाकुर सैन्य अधिकारी के तौर पर ‘प्रादेशिक सेना’ ‘124 टीए सिख’ से संबधित हैं। लाजिमी है कि राज्य के नाम पर रेजिमेंट व सैन्य भर्ती कोटे में बढ़ौतरी तथा सैनिकों के न्याय संबंधी समस्याओं के समाधान के लिए राज्य में ‘ट्रिब्यूनल बैंच’ की स्थापना जैसे विषयों को रक्षा मंत्रालय के समक्ष बुलंद लहजे में उठाया जाए ताकि प्रदेशहित के मुद्दों की शिद्दत भरी आवाज सियासी गलियारों तक पहुंच सके। अतीत से गौरवशाली सैन्य पृष्ठभूमि का गढ़ रहा राज्य दशकों से अपने पराक्रमी योद्धाओं के उत्तम रण कौशल की लंबी फेहरिस्त सहेज कर ‘हिमाचल रेजिमेंट’ की उम्मीद में बैठा है। लिहाजा केंद्र सरकार को राष्ट्र के प्रति समर्पण के जज्बात रखने वाले शौर्य का धरातल वीरभूमि के जांबाजों की शूरवीरता को तस्लीम करके राज्य के स्वाभिमान से जुडे़ इस विषय पर विचार करके हिमाचल को अपने शौर्य का सम्मान देना होगा। सेना दिवस के अवसर पर राष्ट्र हिंद की सेना को नमन करता है।

प्रताप सिंह पटियाल

लेखक बिलासपुर से हैं


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