सांस्कृतिक नीति से होगा कलाओं का संरक्षण

इस पहाड़ी सुंदर प्रदेश की अपनी एक प्रभावशाली सांस्कृतिक नीति होनी चाहिए। प्रदेश में समग्र कलाओं के विकास, लोक कलाओं के संरक्षण, कलाकारों के आर्थिक संवर्धन के लिए एक संयुक्त, समग्र, संतुलित तथा सशक्त सांस्कृतिक नीति की महती आवश्यकता है…

साधारणतः जनमानस में संस्कृति को सहेजने, संरक्षण तथा संवर्धन की चर्चा होती रहती है। संस्कृति की अनेकों परिभाषाएं उपलब्ध होने पर भी बहुत से लोग संस्कृति के अर्थ, मर्म तथा समग्र रूप को नहीं समझ पाते। संस्कृति एक विशाल शब्द है जिसे परिभाषित करना इतना आसान नहीं है। संपूर्ण जीवन की कई मानवीय पीढि़यों की जीवन शैलियों की प्राचीनतम परतों को अपने में समेटे हुए यह शब्द जीवन परिवेश, कला संस्कृति, देव संस्कृति, कृषि संस्कृति, जीव-जंतु, पशुपालन, लोक जीवन, लोक कलाओं, जीवन-शैली, परिधानों, खानपान, संस्कारों, त्योहारों, रीति-रिवाजों, विचारों, विश्वासों, अंधविश्वासों, रूढि़यों, मान्यताओं, भाषाओं, बोलियों, मानवीय मूल्यों का एक समग्र रूप है जो कि मनुष्य के आचार-व्यवहार तथा संस्कार में प्रतिबिंबित होती है। संस्कृति हमारे पुरखों की परंपराओं से उकेरी जा रही जीवन की धुंधली सी तस्वीर है। अपने अतीत को जानने-पहचानने तथा समझने के लिए इस तस्वीर को समय-समय पर साफ करने की आवश्यकता होती है। अपने सांस्कृतिक परिवेश तथा गौरवमयी इतिहास को जानने-समझने, सहेजने, संरक्षण तथा संवर्धन के लिए एक सशक्त एवं प्रभावशाली नीति की आवश्यकता रहती है।

संस्कृति को पोषित करने वाला या हांकने वाला यह वर्ग कला, संगीत, साहित्यकार, कलाकार एवं सांस्कृतिक कर्मी ही होता है। कोई भी समाज बिना कलाओं से स्वस्थ, समृद्ध एवं सम्पूर्ण नहीं हो सकता। इसलिए समृद्ध जीवन का निर्माण करने तथा कला एवं कलाकारों के पोषण के लिए एक सशक्त सांस्कृतिक नीति की आवश्यकता रहती है। हिमाचल प्रदेश में एक बहुत बड़ा वर्ग परंपरागत रूप से कला और संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए समर्पित रहा है। लोक कलाओं के प्रचार-प्रसार के साथ यह वर्ग इन कलाओं के माध्यम से सदियों से अपना जीवनयापन करता रहा है। समग्र कला, शास्त्रीय संगीत, गायन, वादन, नृत्य की विभिन्न शैलियों, लोक कलाओं, लोक गायन, लोक वादन, लोकनृत्यों, काष्ठकला, मूर्तिकला, चित्रकला, वास्तुकला के अनेकों प्रकारों, साहित्य लेखन, गद्य, पद्य, नाट्य, कथा, उपन्यास, कहानी, कविता, शायरी, लोक साहित्य, बोलियों, भाषाओं के न जाने कितने विभिन्न विषयों के कलाकार सरकार की ओर से बहु-प्रतीक्षित प्रदेश की अपनी सांस्कृतिक नीति की प्रतीक्षा कर रहे हैं। प्रदेश में कलाओं के प्रचार-प्रसार, संरक्षण, संवर्धन तथा कलाकारों के प्रोत्साहन के लिए सांस्कृतिक नीति का होना अति आवश्यक है। इस नीति का होना सांस्कृतिक उद्देश्यों के निर्धारण तथा मार्गदर्शन के दृष्टिकोण से एक मील का पत्थर साबित होगा।

