नए युग में चाहिए नई दृष्टि


किसानों को सीधे धन मुहैया करवाना एक अस्थाई उपाय है। विभिन्न जिन्सों के दाम तय करने की नीति और प्रक्रिया में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है। ये विसंगतियां दूर होंगी तो व्यवसाय के साथ-साथ कृषि भी फलेगी-फूलेगी। तभी देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी और हमारे युवाओं के लिए कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्र में रोजगार के नए विकल्प बन पाएंगे। उम्मीद है कि हमारे नीति-निर्धारक इस ओर जरूर ध्यान देंगे। ऐसा करने से ही कृषि फलेगी-फूलेगी, तो आय का साधन भी बनेगी….
कोविड ने बहुत कुछ बदल दिया है। जीने का ढंग, सोचने का ढंग, सब कुछ बदला है। कोविड के पहले दौर में जहां नौकरियां गई थीं या व्यवसाय बंद हुए थे तो लाखों लोग सड़क पर आ गए थे क्योंकि उनके पास कोई फौरी विकल्प नहीं था। वे लोग एक ढर्रे से जीने के आदी थे और उस ढर्रे से उस कंफर्ट ज़ोन से बाहर आने की कोई जुगत नहीं थी। वह कंफर्ट ज़ोन जब मजबूरी में छूटा तो बड़ी तकलीफ हुई। मानवीय कल्पना शक्ति की कोई सीमा नहीं है। जब कुछ नहीं बचा, सब कुछ लुटता हुआ प्रतीत हुआ तो ज्यादातर लोगों ने नई राहें खोज लीं, नए रोज़गार जुटा लिए, नौकरी का लालच छोड़ खुद उद्यमी बन गए, उद्यमियों ने नए बिज़नेस मॉडल से काम करना शुरू कर दिया, कई प्रयोगों, संघर्षों और असफलताओं के बाद बहुत से लोग सफल हो गए और सफल ही नहीं हुए बल्कि बड़ी सफलताएं भी हासिल कीं और सफलता के शिखर तक भी पहुंचे। तकनीकी युग में जी रहे हम लोगों तक ऐसी खबरें भी फटाफट पहुंचती हैं और इससे प्रेरित होकर बहुत से लोगों ने अपनी नौकरियां खुद छोड़कर नए प्रयोग किये। इसमें एक फैक्टर यह भी रहा कि कोविड के कारण जिन कर्मचारियों को वर्क फ्राम होम यानी घर से काम करने का चस्का लग गया था उनमें से बहुत से लोगों को दोबारा आफिस के नियंत्रित वातावरण में काम करना नहीं सुहाया और उन्होंने नौकरियां छोड़कर अपने व्यवसाय शुरू करने आरंभ कर दिए। कोविड के तीसरे दौर में यह आम हुआ और त्यागपत्रों की बाढ़ सी आ गई।
बहुत से उद्यमियों के लिए ये त्यागपत्र भी समस्या बने हैं और वे कामकाज के हाइब्रिड मॉडल अपनाने के लिए विवश हुए हैं। आज हर व्यक्ति यह समझ रहा है कि जो बीत गयाए वह बीत गया, वह वापिस नहीं आने वाला और हमें जीवन की नई सच्चाइयों के अनुसार खुद को ढालना जरूरी है। वरना हम और हमारी कंपनियां, सब अप्रासंगिक हो जाएंगे। भारत सरकार की ओर से स्टार्टअप कंपनियों को कई रियायतें मिलती हैंए परिणामस्वरूप कई नवयुवक उद्यमी बन रहे हैं। ये नवयुवक खुद अपने लिए ही रोज़गार का सृजन नहीं कर रहेए बल्कि उनकी कंपनियों में दर्जनों अन्य लोगों को भी रोज़गार मिलेगा। सरकार ने एक नीति बनाईए उद्यमी सोच वाले नवयुवकों ने इस अवसर का लाभ लेना चाहाए इनवेस्टरों ने उसमें रुचि दिखाई और उस नीति के कारण रोज़गार के कई नए दरवाज़े खुले। सरकार की असल भूमिका भी यही है कि वह ऐसी नीतियों का निर्माण करे जिससे व्यापार बढ़ना, समृद्धि बढ़ना, रोज़गार के अवसर बढ़ना आदि संभव हो सके। सन 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव के मंत्रिमंडल में डा. मनमोहन सिंह वित्त मंत्री बने और देश में उदारवाद आया। उदारवाद के कारण देश में धड़ाधड़ बीपीओ और कॉल सेंटर खुलने शुरू हो गए क्योंकि भारतीय युवा अंग्रेजी भी जानते थे और अपने विदेशी ग्राहकों से उनकी भाषा में उनके.से उच्चारण के साथ बातचीत कर सकते थे। उदारवाद के कारण नए कारखाने लगे, पुराने लगे कारखानों की क्षमता बढ़ी, उत्पादन बढ़ा, सेवा क्षेत्र में नए आयाम देखने को मिले और इन सबके कारण रोज़गार के अवसर एकाएक बढ़े। यह भी सरकार की एक नीति मात्र थी जिसने रोजगार के अवसर पैदा किए।
