पटाखा फैक्टरी में विस्फोट बड़ी लापरवाही

By: Mar 5th, 2022 12:08 am

जिला ऊना प्रशासन ने इस पटाखा फैक्टरी के लिए क्या एडवाइजरी जारी कर रखी थी, यह अब सबसे बड़ा सवाल है। दुकानदार पटाखे अन्य राज्यों से खरीददारी करके लाते हैं। हिमाचल प्रदेश में अब बनने वाले पटाखों की बिक्री, उनकी सप्लाई कहां की जाती रही, यह जांच का विषय है। आबकारी एवं कराधान विभाग मौत की फैक्टरी से आखिर किस तरह टैक्स वसूल करता रहा, यह चिंताजनक है…

हिमाचल प्रदेश में आए दिन अवैध कारोबार करने वालों की वजह से लोगों का बेमौत मरना बेहद दुखद है। सरकारी मशीनरी इस कदर लापरवाह हो चुकी है कि एक उद्योग मालिक हिमाचल प्रदेश की बिजली चोरी करके अवैध रूप से अपनी फैक्टरी में पटाखे बनाकर सरकार की आंखों में धूल झोंकता रहा। देवभूमि की इस मार्मिक घटना से प्रदेश की छवि उद्योग क्षेत्र में अब बदनाम होकर रह गई है। इन्वेस्टर मीट के जरिए प्रदेश में उद्योग स्थापित करने के लिए बुलाए जाने वालों पर इसका क्या असर पड़ेगा, यह आने वाला समय ही बताएगा। सुंदरनगर में जहरीली अवैध शराब पीने की वजह से सात लोगों के मरने की जांच अभी चल रही है। एसआईटी ने दर्जनों लोगों के खिलाफ मामला दर्ज करके उनकी संपत्तियां जब्त किए जाने की मुहिम छेड़ी है। वहीं अब आबकारी एवं कराधान विभाग भी अपनी साख बचाने के लिए सतर्क हो चुका है। अब जिला ऊना स्थित बाथु बाथड़ी में एक पटाखा फैक्टरी में बारूद का विस्फोट होने की वजह से छह महिलाओं की मृत्यु और चौदह अन्य लोगों की गंभीर हालत में जख्मी होने की घटना से पूरा हिमाचल प्रदेश सदमे में है। जख्मी लोगों में दो पुरुष और बारह महिलाएं हैं जिन्हें पीजीआई चंडीगढ़ में भर्ती किया गया है। कुल मिलाकर अब तक बारह लोग बारूद में ब्लास्ट की वजह से मर चुके हैं।

 इस विस्फोट की वजह से प्रदेश सरकार की कार्यप्रणाली भी संदेह के दायरे में आ गई है। हैरानी इस बात की है कि पटाखे बनाने वाली इस शेडनुमा फैक्टरी के बारे में स्थानीय प्रशासन, पुलिस, विद्युत, जल शक्ति, अग्निशमन, आबकारी एवं कराधान विभाग, प्रदूषण, श्रम मंत्रालय, सुरक्षा एजेंसियों सहित स्थानीय पंचायत तक को कोई पुख्ता जानकारी न होना समझ से परे है। स्थानीय जनता भी आखिर किस तरह की हो सकती है जिसे इतना भी पता नहीं चल सका कि बगल में मौत की फैक्टरी भी कोई चला रहा है। इस विस्फोटक घटना में तीन प्रवासी महिलाओं के मरने की बात भी सामने आई है। जिला ऊना में इस तरह बारूद विस्फोट की घटना पहली नहीं। इससे पूर्व भी प्रवासी मजदूरों की झोंपडि़यां आगजनी की भेंट चढ़ चुकी हैं। क्या यही मान लिया जाए कि इससे पूर्व भी ऐसा धंधा चलता रहा, जिसकी प्रशासन को भनक तक नहीं। जिस फैक्टरी में कभी धर्मकांटे का काम चलता रहा, उसमें पिछले तीन वर्षों से अवैध रूप से पटाखे बनाए जा रहे हों, ऐसा कृत्य कोई आम आदमी नहीं कर सकता है। धर्मकांटे का कारोबार करने वाले उद्योग मालिक ने मात्र एक साधारण शपथ पत्र के सहारे इस फैक्टरी को दिल्ली के एक मालिक को इसमें पटाखे बनाने के लिए उसे कैसे बेच दिया? ऊना पुलिस अब उस मालिक को गिरफ्तार करने के लिए निकल पड़ी है। औद्योगिक क्षेत्र के बीचों-बीच ऐसी पटाखा फैक्टरी चलाना किसी अप्रिय घटना घटित होने का न्योता दिए जाने के बराबर थी।