 हिमाचल के लोगों में कला तथा संस्कृति में रुचि पैदा करने, अपनी संस्कृति पर गौरवान्वित होने, व्यक्ति में सृजनात्मकता, रचनात्मकता तथा सौंदर्यात्मकता पैदा करने, भारतीय शास्त्रीय संगीत गायन, वादन एवं नृत्य की विभिन्न शैलियों के प्रचार-प्रसार के लिए प्रदेश की सांस्कृतिक नीति होना समय की मांग है। नाट्य के विभिन्न प्रकारों, अभिनय, निर्माण एवं मंचन हेतु परंपरागत लोक कलाओं के संरक्षण, संवर्धन एवं प्रचार-प्रसार, परंपरागत लोक गीतों, लोक वाद्यों, लोक नृत्यों के युवा कलाकारों में संप्रेषण एवं स्थानांतरण, काष्ठ कला, मूर्ति कला, वास्तुकला, चित्रकला, नक्काशी, पेंटिंग, सिलाई-कढ़ाई, बुनाई, फैशन डिजाइनिंग, सिनेमा, ग्राफिक्स, कनटैम्परेरी, माडर्न आर्ट्स के विस्तारीकरण के लिए प्रदेश की अपनी सांस्कृतिक नीति होना बहुत आवश्यक है। कलाओं के आधुनिकीकरण, तकनीक एवं संचार माध्यमों से कलाओं के निर्माण, प्रदर्शन एवं प्रचार, प्रदेश में सिनेमा उद्योग तथा ऑडियो रिकॉर्डिंग स्टूडियो स्थापित करने के यह सांस्कृतिक नीति दिशा दे सकती है। इस प्रस्तावित नीति से परंपरागत कलाओं के संरक्षण तथा इन्हें भविष्य की पीढि़यों को स्थानांतरित करने की दिशा में मदद मिलेगी। कला की विभिन्न शैलियों में नियमित गोष्ठियों, पुनश्चर्या कार्यक्रमों तथा कार्यशालाओं, शास्त्रीय संगीत, गायन, वादन, नृत्य, गीत, ग़ज़ल, भजन, लोक गायन, लोक वादन, लोक नृत्यों, नाटकों, कवि गोष्ठियों, चर्चा-परिचर्चा, मुशायरों के नियमित आयोजनों के लिए यह नीति मील का पत्थर साबित हो सकती है। इस नीति के माध्यम से लोक भाषाओं तथा बोलियों के संवर्धन लोक साहित्य लेखन के लिए एवं संकलन को प्रोत्साहन दिया जा सकता है। नवीन सांस्कृतिक शोध एवं लेखन के लिए परियोजनाओं को आर्थिक प्रोत्साहन, स्थानीय, राज्यीय, राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सांस्कृतिक आयोजनों में कलाकारों के स्तर अनुसार भाग लेने की प्रक्रिया निर्धारित करने व साहित्यक सृजन हेतु आर्थिक अनुदान के लिए यह नीति बहुत आवश्यक है।

 इस नीति के माध्यम से युवाओं के लिए प्रारम्भिक से उच्चतर शिक्षा में शिक्षण व रोजगार के अवसर सृजित करने तथा प्रदेश के शिक्षण संस्थानों में हिमाचल संस्कृति का विषय पढ़ाने, नवोदित कलाकारों को छात्रवृत्ति एवं आर्थिक अनुदान देने के लिए सफल मिलेगा। परम्परागत कलाओं में दूरदराज़ एवं गांवों में छिपी लोक कलाओं तथा कलाकारों को आर्थिक सहायता एवं पहचान दिलाने तथा गांवों-कस्बों तथा शहरों में सांस्कृतिक केन्द्रों तथा इन्डोर सभागारों के निर्माण हेतु मदद मिलेगी। प्रदेश की समृद्ध देव संस्कृति की पहचान, संरक्षण, संवर्धन तथा विश्व स्तर पर पहचान दिलाने, सांस्कृतिक इतिहास लेखन एवं संकलन एवं युवा, वरिष्ठ एवं वृद्ध संगीतकारों, कलाकारों, साहित्यकारों, नाटककारों के लिए सम्मान राशि एवं पुरस्कारों के लिए सांस्कृतिक नीति होना जरूरी है। सांस्कृतिक नीति नीति निर्धारण, चयन तथा संचालन में प्रतिष्ठित कलाकारों की भूमिका को सुनिश्चित करने, कलाकारों की गरिमा एवं मान-सम्मान बनाए रखने, हिमाचल प्रदेश में लोक गीतों, लोकवाद्यों, लोकनृत्यों, समृद्ध कला और संस्कृति का विस्तार होना, कलात्मक, सृजनात्मक तथा रचनात्मक वातावरण बनाने की आवश्यकता है। इस पहाड़ी सुंदर प्रदेश की अपनी एक प्रभावशाली सांस्कृतिक नीति होनी चाहिए। प्रदेश में समग्र कलाओं के विकास, लोक कलाओं के संरक्षण, कलाकारों के आर्थिक संवर्धन के लिए एक संयुक्त, समग्र, संतुलित तथा सशक्त सांस्कृतिक नीति की महती आवश्यकता है।

प्रो. सुरेश शर्मा

लेखक घुमारवीं से हैं


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