निजीकरण जैसे-जैसे बढ़ा. उसके कारण कई सरकारी उपक्रम या तो घाटे में चले गये या फिर बंद हो गए क्योंकि निजी क्षेत्र चुस्त-दुरुस्त था। वहां निर्णय फटाफट होते थे जबकि सरकारी दफ्तरों में छोटी-छोटी बातों के लिए फाइल एक मेज से दूसरी मेज तक घूमती रह जाती थी। सरकारी सीमाओं में बंधे उपक्रम बंद होने लगे तो सरकारी कार्यालयों में रोजगार खत्म होने लगे। शेष बची जगहों को भी चुस्त-दुरुस्त बनाने के लिए स्थाई नौकरी की जगह ठेके पर काम करवाने की प्रथा ने जोर पकड़ा. इससे सरकारी दफ्तरों में रोजगार पर लगाम लगी या रोजगार की शर्तें बदल गईं। हमारे देश में अभी तक आम लोग यह नहीं समझ पाये हैं कि सरकार का काम रोजगार देना नहीं है बल्कि उसका काम यह है कि वह ऐसी नीतियां बनाए जिससे व्यापार और उद्यम फल-फुल्ल सकें और रोजगार के नए-नये अवसर पैदा होते रहें। इस नासमझी का ही परिणाम है कि लोग आरक्षण चाहते हैं ताकि उन्हें रोजगार मिल सके, हालांकि शिक्षण संस्थानों में कोटा और कम फीस या नाम मात्र की फीस जैसे आरक्षण के और भी कई लाभ हैं पर फिर भी मुख्य लाभ रोजगार ही माना जाता है? यहीं कारण है कि कई संपन्न वर्ग भी पिछड़ा होने का ठप्पा लगवाने के लिए आंदोलन करते हैं।
जब उदारवाद आया तो सरकार ने कारखाने. कॉल सेंटर, बीपीओए केपीओ आदि नहीं खोले। यह काम निजी क्षेत्र ने किया लेकिन उनका खुलना इसलिए संभव हो सका क्योंकि सरकार ने नियमों.कानूनों में परिवर्तन करके व्यापार को आगे बढ़ने का अवसर दिया जिससे रोजगार बढ़े। अब भी स्टार्टअप कंपनियों के कारण रोजगार के अवसर बढ़े हैं। अमेज़नए, फ्लिपकार्ट, उबर. ओला, फंपांडा, ज़मैटो, बिग बास्केट जैसी तकनीक पर चलने वाली कंपनियों के कारण हज़ारों.लाखों लोगों को रोजगार मिला है। ये रोजगार सरकारी दफ्तरों में नहीं हैए उद्यम की सोच और उदारवाद की नीतियों के कारण ऐसा होना संभव हो पाया है। लब्बोलुबाब यह कि आरक्षण लेकर भी वह वर्ग घाटे में रहेगा जो सरकारी नौकरी की बाट जोहता रह जाएगा। सरकार के पास रोजगार नहीं हैं। आरक्षण एक ऐसा झुनझुना है जिससे बच्चा बहल तो सकता है पर उससे उसकी भूख नहीं मिट सकती। निजी क्षेत्र द्वारा रोजगार बढ़ाने की बड़ी भूमिका के बावजूद सरकारी कानून और टैक्स के कई नियम व्यवसाय की प्रगति में रोड़ा हैं।
यह एक स्थापित तथ्य ताकि कि उद्यम एक जोखिम भरा काम है और नया व्यवसाय करने वाला व्यक्ति ढेरों चुनौतियों का सामना करता है। स्थिति यह है कि नंे़़़़़़़़े खुलने वाले हर 10 व्यवसायों में से कोई 9 पहले पांच सालों में बंद हो जाते हैं। तुर्रा यह कि सरकारी कानून ऐसे हैं कि कोई भी सरकारी अधिकारी कानूनों का सहारा लेकर किसी भी व्यवसायी को मनमाने ढंग से परेशान कर सकता है, यहां तक कि उद्यमियों की सालों की मेहनत पर पानी फेर सकता है और उनके व्यवसाय बंद करवा सकता है। रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए टैक्स का तर्कसंगत होना भी आवश्यक है। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों की मार से दबा व्यवसायी कड़ी मेहनत के बावजूद अक्सर हाथ मलता रह जाता है। यह एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि सरकारी कानून और टैक्स नियम व्यवसाय.हितैषी नहीं हैं। व्यवसाय के अतिरिक्त कृषि क्षेत्र में भी सरकारी परिपाटियां ऐसी हैं कि कृषि एक अलाभदायक व्यवसाय बन गया है और छोटे किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं जबकि कारपोरेट क्षेत्र कृषि आय के नाम पर टैक्स में भारी छूट का लाभ उठा रहा है। किसानों को सीधे धन मुहैया करवाना एक अस्थाई उपाय है। विभिन्न जिन्सों के दाम तय करने की नीति और प्रक्रिया में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है। ये विसंगतियां दूर होंगी तो व्यवसाय के साथ-साथ कृषि भी फलेगी-फूलेगी। तभी देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी और हमारे युवाओं के लिए कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्र में रोजगार के नए विकल्प बन पायेंगे। उम्मीद की जानी चाहिए कि हमारे नीति.निर्धारक राजनीतिज्ञ और बाबूशाही इस ओर भी ध्यान देंगे।
पी. के. खुराना
राजनीतिक रणनीतिकार
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