 उद्योग विभाग से अगर कोई आम जनमानस लघु उद्योग स्थापित किए जाने के लिए आवेदन करे तो उसे अनेकों मापदंड पूरे करने पड़ते हैं। इसके बावजूद बिना जान-पहचान निकाले उद्योग लगाने की अनुमति मिलना आसान काम नहीं होता है। तदोपरांत बैंक प्रबंधकों, विद्युत और जल शक्ति विभाग की औपचारिकताएं भी कहीं अधिक बढ़ जाती हैं। प्रदेश सरकारें बेरोजगार युवाओं को लघु उद्योग स्थापित करके रोजगार से जोड़ने के लिए प्रयासरत रहती हैं। सरकारी विभाग और कुछेक बैंक प्रबंधक सरकार की तमाम योजनाओं को सिरे चढ़ाने में अड़चनें पैदा करते हैं। पटाखा फैक्टरी में जिस तरह विस्फोट की घटना घटित हुई, उसमें कई सरकारी विभागों की बड़ी लापरवाही रही जिसकी वजह से प्रदेश सरकार की अब किरकिरी होने लगी है। दीपावली से पूर्व सर्वोच्च न्यायालय प्रदेश सरकारों को पटाखे अधिक न चलाए जाने की एडवाइजरी जारी करता है। प्रदेश सरकार का स्थानीय प्रशासन भी अपनी एडवाइजरी में जनता को देर रात तक पटाखे न चलाए जाने तथा सभी दुकानदारों को एक जगह पर इनकी बिक्री किए जाने का फरमान जारी करता है। जिला ऊना प्रशासन ने इस पटाखा फैक्टरी के लिए क्या एडवाइजरी जारी कर रखी थी, यह अब सबसे बड़ा सवाल है। दुकानदार पटाखे अन्य राज्यों से खरीददारी करके लाते हैं। हिमाचल प्रदेश में अब बनने वाले पटाखों की बिक्री, उनकी सप्लाई कहां की जाती रही, यह जांच का विषय है। आबकारी एवं कराधान विभाग मौत की फैक्टरी से आखिर किस तरह टैक्स वसूल करता रहा, यह चिंताजनक है।

 प्रदेश सरकार उद्योग मालिकों की हरसंभव मदद कर रही है जिसके चलते लोगों को रोजगार के अवसर मिलते हैं। कोरोना वायरस के शुरुआती दौर में प्रदेश सरकार का अधिक फोकस सिर्फ प्रवासी मजदूरों को प्रत्येक सुविधा मुहैया करवाने पर रहा है। संक्रमण काल में लोगों का कामकाज, यहां तक कि बिना वजह घरों से बाहर निकलना भी प्रतिबंधित रहा। इसके बावजूद प्रदेश में अधिकतर उद्योग नियमों को ताक पर रखकर सरेआम चलते रहे हैं। ऐसे में फिर कैसे विश्वास किया जाए कि पटाखा फैक्टरी सरकार की अनुमति बिना ही चलाई जा रही थी। वास्तव में अगर ऐसा है तो उन सभी सरकारी अधिकारियों पर कार्रवाई होनी चाहिए जो इस बारूद विस्फोटक घटना के लिए उत्तरदायी हैं। प्रत्येक उद्योग मालिक ने अपनी ही नियमावली बना रखी है जिसका खामियाजा प्रवासी मजदूरों को भी भुगतना पड़ रहा है। मजदूरों के आवास, खानपान, शौचालय और स्वास्थ्य बीमा संबंधी कोई खास सुविधा उद्योग प्रबंधकों द्वारा उन्हें मुहैया नहीं करवाई जाती है। ऐसे मजदूर कड़ी धूप में मेहनत-मजदूरी करने के बावजूद अपना शरीर ढकने के लिए भी दानी लोगों पर निर्भर करते हैं। उद्योग मंत्री अब इस विस्फोटक घटना में जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई किए जाने का दुखड़ा रो रहे हैं। अगर समय रहते मौत की फैक्टरी चलाने वाले मालिक के खिलाफ कार्रवाई की होती तो आज कई महिलाएं बेमौत नहीं मरती। पटाखा उद्योग मालिक की संपत्ति जब्त करके इस कांड के पीडि़त लोगों को बांटी जाए।

सुखदेव सिंह

लेखक नूरपुर से हैं


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