पंजाब में यह माजरा क्या है

मैं यह मानने को तैयार नहीं हूं कि पुलिस का कोई बड़े से बड़ा अधिकारी भी अपने स्तर पर इस प्रकार की योजना बना सकता है। हां, यदि कोई पुलिस अधिकारी व्यक्तिगत तौर पर षड्यंत्रकारियों के साथ मिल गया हो तो अलग बात है। अलबत्ता तब तो स्थिति और भी भयानक है। पंजाब सरकार को अपनी पुलिस की जांच करवानी चाहिए। इसलिए आसन्न चुनावों को देखते हुए कांग्रेस सरकार की भाजपा से टक्कर लेने की यह नई रणनीति ही हो सकती है। चंद वोटों की ख़ातिर कांग्रेस सीमांत प्रांत में प्रधानमंत्री की सुरक्षा को ही दांव पर लगा देगी, ऐसा किसी ने शायद सोचा भी नहीं होगा। लेकिन इसमें आश्चर्यचकित होने वाली कोई बात नहीं। इससे पहले भी कांग्रेस अपने राजनीतिक हितों के लिए पंजाब को आतंकवाद की भट्ठी में झोंक चुकी है। क्या पंजाब में कांग्रेस फिर उसी राह पर चल पड़ी है? कल की घटना के संकेत तो यही कहते हैं। क्या कांग्रेस शासित राज्यों में विरोधियों का मुकाबला इसी प्रकार किया जाएगा? सूचनाएं मिल रही हैं कि रैली में जा रहे लोगों को जगह-जगह प्रदर्शनकारियों ने रोका, मारा-पीटा और पुलिस या तो मूकदर्शक बनी रही या फिर गुंडागर्दी करने वालों के साथ ही मिल गई…

फिरोजपुर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पांच जनवरी को भारतीय जनता पार्टी की एक रैली को संबोधित करना था। लेकिन जब वे वहां जा रहे थे तो उससे कुछ किलोमीटर पहले एक फ्लाईओवर पर कुछ लोगों ने धरना लगा दिया और साथ ही वहां लंगर लगा दिया। वहां पुलिस भी उपस्थित थी और यह इलाका पाकिस्तान से कुछ किलोमीटर की दूरी पर ही स्थित है। प्रधानमंत्री का काफिला वहां कुछ देर के लिए फंसा रहा। सूत्रों के अनुसार सुरक्षा में लगे अधिकारियों ने मुख्यमंत्री कार्यालय से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन वहां से कोई उत्तर नहीं मिला। उधर पंजाब पुलिस के जवान फ्लाईओवर पर प्रदर्शनकारियों के साथ चाय पीने में व्यस्त दिखाई दिए। इस स्थिति में और ज़्यादा भीड़ बढ़ने की संभावना होने लगी तो प्रधानमंत्री ने वापस लौट जाने का निर्णय किया और जाते-जाते पंजाब के मुख्यमंत्री का धन्यवाद भी किया कि वे सुरक्षित बठिंडा एयरपोर्ट पर पहुंच गए हैं। लेकिन पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने बाद में पत्रकारों को बताया कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा लिए वे और उनका पूरा मंत्रिमंडल अपना खून बहाने के लिए तैयार था। शायद पाकिस्तान की सरहद के बिल्कुल समीप उनकी पुलिस फ्लाईओवर पर इसी की तैयारी में व्यस्त दिखाई दे रही थी। बताया गया है कि प्रधानमंत्री के दौरे के दौरान सदा ही वैकल्पिक मार्ग की व्यवस्था की जाती है, चाहे उसके प्रयोग की जरूरत पड़े या न पड़े।

 ज़ाहिर है पंजाब सरकार ने भी बठिंडा से लेकर फिरोजपुर तक पहुंचने के लिए वैकल्पिक मार्ग पर तैयारी की ही होगी। यह तो मौसम ख़राब था, यदि न भी हों तब भी प्रोटोकॉल के हिसाब से वैकल्पिक मार्ग तैयार रखना होता है। इसलिए जब बठिंडा से फिरोजपुर, वायुमार्ग से न जाकर सड़क मार्ग से जाने का निर्णय हुआ और पंजाब पुलिस को इसकी सूचना दी गई तो पुलिस ने प्रधानमंत्री के काफिले को सड़क मार्ग क्लीयर होने और सुरक्षित होने की सूचना दे दी। उसके बाद ही प्रधानमंत्री का काफिला बठिंडा से चला। तब प्रश्न उठता है कि प्रदर्शनकारियों को प्रधानमंत्री के इस रूट की जानकारी किसने लीक की? उनको फ्लाईओवर तक ही नहीं बल्कि उसके ऊपर तक किसने जाने दिया? लंगर की सामग्री किसने वहां तक ले जाने दी? सबसे  बड़ी बात यह कि रास्ता सड़क पर नहीं बल्कि फ्लाईओवर पर रोका गया ताकि यदि वहां एक बार काफिला फंस जाए तो वापिस भी न जाने पाए। यह एक प्रकार से बहुत ही सोच समझ कर, प्रधानमंत्री के काफिले को घेरने की साजि़श लगती है। परिस्थितिजन्य साक्ष्यों को देखकर इतना तो कहा ही जा सकता है कि बिना पुलिस की मिलीभगत के यह सब कुछ संभव ही नहीं हो सकता था। लेकिन क्या यह व्यक्तिगत तौर पर कुछ पुलिसवालों की साजि़श हो सकती है या फिर पंजाब सरकार की रणनीति का ही यह हिस्सा था? इस पर तो तभी कुछ कहा जा सकता है जब इस घटना की गहराई से जांच हो। पंजाब के मुख्यमंत्री चन्नी अपनी प्रेस कान्फ्रेंस में जिस प्रकार व्यवहार कर रहे थे, उससे दाल में कुछ न कुछ तो काला दिखाई पड़ रहा है।

चन्नी का कहना है कि नरेंद्र मोदी इसलिए वापिस चले गए क्योंकि रैली में केवल सात सौ लोग आए थे। चन्नी बहुत ही होशियारी से दो अलग-अलग घटनाओं का आपस में घालमेल कर रहे थे। भाजपा की रैली सफल थी या असफल थी, इसका प्रधानमंत्री की सुरक्षा से कुछ लेना-देना नहीं है। यह भाजपा का अपना राजनीतिक मामला है। चन्नी के इस बेहूदा तर्क के आधार पर तो पंजाब सरकार का स्टैंड यह बनता है कि भाजपा की रैली में ही सात सौ लोग पहुंचे, इसलिए यदि सौ-दो सौ लोगों ने फ्लाईओवर पर प्रधानमंत्री का काफिला रोक लिया तो क्या मुसीबत आ गई? पंजाब सरकार का तर्क तो यह बना कि यदि रैली में लाखों की भीड़ होती तब पंजाब की पुलिस फ्लाईओवर पर जाम न लगने देती। अब यदि रैली में ही सात सौ लोग थे, तो प्रधानमंत्री ने वहां जाकर भी क्या करना था। इसलिए फ्लाईओवर पर ही लोगों ने उनको रोक लिया तो क्या मुसीबत आ गई। चन्नी का यह तर्क बहुत ही घटिया है। रैली में लोग चाहे पांच लाख आएं या पांच, इसका प्रधानमंत्री की सुरक्षा से कुछ लेना-देना नहीं है। पंजाब पुलिस और सरकार का काम रैली में लोगों की संख्या गिनने का नहीं है, बल्कि प्रधानमंत्री को सुरक्षा व्यवस्था मुहैया करवाना है। इसका अर्थ तो यह हुआ कि पंजाब सरकार प्रधानमंत्री को रैली की संख्या के आधार पर सुरक्षा मुहैया करवाएगी। चन्नी के इसी तर्क से कहीं बड़े स्तर पर षड्यंत्र की बू आती है। लेकिन प्रश्न है कि कांग्रेस सरकार ने ऐसा क्यों किया? मैं यह मानने को तैयार नहीं हूं कि पुलिस का कोई बड़े से बड़ा अधिकारी भी अपने स्तर पर इस प्रकार की योजना बना सकता है।

 हां, यदि कोई पुलिस अधिकारी व्यक्तिगत तौर पर षड्यंत्रकारियों के साथ मिल गया हो तो अलग बात है। अलबत्ता तब तो स्थिति और भी भयानक है। पंजाब सरकार को अपनी पुलिस की जांच करवानी चाहिए। इसलिए आसन्न चुनावों को देखते हुए कांग्रेस सरकार की भाजपा से टक्कर लेने की यह नई रणनीति ही हो सकती है। चंद वोटों की ख़ातिर कांग्रेस सीमांत प्रांत में प्रधानमंत्री की सुरक्षा को ही दांव पर लगा देगी, ऐसा किसी ने शायद सोचा भी नहीं होगा। लेकिन इसमें आश्चर्यचकित होने वाली कोई बात नहीं। इससे पहले भी कांग्रेस अपने राजनीतिक हितों के लिए पंजाब को आतंकवाद की भट्ठी में झोंक चुकी है। क्या पंजाब में कांग्रेस फिर उसी राह पर चल पड़ी है? कल की घटना के संकेत तो यही कहते हैं। क्या कांग्रेस शासित राज्यों में विरोधियों का मुकाबला इसी प्रकार किया जाएगा? सूचनाएं मिल रही हैं कि रैली में जा रहे लोगों को जगह-जगह प्रदर्शनकारियों ने रोका, मारा-पीटा और पुलिस या तो मूकदर्शक बनी रही या फिर गुंडागर्दी करने वालों के साथ ही मिल गई। सोनिया कांग्रेस पंजाब को लेकर एक बार फिर ख़तरनाक रास्ते पर चल पड़ी दिखाई देती है। इससे अंततः देश को ही नुकसान होगा। उधर हमारा पड़ोसी देश पाकिस्तान तो चाहता ही है कि पंजाब में कोई न कोई गड़बड़ हो जाए। वह लंबे समय से इसके लिए प्रयासों में जुटा हुआ है।

कुलदीप चंद अग्निहोत्री

वरिष्ठ स्तंभकार

ईमेलः kuldeepagnihotri@gmail.com


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